रांची : झारखंड राज्य के गुमला जिला के एक छोटे से गांव बर्री जतराटोली में 12 अक्टूबर 1965 को बुदू उरांव के घर पर बिरसा उरांव का जन्म हुआ था. बिरसा उरांव देश की रक्षा के लिए 1999 में पाकिस्तान से कारगिल युद्ध लड़ते हुए शहीद हो गए. बिरसा उरांव फौज में रहते हुए अपने कर्तव्य निष्ठा के कारण ही साधारण सिपाही से आगे कदम बढ़ाते हुए भारतीय सेना में नायक फिर हवलदार बने.
परिवारवालों को बताए बगैर हो गए थे फौज में शामिल
परिवारवाले बताते हैं कि 1983 में मैट्रिक पास करने से पूर्व ही बिरसा को बिहार रेजीमेंट कैंट की ओर से चयनित कर प्रशिक्षण के लिए दानापुर ले जाया गया. जिसकी जानकारी न तो बिरसा के परिवारवालों को थी और न ही दोस्तों को. उनके माता-पिता बिरसा से मिलने लोहरदगा गए हुए थे. उस समय बिरसा लोहरदगा के नदिया स्कूल में रह कर पढ़ाई करते थे. परिवारवाले बताते हैं कि जब वे स्कूल पहुंचे तो बिरसा कहीं दिखाई नहीं दिए. उसके दोस्तों से पूछने पर दोस्तों ने भी जानकारी नहीं होने की बात कही. एक दिन लोहरदगा में इंतजार करने के बाद दूसरे दिन उनके माता-पिता को यह पता चला कि फुटबॉल खेलने के दौरान फौज में भर्ती करने के लिए बिरसा को चयनित कर लिया गया है और उन्हें दानापुर ले जाया गया है. छह महीने बीत जाने के बाद कठिन प्रशिक्षण लेकर बिरसा वापस गांव पहुंचे और फौज में भर्ती होने की बात घरवालों को बताई.
बिरसा उरांव की उपलब्धियां
शहीद बिरसा उरांव प्रथम बिहार रेजीमेंट में हवलदार के पद पर तैनात थे. जिन्हें विभिन्न सेवाओं के लिए सम्मान दिया गया था, जिनमें शामिल हैं
1. सामान्य सेवा मेडल, नागालैंड- भारत सरकार
2. 9 ईयर लॉन्ग सर्विस मेडल- भारत सरकार
3. सैनिक सुरक्षा मेडल- भारत सरकार
4. ओवरसीज मेडल- संयुक्त राष्ट्र संघ
5. बिहार रेजीमेंट की 50 वीं वर्षगांठ पर स्वतंत्रता मेडल
6. विशिष्ट सेवा मेडल ( मरणोपरांत ) भारत सरकार