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छात्र हिंसा मामलों पर संबंधित हाईकोर्ट करें सुनवाई : सुप्रीम कोर्ट

संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ जामिया मिलिया इस्लामिया विवि के छात्रों और पुलिस के बीच संघर्ष पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई खत्म हो गई. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दिल्ली हाई कोर्ट जाने को कहा. मामले की सुनवाई करते हुए बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को ट्रायल कोर्ट ना बनाएं. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने छात्र हिंसा मामलों में संबंधित राज्यों के हाई कोर्ट से सुनवाई करने को कहा है.

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Published : Dec 17, 2019, 8:38 AM IST

Updated : Dec 17, 2019, 6:35 PM IST

नई दिल्ली : जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों और पुलिस के बीच हुई झड़प पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. बेंच ने याचिकाकर्ता को दिल्ली हाई कोर्ट जाने का आदेश दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले की सुनवाई पहले हाई कोर्ट में ही होनी चाहिए. उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई तीखे सवाल किए और कहा कि यह मामला कानून और व्यवस्था से जुड़ा है, लिहाजा आप लोगों को हाई कोर्ट जाना चाहिए. शीर्ष अदालत ने संबधित राज्यों के हाई कोर्ट के मुख्य न्ययाधीशों से ऐसो मामलों की सुनवाई करने को कहा है.

इससे पहले चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि वो पहले उन्हें समझाएं कि उनकी याचिका क्यों सुनी जाए. चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि ये मामला हाई कोर्ट क्यों नहीं गया?

याचिकाकर्ता से अदालत ने कहा कि आपको लीगल सिस्टम समझना होगा. ऐसे मामलों से आप हमें ट्रायल कोर्ट बना रहे हैं. याचिकाकर्ता ने जब कहा कि छात्रों की तरफ से हिंसा नहीं हुई है, तो सीजेआई ने पूछा कि हिंसा नहीं हुई तो बस कैसे जली थी?

सुप्रीम कोर्ट ने जामिया मिलिया इस्लामिया और एएमयू की घटनाओं पर कहा कि इस मामले में एक ही समिति गठित की जानी चाहिए. यह समिति विभिन्न राज्यों से इस मामले से जुड़े साक्ष्यों का संग्रह करेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि उन्हें इस पर हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है. यह कानून और व्यवस्था की समस्या है, बसें कैसे जल गईं? आप उच्च न्यायालय से संपर्क क्यों नहीं करते?

सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान दंगे और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने पर सोमवार को सख्त रुख अपनाते हुए कहा था कि 'इसे तुरंत रोका जाना चाहिए.'

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि प्रथम दृष्टया वह नहीं मानता है कि अदालत इस मामले में कुछ कर सकती है, क्योंकि यह कानून व्यवस्था की समस्या है और पुलिस को इसे नियंत्रित करना है.

सीजेआई ने कहा, 'हम इस मामले में पक्षपाती नहीं हैं, लेकिन जब कोई कानून तोड़ता है तो पुलिस क्या करेगी? कोई पत्थर मार रहा है, बस जला रहा है. हम पुलिस को एफआईआर दर्ज करने से कैसे रोक सकते हैं?'

चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा - बसों में प्रदर्शनकारियों ने आग लगाई. इससे जुड़ी तस्वीरें भी कई जगह दिखाई गई हैं.

बर्बर कार्रवाई का आरोप
सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रहे यूपी के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई के आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई करने पर शीर्ष न्यायालय ने सोमवार को सहमति जताई थी. लेकिन कहा कि वह हिंसा के ऐसे माहौल में इस मुद्दे पर सुनवाई नहीं करेगा.

चीफ जस्टिस की पीठ ने क्या कहा, जानें
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुआई वाली पीठ ने कहा, 'हम बस इतना चाहते हैं कि हिंसा बंद हो जानी चाहिए.' साथ ही पीठ ने कहा, 'अगर प्रदर्शन एवं हिंसा हुई और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया तो हम इस मामले को नहीं सुनेंगे.'

इस पीठ में न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल थे. पीठ ने यह बात तब कही जब वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और कोलिन गोंजाल्वेस के नेतृत्व में वकीलों के एक समूह ने मामले को उनके समक्ष उठाया और प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर की गई कथित हिंसा का स्वत: संज्ञान लेने की अपील की.

हिंसा नहीं होनी चाहिए
पीठ ने कहा, 'हम सब कुछ निर्धारित करेंगे, लेकिन हिंसा के इस माहौल में नहीं. यह क्या है? सरकारी संपत्तियों को बर्बाद किया जा रहा है, बसें जलाई जा रही हैं.'

