शिमला: आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहली पुण्यतिथि है. आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है. राष्ट्रपति, पीएम मोदी समेत देश के सभी बड़े नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. अटल जी देश के लोकप्रिय जननेता थे. हिमाचल के टशी दावा से उनकी दोस्ती काफी मशहूर है. अटल बिहारी वाजपेयी बेशक पूरे देश के लिए प्रधानमंत्री थे, लेकिन हिमाचल के लिए वे अभिभावक की तरह रहे.
दो लोगों की दोस्ती में एक-दूसरे को छोटे-छोटे स्नेह से भरे तोहफे देना आम बात है, लेकिन एक मित्र अगर देश का मुखिया हो तो तोहफा बड़ा हो जाता है. इसे रोहतांग टनल के उदाहरण से समझा जा सकता है. बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने टशी दावा के मांगने पर उन्हें यह तोहफे में दिया था.
गौरतलब है की भारत के महान नेताओं में शुमार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने किशोरावस्था के मित्र टशी दावा के मांगने पर रोहतांग टनल तोहफे में दिया था. जो अब देश के लिए वरदान साबित होगा.
जानकारी के लिए बता दें कि टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल लाहौल के ठोलंग गांव के रहने वाले थे. आजादी से पहले टशी दावा और अटल बिहारी वाजपेयी आरएसएस में एक साथ सक्रिय थे. दोनों वर्ष 1942 में गुजरात के बड़ोदरा में आयोजित संघ के एक प्रशिक्षण शिविर में मिले थे. जिस दौरान दोनों में गहरी दोस्ती हो गई.
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टशी के मन में लाहौल घाटी की कठिन जिंदगी को लेकर काफी पीड़ा थी. वहीं, बर्फबारी के दौरान लाहौल घाटी छह महीने तक शेष दुनिया से कट जाती थी और उस बीच बीमार लोगों को स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पाती थी. उन्होंने सोचा कि अगर लाहौल घाटी को मनाली से सुरंग के जरिए जोड़ दिया जाए तो यह सारी समस्याएं दूर हो सकती हैं.
इसी विचार को लेकर वर्ष 1998 में टशी अपने दो सहयोगियों के साथ दोस्त और तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी से मिलने के लिए दिल्ली पहुंचे. उन्होंने वाजपेयी को लाहौल का दुख सुनाया. जिस पर वाजपेयी ने तुरंत हामी भरी और फिर कुछ समय बाद केलांग के दौरे पर आए और रोहतांग टनल के निर्माण की घोषणा की.
अटल जी 16 अगस्त, 2018 में दुनिया को अलविदा कह गए. ये विडंबना ही रही कि वे अपने ड्रीम प्रोजेक्ट को जनता को लोकार्पित नहीं कर पाए, लेकिन उनकी ये देन हिमाचल और देश कभी नहीं भूल पाएगा.
इसके अलावा विलक्षण वाकपटुता के लिए आज भी वाजपेयी को याद किया जाता है. लोकप्रिय नेता के अलावा उनकी एक छवि साहित्यिक पक्ष से भी जुड़ी है. वैसे तो पूर्व प्रधानमंत्री की कई सारी कविताएं हैं जो लोगों के बीच खासी लोकप्रिय रहीं. पहाड़ों या यूं कहें कि हिमाचल के लिए उनका प्यार उनकी कविताओं में भी झलकता है. पेश है अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि पर उनकी स्मृति में ये कविता.
मनाली पर लिखी उनकी ये कविता
मनाली मत जइयो, गोरी राजा के राज में.
जइयो तो जइयो, उड़िके मत जइयो,
अधर में लटकीहौ, वायुदूत के जहाज में.
जइयो तो जइयो, सन्देसा न पइयो,
टेलिफोन बिगड़े हैं, मिर्धा महाराज में.
जइयो तो जइयो, मशाल ले के जइयो,
बिजुरी भइ बैरिन, अंधेरिया रात में.
कुल्लू को अपना दूसरा घर कहने वाले अटल ने यहां की वादियों को स्वर्ग कहा. ऐसे में साहित्य प्रेमियों के बीच मनाली पर लिखी उनकी कविता के अलावा कई और कविता भी लोकप्रिय हैं. दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी एक राजनेता से कहीं ज्यादा अपनी कविताओं के लिए चर्चित रहे. वाजपेयी ने कई मौकों पर अभिव्यक्ति के लिए कविता को माध्यम बनाया. हालांकि, वाजपेयी जी लंबे समय तक बीमारी की वजह से खामोश रहे.
