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विशेष लेख : शांतिपूर्ण तरीके से सीमा विवाद के खात्मे की तरफ बढ़ते भारत-चीन - भारत चीन सीमा विवाद

1962 के युद्ध में चीन ने अक्साई चीन के 37 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर लिया था, पूर्वी क्षेत्र में चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश को लोअर तिब्बत मानते हुए अपना दावा पेश करता है. चीन उन समझौतों को स्वीकार नहीं करता जो अंग्रेजी शासन के दौरान इन इलाकों के स्थानीय शासकों के साथ हुए थे. चीन की सीमाएं 14 देशों से मिलती हैं, जिनमें से अधिकांश के साथ सीमा-विवाद रहा है. कम्युनिस्ट सोवियत संघ और वियतनाम के साथ चीन ने युद्ध भी किया है. अपनी आर्थिक व सैन्य ताकत के बल पर चीन ने भारत और भूटान को छोड़कर लगभग सभी देशों के साथ अपने सीमा-विवाद सुलझा लिए हैं. जाहिर है ये सभी सीमा समझौतें चीन की शर्तों पर हुए हैं.

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Published : Dec 18, 2019, 9:13 AM IST

Updated : Dec 18, 2019, 2:42 PM IST

भारत और चीन के बीच जारी सीमा-विवाद पर पिछले 16 सालों से जारी उच्च स्तर बातचीत का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है, लेकिन दोनों पक्षों ने किसी सकारात्मक नतीजे पर पहुंचने की उम्मीद नहीं छोड़ी है. सीमा-विवाद वार्ता के लिए नियुक्त विशेष प्रतिनिधियों के बीच अब 22वीं बैठक ताज नगरी आगरा में होनेवाली है. भारत की तरफ से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत दोवाल और चीन के विदेश मंत्री व स्टेट कौंसिलर वांग यी के बीच 21 दिसम्बर को होनेवाली बातचीत से यह उम्मीद करना गलत नहीं होगा कि दोनों विशेष प्रतिनिधि जमीनी वास्तविकता के आधार पर सीमा विवाद को हल करने की दिशा में कुछ कदम आगे बढ़ने में कामयाब होंगे.

भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों के बीच पिछली 21 बैठकों में हुए विचार-विमर्श से यह जाहिर होता है कि सीमा-विवाद को सुलझाना बेहद कठिन प्रक्रिया है. 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी व हु जिन्ताओ के बीच हुई शिखर में निर्णय लिया गया था कि सीमा विवाद सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधियों के स्तर पर बातचीत होगी. इस बातचीत में ही तय हुआ था कि किस फ्रेमवर्क के तहत विवाद को सुलझाने की कोशिश होगी. 2005 में डा.मनमोहन सिंह व वेन जिआबाओ के बीच हुई शिखर बैठक में राजनीतिक पैमानों व गाइडिंग सिद्धांत तय किए गए, जिसके तहत यह स्वीकार किया गया कि सीमा विवाद को सुलझाने के लिए प्रमुख भौगोलिक फीचर व जनसंख्या की बसाहट को ध्यान में रखा जाएगा. दोनों देशों के बीच इस बात पर भी अनौपचारिक सहमति बनी थी कि वास्तविक नियन्त्रण रेखा का आपसी सहमति से निर्धारण किया जाएगा, लेकिन चीन इस सहमति से पीछे हट गया. वास्तविक सीमा रेखा का निर्धारण न होने की वजह से ही दोनों देशों की सेनाओं के बीच कई बार टकराव की स्थितियां निर्मित हुई हैं.

1962 के युद्ध में चीन ने अक्साई चीन के 37 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर लिया था, जिस पर भारत का दावा है. पूर्वी क्षेत्र में चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश को लोअर तिब्बत मानते हुए अपना दावा पेश करता है. चीन उन समझौतों को स्वीकार नहीं करता जो अंग्रेजी शासन के दौरान इन इलाकों के स्थानीय शासकों के साथ हुए थे. चीन की सीमाएं 14 देशों से मिलती हैं, जिनमें से अधिकांश के साथ सीमा-विवाद रहा है. कम्युनिस्ट सोवियत संघ और वियतनाम के साथ चीन ने युद्ध भी किया है. अपनी आर्थिक व सैन्य ताकत के बल पर चीन ने भारत और भूटान को छोड़कर लगभग सभी देशों के साथ अपने सीमा-विवाद सुलझा लिए हैं. जाहिर है ये सभी सीमा समझौतें चीन की शर्तों पर हुए हैं. पाकिस्तान ने पाक-अधिकृत जम्मू व कश्मीर का एक इलाका ही चीन को दे दिया. भारत की तुलना में चीन की अर्थव्यवस्था का आकार पांच गुना होने के बावजूद भारत ने अपने सीमा-हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया है. डोकलाम क्षेत्र में जब भारत ने भूटान के पक्ष में सैन्य हस्तक्षेप किया था, तब चीन ने युद्घ की धमकी तक दी थी. चीन को अब इस बात का अहसास हो गया है कि सैन्य व आर्थिक ताकत के बल पर भारत को सीमा के सवाल पर झुकाना संभव नहीं है.

