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कोरोना : शवों के साथ कैसा सलूक, सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान

सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना संक्रमण की वजह से जान गंवाने वाले मरीजों के शवों के साथ कथित तौर से बुरे व्यवहार के मामले में स्वत: संज्ञान लिया है. पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार द्वारा प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे को लिखे गए पत्र पर कोर्ट ने संज्ञान लिया. इस मामले में केंद्र सरकार सहित महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और दिल्ली की सरकारों को भी नोटिस जारी किया गया है.

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Published : Jun 12, 2020, 2:27 PM IST

Updated : Jun 12, 2020, 3:19 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना वायरस (कोविड-19) की वजह से जान गंवाने वाले लोगों के शवों के साथ कथित तौर से दुर्व्यवहार की खबरें सामने आई हैं. ताजा घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने इन पर स्वत: संज्ञान लिया है.

जस्टिस अशोक भूषण की अगुआई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कोविड-19 संक्रमित शवों के साथ गलत और खराब ढंग से व्यवहार करने पर गंभीर टिप्पणी की है. पीठ में शामिल जस्टिस एस के कौल ने कहा, 'कृपया अस्पतालों में लोगों की विकट परिस्थितियों को देखें. शव वार्ड में पड़े हैं. हम जीवित लोगों के बारे में भी चिंतित हैं.'

संक्रमित शवों के साथ दुर्व्यवहार को लेकर शुक्रवार को शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्यों की सरकारों के अलावा दिल्ली के लोकनायक जय प्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल को भी नोटिस जारी किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि वह नोएडा में कोरोना लक्षण वाले लोगों के लिए क्वारंटाइन के लिए क्या नियम बनाए हैं. इस नियम के बारे में अदालत को बुधवार तक सूचित करे.

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि राज्य में क्वारंटाइन के लिए किन नियमों का पालन किया जा रहा है. इसके बाद पीठ ने कहा कि यदि उत्तर प्रदेश अन्य राज्यों के विपरीत नोएडा / गाजियाबाद के लिए संस्थागत क्वारंटाइन कर रहा है, तो यह 15 दिन में अराजकता का कारण बन सकता है.

पढ़ें : भारत में कोरोना : पहली बार एक दिन में 10,000 से ज्यादा मामले और 396 मौतें

बता दें कि अदालत हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली सहित एनसीआर क्षेत्र में सीमाओं पर आवाजाही पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

तुषार मेहता ने बताया कि आवाजाही के लिए तीनों राज्यों की बैठक हुई थी. हरियाणा और दिल्ली सहमत हो गए हैं और कोई अंतरराज्यीय बाधा नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश इस बात पर विचार करने के लिए तैयार नहीं है कि कोरोना की स्थिति में दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बीच आवागमन फिर से शुरू करना चाहिए. यूपी का मानना है कि केवल आवश्यक आवाजाही के लिए ही अनुमति दी जा सकती है.

नई दिल्ली : कोरोना वायरस (कोविड-19) की वजह से जान गंवाने वाले लोगों के शवों के साथ कथित तौर से दुर्व्यवहार की खबरें सामने आई हैं. ताजा घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने इन पर स्वत: संज्ञान लिया है.

जस्टिस अशोक भूषण की अगुआई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कोविड-19 संक्रमित शवों के साथ गलत और खराब ढंग से व्यवहार करने पर गंभीर टिप्पणी की है. पीठ में शामिल जस्टिस एस के कौल ने कहा, 'कृपया अस्पतालों में लोगों की विकट परिस्थितियों को देखें. शव वार्ड में पड़े हैं. हम जीवित लोगों के बारे में भी चिंतित हैं.'

संक्रमित शवों के साथ दुर्व्यवहार को लेकर शुक्रवार को शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्यों की सरकारों के अलावा दिल्ली के लोकनायक जय प्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल को भी नोटिस जारी किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि वह नोएडा में कोरोना लक्षण वाले लोगों के लिए क्वारंटाइन के लिए क्या नियम बनाए हैं. इस नियम के बारे में अदालत को बुधवार तक सूचित करे.

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि राज्य में क्वारंटाइन के लिए किन नियमों का पालन किया जा रहा है. इसके बाद पीठ ने कहा कि यदि उत्तर प्रदेश अन्य राज्यों के विपरीत नोएडा / गाजियाबाद के लिए संस्थागत क्वारंटाइन कर रहा है, तो यह 15 दिन में अराजकता का कारण बन सकता है.

पढ़ें : भारत में कोरोना : पहली बार एक दिन में 10,000 से ज्यादा मामले और 396 मौतें

बता दें कि अदालत हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली सहित एनसीआर क्षेत्र में सीमाओं पर आवाजाही पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

तुषार मेहता ने बताया कि आवाजाही के लिए तीनों राज्यों की बैठक हुई थी. हरियाणा और दिल्ली सहमत हो गए हैं और कोई अंतरराज्यीय बाधा नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश इस बात पर विचार करने के लिए तैयार नहीं है कि कोरोना की स्थिति में दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बीच आवागमन फिर से शुरू करना चाहिए. यूपी का मानना है कि केवल आवश्यक आवाजाही के लिए ही अनुमति दी जा सकती है.

Last Updated : Jun 12, 2020, 3:19 PM IST
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