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भारत - ऑस्ट्रेलिया : संबंधों में दिख रही प्रगाढ़ता - ऑस्ट्रेलिया और भारत

ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त हरिंदर सिद्धू ने कहा है कि पिछले चार सालों में ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच संबंधों में काफी प्रगाढ़ता आई है और रणनीति व रक्षा संबंधों को लेकर काफी प्रगति हुई है. सिद्धू ने कहा कि एशिया के इन दो देशों के बीच और अधिक प्रगाढ़ता हो सकती है, और इसके नहीं होने का मुझे कोई कारण नहीं दिखता है. दोनों देशों के बीच कोई भी ऐसा मुद्दा या कोई ऐसी चुनौती नहीं है, जिसको सुलझाना असंभव हो.

( फाइल फोटो )
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Published : Jan 31, 2020, 4:28 PM IST

Updated : Feb 28, 2020, 4:18 PM IST

पिछले चार सालों में ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच संबंधों में काफी प्रगाढ़ता आई है और रणनीति व रक्षा संबंधों को लेकर काफी प्रगति हुई है. यह कहना है कि ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त हरिंदर सिद्धू का. उन्होंने कहा कि साल 2014 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय और बहुपक्षीय अभ्यास तथा संवाद तंत्र संबंधित गतिविधियों की संख्या 11 थी, जबकि अब इसकी संख्या 39 हो गई है. सिद्धू चार साल के कार्यकाल के बाद वापस ऑस्ट्रेलिया जा रही हैं.

उन्होंने कहा कि अगले कुछ महीनों में दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच आपसी रसद साझा समझौते को अंतिम रूप दिया जाना है. सिद्धू ने कहा कि एशिया के इन दो देशों के बीच और अधिक प्रगाढ़ता हो सकती है, और इसके नहीं होने का मुझे कोई कारण नहीं दिखता है. दोनों देशों के बीच कोई भी ऐसा मुद्दा या कोई ऐसी चुनौती नहीं है, जिसको सुलझाना असंभव हो. आप जानते हैं कि हम इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में साझेदारी का निर्माण कर रहे हैं. इस क्षेत्र में भारत को ऑस्ट्रेलिया से बेहतर दोस्त नहीं मिल सकता है. हम भी भारत को एक करीबी दोस्त के रूप में देखते हैं.

सिद्धू ने कुछ चुनिंदा महिला विदेश नीति संपादकों से बातचीत की. इस दौरान उन्होंने रसद समझौते पर आशावादी दृष्टिकोण से जवाब दिया. भारत ने इसी तरह का समझौता अमेरिका, फ्रांस और सिंगापुर से भी किया है.

पिछले नवंबर में विदेश और रक्षा मंत्रियों के स्तर पर टू प्लस टू संवाद के दौरान जापान के साथ अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग समझौते के समापन की दिशा में प्रगति हुई थी. जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक बार समझौते हो गए, तो भारत-प्रशांत क्षेत्र में मानवीय सहायता और आपदा राहत से जुड़े ऑपरेशन के लिए बड़ी मदद मिलेगी. भारतीय नौसेना के लिए अंतर संचालन क्षमता में इजाफा होगा.

ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन की भारत यात्रा के दौरान इस समझौते का औपचारिक एलान हो सकता है. मॉरिसन को रायसीना डायलॉग में भाग लेने आना था, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग के कारण वह यहां नहीं आ सके.

इंडो-पैसिफिक समझौते का मकसद चीन को साधना नहीं है

हमारा मकसद प्रजातांत्रिक देशों के बीच संबंधों की प्रगाढ़ता को बढाना है. हम व्यापार बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं. अमेरिका के साथ सहयोग को प्राथमिकता दे रहे हैं. चीन के साथ भी रचनात्मक संबंध बनाने पर फोकस किया जा रहा है. यहां पर कोई विवाद नहीं है. रूसी विदेश मंत्री लावरोव की टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर कि क्या अमेरिकी हितों की वजह से ऐसा हो रहा है, उन्होंने कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं है. यह अवधारणा ही गलत है.

