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नवरात्र विशेष : राजस्थान की भारत-पाक सीमा पर 'तनोट माता' मंदिर, 1965 के युद्ध में हुआ था चमत्कार

नवरात्रि के अवसर पर राजस्थान के जैसलमेर में तनोट माता के सिद्ध मंदिर में रविवार को सुबह आरती और घट स्थापना के साथ नवरात्रि की शुरुआत हो गई. इस मंदिर की खास बात यह है कि तनोट माता का मंदिर भारत-पाकिस्तान युद्ध की कई यादें से जुड़ी है. जानें क्या है विशेष विस्तार से...

जैसलमेर में तनोट माता मंदिर...
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Published : Sep 29, 2019, 5:24 PM IST

Updated : Oct 7, 2019, 8:03 PM IST

जैसलमेर: राजस्थान के थार रेगिस्तान से 120 किमी दूर सीमा के पास स्थित तनोट माता के सिद्ध मंदिर में रविवार को सुबह आरती और घट स्थापना के साथ नवरात्रों की धूम शुरू हो गई. आरती के पश्चात माता के भण्डारे में सैंकड़ों श्रृद्धालुओं ने प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण किया.

बता दें कि ये मंदिर बेहद खास है क्योंकि ये एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसकी पूजा और सभी व्यवस्थाएं BSF के जवान करते है. भारत-पाकिस्तान युद्ध के कई यादें से जुड़ी यह मंदिर भारत ही नहीं, बल्कि पाकिस्तानी सेना के लिये भी आस्था का केन्द्र बना हुआ है. देश की पश्चिमी सीमा के निगेहबान जैसलमेर जिले की पाकिस्तान से सटी सीमा पर बना यह तनोट माता का मंदिर भारत पाक के 1965 और 1971 के युद्ध का मूक गवाह भी है.

जैसलमेर में तनोट माता मंदिर...

नवरात्रि के अवसर पर सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से श्रृद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए तनोट में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए है. सीमा सुरक्षा बल के जवानों के साथ पुलिसकर्मी तैनात है. तनोट सड़क मार्ग पर पैदल जाने वाल भक्तों की सुविधा के लिए माता के भक्तों ने नि:शुल्क भण्डारे लगाए है, जहां भक्तों के लिए खाने, ठहरने, चाय और दवाईयों की व्यवस्था की गई है.

tanot-mata-temple jaislmer
बीएसएफ के जवान यहां आने वाले श्रद्धालुओं को कराते हैं सामूहिक भोजन

इसे भी पढ़ेंः मां दुर्गा के स्वागत के लिए तैयार है एशिया की सबसे बड़ी फूल मंडी, देखिए स्पेशल रिपोर्ट

पाकिस्तानी सेना को परास्त करने में तनोट माता की भूमिका बड़ी अहम
बता दें कि 1965 के बीच की जब दुश्मन की जबरदस्त आग उगलती तोपों ने तनोट को तीनों ओर से घेर लिया था उस वक्त पाक सेना की ओर से मंदिर को निशाना बनाया गया था लेकिन मंदिर पे एक खरोच तक नहीं आई थी. वहीं सेना कि तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर को टस से मस न कर सकी, यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 400 बम तो फटे तक नहीं थे.

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तनोट माता मंदिर के बाहर इसी नाम पर पीलर भी बनाया गया है

यहीं कारण रहा कि 1965 के युद्ध के दौरान माता के चमत्कारों के आगे नतमस्तक हुए पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाजखान ने भारत सरकार से यहां दर्शन करने की अनुमति देने का अनुरोध किया था. करीब ढ़ाई साल की जद्दोजहद के बाद भारत सरकार से अनुमति मिलने पर ब्रिगेडियर खान ने माता की प्रतिमा के दर्शन किए और मंदिर में चांदी के तीन सुन्दर छत्र भी चढ़ाये जो आज भी मंदिर में विद्यमान है और इस घटना का गवाह बना हुआ है.

