हैदराबाद : कोरोना वायरस महामारी के चलते पिछले कुछ महीनों से स्कूल और कॉलेज बंद हैं, जिससे छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा देने पर जोर दिया जा रहा है. मगर आज भी कई ऐसे इलाके हैं जहां इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध नहीं है, जो ऑनलाइन शिक्षा में बाधा बन रही है.
दक्षिण भारत के चार राज्यों में किए गए एक सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 94 प्रतिशत छात्रों ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा के लिए उनके पास स्मार्टफोन या इंटरनेट नहीं है.
गैर सरकारी संस्था चाइल्ड राइट एंड यू (क्राई) द्वारा मई-जून में किए गए अध्ययन में कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के 5,987 बच्चों को शामिल किया गया. इस सर्वेक्षण का उद्देश्य 11 से 18 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के पास इंटरनेट की उपलब्धता का पता लगाना था.
सर्वेक्षण में पाया गया कि इसमें भाग लेने वाले कर्नाटक के नौ प्रतिशत बच्चों को पास मोबाइल फोन है, तमिलनाडु के 1,740 बच्चों में से केवल 3 प्रतिशत के पास ही फोन की सुविधा है.
सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि 95 प्रतिशत परिवारों की वार्षिक आय एक लाख रुपये से कम है. दो-तिहाई से अधिक परिवारों के लिए पर्याप्त संसाधनों की कमी के चलते स्मार्टफोन होना किसी लक्जरी से कम नहीं है.
वहीं, छह फीसदी बच्चों के पास खुद के स्मार्टफोन हैं, जबकि 29 फीसदी बच्चे अपने परिवार के सदस्यों के फोन का इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा 55 प्रतिशत बच्चों को सप्ताह में तीन दिन या उससे कम समय के लिए स्मार्टफोन मिलता है. 77 प्रतिशत बच्चों को प्रतिदिन दो घंटे से कम समय के लिए स्मार्टफोन दिया जाता है.
क्राई संस्थान के क्षेत्रीय निदेशक कार्तिक नारायणन ने कहा कि यह स्पष्ट था कि शिक्षा के लेकर समाज के छोटे तबके के लोगों को इस महामारी के समय में ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
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उन्होंने कहा कि शिक्षा बच्चों के लिए एक सुरक्षात्मक वातावरण सुनिश्चित करने की कुंजी है. स्कूल जाने से न केवल एक बच्चे का दिमाग तेज होता है, बल्कि उनके जीवन को बाल विवाह और बाल श्रम जैसी कुरीतियों से बचाता है. ऑनलाइन शिक्षा कुछ ही छात्रों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है, जबकि पिछड़े वर्ग के लोगों और दूर-दराज के इलाकों में रह रहे छात्रों के लिए यह परेशानी बन रही है.