सिद्धू ने कहा कि हमारा उद्देश्य है सबको साथ लेकर आगे बढ़ना, ना कि किसी को छोड़ना. यह वास्तव में उस तरह के रणनीतिक वातावरण की अवधारणा करने का प्रयास है, जिसमें हम रहते हैं और हम क्या प्राप्त करना चाहते हैं. किसी भी भौगोलिक अवधारणा में, चीन इंडो-पैसिफिक का एक हिस्सा है.

उन रिपोर्टों का जवाब देते हुए कि भारत आखिरकार कैनबरा को संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान के साथ होने वाले नौसैनिक अभ्यास में शामिल होने के लिए हरी झंडी दे सकता है, सिद्धू ने कहा, 'यदि मालाबार अभ्यास के लिए आमंत्रण मिलता है, तो बहुत संभावना होगी कि ऑस्ट्रेलिया सहमत होगा और स्वीकार करेगा.'

पाकिस्तान एफएटीएफ की कार्रवाई से बच सकता है और उसे ब्लैक लिस्ट नहीं किया जाएगा. इसकी संभावना के बारे में सिद्धू ने कहा कि इसका निर्णय तकनीकी वजहों को ध्यान में रखने के बाद किया जाएगा. अभी पाकिस्तान ग्रे सूची में है.

उन्होंने कहा कि फिलहाल ऑस्ट्रेलिया पाकिस्तान को ग्रे सूची में बने रहने का पक्षधर है. क्योंकि ऐसा नहीं लगता है कि वह पहले की बैठकों में निर्धारित मापदंडों के अनुपालन आवश्यकताओं को पूरा कर चुका है. सिद्धू ने कहा कि एफएटीएफ की प्रत्येक बैठक में, ऑस्ट्रेलिया ने बहुत ही तकनीकी दृष्टिकोण लिया है.

यह आंकलन करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है कि हम क्या पाने की कोशिश कर रहे हैं. हम वास्तव में एक अच्छा परिणाम चाहते हैं. जिसका अर्थ है कि पाकिस्तान उस पर लगाई गई आवश्यकताओं का अनुपालन कर रहा है. इसलिए हम इस मुद्दे पर एक तकनीकी दृष्टिकोण अपनाते हैं, वस्तुनिष्ठ शब्दों में पाकिस्तान की प्रगति का आकलन करते हैं कि वह इस प्रकार कहां तक ​​पहुंचा है.

16 से 21 फरवरी तक पेरिस में होने वाली महत्वपूर्ण एफएटीएफ प्लेनरी और ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप की बैठक में निर्णय लिया जाएगा कि पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में हटाया जाए या बरकरार रखा जाए. एफएटीएफ के नौ सहयोगियों के बीच एशिया पैसिफिक ग्रुप (एपीजी) या ऑस्ट्रेलिया चैप्टर ने पिछले साल अपनी कैनबरा बैठक में पाकिस्तान को 'काली सूची' में डाल दिया था.

सिद्धू ने कहा कि हमने ग्रे लिस्टिंग का समर्थन करना जारी रखा है क्योंकि एक तकनीकी पर हमारा आकलन है. आधार यह रहा है कि यह उन आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाया है. यह कहना नहीं है कि अगर पाकिस्तान को वास्तव में अपने प्रदर्शन में सुधार करना था, तो हम अलग तरह से विचार नहीं कर सकते हैं.

भारत को आरसीईपी (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी) में शामिल होना चाहिए. इससे पूरे क्षेत्र का विकास होगा. मेरी उम्मीद है कि भारत गंभीरता के साथ इसमें आने के बारे में विचार करेगा. जिन मामलों पर चिंता है, उन विषयों पर बातचीत की पूरी गुंजाइश है. यह भारत और आसियान और अन्य देशों के बीच आर्थिक एकीकरण और राजनीतिक संबंधों को और मजबूत करेगा.

सिद्धू ने कहा कि अगर भारत आरसीईपी में होता, तो यह उस जोखिम को कम करता जो भारत को आरसीईपी या किसी अन्य आर्थिक सहयोग से ट्रैक से बाहर कर देता. हमें लगता है कि इस समूह में भारत एक बहुत अच्छा और रचनात्मक भागीदार होगा. इसलिए हम आरसीईपी में भारत का स्वागत करने के लिए बहुत उत्सुक हैं जब भी भारत को लगता है कि वह ऐसा करने के लिए तैयार है.