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मंदिर में पारंपरिक पूजा के अलावा, अस्त्र-शस्त्र की सजावट

मंदिर परिसर में 450 तोप के गोले रखे हुए हैं. यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये भी ये आकर्षण का केन्द्र है. लगभग 1200 साल पुराने तनोट माता के मंदिर के महत्व को देखते हुए बीएसएफ ने यहां अपनी चौकी बनाई है, इतना ही नहीं बीएसएफ के जवानों के ओर से अब मंदिर की पूरी देखरेख की जाती है.

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तनोट माता मंदिर में बीएसएफ जवान भजन गायन और संगीत में भी भाग लेते हैं

इसे भी पढ़ेंः शारदीय नवरात्र: पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित, मंदिरों में धूमधाम से हो रहा पूजन

रूमाल बांधकर मांगते हैं मन्नत
माता तनोट के प्रति प्रगाढ़ आस्था रखने वाले भक्त मंदिर में रूमाल बांधकर मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर रूमाल खोला जाता है. तनोट माता ने सैंकड़ो भक्तों की झोलियां खुशियों से भरी है. मुख्यमंत्री से लेकर कई मंत्रीयों और नेताओं के साथ आमजन भी माता के मंदिर में रूमाल बांधकर मन्नत मांगी है.

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मन्नत के लिए मंदिर में भक्तों द्वारा बांधे गए रूमाल

सीसुब पुराने मंदिर के स्थान पर अब एक भव्य मंदिर निर्माण करा रही है. आश्विन और चैत्र नवरात्र में यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. पुजारी भी सैनिक ही है. सुबह-शाम आरती होती है. मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक रक्षक तैनात रहता है, लेकिन प्रवेश करने से किसी को रोका नहीं जाता. फोटो खींचने पर भी कोई पाबंदी नहीं है. इस मंदिर की ख्याति को हिंदी फिल्म ‘बॉर्डर’ की पटकथा में भी शामिल किया गया था.

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तनोट माता मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता

जैसलमेर: राजस्थान के थार रेगिस्तान से 120 किमी दूर सीमा के पास स्थित तनोट माता के सिद्ध मंदिर में रविवार को सुबह आरती और घट स्थापना के साथ नवरात्रों की धूम शुरू हो गई. आरती के पश्चात माता के भण्डारे में सैंकड़ों श्रृद्धालुओं ने प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण किया.

बता दें कि ये मंदिर बेहद खास है क्योंकि ये एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसकी पूजा और सभी व्यवस्थाएं BSF के जवान करते है. भारत-पाकिस्तान युद्ध के कई यादें से जुड़ी यह मंदिर भारत ही नहीं, बल्कि पाकिस्तानी सेना के लिये भी आस्था का केन्द्र बना हुआ है. देश की पश्चिमी सीमा के निगेहबान जैसलमेर जिले की पाकिस्तान से सटी सीमा पर बना यह तनोट माता का मंदिर भारत पाक के 1965 और 1971 के युद्ध का मूक गवाह भी है.

जैसलमेर में तनोट माता मंदिर...

नवरात्रि के अवसर पर सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से श्रृद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए तनोट में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए है. सीमा सुरक्षा बल के जवानों के साथ पुलिसकर्मी तैनात है. तनोट सड़क मार्ग पर पैदल जाने वाल भक्तों की सुविधा के लिए माता के भक्तों ने नि:शुल्क भण्डारे लगाए है, जहां भक्तों के लिए खाने, ठहरने, चाय और दवाईयों की व्यवस्था की गई है.

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बीएसएफ के जवान यहां आने वाले श्रद्धालुओं को कराते हैं सामूहिक भोजन

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पाकिस्तानी सेना को परास्त करने में तनोट माता की भूमिका बड़ी अहम
बता दें कि 1965 के बीच की जब दुश्मन की जबरदस्त आग उगलती तोपों ने तनोट को तीनों ओर से घेर लिया था उस वक्त पाक सेना की ओर से मंदिर को निशाना बनाया गया था लेकिन मंदिर पे एक खरोच तक नहीं आई थी. वहीं सेना कि तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर को टस से मस न कर सकी, यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 400 बम तो फटे तक नहीं थे.

