नई दिल्ली: चार राज्यों द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद गुरुवार को राजनीतिक और रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ सुबिमल भट्टाचार्जी ने कहा कि सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित करना लोगों को भ्रमित करने के अलावा और कुछ नहीं है.
भट्टाचार्जी ने कहा कि यह एक भ्रामक कदम है. राज्य में संवैधानिक रूप से चुनी गई सरकार, जो संविधान की शपथ लेती हैं, वे यह अच्छी तरह से जानते हैं कि विषयों की सूची में, नागरिकता केंद्र सरकार की पहली सूची में है उनके पास पूरे मामले पर कोई लोकस स्टैंडी नहीं है.
उन्होंने कहा कि संकल्प लेना लोगों को गुमराह करने के अलावा और कुछ नहीं है.
केरल, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया है.
हालांकि इस तरह का प्रस्ताव सबसे पहले लेफ्ट फ्रंट की अगुवाई वाली केरल सरकार ने पारित किया था, जिसकी राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने आलोचना की थी.
पिछले सोमवार को, तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार ने अपनी विधानसभा में सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया.
दूसरी ओर, सीएए विरोधी कार्यकर्ता अशोक भारती ने कहा, 'केंद्र सरकार को यह समझना चाहिए कि जब राज्य अधिनियम के खिलाफ एक साथ आए हैं, तो उन्हें अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.'
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यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सीएए मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को भेज दिया है.
गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही अधिनियम को वापस लेने की संभावनाओं से इनकार कर चुके हैं.