सिद्धू ने आगे कहा कि खुली उदार व्यापार नीति भारतीय अर्थव्यवस्था और इसकी आर्थिक वृद्धि को भी बढ़ाएगी. व्यापार करने के लिए भारत के खुलेपन और व्यापार की गुणवत्ता, सीमा और गहराई वास्तव में भारत के विकास को प्रभावित करेगी. अपने देश के अंदर आप जो कर सकते हैं, उसकी सीमाएं हैं. उदाहरण के लिए अगर भारत एक मजबूत विनिर्माण क्षेत्र बनाना चाहता है, तो उसे इनपुट्स की आवश्यकता होगी. उन निविष्टियों को अच्छी गुणवत्ता, विश्वसनीय और सस्ता होना चाहिए. आपको हमेशा अपने देश के अंदर आवश्यक इनपुट प्राप्त नहीं हो सकते हैं.

आपको वास्तव में उन्हें आयात करने की आवश्यकता होगी. आप अपनी खुद की आबादी पर भरोसा नहीं कर सकते हैं, हालांकि यह बड़ा हो सकता है, आपका अपना बाजार हो. आपको अपने उत्पाद को निर्यात करने की आवश्यकता है, ताकि आप अपने उत्पाद को उच्च गुणवत्ता और लागत प्रभावी बनाने के लिए वातावरण में प्रतिस्पर्धा कर सकें.

सिद्धू ने कहा कि भारत की ताकत प्रजातांत्रिक व्यवस्था है. हालांकि, उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून और कश्मीर के विषय पर कई भी प्रतिक्रिया नहीं दी. सिद्धू ने कहा कि जब हम इंडो-पैसिफिक रणनीति के हिस्से के रूप में कहते हैं कि हम इस क्षेत्र में मजबूत लोकतंत्रों के साथ काम करना चाहते हैं, तो भारत की एक बड़ी ताकत इसकी बहुलतावादी लोकतांत्रिक परंपराएं हैं.

सिद्धू ने कहा 'हम इस बात का स्वागत करते हैं कि भारत में, हम भारत के साथ उन परंपराओं के निर्माण में क्षेत्र के भागीदार के रूप में काम करना चाहते हैं,'

चीनी दूरसंचार दिग्गज हुआवेई के फाइव जी नेटवर्क के लिए उपकरणों की आपूर्ति ना करने पर सिद्धू ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया के अपने हित हैं. वे इसकी इजाजत नहीं दे सकते हैं. उन्होंने कहा कि फाइव जी पर तकनीकी निर्णय लेने में, हमारी संप्रभुता की रक्षा करने के लिए हमारी ओवरराइडिंग मानदंड है. उस निर्णय में हम ऐसे विक्रेताओं को समायोजित नहीं कर सकते हैं जो शायद दूसरे देश या विदेशी शक्ति के प्रति निष्ठा रखते हैं. हम भारत के उस अधिकार का सम्मान करते हैं जो उसे अपने हित में लगता है.

(स्मित शर्मा के साथ बातचीत के आधार पर)

पिछले चार सालों में ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच संबंधों में काफी प्रगाढ़ता आई है और रणनीति व रक्षा संबंधों को लेकर काफी प्रगति हुई है. यह कहना है कि ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त हरिंदर सिद्धू का. उन्होंने कहा कि साल 2014 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय और बहुपक्षीय अभ्यास तथा संवाद तंत्र संबंधित गतिविधियों की संख्या 11 थी, जबकि अब इसकी संख्या 39 हो गई है. सिद्धू चार साल के कार्यकाल के बाद वापस ऑस्ट्रेलिया जा रही हैं.