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तनोट माता मंदिर के बाहर इसी नाम पर पीलर भी बनाया गया है

यहीं कारण रहा कि 1965 के युद्ध के दौरान माता के चमत्कारों के आगे नतमस्तक हुए पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाजखान ने भारत सरकार से यहां दर्शन करने की अनुमति देने का अनुरोध किया था. करीब ढ़ाई साल की जद्दोजहद के बाद भारत सरकार से अनुमति मिलने पर ब्रिगेडियर खान ने माता की प्रतिमा के दर्शन किए और मंदिर में चांदी के तीन सुन्दर छत्र भी चढ़ाये जो आज भी मंदिर में विद्यमान है और इस घटना का गवाह बना हुआ है.

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मंदिर में पारंपरिक पूजा के अलावा, अस्त्र-शस्त्र की सजावट

मंदिर परिसर में 450 तोप के गोले रखे हुए हैं. यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये भी ये आकर्षण का केन्द्र है. लगभग 1200 साल पुराने तनोट माता के मंदिर के महत्व को देखते हुए बीएसएफ ने यहां अपनी चौकी बनाई है, इतना ही नहीं बीएसएफ के जवानों के ओर से अब मंदिर की पूरी देखरेख की जाती है.

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तनोट माता मंदिर में बीएसएफ जवान भजन गायन और संगीत में भी भाग लेते हैं

इसे भी पढ़ेंः शारदीय नवरात्र: पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित, मंदिरों में धूमधाम से हो रहा पूजन

रूमाल बांधकर मांगते हैं मन्नत
माता तनोट के प्रति प्रगाढ़ आस्था रखने वाले भक्त मंदिर में रूमाल बांधकर मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर रूमाल खोला जाता है. तनोट माता ने सैंकड़ो भक्तों की झोलियां खुशियों से भरी है. मुख्यमंत्री से लेकर कई मंत्रीयों और नेताओं के साथ आमजन भी माता के मंदिर में रूमाल बांधकर मन्नत मांगी है.

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मन्नत के लिए मंदिर में भक्तों द्वारा बांधे गए रूमाल

सीसुब पुराने मंदिर के स्थान पर अब एक भव्य मंदिर निर्माण करा रही है. आश्विन और चैत्र नवरात्र में यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. पुजारी भी सैनिक ही है. सुबह-शाम आरती होती है. मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक रक्षक तैनात रहता है, लेकिन प्रवेश करने से किसी को रोका नहीं जाता. फोटो खींचने पर भी कोई पाबंदी नहीं है. इस मंदिर की ख्याति को हिंदी फिल्म ‘बॉर्डर’ की पटकथा में भी शामिल किया गया था.

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तनोट माता मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता
Intro:Body:Note : नवरात्रा स्पेशल स्टोरी है इसमें वीओ नही किया गया है।

बम वाली देवी "तनोट माता"

भारत-पाकिस्तान युद्ध का गवाह बना एक मंदिर,
सीमा पर दुश्मनो से रक्षा करती है यह देवी ,
भारत -पाक सीमा पर स्थित है तनोटराय मंदिर,
भारत पाक के 1965 व 1971 के युद्ध का मूक गवाह यह देवी,
एकमात्र मंदिर जिसकी पूजा एवं सभी व्यवस्थाएं BSF के जवान करते है,
तनोट माता मंदिर कई स्थानों से श्रदालु पैदल रवाना,
मातेश्वरीतनोटराय मंदिर में आस्था का सैलाब,
तनोट में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम,
हर किसी पर रखी जा रही है पैनी नजर,