वकीलों द्वारा इस मुद्दे पर संज्ञान लेने के लिए बार-बार कहने पर, प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'हम पर इस तरह से दबाव मत बनाइए. यह सारी हिंसा रुकनी चाहिए.'

एडवोकेट बरुन सिन्हा का बयान
एडवोकेट बरुन सिन्हा ने मीडिया को बताया कि जामिया मिलिया इस्लामिया, अलीगढ़ मुस्लिम युनीर्सिटी और ऐसे अन्य विश्वविद्यालयों के, जहां छात्रों द्वारा प्रदर्शन किया जा रहा है, मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने संबधित राज्य के हाई कोर्ट को सुनवाई करने का मौखिक आदेश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मीडिया से बात करते एडवोकेट बरुन सिन्हा.

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि छात्र हिंसा से संबधित मामलों को लेकर शिकायतकर्ता यदि हाई कोर्ट में याचिका दायर करते हैं, तो उनकी याचिका पर सुनवाई कर उचित आदेश पास किए जाने चाहिए.

घायल छात्रों पर पूछे गए सवाल पर सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि दो छात्र एएमयू से घायल हुए हैं वही एक छात्र जामिया का घायल हुआ है. तीनों का इलाज चल रहा है.

एडवोकेट महमूद प्राचा ने मीडिया से की बात
अधिवक्ता महमूद प्राचा ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने बहुत अच्छा फैसला किया है. हमने आज कोर्ट में विश्वविद्यालयों को सीज कर पुलिस और सुरक्षाबलों द्वारा उनकी घेराबंदी का मामला उठाया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई.'

मीडिया से बात करते एडवोकेट महमूद प्राचा

मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले कहा कि देश की संबधित हाई कोर्ट में बैठे चीफ जस्टिस इन मामलों पर सुनवाई कर सकते हैं. साथ ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक आदेश जारी किया है. इन मामलों की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट रिटायर्ड जजों को भी नियुक्त कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार कोर्ट में झूठे आंकड़े पेश कर रही है. जामिया के प्रॉक्टर और अलीगढ़ मुसलिम युनीवर्सिटी के प्रॉक्टर के खिलाफ गलत बयानी नहीं की गई. वहीं किसी विद्यार्थी के आरेस्ट न किये जाने की बात भी झूठी है.

प्राचा ने इसे कोर्ट की अवमानना बताते हुए 340 की अप्लीकेशन फाइल करने की बात कही है.

पुलिस को स्थिति को नियंत्रित करना है
पीठ ने कहा, 'प्रथम दृष्टया, हम मानते हैं कि अदालत इसमें कुछ नहीं कर सकती. यह कानून व्यवस्था की समस्या है और पुलिस को स्थिति को नियंत्रित करना है.'

मामले का उल्लेख अदालत के सामने करते हुए अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि शीर्ष अदालत को देशभर की, खास कर अलीगढ़ में छात्रों के खिलाफ की गई हिंसा का स्वत: संज्ञान लेना चाहिए.

उन्होंने अदालत को बताया कि उन्हें छात्रों के संदेश मिले हैं जिसमें वे खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं क्योंकि उनकी सुनने वाला कोई नहीं है.

वरिष्ठ वकीलों ने अदालत को बताया कि छात्रों के खिलाफ गंभीर हिंसा हुई है और उनमें से कई को टूटी हड्डियों के साथ अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

जयसिंह ने कहा, 'यह मानवाधिकार उल्लंघन का गंभीर मामला है. उन्होंने कहा कि जब यहां की जिला अदालत के परिसर में वकीलों और पुलिस के बीच झड़प हुई थी तब दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया था और आदेश पारित किया था.'

उन्होंने कहा, 'कोई भी शांतिपूर्ण प्रदर्शन को रोक नहीं सकता. हम कोई उपद्रव नहीं चाहते हैं. ये उपद्रव छात्रों के खिलाफ जानबूझ कर किए गए हैं.'

गोंजाल्वेस ने अदालत को बताया कि उन्होंने रविवार को अस्पताल और हिरासत कक्ष का दौरा किया था, जहां जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों को पुलिस ने रखा था.

पीठ ने वकीलों के समूह से कहा कि वे एक साथ नहीं बोलें और एक-एक कर अपनी बात रखें. अदालत ने कहा, 'हम किसी पर आरोप नहीं लगा रहे. हम बस यह कह रहे हैं कि यह उपद्रव रुकना चाहिए.'