उन्होंने कहा कि अगले कुछ महीनों में दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच आपसी रसद साझा समझौते को अंतिम रूप दिया जाना है. सिद्धू ने कहा कि एशिया के इन दो देशों के बीच और अधिक प्रगाढ़ता हो सकती है, और इसके नहीं होने का मुझे कोई कारण नहीं दिखता है. दोनों देशों के बीच कोई भी ऐसा मुद्दा या कोई ऐसी चुनौती नहीं है, जिसको सुलझाना असंभव हो. आप जानते हैं कि हम इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में साझेदारी का निर्माण कर रहे हैं. इस क्षेत्र में भारत को ऑस्ट्रेलिया से बेहतर दोस्त नहीं मिल सकता है. हम भी भारत को एक करीबी दोस्त के रूप में देखते हैं.

सिद्धू ने कुछ चुनिंदा महिला विदेश नीति संपादकों से बातचीत की. इस दौरान उन्होंने रसद समझौते पर आशावादी दृष्टिकोण से जवाब दिया. भारत ने इसी तरह का समझौता अमेरिका, फ्रांस और सिंगापुर से भी किया है.

पिछले नवंबर में विदेश और रक्षा मंत्रियों के स्तर पर टू प्लस टू संवाद के दौरान जापान के साथ अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग समझौते के समापन की दिशा में प्रगति हुई थी. जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक बार समझौते हो गए, तो भारत-प्रशांत क्षेत्र में मानवीय सहायता और आपदा राहत से जुड़े ऑपरेशन के लिए बड़ी मदद मिलेगी. भारतीय नौसेना के लिए अंतर संचालन क्षमता में इजाफा होगा.

ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन की भारत यात्रा के दौरान इस समझौते का औपचारिक एलान हो सकता है. मॉरिसन को रायसीना डायलॉग में भाग लेने आना था, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग के कारण वह यहां नहीं आ सके.

इंडो-पैसिफिक समझौते का मकसद चीन को साधना नहीं है

हमारा मकसद प्रजातांत्रिक देशों के बीच संबंधों की प्रगाढ़ता को बढाना है. हम व्यापार बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं. अमेरिका के साथ सहयोग को प्राथमिकता दे रहे हैं. चीन के साथ भी रचनात्मक संबंध बनाने पर फोकस किया जा रहा है. यहां पर कोई विवाद नहीं है. रूसी विदेश मंत्री लावरोव की टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर कि क्या अमेरिकी हितों की वजह से ऐसा हो रहा है, उन्होंने कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं है. यह अवधारणा ही गलत है.

सिद्धू ने कहा कि हमारा उद्देश्य है सबको साथ लेकर आगे बढ़ना, ना कि किसी को छोड़ना. यह वास्तव में उस तरह के रणनीतिक वातावरण की अवधारणा करने का प्रयास है, जिसमें हम रहते हैं और हम क्या प्राप्त करना चाहते हैं. किसी भी भौगोलिक अवधारणा में, चीन इंडो-पैसिफिक का एक हिस्सा है.

उन रिपोर्टों का जवाब देते हुए कि भारत आखिरकार कैनबरा को संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान के साथ होने वाले नौसैनिक अभ्यास में शामिल होने के लिए हरी झंडी दे सकता है, सिद्धू ने कहा, 'यदि मालाबार अभ्यास के लिए आमंत्रण मिलता है, तो बहुत संभावना होगी कि ऑस्ट्रेलिया सहमत होगा और स्वीकार करेगा.'

पाकिस्तान एफएटीएफ की कार्रवाई से बच सकता है और उसे ब्लैक लिस्ट नहीं किया जाएगा. इसकी संभावना के बारे में सिद्धू ने कहा कि इसका निर्णय तकनीकी वजहों को ध्यान में रखने के बाद किया जाएगा. अभी पाकिस्तान ग्रे सूची में है.

उन्होंने कहा कि फिलहाल ऑस्ट्रेलिया पाकिस्तान को ग्रे सूची में बने रहने का पक्षधर है. क्योंकि ऐसा नहीं लगता है कि वह पहले की बैठकों में निर्धारित मापदंडों के अनुपालन आवश्यकताओं को पूरा कर चुका है. सिद्धू ने कहा कि एफएटीएफ की प्रत्येक बैठक में, ऑस्ट्रेलिया ने बहुत ही तकनीकी दृष्टिकोण लिया है.

