नई दिल्ली: चुनावी बॉन्ड की 'पारदर्शी व्यवस्था' पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं. आरोप लगाए जा रहे हैं कि ये न केवल सत्तारूढ़ पार्टी की तरफ केंद्रित हैं बल्कि निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा को भी गलत ठहराता है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में अहम आदेश पारित कर सकती है.
दरअसल, चुनावी बॉन्ड से जुड़े मामले में गैर सरकारी संगठन 'कॉमन कॉज' ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. संस्था के मुख्य कार्यकारी विपुल मुद्गल भी ने ईटीवी भारत से बात की. मुद्गल ने बताया 'आजादी के बाद भारत को पीछे की ओर हटानेवाला सबसे बड़ा कदम चुनावी बॉन्ड है.' उन्होंने कहा कि चुनावी फंडिंग के मामले में जितने भी सुधार हुए थे, ये उन सबको खत्म करता है.
विपुल मुद्गल ने कहा कि सभी लोकतांत्रिक दलों को किसी भी कीमत पर इसका विरोध करना चाहिए.
बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार ने राजनीतिक दलों को नकद चंदे के विकल्प के रूप में पिछले साल चुनावी बॉन्ड पेश किया था. काले धन के पर अंकुश लगाना भी इस फैसले का एक मकसद बताया गया था. हालांकि, इस माध्यम से काले धन के उपयोग किए जाने के भी आरोप लगे हैं.
इस पर विपुल ने कहा जो पैसा चुनावी बॉन्ड के लिए उपयोग किया जाने वाला पैसा कुल काले धन का 10 प्रतिशत भी नहीं है. इसके अलावा भी ढेर सारा पैसा काले धन के रास्ते आ रहा है, इसका पता लगाने की जरूरत है.
कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में कहा है कि अगर उनकी पार्टी केंद्र में सत्ता में आती है, तो वे इलेक्टोरल बॉन्ड को खत्म कर देंगे.
इस पर विपुल मुद्गल ने कहा 'अगर कोई राजनीतिक पार्टी कहती है कि वे चुनावी बॉन्ड को रद्द कर देंगे, तो यह बहुत अच्छी बात है. हालांकि, जब ये राजनीतिक दल सत्ता में आ जाते हैं तो उनके हित बदलने लगते हैं. ऐसे में पार्टी को मिलने वाले चंदों को पर वे रोक लगाना नहीं चाहते.'
सवाल ये भी किए जा रहे हैं कि जनता को राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का श्रोत जानने का हक है? ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले पर देशभर की नजरें टिकी हैं.
पढ़ें: आंध्र में जनसेना कैंडिडेट ने तोड़ी EVM मशीन, गिरफ्तार
बता दें कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार, इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे बड़ा लाभ भाजपा को मिला है. बीजेपी को लगभग 210 करोड़ रुपये के बॉन्ड मिले हैं. ये कुल बॉन्ड का 94.5 प्रतिशत बताया जा रहा है. ADR चुनाव से जुड़ी रिपोर्ट प्रकाशित करती है.