पहले हिंसा रोकिए, फिर मदद मिलेगी
पीठ ने कहा, 'लेकिन पहले हिंसा रोकिए. अगर आप इस तरह से सड़कों पर उतरेंगे तो हम आपकी मदद नहीं कर पाएंगे. हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन के खिलाफ नहीं हैं.'

गोंजाल्वेस ने अदालत से कहा कि अदालत को एएमयू के कुलपति और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के चीफ प्रॉक्टर ने उनके परिसरों में हुई हिंसा को लेकर जो कुछ कहा, उस पर विचार करना चाहिए.

उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि पूर्व न्यायाधीशों की एक समिति एएमयू जाए और देखे कि वहां क्या हो रहा है.'

इस पर पीठ ने कहा, “हम ऐसा करेंगे, लेकिन वहां पहले शांति आने दीजिए. हमें नहीं पता कि क्या हो रहा है.' साथ ही पीठ ने वकीलों से उनकी याचिकाएं दायर करने को कहा.

क्या है पूरा मामला
संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों और स्थानीय लोगों ने रविवार को दिल्ली के जामिया नगर में प्रदर्शन किया.

प्रदर्शनकारियों ने कथित रूप से दक्षिणी दिल्ली के न्यू फ्रैंड्स कॉलोनी में पुलिस के साथ झड़प के बाद चार बसों और दो पुलिस वाहनों को आग के हवाले कर दिया था.

पुलिस ने विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश से पहले भीड़ को तितर-बितर करने के लिए प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े. इसके अलावा हिंसा में कथित तौर पर शामिल कई लोगों को हिरासत में ले लिया था.

इसके बाद दिन में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मौजूदा एवं पूर्व छात्रों द्वारा वाणी सासा और अन्य के नेतृत्व में याचिका दायर कर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के नेतृत्व में रविवार की घटना की स्वतंत्र न्यायिक जांच कराने और चूक करने वालों की जिम्मेदारी तय करने की मांग की गई.

याचिका में शीर्ष अदालत से केंद्र को विश्वविद्यालय परिसर में और पुलिस और सहयोगी सुरक्षा बलों को हटाने का निर्देश देने की भी मांग की गई है.

पढ़ें: CAA : असम में सुधर रहे हालात, हटेगा कर्फ्यू, इंटरनेट सेवाएं होंगी बहाल

याचिकाकर्ताओं ने 15 दिसंबर की रात विश्वविद्यालय परिसर से गिरफ्तार वास्तविक छात्रों को रिहा करने का निर्देश देने और विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को न्यायिक जांच के लिए प्राक्टर कार्यालय, छात्र मामलों के विभाग और सुरक्षा सलाहकार के कार्यालयों में लगे सीसीटीवी जब्त करने का निर्देश देने की मांग की थी.

नई दिल्ली : जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों और पुलिस के बीच हुई झड़प पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. बेंच ने याचिकाकर्ता को दिल्ली हाई कोर्ट जाने का आदेश दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले की सुनवाई पहले हाई कोर्ट में ही होनी चाहिए. उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई तीखे सवाल किए और कहा कि यह मामला कानून और व्यवस्था से जुड़ा है, लिहाजा आप लोगों को हाई कोर्ट जाना चाहिए. शीर्ष अदालत ने संबधित राज्यों के हाई कोर्ट के मुख्य न्ययाधीशों से ऐसो मामलों की सुनवाई करने को कहा है.

इससे पहले चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि वो पहले उन्हें समझाएं कि उनकी याचिका क्यों सुनी जाए. चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि ये मामला हाई कोर्ट क्यों नहीं गया?

याचिकाकर्ता से अदालत ने कहा कि आपको लीगल सिस्टम समझना होगा. ऐसे मामलों से आप हमें ट्रायल कोर्ट बना रहे हैं. याचिकाकर्ता ने जब कहा कि छात्रों की तरफ से हिंसा नहीं हुई है, तो सीजेआई ने पूछा कि हिंसा नहीं हुई तो बस कैसे जली थी?

सुप्रीम कोर्ट ने जामिया मिलिया इस्लामिया और एएमयू की घटनाओं पर कहा कि इस मामले में एक ही समिति गठित की जानी चाहिए. यह समिति विभिन्न राज्यों से इस मामले से जुड़े साक्ष्यों का संग्रह करेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि उन्हें इस पर हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है. यह कानून और व्यवस्था की समस्या है, बसें कैसे जल गईं? आप उच्च न्यायालय से संपर्क क्यों नहीं करते?

सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान दंगे और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने पर सोमवार को सख्त रुख अपनाते हुए कहा था कि 'इसे तुरंत रोका जाना चाहिए.'