यह आंकलन करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है कि हम क्या पाने की कोशिश कर रहे हैं. हम वास्तव में एक अच्छा परिणाम चाहते हैं. जिसका अर्थ है कि पाकिस्तान उस पर लगाई गई आवश्यकताओं का अनुपालन कर रहा है. इसलिए हम इस मुद्दे पर एक तकनीकी दृष्टिकोण अपनाते हैं, वस्तुनिष्ठ शब्दों में पाकिस्तान की प्रगति का आकलन करते हैं कि वह इस प्रकार कहां तक ​​पहुंचा है.

16 से 21 फरवरी तक पेरिस में होने वाली महत्वपूर्ण एफएटीएफ प्लेनरी और ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप की बैठक में निर्णय लिया जाएगा कि पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में हटाया जाए या बरकरार रखा जाए. एफएटीएफ के नौ सहयोगियों के बीच एशिया पैसिफिक ग्रुप (एपीजी) या ऑस्ट्रेलिया चैप्टर ने पिछले साल अपनी कैनबरा बैठक में पाकिस्तान को 'काली सूची' में डाल दिया था.

सिद्धू ने कहा कि हमने ग्रे लिस्टिंग का समर्थन करना जारी रखा है क्योंकि एक तकनीकी पर हमारा आकलन है. आधार यह रहा है कि यह उन आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाया है. यह कहना नहीं है कि अगर पाकिस्तान को वास्तव में अपने प्रदर्शन में सुधार करना था, तो हम अलग तरह से विचार नहीं कर सकते हैं.

भारत को आरसीईपी (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी) में शामिल होना चाहिए. इससे पूरे क्षेत्र का विकास होगा. मेरी उम्मीद है कि भारत गंभीरता के साथ इसमें आने के बारे में विचार करेगा. जिन मामलों पर चिंता है, उन विषयों पर बातचीत की पूरी गुंजाइश है. यह भारत और आसियान और अन्य देशों के बीच आर्थिक एकीकरण और राजनीतिक संबंधों को और मजबूत करेगा.

सिद्धू ने कहा कि अगर भारत आरसीईपी में होता, तो यह उस जोखिम को कम करता जो भारत को आरसीईपी या किसी अन्य आर्थिक सहयोग से ट्रैक से बाहर कर देता. हमें लगता है कि इस समूह में भारत एक बहुत अच्छा और रचनात्मक भागीदार होगा. इसलिए हम आरसीईपी में भारत का स्वागत करने के लिए बहुत उत्सुक हैं जब भी भारत को लगता है कि वह ऐसा करने के लिए तैयार है.

सिद्धू ने आगे कहा कि खुली उदार व्यापार नीति भारतीय अर्थव्यवस्था और इसकी आर्थिक वृद्धि को भी बढ़ाएगी. व्यापार करने के लिए भारत के खुलेपन और व्यापार की गुणवत्ता, सीमा और गहराई वास्तव में भारत के विकास को प्रभावित करेगी. अपने देश के अंदर आप जो कर सकते हैं, उसकी सीमाएं हैं. उदाहरण के लिए अगर भारत एक मजबूत विनिर्माण क्षेत्र बनाना चाहता है, तो उसे इनपुट्स की आवश्यकता होगी. उन निविष्टियों को अच्छी गुणवत्ता, विश्वसनीय और सस्ता होना चाहिए. आपको हमेशा अपने देश के अंदर आवश्यक इनपुट प्राप्त नहीं हो सकते हैं.

आपको वास्तव में उन्हें आयात करने की आवश्यकता होगी. आप अपनी खुद की आबादी पर भरोसा नहीं कर सकते हैं, हालांकि यह बड़ा हो सकता है, आपका अपना बाजार हो. आपको अपने उत्पाद को निर्यात करने की आवश्यकता है, ताकि आप अपने उत्पाद को उच्च गुणवत्ता और लागत प्रभावी बनाने के लिए वातावरण में प्रतिस्पर्धा कर सकें.