हिन्दुस्तान की धार्मिक संस्कृति जो देश भर के अलग अलग कोनों में अपने अलग अलग रंग लिये हुए हैं और आज धर्म और श्रद्धा के इन्ही रंगों से रूबरू होने के लिये हम चल रहे हैं जैसलमेर में भारत पाक सीमा पर बने तनोट माता के मंदिर जहां पर भारत पाकिस्तान युद्ध से जुडी कई अजीबोगरीब यादें जुडी हुई जो देश भर के श्रद्धालुओं को नहीं वरन सेना को अपने आप से जोडे हुए है और भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के लिये भी यह आस्था का केन्द्र बना हुआ है। जैसलमेर में सुबह घट स्थापना के साथ नवरात्रों की धूम शुरू हो गई है। आगामी नौ दिनों तक जैसलमेर में देवी भक्त आराधना में लीन रहेंगे। जिले के सभी शक्तिपीठों में देवी भक्ति, गली मोहल्लों में गरबों की धूम तथा सीमावर्ती तनोट में नवरात्रि का मेला भरा जाएगा। गरबा स्थलों पर जोर शोर से तैयारियां शुरू की गई। वहीं देवी मंदिरों को भी आकर्षक रूप से सजाने के साथ साथ नवरात्रि की तैयारियां अंतिम चरण में है । सुबह शक्तिपीठों के साथ ही घर घर में शुभ मुहूर्त में घट स्थापना किये जा रहे है। सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित शक्तिपीठ मातेश्वरी तनोटरॉय मंदिर में घट कलश स्थापना के साथ ही नौ दिवसीय मेला प्रारम्भ हो गया।

देश की पश्चिमी सीमा के निगेहबान जैसलमेर जिले की पाकिस्तान से सटी सीमा पर बना यह तनोट माता का मंदिर अपने आप में अद्भुत मंदिर हैं। सीमा पर बना यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था के केन्द्र के साथ साथ भारत पाक के 1965 व 1971 के युद्ध का मूक गवाह भी है। ये माता के चमत्कार ही है जो आज इसे श्रद्धालुओं और सेना के दिलों में विशेष स्थान दिलाये हुए है। जी हां... यह कोई दंत कथा नहीं है और न ही कोई मनगढंत कहानी है, 1965 के भारत पाक युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों और सीमा सुरक्षा बल के जवानों की तनोट माता है मां बनकर ही रक्षा करी थी।

जैसलमेर से थार रेगिस्तान में 120 किमी. दूर सीमा के पास स्थित है तनोट माता का सिद्ध मंदिर। जैसलमेर में भारत पाक सीमा पर बने तनोट माता के मंदिर से भारत-पाकिस्तान युद्ध की कई अजीबोगरीब यादें जुडी हुई हैं। यह मंदिर भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के फौजियों के लिये भी आस्था का केन्द्र रहा है। राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना को परास्त करने में तनोट माता की भूमिका बड़ी अहम मानी जाती है। यहां तक मान्यता है कि माता ने सैनिकों की मदद की और पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा। इस घटना की याद में तनोट माता मंदिर के संग्रहालय में आज भी पाकिस्तान द्वारा दागे गये जीवित बम रखे हुए हैं।शत्रु ने तीन अलग-अलग दिशाओं से तनोट पर भारी आक्रमण किया। दुश्मन के तोपखाने जबर्दस्त आग उगलते रहे। तनोट की रक्षा के लिए मेजर जयसिंह की कमांड में ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियां दुश्मन की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थी। 1965 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना कि तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर पर खरोच तक नहीं ला सके, यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 400 बम तो फटे तक नहीं। यहां से पाकिस्तान बोर्डर मात्र 20 किलोमीटर दूर है। वर्ष 1965 के युद्ध के दौरान माता के चमत्कारों के आगे नतमस्तक हुए पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाजखान ने भारत सरकार से यहां दर्शन करने की अनुमति देने का अनुरोध किया। करीब ढ़ाई साल की जद्दोजहद के बार भारत सरकार से अनुमति मिलने पर ब्रिगेडियर खान ने न केवल माता की प्रतिमा के दर्शन किए बल्कि मंदिर में चांदी के तीन सुन्दर छत्र भी चढ़ाये जो आज भी मंदिर में विद्यमान है और इस घटना का गवाह बना हुआ है