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि प्रथम दृष्टया वह नहीं मानता है कि अदालत इस मामले में कुछ कर सकती है, क्योंकि यह कानून व्यवस्था की समस्या है और पुलिस को इसे नियंत्रित करना है.

सीजेआई ने कहा, 'हम इस मामले में पक्षपाती नहीं हैं, लेकिन जब कोई कानून तोड़ता है तो पुलिस क्या करेगी? कोई पत्थर मार रहा है, बस जला रहा है. हम पुलिस को एफआईआर दर्ज करने से कैसे रोक सकते हैं?'

चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा - बसों में प्रदर्शनकारियों ने आग लगाई. इससे जुड़ी तस्वीरें भी कई जगह दिखाई गई हैं.

बर्बर कार्रवाई का आरोप
सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रहे यूपी के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई के आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई करने पर शीर्ष न्यायालय ने सोमवार को सहमति जताई थी. लेकिन कहा कि वह हिंसा के ऐसे माहौल में इस मुद्दे पर सुनवाई नहीं करेगा.

चीफ जस्टिस की पीठ ने क्या कहा, जानें
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुआई वाली पीठ ने कहा, 'हम बस इतना चाहते हैं कि हिंसा बंद हो जानी चाहिए.' साथ ही पीठ ने कहा, 'अगर प्रदर्शन एवं हिंसा हुई और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया तो हम इस मामले को नहीं सुनेंगे.'

इस पीठ में न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल थे. पीठ ने यह बात तब कही जब वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और कोलिन गोंजाल्वेस के नेतृत्व में वकीलों के एक समूह ने मामले को उनके समक्ष उठाया और प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर की गई कथित हिंसा का स्वत: संज्ञान लेने की अपील की.

हिंसा नहीं होनी चाहिए
पीठ ने कहा, 'हम सब कुछ निर्धारित करेंगे, लेकिन हिंसा के इस माहौल में नहीं. यह क्या है? सरकारी संपत्तियों को बर्बाद किया जा रहा है, बसें जलाई जा रही हैं.'

वकीलों द्वारा इस मुद्दे पर संज्ञान लेने के लिए बार-बार कहने पर, प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'हम पर इस तरह से दबाव मत बनाइए. यह सारी हिंसा रुकनी चाहिए.'

एडवोकेट बरुन सिन्हा का बयान
एडवोकेट बरुन सिन्हा ने मीडिया को बताया कि जामिया मिलिया इस्लामिया, अलीगढ़ मुस्लिम युनीर्सिटी और ऐसे अन्य विश्वविद्यालयों के, जहां छात्रों द्वारा प्रदर्शन किया जा रहा है, मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने संबधित राज्य के हाई कोर्ट को सुनवाई करने का मौखिक आदेश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मीडिया से बात करते एडवोकेट बरुन सिन्हा.

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि छात्र हिंसा से संबधित मामलों को लेकर शिकायतकर्ता यदि हाई कोर्ट में याचिका दायर करते हैं, तो उनकी याचिका पर सुनवाई कर उचित आदेश पास किए जाने चाहिए.

घायल छात्रों पर पूछे गए सवाल पर सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि दो छात्र एएमयू से घायल हुए हैं वही एक छात्र जामिया का घायल हुआ है. तीनों का इलाज चल रहा है.

एडवोकेट महमूद प्राचा ने मीडिया से की बात
अधिवक्ता महमूद प्राचा ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने बहुत अच्छा फैसला किया है. हमने आज कोर्ट में विश्वविद्यालयों को सीज कर पुलिस और सुरक्षाबलों द्वारा उनकी घेराबंदी का मामला उठाया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई.'

मीडिया से बात करते एडवोकेट महमूद प्राचा

मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले कहा कि देश की संबधित हाई कोर्ट में बैठे चीफ जस्टिस इन मामलों पर सुनवाई कर सकते हैं. साथ ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक आदेश जारी किया है. इन मामलों की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट रिटायर्ड जजों को भी नियुक्त कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार कोर्ट में झूठे आंकड़े पेश कर रही है. जामिया के प्रॉक्टर और अलीगढ़ मुसलिम युनीवर्सिटी के प्रॉक्टर के खिलाफ गलत बयानी नहीं की गई. वहीं किसी विद्यार्थी के आरेस्ट न किये जाने की बात भी झूठी है.

प्राचा ने इसे कोर्ट की अवमानना बताते हुए 340 की अप्लीकेशन फाइल करने की बात कही है.