सिद्धू ने कहा कि भारत की ताकत प्रजातांत्रिक व्यवस्था है. हालांकि, उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून और कश्मीर के विषय पर कई भी प्रतिक्रिया नहीं दी. सिद्धू ने कहा कि जब हम इंडो-पैसिफिक रणनीति के हिस्से के रूप में कहते हैं कि हम इस क्षेत्र में मजबूत लोकतंत्रों के साथ काम करना चाहते हैं, तो भारत की एक बड़ी ताकत इसकी बहुलतावादी लोकतांत्रिक परंपराएं हैं.

सिद्धू ने कहा 'हम इस बात का स्वागत करते हैं कि भारत में, हम भारत के साथ उन परंपराओं के निर्माण में क्षेत्र के भागीदार के रूप में काम करना चाहते हैं,'

चीनी दूरसंचार दिग्गज हुआवेई के फाइव जी नेटवर्क के लिए उपकरणों की आपूर्ति ना करने पर सिद्धू ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया के अपने हित हैं. वे इसकी इजाजत नहीं दे सकते हैं. उन्होंने कहा कि फाइव जी पर तकनीकी निर्णय लेने में, हमारी संप्रभुता की रक्षा करने के लिए हमारी ओवरराइडिंग मानदंड है. उस निर्णय में हम ऐसे विक्रेताओं को समायोजित नहीं कर सकते हैं जो शायद दूसरे देश या विदेशी शक्ति के प्रति निष्ठा रखते हैं. हम भारत के उस अधिकार का सम्मान करते हैं जो उसे अपने हित में लगता है.

(स्मित शर्मा के साथ बातचीत के आधार पर)

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भारत - ऑस्ट्रेलिया : संबंधों में दिख रही प्रगाढ़ता

पिछले चार सालों में ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच संबंधों में काफी प्रगाढ़ता आई है. रणनीतिक और रक्षा संबंधों को लेकर काफी प्रगति हुई है. यह कहना है कि ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त हरिंदर सिद्धू का. उन्होंने कहा कि साल 2014 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय और बहुपक्षीय अभ्यास तथा संवाद तंत्र संबंधित गतिविधियों की संख्या 11 थी, जबकि अब इसकी संख्या 39 हो गई है. सिद्धू चार साल के कार्यकाल के बाद वापस ऑस्ट्रेलिया जा रही हैं. 

उन्होंने कहा कि अगले कुछ महीनों में दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच आपसी रसद साझा समझौते को अंतिम रूप दिया जाना है. सिद्धू ने कहा कि एशिया के इन दो देशों के बीच और अधिक प्रगाढ़ता हो सकती है, और इसके नहीं होने का मुझे कोई कारण नहीं दिखता है. दोनों देशों के बीच कोई भी ऐसा मुद्दा या कोई ऐसी चुनौती नहीं है, जिसको सुलझाना असंभव सा हो. आप जानते हैं कि हम इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में साझेदारी का निर्माण कर रहे हैं. इस क्षेत्र में भारत को ऑस्ट्रेलिया से बेहतर दोस्त नहीं मिल सकता है. हम भी भारत को एक करीबी दोस्त के रूप में देखते हैं. 

सिद्धू ने कुछ चुनिंदा महिला विदेश नीति संपादकों से बातचीत की. इस दौरान उन्होंने रसद समझौते पर आशावादी दृष्टिकोण से जवाब दिया. भारत ने इसी तरह का समझौता अमेरिका, फ्रांस और सिंगापुर से भी किया है. पिछले नवंबर में विदेश और रक्षा मंत्रियों के स्तर पर टू प्लस टू संवाद के दौरान जापान के साथ अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग समझौते के समापन की दिशा में प्रगति हुई थी. जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक बार समझौते हो गए, तो भारत-प्रशांत क्षेत्र में मानवीय सहायता और आपदा राहत से जुड़े ऑपरेशन के लिए बडी़ मदद मिलेगी. भारतीय नौसेना के लिए अंतर संचालन क्षमता में इजाफा होगा. ऑस्ट्रेलियाई प्रधान मंत्री स्कॉट मॉरिसन की भारत यात्रा के दौरान इस समझौते का औपचारिक ऐलान हो सकता है. मॉरिसन को रायसीना डायलॉग में भाग लेने आना था, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग के कारण वे यहां नहीं आ सके. 

