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सख्त मानदंडों के साथ तैयार करनी होगी मतदाताओं की सूची

भारत में चुनाव आयोग द्वारा हर राज्य के मतदाताओं की सूची तैयार की जाती है. वर्तमान में इस सूची की स्थिति कुछ ठीक नहीं है. सूची में कई फर्जी नाम दर्ज हैं और कई लोगों के नाम ही गायब हैं. ऐसे में पूरे देश में एक ही मतदाता सूची तैयार करने का सुझाव दिया जा रहा है. ऐसा करने के लिए सख्त मानदंड तैयार करने होंगे, जिससे मतदाता सूची में कोई गड़बड़ न हो.

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मतदाताओं की सूची
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Published : Sep 1, 2020, 4:20 PM IST

हैदराबाद : भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां नब्बे करोड़ से अधिक मतदाता हैं. हालांकि भारत में प्रतिनिधियों के चुनाव के लिए बनाई गई मतदाताओं की सूची की वर्तमान स्थिति खासी अच्छी नहीं है.

भारत रत्न बीआर अंबेडकर ने कहा था कि मतदाताओं की सूची और मतदाताओं से जुड़ी जानकारी तैयारी करना एक कर्तव्य है, जिसे पूरी ईमानदारी के साथ पूरा किया जाना चाहिए. केंद्र और राज्य स्तर पर चुनाव समितियां दशकों से अपने इस कर्तव्य को निभाने में विफल रही हैं, जो की चिंताजनक है.

हाल ही में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों के लिए एक मतदाता सूची तैयार करने के प्रयास को तेज कर दिया है.

संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, लोकसभा और विधानसभा को चुनाव के लिए एक निश्चित मतदाता सूची बनाए रखनी होती है. इसके साथ ही स्थानीय निकायों और राज्य निकायों को चुनाव के लिए मतदाता सूची का संकलन करते हुए अपने संवैधानिक कर्तव्यों को पूरा करना होता है.

चुनाव आयोग देश भर में एक ही मतदाता सूची की शुरुआत का समर्थन कर रहा है, जिसके बाद लगभग 22 राज्य- यूपी, उत्तराखंड, ओडिशा, असम, मध्य प्रदेश, केरल, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड जैसे राज्य केंद्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार की गई सूचियों पर भरोसा करते हैं.

एक मतदाता सूची तैयार करने का उद्देश्य व्यर्थ व्यय की पुनरावृत्ति से बचाना है. इसके लिए संबंधित राज्यों के कानूनों में विशिष्ट परिवर्तन लाना होगा. हालांकि देश में एक ही मतदाता सूची तैयार करना अच्छा विचार है, लेकिन यह देखना होगा कि क्या इस सूची की प्रामाणिकता विश्वसनीय होगी या नहीं.

भारत का चुनाव आयोग यह घोषणा करने में काफी गर्व महसूस करता है कि एक आम मतदाता चुनाव के दौरान उसके द्वारा शुरू की गई मतदान प्रणाली की पूरी जानकारी के साथ मतदान करता है.

आज के समय में चुनाव आयोग द्वारा तैयार की गई सूची में अपना नाम नहीं होने पर सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि उनके वोट को उनके अस्तित्व का प्रतीक माना जाता है.

फरवरी 2015 में निर्वाचन सदन के मुख्य आयुक्त एचएस ब्रह्मा ने यह बताया था कि मतदाता सूची में दर्ज देश भर के 8.50 करोड़ नाम फर्जी थे. उन्होंने कहा कि कुल वोटों में से 10 से 12 प्रतिशत वोट नकली थे, जो एक राष्ट्रीय समस्या थी. उन्होंने यह आश्वासन दिया था कि नागरिकों की मूल संख्या को उसी वर्ष के 15 अगस्त तक मतदाता सूचियों से जोड़ा जाएगा.

यहां तक ​​कि उन हस्तियों के नाम, जिन्होंने वोटिंग को लेकर लोगों के बीच जागरुकता फैलाने के लिए चुनाव आयोग के राइट टू वोट कैंपेन में भाग लिया था वे भी इस राष्ट्रीय सूची से गायब होने लगे हैं. लेकिन अब वक्त आ गया है जब चुनाव आयोग को भारतीय मतदाताओं की एक परिपूर्ण और प्रामाणिक सूची बनानी होगी.

