पुरी : श्री जगन्नाथ की तरह पुरी के मंदिर की महानता 'श्री खेतरा' के रूप में जानी जाती है, जो दुनिया में हर जगह सुनाई देती है. इस पवित्र शहर के हर कोने में भक्तों के मन में प्रभु के प्रति प्रेम उमड़ता है. भगवान के निवास के भव्य मंदिर से लेकर 'बैसी पहाक' तक (मंदिर की भीतरी दीवार तक बाहरी परिधि की दीवार से निकले हुए दो पवित्र चरण), 'महाप्रसाद' (भगवान को अर्पित किए गए चावल) से लेकर महासागर (बंगाल की खाड़ी) तक इस शहर का प्रत्येक स्थान वैभव पूर्ण है. इसी कड़ी में 'शारदा बाली' (गुंडिचा मंदिर के सामने की रेतीली जगह जिसकी रेत भक्तिपूर्ण मानी जाती है) का महत्व हर जगह है. श्री गुंडिचा मंदिर से बड़े शंख तक फैली विशाल भूमि को शारदा बाली के नाम से जाना जाता है. यह कोई साधारण बालू नहीं है. इसे 'बाजरा धूली' (उपकथा बालू) भी कहा जाता है.
भक्त कवि बनमाली दास ने एक बार एक गाना गया था, जिसमें उन्होंने भगवान से प्रार्थना की थी कि 'हे भगवान जगन्नाथ मैं आपसे किसी भी कृपा की भीख नहीं मांग रहा हूं, न ही मैं धन मांग रहा हूं और न ही मैं किसी संतान का वरदान मांग रहा हूं. मैं तुमसे सारदा बाली की सिर्फ एक मुट्ठी रेत मांग रहा हूं.' सेवक बताते हैं कि जब भगवान श्री जगन्नाथ अपने नौ दिन के रथ यात्रा (गुंडिचा जात्रा) में जाते हैं तो उनका रथ इस शारदा बाली में रुक जाता है. शारदा बाली से भगवान जगन्नाथ को गुंडिचा मंदिर (जिसे अदप मंडप के नाम से जाना जाता है) के गर्भगृह में रखे जाने के लिए एक पांडी (दैत्यपति सेवकों द्वारा भगवान को अपने कंधों पर लेकर चलना) में ले जाया जाता है. भगवान को गुंडिचा मंदिर में प्रवेश करने से पहले इस स्थान से एक पहाड़ी में ले जाया जाता है, जिसके कारण इस स्थान की रेत को बहुत पवित्र माना जाता है.
शारदा बाली नाम का इतिहास
इस जगह का नाम 'शारदा बाली' रखने के पीछे एक इतिहास छुपा हुआ है, प्राचीन काल में देवताओं के यात्रा महोत्सव के लिए छह लकड़ी के रथों का निर्माण किया जाता था. क्योकि मालिनी नदी बड़ा सांकड़ा के पास बहती थी. देवताओं को इस स्थान तक तीन रथों में लाया जा रहा था और फिर उन्हें नदी के किनारे रखी नौकाओं में पार कराया जाता था. इसके बाद उन्हें तीन दूसरे छोटे रथों में श्री गुंडिचा मंदिर में ले जाया जाता था. बारिश के मौसम में बहाव तेज होने की वजह से नदी पार करने में समय ज्यादा लगता था. जिससे वहां की श्रद्धारानी पाटम महादेयी ने नदी को रेत से पटवा दिया. जिससे भगवान जगन्नाथ को उस बालू में से ले जाया जाने लगा.
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भक्त शारदा बाली की रेत श्री जगन्नाथ की तरह पवित्र मानकर अपने सिर पर लगाते हैं, अपने पूरे शरीर पर मलते हैं और कपड़े के एक कोने में मुट्ठी भर रेत रखते हैं. भक्त की पवित्र रेत की आस्था पूरी तरह से अभिभूत है. वह भक्ति में खुद को खो देता है.