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नई जांच किट : कोविड-19 मरीजों में श्वसन संबंधी गंभीर रोग के बारे में बताएगी - कृत्रिम मेधा उपकरण विकसित

न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम मेधा उपकरण विकसित किया है, जो सही-सही बता सकता है कि कोरोना वायरस से संक्रमित नए मरीजों में से किसको श्वसन संबंधी गंभीर रोग हो सकते हैं. जानें विस्तार से...

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Published : Mar 31, 2020, 7:33 PM IST

न्यूयॉर्क : वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम मेधा उपकरण विकसित किया है, जो सही-सही बता सकता है कि कोरोना वायरस से संक्रमित नए मरीजों में से किसको श्वसन संबंधी गंभीर रोग हो सकते हैं.

'कंप्यूटर्स, मैटेरियल्स एंड कंटिनुआ' नाम के जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में रोग की भविष्य में गंभीरता बताने वाले श्रेष्ठ संकेतक बताए गए हैं.

न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में क्लिनिकल असिस्टेंट प्रोफेसर मेगन कॉफी ने कहा, 'यह निश्चित ही एक ऐसा उपकरण है, जो बता पाएगा कि मरीजों में से वायरस के प्रति कौन अधिक संवेदनशील है.'

विश्वविद्यालय में एक अन्य क्लिनिकल असिस्टेंट प्रोफेसर अनास बारी ने कहा, 'हमें उम्मीद है कि जब यह उपकरण पूरी तरह से विकसित हो जाएगा तो अस्पताल में संसाधन सीमित होने पर चिकित्सकों को यह आकलन करने में मदद मिलेगी कि किन रोगियों को वास्तव में भर्ती करने की जरूरत है और किसका घर लौटना सुरक्षित होगा.'

इसे भी पढ़ें- कोरोना LIVE : महाराष्ट्र में 77 नए मामलों की पुष्टि, कुल संक्रमित लोगों का आंकड़ा 302 तक पहुंचा

इस अध्ययन का उद्देश्य यह पता लगाना था कि क्या कृत्रिम मेधा तकनीकें इस बात का सटीक आकलन करने में मददगार हो सकती हैं कि वायरस संक्रमित किन रोगियों को एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) हो सकता है, जो वृद्धावस्था में जानलेवा साबित हो सकता है.

एआरडीएस में फेफड़ों में पानी भर जाता है.

न्यूयॉर्क : वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम मेधा उपकरण विकसित किया है, जो सही-सही बता सकता है कि कोरोना वायरस से संक्रमित नए मरीजों में से किसको श्वसन संबंधी गंभीर रोग हो सकते हैं.

'कंप्यूटर्स, मैटेरियल्स एंड कंटिनुआ' नाम के जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में रोग की भविष्य में गंभीरता बताने वाले श्रेष्ठ संकेतक बताए गए हैं.

न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में क्लिनिकल असिस्टेंट प्रोफेसर मेगन कॉफी ने कहा, 'यह निश्चित ही एक ऐसा उपकरण है, जो बता पाएगा कि मरीजों में से वायरस के प्रति कौन अधिक संवेदनशील है.'

विश्वविद्यालय में एक अन्य क्लिनिकल असिस्टेंट प्रोफेसर अनास बारी ने कहा, 'हमें उम्मीद है कि जब यह उपकरण पूरी तरह से विकसित हो जाएगा तो अस्पताल में संसाधन सीमित होने पर चिकित्सकों को यह आकलन करने में मदद मिलेगी कि किन रोगियों को वास्तव में भर्ती करने की जरूरत है और किसका घर लौटना सुरक्षित होगा.'

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इस अध्ययन का उद्देश्य यह पता लगाना था कि क्या कृत्रिम मेधा तकनीकें इस बात का सटीक आकलन करने में मददगार हो सकती हैं कि वायरस संक्रमित किन रोगियों को एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) हो सकता है, जो वृद्धावस्था में जानलेवा साबित हो सकता है.

एआरडीएस में फेफड़ों में पानी भर जाता है.

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