भारत और पाकिस्तान के बीच अन्तर्राष्ट्रीय सीमा व नियन्त्रण रेखा निर्धारित होने के बावजूद प्रतिदिन गोलीबारी की घटनाएं हो रही हैं, लेकिन चीन के साथ वास्तविक नियन्त्रण रेखा का निर्धारण न होने के बावजूद पिछले 57 सालों के दौरान एक भी गोली नहीं चली है. यह इस बात का प्रमाण है कि दोनों देश अपने विवादों का निपटारा शांतिपूर्ण बातचीत के माध्यम से ही करना चाहते हैं. सीमा विवाद का व्यापारिक व अन्य संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ा है. आपसी व्यापार अब 80 अरब डालर से अधिक हो गया है. सीमा विवाद पर बातचीत की प्रक्रिया लंबी खिंचने के बावजूद जारी है. जम्मू व कश्मीर के सवाल पर चीन ने जिस तरह पाकिस्तान की तरफदारी की है, उससे यह स्पष्ट है कि वह भारत पर दबाव बनाए रखने की रणनीति पर चल रहा है. भारत ने भी कूटनीतिक स्तर पर अमेरिका, जापान व आस्ट्रेलिया के साथ अपने सैन्य संबंध मजबूत करके चीन की इस रणनीति को विफल करने की कोशिश की है.

इसे भी पढ़ें- विशेष लेख : राष्ट्रीय राजनीतिक दल नागरिकता कानून पर खेल रहे राजनीति

वर्तमान हालात में यह उम्मीद करना उचित नहीं होगा कि निकट भविष्य में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का हल निकल जाएगा. जाहिर है दोनों के देशों के बीच कोई भी समझौता लेन-देन के आधार पर ही होगा. दोनों देशों के भीतर ऐसी स्थिति निर्मित करनी होगी कि समझौता जनता के स्तर पर सहज स्वीकार्य हो जाए. फौरी तौर पर भारत यह चाहता है कि चीन वास्तविक नियन्त्रण रेखा के निर्धारण के लिए तैयार हो जाए, ताकि सेनाओं के बीच होनेवाले टकरावों को रोका जा सके. डोकलाम जैसी घटनाओं ने दोनों के देशों की जनता के बीच तनाव बढ़ाया है, जिसका नकारात्मक असर बातचीत की प्रक्रिया पर भी पड़ा है. आगरा में अजीत डोवाल व चीनी विदेश मंत्री वांग यी से किसी ठोस नतीजे की उम्मीद करना सही नहीं होगा. पिछले कुछ महीनों से जम्मू व कश्मीर के सवाल पर पैदा हुए तनाव की वजह से बातचीत की प्रक्रिया ठंडे बस्ते में बंद थी. दोनों देशों को इस बात का अहसास है कि यदि सीमा विवाद का हल निकल जाए, तो आपसी रिश्ते नई उंचाई पर पहुंच सकते हैं.

पिछले कई महीनों से अमेरिका के साथ जारी व्यापार युद्ध की वजह से चीन की आर्थिक विकास दर में गिरावट दर्ज हुई है. कई अमेरिकी कंपनियों ने चीन में अपना कारोबार समेट लिया है या कम कर लिया है. व्यापार और निवेश के संदर्भ में चीन की कंपनियां भारत को बड़े अवसर के तौर पर देख रही हैं. भारत के खिलाफ जारी व्यापार असंतुलन दूर करने के लिए चीन ने ठोस कदम उठाने का निर्णय लिया है. भारत और चीन के बीच गहन होते आर्थिक संबंधों का सकारात्मक असर सीमा विवाद वार्ता पर भी दिखाई देगा. चीन के संदर्भ में भारत का सूत्र वाक्य यह कि मतभेदों को विवाद में तब्दील न होने दिया जाए. वास्तविक नियन्त्रण रेखा का निर्धारण जब तक नहीं होता, तब तक कई जगहों पर टकराव की स्थिति पैदा होगी. इन टकरावों को रोकने के लिए दोनों देशों ने एक तंत्र विकसित किया है जो कामयाब रहा है. दोनों देशों के बीच सहयोग के रास्ते से ही समस्याओं का हल संभव है. सीमा विवाद का हल निकालने के संदर्भ में दोनों देशों को लंबे धैर्य का परिचय देना होगा.

