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चुनावी बॉन्ड : सुप्रीम कोर्ट करेगी अहम फैसला, जानें याचिकाकर्ता और कांग्रेस की राय

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट इलेक्टोरल बॉन्ड पर अहम फैसला सुनाएगी. कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा है सत्ता में आने पर वह इस व्यवस्था को बदलेगी. सुप्रीम कोर्ट से बॉन्ड पर रोक लगाने की मांग करने वाले याचिकाकर्ता ने बताए अपील के कारण. जानें क्या है पूरा मामला

इलेक्टोरल बॉन्ड पर बात करते अभिषेक मनु सिंघवी
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Published : Apr 11, 2019, 11:17 PM IST

Updated : Apr 11, 2019, 11:47 PM IST

नई दिल्ली: चुनावी बॉन्ड की 'पारदर्शी व्यवस्था' पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं. आरोप लगाए जा रहे हैं कि ये न केवल सत्तारूढ़ पार्टी की तरफ केंद्रित हैं बल्कि निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा को भी गलत ठहराता है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में अहम आदेश पारित कर सकती है.

दरअसल, चुनावी बॉन्ड से जुड़े मामले में गैर सरकारी संगठन 'कॉमन कॉज' ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. संस्था के मुख्य कार्यकारी विपुल मुद्गल भी ने ईटीवी भारत से बात की. मुद्गल ने बताया 'आजादी के बाद भारत को पीछे की ओर हटानेवाला सबसे बड़ा कदम चुनावी बॉन्ड है.' उन्होंने कहा कि चुनावी फंडिंग के मामले में जितने भी सुधार हुए थे, ये उन सबको खत्म करता है.

इलेक्टोरल बॉन्ड पर बात करते अभिषेक मनु सिंघवी व याचिकाकर्ता

विपुल मुद्गल ने कहा कि सभी लोकतांत्रिक दलों को किसी भी कीमत पर इसका विरोध करना चाहिए.

बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार ने राजनीतिक दलों को नकद चंदे के विकल्प के रूप में पिछले साल चुनावी बॉन्ड पेश किया था. काले धन के पर अंकुश लगाना भी इस फैसले का एक मकसद बताया गया था. हालांकि, इस माध्यम से काले धन के उपयोग किए जाने के भी आरोप लगे हैं.

इस पर विपुल ने कहा जो पैसा चुनावी बॉन्ड के लिए उपयोग किया जाने वाला पैसा कुल काले धन का 10 प्रतिशत भी नहीं है. इसके अलावा भी ढेर सारा पैसा काले धन के रास्ते आ रहा है, इसका पता लगाने की जरूरत है.

कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में कहा है कि अगर उनकी पार्टी केंद्र में सत्ता में आती है, तो वे इलेक्टोरल बॉन्ड को खत्म कर देंगे.

electoral bond etv bharat
चुनावी बॉन्ड पर कांग्रेस के घोषणा पत्र में किए गए वादे

इस पर विपुल मुद्गल ने कहा 'अगर कोई राजनीतिक पार्टी कहती है कि वे चुनावी बॉन्ड को रद्द कर देंगे, तो यह बहुत अच्छी बात है. हालांकि, जब ये राजनीतिक दल सत्ता में आ जाते हैं तो उनके हित बदलने लगते हैं. ऐसे में पार्टी को मिलने वाले चंदों को पर वे रोक लगाना नहीं चाहते.'

सवाल ये भी किए जा रहे हैं कि जनता को राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का श्रोत जानने का हक है? ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले पर देशभर की नजरें टिकी हैं.

पढ़ें: आंध्र में जनसेना कैंडिडेट ने तोड़ी EVM मशीन, गिरफ्तार

बता दें कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार, इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे बड़ा लाभ भाजपा को मिला है. बीजेपी को लगभग 210 करोड़ रुपये के बॉन्ड मिले हैं. ये कुल बॉन्ड का 94.5 प्रतिशत बताया जा रहा है. ADR चुनाव से जुड़ी रिपोर्ट प्रकाशित करती है.

नई दिल्ली: चुनावी बॉन्ड की 'पारदर्शी व्यवस्था' पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं. आरोप लगाए जा रहे हैं कि ये न केवल सत्तारूढ़ पार्टी की तरफ केंद्रित हैं बल्कि निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा को भी गलत ठहराता है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में अहम आदेश पारित कर सकती है.

