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जहां फोन पर बात करने के लिए नेटवर्क नहीं, वहां ऑनलाइन पढ़ाई कैसे करें बच्चे - digital divide campaign

पहाड़ी राज्य हिमाचल में कई इलाके हैं जहां इंटरनेट तो दूर की बात है, फोन करने तक के लिए नेटवर्क नहीं मिलता. ऐसे में बच्चों को वर्क फ्रॉम होम के दौरान पढ़ने के लिए मिली सुविधाएं अब मजबूरी बन चुकी हैं. यहां शहरी इलाकों में तो नेटवर्क आता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में ग्रामीणों को खिड़की के बाहर खड़े होकर फोन पर बात करने जैसे तरीके अपनाने पड़ते हैं. पढ़ें पूरी खबर...

digital divide campaign
वर्क फ्रॉम होम में नेटवर्क की समस्या
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Published : Jul 15, 2020, 9:04 AM IST

Updated : Jul 15, 2020, 9:41 AM IST

किन्नौर (हिमाचल प्रदेश) : कोराना वायरस माहमारी के दौर में ऑनलाइन काम करना अब सुविधा नहीं, बल्कि मजबूरी बन चुका है. वर्क फ्रॉम होम के दौर में बच्चों की पढ़ाई भी घर से ही जारी है. तमाम शिक्षण संस्थान डिजिटल माध्यमों से बच्चों को पढ़ाई करवा रहे हैं, लेकिन पहाड़ी राज्य हिमाचल में कई इलाके ऐसे भी हैं जहां इंटरनेट तो बहुत दूर, फोन करने के लिए भी नेटवर्क नहीं मिलता.

हालांकि, ऑनलाइन पढ़ाई में बच्चों को क्लासरुम जैसा माहौल नहीं मिल पा रहा. वहीं, मोबाइल या लैपटॉप स्क्रीन से नोट्स लेने में भी परेशानी होती है. ऐसे ही कुछ हालात हैं हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में. यहां छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाई के लिए बेसिक सुविधा का ही रोना है. ऐसा इसलिए क्योंकि बिना इंटरनेट ऑनलाइन पढ़ाई करना नामुमकिन है. किन्नौर जिला के सीमांत क्षेत्रों में तो टू जी नेटवर्क मिलना भी मुश्किल है. वहीं जिला मुख्यालय रिकांगपियो में भी इंटरनेट कनेक्टिविटी काफी ज्यादा धीमी है. ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई जिले के छात्रों के लिए बस नाम की है.

जिले के कई छात्र बाहरी राज्यों के शहरों में पढ़ाई करते हैं. जो लॉकडाउन के बाद से अपने अपने घरों में ही हैं. स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाई शुरू कर दी है, लेकिन इंटरनेट सुविधा ना होने के चलते जिला के कई बच्चे पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं. वहीं, स्थानीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का भी यही हाल है. जिले के हजारों छात्रों की पढ़ाई बेसिक इंटरनेट सुविधा ना होने के चलते सही से नहीं हो पा रही, जिससे अभिभावकों को बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी है.

ऑनलाइन पढ़ाई के लिए नेटवर्क बना मुसीबत

स्थानीय लोगों के मुताबिक जिला के सीमांत क्षेत्रों कुनो चारंग, रोपा वैली, हांगों चुलिंग और छितकुल समेत कई इलाके ऐसे हैं जहां कॉल करने तक के लिए नेटवर्क नहीं होता. ऐसे इलाकों में ऑनलाइन पढ़ाई हो पाना मुमकिन ही नहीं है. वहीं जिन इलाकों में इंटरनेट की सुविधा है वहां पर भी इंटरनेट कनेक्टिविटी ठीक नहीं है. लोगों के मुताबिक स्कूलों द्वारा स्टडी मैटीरियल दिया तो जा रहा है, लेकिन यहां पर मोबाइल और लैपटॉप में लिंक ही नहीं खुलते. अभिभावकों का कहना है कि स्लो इंटरनेट के चलते बच्चों का सामान्य से बहुत ज्यादा वक्त मोबाइल और लैपटॉप स्क्रीन को देखते हुए गुजरता है, जिससे उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है.