तनोट पर आक्रमण से पहले शत्रु सेनाओं ने तीनों दिशाओं से भारतीय सेना को घेर लिया था और उनकी मंशा तनोट पर कब्जा करने की थी क्योकि अगर पाक सेना तनोट पर कब्जा कर लेती तो वह इस क्षेत्र पर अपना दावा कर कर सकती थी इसलिये दोनो ही सेनाओं के लिये तनोट महत्वपूर्ण स्थान बन गया था। बात है 17 से 19 नवम्बर के बीच की जब दुश्मन की जबरदस्त आग उगलती तोपों ने तनोट को तीनों ओर से घेर लिया था और तनोट की रक्षा के लिये भारतीय सेना की कमान संभाले मेजर जयसिंह के पास सीमित संख्या में सैनिक और असला था। शत्रु सेना ने इस क्षेत्र पर कब्जा करने के लिये तनोट से जैसलमेर की ओर आने वाले मार्ग में स्थित घंटियाली के आस पास तक एंटी टैंक माईन्स लगा दिये थे ताकि भारतीय सेना की मदद के लिये जैसलमेर के सडक मार्ग से कोई वाहन या टैंक इस ओर न आ सके। इतनी तैयारी और बडे असले के साथ आई पाक सेना का भारतीय सेना के पास मुकाबला करने के लिये अगर कुछ था तो वह था हौसला और तनोतमाता पर विश्वास, और यह उसे विश्वास का ही चमत्कार था कि दुश्मन ने तनोट माता मंदिर के आस पास के क्षेत्र में करीब तीन हजार गोले बरसाये लेकिन इनमें से अधिकांश अपना लक्ष्य चूक गये इतना ही नहीं पाक सेना द्वारा मंदिर को निशाना बना कर करीब 450 गोले बरसाये गये लेकिर माता के चमत्कार से एक भी बम फटा नहीं और मंदिर को खंरोंच तक नहीं आई और फिर माता के इन चमत्कारों से बढे भारतीय सेना के हौंसलों ने पाक सैनिकों वापिस लौटने पर मजबूर कर दिया।


माता के बारे में कहा जाता है कि युद्ध के समय माता के प्रभाव ने पाकिस्तानी सेना को इस कदर उलझा दिया था कि रात के अंधेरे में पाक सेना अपने ही सैनिकों को भारतीय सैनिक समझ कर उन पर गोलाबारी करने लगे और परिणाम स्वरूप स्वयं पाक सेना द्वारा अपनी सेना का सफाया हो गया। इस घटना के गवाह के तौर पर आज भी मंदिर परिसर में 450 तोप के गोले रखे हुए हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये भी ये आकर्षण का केन्द्र है। लगभग 1200 साल पुराने तनोट माता के मंदिर के महत्व को देखते हुए बीएसएफ ने यहां अपनी चौकी बनाई है, इतना ही नहीं बीएसएफ के जवानों द्वारा अब मंदिर की पूरी देखरेख की जाती हैए मंदिर की सफाई से लेकर पूजा अर्चना और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये सुविधाएं जुटाने तक का सारा काम अब बीएसएफ बखूबी निभा रही है। वर्ष भर यहां आने वाले श्रद्धालुओं की जिनती आस्था इस मंदिर के प्रति है उतनी ही आस्था देश के इन जवानों के प्रति भी है जो यहां देश की सीमाओं के साथ मंदिर की व्यवस्थाओं को भी संभाले हुए है। बीएसएफ ने यहां दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं के लिये विशेष सुविधांए भी जुटा रखी है और मंदिर और श्रद्धालुओं की सेवा का जज्बा यहां जवानों में साफ तौर से देखने को मिलता है। सेना द्वारा यहां पर कई धर्मशालाएं, स्वास्थ्य कैम्प और दर्शनार्थियों के लिये वर्ष पर्यन्त निशुल्क भोजन की व्यवस्था की जाती है। नवरात्रों के दौरान जब दर्शनार्थियों की भीड बढ जाती है तब सेना अपने संसाधन लगा कर यहां आने वाले लोगों को व्यवस्थाएं प्रदान करती है। देशभर की विभिन्न शक्ति पीठों के बीच अपनी खास पहचान स्थापित करने वाला यह मंदिर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने के साथ ही सदियों से सीमा का प्रहरी बना हुआ है।