(लेखक- सुरेश बाफना)

भारत और चीन के बीच जारी सीमा-विवाद पर पिछले 16 सालों से जारी उच्च स्तर बातचीत का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है, लेकिन दोनों पक्षों ने किसी सकारात्मक नतीजे पर पहुंचने की उम्मीद नहीं छोड़ी है. सीमा-विवाद वार्ता के लिए नियुक्त विशेष प्रतिनिधियों के बीच अब 22वीं बैठक ताज नगरी आगरा में होनेवाली है. भारत की तरफ से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत दोवाल और चीन के विदेश मंत्री व स्टेट कौंसिलर वांग यी के बीच 21 दिसम्बर को होनेवाली बातचीत से यह उम्मीद करना गलत नहीं होगा कि दोनों विशेष प्रतिनिधि जमीनी वास्तविकता के आधार पर सीमा विवाद को हल करने की दिशा में कुछ कदम आगे बढ़ने में कामयाब होंगे.

भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों के बीच पिछली 21 बैठकों में हुए विचार-विमर्श से यह जाहिर होता है कि सीमा-विवाद को सुलझाना बेहद कठिन प्रक्रिया है. 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी व हु जिन्ताओ के बीच हुई शिखर में निर्णय लिया गया था कि सीमा विवाद सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधियों के स्तर पर बातचीत होगी. इस बातचीत में ही तय हुआ था कि किस फ्रेमवर्क के तहत विवाद को सुलझाने की कोशिश होगी. 2005 में डा.मनमोहन सिंह व वेन जिआबाओ के बीच हुई शिखर बैठक में राजनीतिक पैमानों व गाइडिंग सिद्धांत तय किए गए, जिसके तहत यह स्वीकार किया गया कि सीमा विवाद को सुलझाने के लिए प्रमुख भौगोलिक फीचर व जनसंख्या की बसाहट को ध्यान में रखा जाएगा. दोनों देशों के बीच इस बात पर भी अनौपचारिक सहमति बनी थी कि वास्तविक नियन्त्रण रेखा का आपसी सहमति से निर्धारण किया जाएगा, लेकिन चीन इस सहमति से पीछे हट गया. वास्तविक सीमा रेखा का निर्धारण न होने की वजह से ही दोनों देशों की सेनाओं के बीच कई बार टकराव की स्थितियां निर्मित हुई हैं.

1962 के युद्ध में चीन ने अक्साई चीन के 37 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर लिया था, जिस पर भारत का दावा है. पूर्वी क्षेत्र में चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश को लोअर तिब्बत मानते हुए अपना दावा पेश करता है. चीन उन समझौतों को स्वीकार नहीं करता जो अंग्रेजी शासन के दौरान इन इलाकों के स्थानीय शासकों के साथ हुए थे. चीन की सीमाएं 14 देशों से मिलती हैं, जिनमें से अधिकांश के साथ सीमा-विवाद रहा है. कम्युनिस्ट सोवियत संघ और वियतनाम के साथ चीन ने युद्ध भी किया है. अपनी आर्थिक व सैन्य ताकत के बल पर चीन ने भारत और भूटान को छोड़कर लगभग सभी देशों के साथ अपने सीमा-विवाद सुलझा लिए हैं. जाहिर है ये सभी सीमा समझौतें चीन की शर्तों पर हुए हैं. पाकिस्तान ने पाक-अधिकृत जम्मू व कश्मीर का एक इलाका ही चीन को दे दिया. भारत की तुलना में चीन की अर्थव्यवस्था का आकार पांच गुना होने के बावजूद भारत ने अपने सीमा-हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया है. डोकलाम क्षेत्र में जब भारत ने भूटान के पक्ष में सैन्य हस्तक्षेप किया था, तब चीन ने युद्घ की धमकी तक दी थी. चीन को अब इस बात का अहसास हो गया है कि सैन्य व आर्थिक ताकत के बल पर भारत को सीमा के सवाल पर झुकाना संभव नहीं है.

