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सीएए के खिलाफ प्रस्ताव लोगों भ्रमित करने के आलावा कुछ नहीं : विशेषज्ञ

संशोधित नागरिकता अधिनियम पारित होने के बाद से पूरे देश में इसके खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं. सीएए के विरोध में चार राज्यों ने प्रस्ताव भी पारित कर दिया है. ईटीवी भारत से बातचीत में विशेषज्ञ सुबिमल भट्टाचार्जी ने कहा कि यह प्रस्ताव लोगों को भ्रमित करने के अलावा कुछ नहीं है. पढ़ें पूरी खबर...

resolution against caa
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Published : Jan 31, 2020, 12:02 AM IST

Updated : Feb 28, 2020, 2:44 PM IST

नई दिल्ली: चार राज्यों द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद गुरुवार को राजनीतिक और रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ सुबिमल भट्टाचार्जी ने कहा कि सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित करना लोगों को भ्रमित करने के अलावा और कुछ नहीं है.

भट्टाचार्जी ने कहा कि यह एक भ्रामक कदम है. राज्य में संवैधानिक रूप से चुनी गई सरकार, जो संविधान की शपथ लेती हैं, वे यह अच्छी तरह से जानते हैं कि विषयों की सूची में, नागरिकता केंद्र सरकार की पहली सूची में है उनके पास पूरे मामले पर कोई लोकस स्टैंडी नहीं है.

उन्होंने कहा कि संकल्प लेना लोगों को गुमराह करने के अलावा और कुछ नहीं है.

केरल, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया है.

सुबिमल भट्टाचार्जी और अशोक भारती से ईटीवी भारत की बातचीत

हालांकि इस तरह का प्रस्ताव सबसे पहले लेफ्ट फ्रंट की अगुवाई वाली केरल सरकार ने पारित किया था, जिसकी राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने आलोचना की थी.

पिछले सोमवार को, तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार ने अपनी विधानसभा में सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया.

दूसरी ओर, सीएए विरोधी कार्यकर्ता अशोक भारती ने कहा, 'केंद्र सरकार को यह समझना चाहिए कि जब राज्य अधिनियम के खिलाफ एक साथ आए हैं, तो उन्हें अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.'

पढ़ें-विपक्ष की सीएए, अर्थव्यवस्था पर चर्चा की मांग, प्रधानमंत्री ने कहा-हर मुद्दे पर चर्चा को तैयार

यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सीएए मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को भेज दिया है.

गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही अधिनियम को वापस लेने की संभावनाओं से इनकार कर चुके हैं.

नई दिल्ली: चार राज्यों द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद गुरुवार को राजनीतिक और रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ सुबिमल भट्टाचार्जी ने कहा कि सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित करना लोगों को भ्रमित करने के अलावा और कुछ नहीं है.

भट्टाचार्जी ने कहा कि यह एक भ्रामक कदम है. राज्य में संवैधानिक रूप से चुनी गई सरकार, जो संविधान की शपथ लेती हैं, वे यह अच्छी तरह से जानते हैं कि विषयों की सूची में, नागरिकता केंद्र सरकार की पहली सूची में है उनके पास पूरे मामले पर कोई लोकस स्टैंडी नहीं है.

उन्होंने कहा कि संकल्प लेना लोगों को गुमराह करने के अलावा और कुछ नहीं है.

केरल, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया है.

सुबिमल भट्टाचार्जी और अशोक भारती से ईटीवी भारत की बातचीत

हालांकि इस तरह का प्रस्ताव सबसे पहले लेफ्ट फ्रंट की अगुवाई वाली केरल सरकार ने पारित किया था, जिसकी राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने आलोचना की थी.

पिछले सोमवार को, तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार ने अपनी विधानसभा में सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया.

दूसरी ओर, सीएए विरोधी कार्यकर्ता अशोक भारती ने कहा, 'केंद्र सरकार को यह समझना चाहिए कि जब राज्य अधिनियम के खिलाफ एक साथ आए हैं, तो उन्हें अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.'

पढ़ें-विपक्ष की सीएए, अर्थव्यवस्था पर चर्चा की मांग, प्रधानमंत्री ने कहा-हर मुद्दे पर चर्चा को तैयार

यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सीएए मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को भेज दिया है.

गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही अधिनियम को वापस लेने की संभावनाओं से इनकार कर चुके हैं.

Intro:New Delhi: After four states passed resolution against Citizenship Amendment Act (CAA), political and strategic affairs expert Subimal Bhattacharjee on Thursday said that taking resolution is nothing but "only misleading the people."


Body:"This is a misleading step. A constitutionally elected government in the state, who swear by the constitution, they know it very well that in the list of subject, citizenship is a central government list I subject...they don't have any locus standi on the whole matter," said Bhattacharya.

He said that taking resolution is nothing but misleading the people.

"It's an Act of Parliament. It's a law of the land. Before enacting into an Act, discussion took place with different stakeholders," said Bhattacharya.

States like Kerala, Punjab, Rajasthan, and West Bengal has passed a resolution against CAA.

Such resolution was, however, first moved by the Left Front led Kerala government which was vehemently criticised by Governor Arif Mohammad Khan.

On Monday last, Trinamool Congress-led West Bengal Governmnet passed a resolution against CAA in its Assembly.


Conclusion:On the otherhand, anti-CAA activist Ashok Bharti said, "Central government must understand that when states have come together against the Act, they should reconsider their decision."

It may be mentioned here that the Supreme Court has recently forwarded the CAA matter to the five member Constitution Bench.

Union Home Minister Amit Shah has already ruled out the possibility of withdrawing the Act.

As per the Act, members of Hindu, Sikh, Buddhist, Jain, Parsi and Christian communities who have come from Pakistan, Bangladesh and Afghanistan till December 31, 2014 following religious persecution should get Indian citizenship.

end.
Last Updated : Feb 28, 2020, 2:44 PM IST
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