बेंगलुरु : कर्नाटक के चामराजनगर जिले के येल्लदूर तालुक में बिलिगिरी रंगा वन क्षेत्र में पाए जाने वाले अनोखे करिकालु मारा के पेड़ की कलियों और पत्तियों को जलाए जाने पर प्रकाश निकलता हैं. इसे पांडवों के विक के रूप में जाना जाता हैं. ईटीवी भारत ने इस खबर को रिपोर्ट करते हुए 'पांडवों के विक' की वास्तविकता की जांच की. 'करिकालु मारा' की पत्तियों और कलियों से प्रकाश मिला. यह वास्तव में प्रकृति का आश्चर्य है.
करिकालु मारा के रूप में प्रसिद्ध इस पेड़ की कई विशेषताएं हैं. इसकी कलियां और पत्तियों से चमकदार रोशनी निकलती है. बिलिगिरी रंगा वन विभिन्न प्रकार के पेड़ों के साथ एक प्राकृतिक रूप से समृद्ध जंगल है. यहां के आदिवासी पुराने समय में रात में दीपक के रूप में उनका उपयोग कर रहे थे.
ऐसा कहा जाता है कि स्थानीय आदिवासी सोलीगास पेड़ की कलियों का उपयोग लैंप के रूप में बहुत पहले से करते आ रहे है. हालांकि यह कहा जाता है कि उन्होंने केरोसिन लैंप के बाद इसका प्रयोग बंद कर दिया. इन कलियों को उनकी खुशबू के लिए भी जाना जाता है.
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एक स्थानीय किंवदंती के अनुसार महाभारत के पांडवों ने जंगल में रहने पर अपनी कुटिया में उजाला करने के लिए इन कलियों और पत्तियों का उपयोग किया था. इसलिए सोलीगास आदिवासी इस पेड़ को 'पांडवों का विक' भी कहते हैं. सोलीगास का मानना है कि एक महिला ने पांडवों की रानी द्रौपदी को इन कलियों और पत्तियों को जलाने का कौशल सिखाया था.
सोलीगास के नेता डॉ. मेडगौड़ा कहते हैं कि करिकालु मारा पेड़ की कलियां और पत्ते प्रकाश में चमकते हैं क्योंकि वे एक खास तरह के लकड़ी के पाउडर का उत्पादन करते हैं, जो तेल से जलता है. दिलचस्प बात यह है कि इस पेड़ की केवल कलियां और पत्तियां जलती हैं और रोशनी देती हैं.
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विवेकानंद गिरिजा कल्याण केंद्र के शिक्षक रामचारी कहते हैं कि पांडव इसी पेड़ की कलियों पर निर्भर थे. उनकी रानी द्रौपदी ने इन कुंडों का इस्तेमाल अपनी झोपड़ी को रोशन करने के लिए किया था.
हनीबे के बिलीगिरी रंगा वन क्षेत्र में ये पेड़ काफी संख्या में पाए जाते हैं. यहां के कई लोग मधुमक्खियों का शिकार करते हैं. सोलीगास के लोग इन मधुमक्खियों से शहद इकट्ठा करते हैं और अपनी आजीविका के लिए इसे बेचते हैं.