पढ़ें :- बिहार विधानसभा चुनाव : गाइडलाइन जारी, होगा ऑनलाइन नामांकन

भारत में सच्चा लोकतंत्र तभी प्राप्त किया जा सकता है जब अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस और फिनलैंड में सुचारू रूप से चल रहे चुनाव और प्रशासनिक प्रक्रिया से प्रेरित होने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें एक साथ आएं. आयोग को टेक्नोलॉजी के उपयोग से भारत में रह रहे लोगों की सूची बनानी होगी, जिससे किसी का फर्जी विवरण दर्ज न हो सके और एक मतदाताओं की सही सूची बन सके.

हैदराबाद : भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां नब्बे करोड़ से अधिक मतदाता हैं. हालांकि भारत में प्रतिनिधियों के चुनाव के लिए बनाई गई मतदाताओं की सूची की वर्तमान स्थिति खासी अच्छी नहीं है.

भारत रत्न बीआर अंबेडकर ने कहा था कि मतदाताओं की सूची और मतदाताओं से जुड़ी जानकारी तैयारी करना एक कर्तव्य है, जिसे पूरी ईमानदारी के साथ पूरा किया जाना चाहिए. केंद्र और राज्य स्तर पर चुनाव समितियां दशकों से अपने इस कर्तव्य को निभाने में विफल रही हैं, जो की चिंताजनक है.

हाल ही में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों के लिए एक मतदाता सूची तैयार करने के प्रयास को तेज कर दिया है.

संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, लोकसभा और विधानसभा को चुनाव के लिए एक निश्चित मतदाता सूची बनाए रखनी होती है. इसके साथ ही स्थानीय निकायों और राज्य निकायों को चुनाव के लिए मतदाता सूची का संकलन करते हुए अपने संवैधानिक कर्तव्यों को पूरा करना होता है.

चुनाव आयोग देश भर में एक ही मतदाता सूची की शुरुआत का समर्थन कर रहा है, जिसके बाद लगभग 22 राज्य- यूपी, उत्तराखंड, ओडिशा, असम, मध्य प्रदेश, केरल, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड जैसे राज्य केंद्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार की गई सूचियों पर भरोसा करते हैं.

एक मतदाता सूची तैयार करने का उद्देश्य व्यर्थ व्यय की पुनरावृत्ति से बचाना है. इसके लिए संबंधित राज्यों के कानूनों में विशिष्ट परिवर्तन लाना होगा. हालांकि देश में एक ही मतदाता सूची तैयार करना अच्छा विचार है, लेकिन यह देखना होगा कि क्या इस सूची की प्रामाणिकता विश्वसनीय होगी या नहीं.

भारत का चुनाव आयोग यह घोषणा करने में काफी गर्व महसूस करता है कि एक आम मतदाता चुनाव के दौरान उसके द्वारा शुरू की गई मतदान प्रणाली की पूरी जानकारी के साथ मतदान करता है.

आज के समय में चुनाव आयोग द्वारा तैयार की गई सूची में अपना नाम नहीं होने पर सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि उनके वोट को उनके अस्तित्व का प्रतीक माना जाता है.

फरवरी 2015 में निर्वाचन सदन के मुख्य आयुक्त एचएस ब्रह्मा ने यह बताया था कि मतदाता सूची में दर्ज देश भर के 8.50 करोड़ नाम फर्जी थे. उन्होंने कहा कि कुल वोटों में से 10 से 12 प्रतिशत वोट नकली थे, जो एक राष्ट्रीय समस्या थी. उन्होंने यह आश्वासन दिया था कि नागरिकों की मूल संख्या को उसी वर्ष के 15 अगस्त तक मतदाता सूचियों से जोड़ा जाएगा.

यहां तक ​​कि उन हस्तियों के नाम, जिन्होंने वोटिंग को लेकर लोगों के बीच जागरुकता फैलाने के लिए चुनाव आयोग के राइट टू वोट कैंपेन में भाग लिया था वे भी इस राष्ट्रीय सूची से गायब होने लगे हैं. लेकिन अब वक्त आ गया है जब चुनाव आयोग को भारतीय मतदाताओं की एक परिपूर्ण और प्रामाणिक सूची बनानी होगी.

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भारत में सच्चा लोकतंत्र तभी प्राप्त किया जा सकता है जब अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस और फिनलैंड में सुचारू रूप से चल रहे चुनाव और प्रशासनिक प्रक्रिया से प्रेरित होने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें एक साथ आएं. आयोग को टेक्नोलॉजी के उपयोग से भारत में रह रहे लोगों की सूची बनानी होगी, जिससे किसी का फर्जी विवरण दर्ज न हो सके और एक मतदाताओं की सही सूची बन सके.

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