पुलिस को स्थिति को नियंत्रित करना है
पीठ ने कहा, 'प्रथम दृष्टया, हम मानते हैं कि अदालत इसमें कुछ नहीं कर सकती. यह कानून व्यवस्था की समस्या है और पुलिस को स्थिति को नियंत्रित करना है.'

मामले का उल्लेख अदालत के सामने करते हुए अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि शीर्ष अदालत को देशभर की, खास कर अलीगढ़ में छात्रों के खिलाफ की गई हिंसा का स्वत: संज्ञान लेना चाहिए.

उन्होंने अदालत को बताया कि उन्हें छात्रों के संदेश मिले हैं जिसमें वे खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं क्योंकि उनकी सुनने वाला कोई नहीं है.

वरिष्ठ वकीलों ने अदालत को बताया कि छात्रों के खिलाफ गंभीर हिंसा हुई है और उनमें से कई को टूटी हड्डियों के साथ अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

जयसिंह ने कहा, 'यह मानवाधिकार उल्लंघन का गंभीर मामला है. उन्होंने कहा कि जब यहां की जिला अदालत के परिसर में वकीलों और पुलिस के बीच झड़प हुई थी तब दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया था और आदेश पारित किया था.'

उन्होंने कहा, 'कोई भी शांतिपूर्ण प्रदर्शन को रोक नहीं सकता. हम कोई उपद्रव नहीं चाहते हैं. ये उपद्रव छात्रों के खिलाफ जानबूझ कर किए गए हैं.'

गोंजाल्वेस ने अदालत को बताया कि उन्होंने रविवार को अस्पताल और हिरासत कक्ष का दौरा किया था, जहां जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों को पुलिस ने रखा था.

पीठ ने वकीलों के समूह से कहा कि वे एक साथ नहीं बोलें और एक-एक कर अपनी बात रखें. अदालत ने कहा, 'हम किसी पर आरोप नहीं लगा रहे. हम बस यह कह रहे हैं कि यह उपद्रव रुकना चाहिए.'

पहले हिंसा रोकिए, फिर मदद मिलेगी
पीठ ने कहा, 'लेकिन पहले हिंसा रोकिए. अगर आप इस तरह से सड़कों पर उतरेंगे तो हम आपकी मदद नहीं कर पाएंगे. हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन के खिलाफ नहीं हैं.'

गोंजाल्वेस ने अदालत से कहा कि अदालत को एएमयू के कुलपति और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के चीफ प्रॉक्टर ने उनके परिसरों में हुई हिंसा को लेकर जो कुछ कहा, उस पर विचार करना चाहिए.

उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि पूर्व न्यायाधीशों की एक समिति एएमयू जाए और देखे कि वहां क्या हो रहा है.'

इस पर पीठ ने कहा, “हम ऐसा करेंगे, लेकिन वहां पहले शांति आने दीजिए. हमें नहीं पता कि क्या हो रहा है.' साथ ही पीठ ने वकीलों से उनकी याचिकाएं दायर करने को कहा.

क्या है पूरा मामला
संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों और स्थानीय लोगों ने रविवार को दिल्ली के जामिया नगर में प्रदर्शन किया.

प्रदर्शनकारियों ने कथित रूप से दक्षिणी दिल्ली के न्यू फ्रैंड्स कॉलोनी में पुलिस के साथ झड़प के बाद चार बसों और दो पुलिस वाहनों को आग के हवाले कर दिया था.

पुलिस ने विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश से पहले भीड़ को तितर-बितर करने के लिए प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े. इसके अलावा हिंसा में कथित तौर पर शामिल कई लोगों को हिरासत में ले लिया था.

इसके बाद दिन में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मौजूदा एवं पूर्व छात्रों द्वारा वाणी सासा और अन्य के नेतृत्व में याचिका दायर कर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के नेतृत्व में रविवार की घटना की स्वतंत्र न्यायिक जांच कराने और चूक करने वालों की जिम्मेदारी तय करने की मांग की गई.

याचिका में शीर्ष अदालत से केंद्र को विश्वविद्यालय परिसर में और पुलिस और सहयोगी सुरक्षा बलों को हटाने का निर्देश देने की भी मांग की गई है.

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याचिकाकर्ताओं ने 15 दिसंबर की रात विश्वविद्यालय परिसर से गिरफ्तार वास्तविक छात्रों को रिहा करने का निर्देश देने और विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को न्यायिक जांच के लिए प्राक्टर कार्यालय, छात्र मामलों के विभाग और सुरक्षा सलाहकार के कार्यालयों में लगे सीसीटीवी जब्त करने का निर्देश देने की मांग की थी.

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Last Updated : Dec 17, 2019, 6:35 PM IST
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