वहीं, यह स्मार्ट पढ़ाई अभिभावकों की जेबों पर भी भारी पड़ रही है. ऑनलाइन पढ़ाई के लिए मंदी के इस दौर में बच्चों को मोबाइल और लैपटॉप दिलाना सभी अभिभावकों के लिए आसान नहीं है. ऐसे में निर्धन परिवारों से आने वाले बच्चों की पढ़ाई छूट गई है. इन बच्चों के लिए सरकार ने किसी तरह का प्रावधान नहीं किया है.

स्थानीय लोगों की मांग है कि जिला में इंटरनेट सुविधाओं को दुरुस्त किया जाना चाहिए. वहीं दूर दराज के लोगों का मानना है कि जिन इलाकों में जनसंख्या काफी कम है और दुर्गम इलाका होने के चलते कोरोना संक्रमण की संभावना भी काफी कम है, वहां सरकार को सोशल डिस्टेंसिंग के पालन के साथ कक्षाएं शुरू कर देनी चाहिए जिससे छात्रों की पढ़ाई प्रभावित ना हो.

मामले में प्रशासनिक अधिकारियों का भी मानना है कि जिला में खराब इंटरनेट सुविधाएं बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई में बाधा बन रही हैं. एसडीएम कल्पा मेजर अवनिन्दर शर्मा ने कहा कि जिला किन्नौर के दूरदराज क्षेत्रों से खराब इंटरनेट सुविधाओं की शिकायतें लगातार मिल रही हैं. बच्चों की परेशानियों को देखते हुए लिए प्रशासन उचित कदम उठाएगा और बीएसएनएल के अधिकारियों से बात कर दूरदराज क्षेत्रों में इंटरनेट की सुविधा पहुंचाने की कोशिश की जा रही है.

वहीं, डीसी किन्नौर ने भी कहा कि कनेक्टिविटी को लेकर लोगों की शिकायतें मिल रही है. प्रशासन जिला में कनेक्टिविटी सुधार पर काम कर रहा है और वहीं दुर्गम इलाकों में स्कूल खोलने पर भी विचार किया जा रहा है.

पढ़ें - लखनऊ की दिव्यांशी जैन ने सीबीएसई की 12वीं परीक्षा में किया टॉप

पूरे प्रदेश की बात की जाए तो डिजिटल इंडिया केवल शहरी इलाकों तक की सीमित है. ग्रामीण इलाकों में लोगों को फोन कर बात करने के लिए भी खिड़की के पास खड़े होकर नेटवर्क खोजना पड़ता है. ऐसे में ऑनलाइन एजुकेशन अभिभावकों और बच्चों के लिए सरदर्द बन गया है. खासतौर पर प्रदेश के जनजातीय जिलों में बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए सरकार को जल्द कदम उठाने की जरूरत है.

किन्नौर (हिमाचल प्रदेश) : कोराना वायरस माहमारी के दौर में ऑनलाइन काम करना अब सुविधा नहीं, बल्कि मजबूरी बन चुका है. वर्क फ्रॉम होम के दौर में बच्चों की पढ़ाई भी घर से ही जारी है. तमाम शिक्षण संस्थान डिजिटल माध्यमों से बच्चों को पढ़ाई करवा रहे हैं, लेकिन पहाड़ी राज्य हिमाचल में कई इलाके ऐसे भी हैं जहां इंटरनेट तो बहुत दूर, फोन करने के लिए भी नेटवर्क नहीं मिलता.

हालांकि, ऑनलाइन पढ़ाई में बच्चों को क्लासरुम जैसा माहौल नहीं मिल पा रहा. वहीं, मोबाइल या लैपटॉप स्क्रीन से नोट्स लेने में भी परेशानी होती है. ऐसे ही कुछ हालात हैं हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में. यहां छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाई के लिए बेसिक सुविधा का ही रोना है. ऐसा इसलिए क्योंकि बिना इंटरनेट ऑनलाइन पढ़ाई करना नामुमकिन है. किन्नौर जिला के सीमांत क्षेत्रों में तो टू जी नेटवर्क मिलना भी मुश्किल है. वहीं जिला मुख्यालय रिकांगपियो में भी इंटरनेट कनेक्टिविटी काफी ज्यादा धीमी है. ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई जिले के छात्रों के लिए बस नाम की है.