रूमाल बांधकर मांगते हैं मन्नत-
मुख्यमंत्री से लेकर कई मंत्रीयों व नेताओं के साथ आमजन ने माता के मंदिर में रूमाल बांधकर मन्नत मांगी जिसे माता ने पूरा भी किया। जैसलमेर के वर्तमान विधायक छोटूसिंह भाटी ने रूमाल बांधकर तीसरी बार विधायक बनने की मन्नत मांगी। कहते है सच्चे दिल व साफ मन से मांगी गई मन्नत को माता अवश्य पूरा करती है। तनोट माता को रूमाल वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। माता तनोट के प्रति प्रगाढ़ आस्था रखने वाले भक्त मंदिर में रूमाल बांधकर मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर रूमाल खोला जाता है। तनोट माता ने सैंकड़ो भक्तों की झोलीयां खुशियों से भरी है। यह माता के प्रति बढ़ती आस्था ही है कि दूर दराज से प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालु पैदल यात्रा कर माता के दरबार में पहुंचते हैं और पैदल जाने वाले भक्तों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। तनोट माता के दर्षनार्थ आने वाला हर श्रद्धालु मन्नत लेकर आता है और रूमाल बांधकर माता के प्रति अपनी आस्था प्रकट करता है।

1965 के युद्ध के बाद सीमा सुरक्षा बल ने यहाँ अपनी चौकी स्थापित कर इस मंदिर की पूजा-अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार संभाला तथा वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन और संचालन सीसुब की एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। मंदिर में एक छोटा संग्रहालय भी है जहाँ पाकिस्तान सेना द्वारा मंदिर परिसर में गिराए गए वे बम रखे हैं जो नहीं फटे थे। सीसुब पुराने मंदिर के स्थान पर अब एक भव्य मंदिर निर्माण करा रही है। आश्विन और चैत्र नवरात्र में यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। पुजारी भी सैनिक ही है। सुबह-शाम आरती होती है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक रक्षक तैनात रहता है, लेकिन प्रवेश करने से किसी को रोका नहीं जाता। फोटो खींचने पर भी कोई पाबंदी नहीं। इस मंदिर की ख्याति को हिंदी फिल्म ‘बॉर्डर’ की पटकथा में भी शामिल किया गया था। दरअसल, यह फिल्म ही 1965 युद्ध में लोंगोवाल पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना के हमले पर बनी थी।


आज सुबह आरती के दौरान समूचा मंदिर परिसर खचाखच भर गया। आरती के पश्चात माता के भण्डारे में सैंकड़ों श्रृद्धालुओं ने प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण किया। माता तनोट के प्रति बढ़ती आस्था इस बात का प्रमाण है कि दूर दराज से सैंकड़ों श्रृद्धालु पैदल यात्रा कर माता के दरबार में पहुंचते हैं। मेले के मद्देनजर तनोट में स्थाई व अस्थाई दुकानें सज गई हैं।
सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से तथा श्रृद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए तनोट में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए है। सीमा सुरक्षा बल के जवानों के साथ पुलिसकर्मी तैनात है। तनोट सड़क मार्ग पर पैदल जाने वाल भक्तों की सुविधा के लिए माता के भक्तों ने निशुल्क भण्डारे लगाए है, जहां भक्तों के लिए खाने, ठहरने, चाय व दवाईयों की व्यवस्था की गई है।

बाईट-1- हीरालाल साधवानी - श्रदालु
बाईट-2-हार्दिक भाटिया - श्रदालु
बाईट-3-डी.एस. अहलावत- कमांडेन्ट- बी.एस.एफ Conclusion:
Last Updated : Oct 7, 2019, 8:03 PM IST
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