वर्ष 1988 में जब वह किडनी के इलाज के लिए अमेरिका गए तो प्रसिद्ध साहित्यकार धर्मवीर भारती को पत्र लिखा. उस पत्र में उन्होंने 'मौत से ठन गई..' कविता लिखी. वाजपेयी की इस अभिव्यक्ति को मौत की आंखों में झांककर लिखना माना गया.
कविता का अंश कुछ यूं है..
ठन गई! मौत से ठन गई! जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यों लगा जि़न्दगी से बड़ी हो गई.
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं.मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?
धर्मवीर भारती को लिखे पत्र में वाजपेयी ने बताया था कि डाक्टरों ने सर्जरी की सलाह दी है. सर्जरी के नाम से उनके मन में एक प्रकार का ऊथल-पुथल मचा हुआ था, और इसी मनोदशा के बीच वाजपेयी ने यह कविता लिखी थी.
दिलचस्प पहलू यह भी है कि वाजपेयी को अमेरिका भेजने के पीछे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. राजीव ने संयुक्त राष्ट्र जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में वाजपेयी का नाम शामिल किया था.
राजीव के इस फैसले का मकसद ये था कि वाजपेयी वहां अपना इलाज करा सकें. वाजपेयी इस बात के लिए राजीव सराहना किया करते थे, और कुछ मौकों पर तो उन्होंने कहा भी था कि वे राजीव की वजह से जिंदा हैं. वाजपेयी की कविताएं जीवन का नजरिया भी हैं. ऐसी ही एक कविता का अंश
खून क्यों सफेद हो गया?
भेद में अभेद हो गया.
बंट गए शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई.
दूध में दराड़ पड़ गई.
उनकी कविताएं समाज के ताने-बाने के बीच साथ मिलकर चलने की ओर इशारा भी करती हैं..
बाधाएं आती हैं आएं,
घिरे प्रलय की घोर घटाएं,
पांवों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं
निज हाथों में हंसते-हंसते
आग लगाकर जलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा.
वाजपेयी ने अपनी कविता जरिये महात्मा गांधी से क्षमा भी मांगी. उन्होंने जयप्रकाश नारायण की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का भरोसा भी दिया.
क्षमा करो बापू! तुम हमको,
वचन भंग के हम अपराधी,
राजघाट को किया अपावन,
मंजिल भूले, यात्रा आधी.
जयप्रकाश जी! रखो भरोसा,
टूटे सपनों को जोड़ेंगे.
चिताभस्म की चिंगारी से,
अंधकार के गढ़ तोड़ेंगे.
आज की सत्ता और जनता के बीच के संबंधों पर भी वाजपेयी ने कविता लिखी. उन्होंने कौरव और पांडव की उपमाओं के जरिये इस संबंध की व्याख्या करने की कोशिश की. ऐसा लगता है कि ये आज के दौर में भी सटीक बैठती है.
कौरव कौन, कौन पांडव
टेढ़ा सवाल है
दोनों ओर शकुनि का फैला
कूटजाल हैधर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है
हर पंचायत में पांचाली
अपमानित हैबिना कृष्ण के आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने
रंक को तो रोना है
एक कवि के रूप में भी वाजपेयी ने 'क्रांति और शांति' दोनों ही राग को धार दी. उनकी कविताएं निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है. 'मेरी इक्यावन कविताएं' उनके प्रखर लेखन का अद्भुत परिचय है. वाजपेयी ने कभी लिखा था :
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना
गैरों को गले न लगा सकूं
इतनी रूखाई कभी मत देना.
वाजपेयी ने अपने समय के कटु सत्य को भी स्वीकार किया था. इसकी मिसाल उनके काव्यांश में मिलती है. जिन्होंने कभी अपनी कविता में 'गीत नया गाता हूं' लिखा था, बाद में उन्होंने ही लिखा 'गीत नहीं गाता हूं.
बेनकाब चेहरे हैं,
दाग बड़े गहरे हैं,
टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूं.
गीत नहीं गाता हूं.