जिले के कई छात्र बाहरी राज्यों के शहरों में पढ़ाई करते हैं. जो लॉकडाउन के बाद से अपने अपने घरों में ही हैं. स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाई शुरू कर दी है, लेकिन इंटरनेट सुविधा ना होने के चलते जिला के कई बच्चे पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं. वहीं, स्थानीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का भी यही हाल है. जिले के हजारों छात्रों की पढ़ाई बेसिक इंटरनेट सुविधा ना होने के चलते सही से नहीं हो पा रही, जिससे अभिभावकों को बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी है.

ऑनलाइन पढ़ाई के लिए नेटवर्क बना मुसीबत

स्थानीय लोगों के मुताबिक जिला के सीमांत क्षेत्रों कुनो चारंग, रोपा वैली, हांगों चुलिंग और छितकुल समेत कई इलाके ऐसे हैं जहां कॉल करने तक के लिए नेटवर्क नहीं होता. ऐसे इलाकों में ऑनलाइन पढ़ाई हो पाना मुमकिन ही नहीं है. वहीं जिन इलाकों में इंटरनेट की सुविधा है वहां पर भी इंटरनेट कनेक्टिविटी ठीक नहीं है. लोगों के मुताबिक स्कूलों द्वारा स्टडी मैटीरियल दिया तो जा रहा है, लेकिन यहां पर मोबाइल और लैपटॉप में लिंक ही नहीं खुलते. अभिभावकों का कहना है कि स्लो इंटरनेट के चलते बच्चों का सामान्य से बहुत ज्यादा वक्त मोबाइल और लैपटॉप स्क्रीन को देखते हुए गुजरता है, जिससे उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है.

वहीं, यह स्मार्ट पढ़ाई अभिभावकों की जेबों पर भी भारी पड़ रही है. ऑनलाइन पढ़ाई के लिए मंदी के इस दौर में बच्चों को मोबाइल और लैपटॉप दिलाना सभी अभिभावकों के लिए आसान नहीं है. ऐसे में निर्धन परिवारों से आने वाले बच्चों की पढ़ाई छूट गई है. इन बच्चों के लिए सरकार ने किसी तरह का प्रावधान नहीं किया है.

स्थानीय लोगों की मांग है कि जिला में इंटरनेट सुविधाओं को दुरुस्त किया जाना चाहिए. वहीं दूर दराज के लोगों का मानना है कि जिन इलाकों में जनसंख्या काफी कम है और दुर्गम इलाका होने के चलते कोरोना संक्रमण की संभावना भी काफी कम है, वहां सरकार को सोशल डिस्टेंसिंग के पालन के साथ कक्षाएं शुरू कर देनी चाहिए जिससे छात्रों की पढ़ाई प्रभावित ना हो.

मामले में प्रशासनिक अधिकारियों का भी मानना है कि जिला में खराब इंटरनेट सुविधाएं बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई में बाधा बन रही हैं. एसडीएम कल्पा मेजर अवनिन्दर शर्मा ने कहा कि जिला किन्नौर के दूरदराज क्षेत्रों से खराब इंटरनेट सुविधाओं की शिकायतें लगातार मिल रही हैं. बच्चों की परेशानियों को देखते हुए लिए प्रशासन उचित कदम उठाएगा और बीएसएनएल के अधिकारियों से बात कर दूरदराज क्षेत्रों में इंटरनेट की सुविधा पहुंचाने की कोशिश की जा रही है.

वहीं, डीसी किन्नौर ने भी कहा कि कनेक्टिविटी को लेकर लोगों की शिकायतें मिल रही है. प्रशासन जिला में कनेक्टिविटी सुधार पर काम कर रहा है और वहीं दुर्गम इलाकों में स्कूल खोलने पर भी विचार किया जा रहा है.

पढ़ें - लखनऊ की दिव्यांशी जैन ने सीबीएसई की 12वीं परीक्षा में किया टॉप

पूरे प्रदेश की बात की जाए तो डिजिटल इंडिया केवल शहरी इलाकों तक की सीमित है. ग्रामीण इलाकों में लोगों को फोन कर बात करने के लिए भी खिड़की के पास खड़े होकर नेटवर्क खोजना पड़ता है. ऐसे में ऑनलाइन एजुकेशन अभिभावकों और बच्चों के लिए सरदर्द बन गया है. खासतौर पर प्रदेश के जनजातीय जिलों में बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए सरकार को जल्द कदम उठाने की जरूरत है.

Last Updated : Jul 15, 2020, 9:41 AM IST
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