नई दिल्ली : सबरीमाला मामले में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने सात सवाल तय किए हैं. पीठ इन सवालों पर ही विचार करेगी.
- धार्मिक स्वतंत्रता का दायरा और गुंजाइश क्या है ?
- धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संप्रदायों की मान्यताओं के बीच क्या परस्पर संबंध हैं ?
- क्या धार्मिक संप्रदाय मौलिक अधिकारों के अधीन हैं ?
- धार्मिक स्वतंत्रता के व्यवहार में 'नैतिकता' क्या है ?
- धार्मिक मामलों में न्यायिक समीक्षा की गुंजाइश क्या है ?
- संविधान के अनुच्छेद 25 (2) (बी) के तहत 'हिंदुओं के एक वर्ग' का क्या अर्थ है ?
- क्या कोई व्यक्ति जो धार्मिक समूह से संबंधित नहीं है, उस समूह की प्रथाओं को चुनौती देने वाली जनहित याचिका दायर कर सकता है ?
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट 50 से अधिक समीक्षा याचिकाओं पर विचार कर रही है. इन याचिकाओं में अलग-अलग धर्मों की महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं.
सबरीमाला मामले में पिछले साल 14 नवंबर को दिए गए फैसले के माध्यम से विभिन्न धर्मों में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव का मामला वृहद पीठ के समक्ष भेजा गया था.
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने गत गुरुवार (30 जनवरी) को कहा था कि विभिन्न धर्मों और केरल के सबरीमाला मंदिर समेत विभिन्न धार्मिक स्थलों पर महिलाओं से होने वाले भेदभाव से जुड़े मामले में नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ तीन फरवरी को चर्चा के मुद्दे तय करेगी.
न्यायालय ने शुरू में ही वकीलों से इस बात पर अपनी अप्रसन्नता जाहिर की कि उनमें उन विधिक मुद्दों पर कोई सहमति नहीं बन पाई कि नौ न्यायाधीशों की पीठ किस पर निर्णय करेगी.
संविधान पीठ मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, दाउदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं के खतने और गैर पारसी पुरुषों से विवाह करने वाली पारसी महिलाओं के पवित्र अग्नि स्थल अगियारी में जाने पर पाबंदी से जुड़े मुद्दों पर विचार करेगी.
जानें क्या है सबरीमाला मंदिर का मामला
केरल के सबरीमाला मंंदिर से जुड़ा विवाद पिछले करीब 30 वर्षों से चला आ रहा है. दरअसल, मतभेद इस बात पर है कि मासिक धर्म की उम्र वाली महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी जाए या नहीं. मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि मंदिर में विराजमान भगवान अयप्पा नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया था.
साल 2016 में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाली याचिका को SC में चुनौती दी गई. इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की. इसमें दावा किया गया कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध समानता, गैर-भेदभाव और संविधान द्वारा दी गई धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है.
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अप्रैल, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं पर प्रतिबंध से लैंगिक न्याय खतरे के दायरे में आता है. साथ ही अदालत ने कहा कि कोई भी परम्परा इस तरह के प्रतिबंध को सही नहीं ठहरा सकती.
विस्तृत सुनवाई के बाद सितम्बर, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत का फैसला सुनाया. पीठ ने सबरीमाला मंदिर के दरवाजे सभी महिलाओं के लिए खोल दिए.