दरअसल, चुनावी बॉन्ड से जुड़े मामले में गैर सरकारी संगठन 'कॉमन कॉज' ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. संस्था के मुख्य कार्यकारी विपुल मुद्गल भी ने ईटीवी भारत से बात की. मुद्गल ने बताया 'आजादी के बाद भारत को पीछे की ओर हटानेवाला सबसे बड़ा कदम चुनावी बॉन्ड है.' उन्होंने कहा कि चुनावी फंडिंग के मामले में जितने भी सुधार हुए थे, ये उन सबको खत्म करता है.

इलेक्टोरल बॉन्ड पर बात करते अभिषेक मनु सिंघवी व याचिकाकर्ता

विपुल मुद्गल ने कहा कि सभी लोकतांत्रिक दलों को किसी भी कीमत पर इसका विरोध करना चाहिए.

बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार ने राजनीतिक दलों को नकद चंदे के विकल्प के रूप में पिछले साल चुनावी बॉन्ड पेश किया था. काले धन के पर अंकुश लगाना भी इस फैसले का एक मकसद बताया गया था. हालांकि, इस माध्यम से काले धन के उपयोग किए जाने के भी आरोप लगे हैं.

इस पर विपुल ने कहा जो पैसा चुनावी बॉन्ड के लिए उपयोग किया जाने वाला पैसा कुल काले धन का 10 प्रतिशत भी नहीं है. इसके अलावा भी ढेर सारा पैसा काले धन के रास्ते आ रहा है, इसका पता लगाने की जरूरत है.

कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में कहा है कि अगर उनकी पार्टी केंद्र में सत्ता में आती है, तो वे इलेक्टोरल बॉन्ड को खत्म कर देंगे.

electoral bond etv bharat
चुनावी बॉन्ड पर कांग्रेस के घोषणा पत्र में किए गए वादे

इस पर विपुल मुद्गल ने कहा 'अगर कोई राजनीतिक पार्टी कहती है कि वे चुनावी बॉन्ड को रद्द कर देंगे, तो यह बहुत अच्छी बात है. हालांकि, जब ये राजनीतिक दल सत्ता में आ जाते हैं तो उनके हित बदलने लगते हैं. ऐसे में पार्टी को मिलने वाले चंदों को पर वे रोक लगाना नहीं चाहते.'

सवाल ये भी किए जा रहे हैं कि जनता को राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का श्रोत जानने का हक है? ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले पर देशभर की नजरें टिकी हैं.

पढ़ें: आंध्र में जनसेना कैंडिडेट ने तोड़ी EVM मशीन, गिरफ्तार

बता दें कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार, इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे बड़ा लाभ भाजपा को मिला है. बीजेपी को लगभग 210 करोड़ रुपये के बॉन्ड मिले हैं. ये कुल बॉन्ड का 94.5 प्रतिशत बताया जा रहा है. ADR चुनाव से जुड़ी रिपोर्ट प्रकाशित करती है.

Intro:New Delhi: Questions have been raised over the "transparent system" of Electoral Bonds, whether people have the right to know who is funding a political party or not? Allegations have been made that it is not only skewed towards the ruling party, but also flouts the concept of free and fair elections. Even the Congress party has introduced this issue in their election manifesto to scrap electoral bonds if the party comes to power.


Body:Vipul Mudgal, Chief Executive of an NGO, Common Cause and one of the main petitioners in the matter of Electoral Bonds, explained, "The Electoral Bond is the most regressive move even since India got independence. It's something which puts the clock back on whatever little reforms have been made in the field of Electoral funding. All democratic political parties should oppose it anyway."

Electoral Bonds were introduced by the Modi government, last year, as an alternative to cash donations made to political parties and to curb black money. However, there were allegations that a large amount of money has come from the black money route. Vipul explained, "The money which is rooted to the Electoral Bonds is probably not even 10 percent of the total money. There's a lot of other money which is coming from the black money route, which also needs to be tracked."





Conclusion:A report published by election watchdog, Association for Democratic Reforms, BJP has been the biggest beneficiary of Electoral Bonds, garnering 94.5 percent of the bonds worth around Rs 210 crore. In the manifesto released by Congress, the party promised that if they come to power Electoral Bonds will be scrapped. "If a political party says that they'll scrap it then it's a good thing but my thinking is that when these political parties become the ruling party then their interests change. Then, they are in no hurry to curb money which is being given to them."

Over this issue, experts also believed that there should be a complete ban on spending of political parties over the candidates.
Last Updated : Apr 11, 2019, 11:47 PM IST
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