भारत और पाकिस्तान के बीच अन्तर्राष्ट्रीय सीमा व नियन्त्रण रेखा निर्धारित होने के बावजूद प्रतिदिन गोलीबारी की घटनाएं हो रही हैं, लेकिन चीन के साथ वास्तविक नियन्त्रण रेखा का निर्धारण न होने के बावजूद पिछले 57 सालों के दौरान एक भी गोली नहीं चली है. यह इस बात का प्रमाण है कि दोनों देश अपने विवादों का निपटारा शांतिपूर्ण बातचीत के माध्यम से ही करना चाहते हैं. सीमा विवाद का व्यापारिक व अन्य संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ा है. आपसी व्यापार अब 80 अरब डालर से अधिक हो गया है. सीमा विवाद पर बातचीत की प्रक्रिया लंबी खिंचने के बावजूद जारी है. जम्मू व कश्मीर के सवाल पर चीन ने जिस तरह पाकिस्तान की तरफदारी की है, उससे यह स्पष्ट है कि वह भारत पर दबाव बनाए रखने की रणनीति पर चल रहा है. भारत ने भी कूटनीतिक स्तर पर अमेरिका, जापान व आस्ट्रेलिया के साथ अपने सैन्य संबंध मजबूत करके चीन की इस रणनीति को विफल करने की कोशिश की है.

इसे भी पढ़ें- विशेष लेख : राष्ट्रीय राजनीतिक दल नागरिकता कानून पर खेल रहे राजनीति

वर्तमान हालात में यह उम्मीद करना उचित नहीं होगा कि निकट भविष्य में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का हल निकल जाएगा. जाहिर है दोनों के देशों के बीच कोई भी समझौता लेन-देन के आधार पर ही होगा. दोनों देशों के भीतर ऐसी स्थिति निर्मित करनी होगी कि समझौता जनता के स्तर पर सहज स्वीकार्य हो जाए. फौरी तौर पर भारत यह चाहता है कि चीन वास्तविक नियन्त्रण रेखा के निर्धारण के लिए तैयार हो जाए, ताकि सेनाओं के बीच होनेवाले टकरावों को रोका जा सके. डोकलाम जैसी घटनाओं ने दोनों के देशों की जनता के बीच तनाव बढ़ाया है, जिसका नकारात्मक असर बातचीत की प्रक्रिया पर भी पड़ा है. आगरा में अजीत डोवाल व चीनी विदेश मंत्री वांग यी से किसी ठोस नतीजे की उम्मीद करना सही नहीं होगा. पिछले कुछ महीनों से जम्मू व कश्मीर के सवाल पर पैदा हुए तनाव की वजह से बातचीत की प्रक्रिया ठंडे बस्ते में बंद थी. दोनों देशों को इस बात का अहसास है कि यदि सीमा विवाद का हल निकल जाए, तो आपसी रिश्ते नई उंचाई पर पहुंच सकते हैं.

पिछले कई महीनों से अमेरिका के साथ जारी व्यापार युद्ध की वजह से चीन की आर्थिक विकास दर में गिरावट दर्ज हुई है. कई अमेरिकी कंपनियों ने चीन में अपना कारोबार समेट लिया है या कम कर लिया है. व्यापार और निवेश के संदर्भ में चीन की कंपनियां भारत को बड़े अवसर के तौर पर देख रही हैं. भारत के खिलाफ जारी व्यापार असंतुलन दूर करने के लिए चीन ने ठोस कदम उठाने का निर्णय लिया है. भारत और चीन के बीच गहन होते आर्थिक संबंधों का सकारात्मक असर सीमा विवाद वार्ता पर भी दिखाई देगा. चीन के संदर्भ में भारत का सूत्र वाक्य यह कि मतभेदों को विवाद में तब्दील न होने दिया जाए. वास्तविक नियन्त्रण रेखा का निर्धारण जब तक नहीं होता, तब तक कई जगहों पर टकराव की स्थिति पैदा होगी. इन टकरावों को रोकने के लिए दोनों देशों ने एक तंत्र विकसित किया है जो कामयाब रहा है. दोनों देशों के बीच सहयोग के रास्ते से ही समस्याओं का हल संभव है. सीमा विवाद का हल निकालने के संदर्भ में दोनों देशों को लंबे धैर्य का परिचय देना होगा.

(लेखक- सुरेश बाफना)

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Last Updated : Dec 18, 2019, 2:42 PM IST
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