'इंडो-पैसिफिक समझौते का मकसद चीन को साधना नहीं है

हमारा मकसद प्रजातांत्रिक देशों के बीच संबंधों की प्रगाढ़ता को बढाना है. हम व्यापार बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं. अमेरिका के साथ सहयोग को प्राथमिकता दे रहे हैं. चीन के साथ भी रचनात्मक संबंध बनाने पर फोकस किया जा रहा है. यहां पर कोई विवाद नहीं है. रूसी विदेश मंत्री लावरोव की टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर कि क्या अमेरिकी हितों की वजह से ऐसा हो रहा है, उन्होंने कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं है. यह अवधारणा ही गलत है. सिद्धू ने कहा कि हमारा उद्देश्य है सबको साथ लेकर आगे बढ़ना, ना कि किसी को छोड़ना. यह वास्तव में उस तरह के रणनीतिक वातावरण की अवधारणा करने का प्रयास है, जिसमें हम रहते हैं और हम क्या प्राप्त करना चाहते हैं. किसी भी भौगोलिक अवधारणा में, चीन इंडो-पैसिफिक का एक हिस्सा है. उन रिपोर्टों का जवाब देते हुए कि भारत आखिरकार कैनबरा को संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान के साथ होने वाले नौसैनिक अभ्यास में शामिल होने के लिए हरी झंडी दे सकता है, सिद्धू ने कहा, 'यदि मालाबार अभ्यास के लिए आमंत्रण मिलता है, तो बहुत संभावना होगी कि ऑस्ट्रेलिया सहमत होगा और स्वीकार करेगा.'

पाकिस्तान एफएटीएफ की कार्रवाई से बच सकता है और उसे ब्लैक लिस्ट नहीं किया जाएगा. इसकी संभावना के बारे में सिद्धू ने कहा कि इसका निर्णय तकनीकी वजहों को ध्यान में रखने के बाद किया जाएगा. अभी पाकिस्तान ग्रे सूची में है. उन्होंने कहा कि फिलहाल ऑस्ट्रेलिया पाकिस्तान को ग्रे सूची में बने रहने का पक्षधर है. क्योंकि ऐसा नहीं लगता है कि वह पहले की बैठकों में निर्धारित मापदंडों के अनुपालन आवश्यकताओं को पूरा कर चुका है. सिद्धू ने कहा कि एफएटीएफ की प्रत्येक बैठक में, ऑस्ट्रेलिया ने बहुत ही तकनीकी दृष्टिकोण लिया है. यह आकलन करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है कि हम क्या पाने की कोशिश कर रहे हैं. हम वास्तव में एक अच्छा परिणाम चाहते हैं. जिसका अर्थ है कि पाकिस्तान उस पर लगाई गई आवश्यकताओं का अनुपालन कर रहा है. इसलिए हम इस मुद्दे पर एक तकनीकी दृष्टिकोण अपनाते हैं, वस्तुनिष्ठ शब्दों में पाकिस्तान की प्रगति का आकलन करते हैं कि वह इस प्रकार कहां तक ​​पहुंचा है.'

16 से 21 फरवरी तक पेरिस में होने वाली महत्वपूर्ण एफएटीएफ प्लेनरी और ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप की बैठक में निर्णय लिया जाएगा कि पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में हटाया जाए या बरकरार रखा जाए. एफएटीएफ के नौ सहयोगियों के बीच एशिया पैसिफिक ग्रुप (एपीजी) या ऑस्ट्रेलिया चैप्टर ने पिछले साल अपनी कैनबरा बैठक में पाकिस्तान को 'काली सूची' में डाल दिया था. सिद्धू ने कहा कि हमने ग्रे लिस्टिंग का समर्थन करना जारी रखा है क्योंकि एक तकनीकी पर हमारा आकलन है. आधार यह रहा है कि यह उन आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाया है. यह कहना नहीं है कि अगर पाकिस्तान को वास्तव में अपने प्रदर्शन में सुधार करना था, तो हम अलग तरह से विचार नहीं कर सकते हैं.

भारत को आरसीईपी (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी) में शामिल होना चाहिए. इससे पूरे क्षेत्र का विकास होगा. मेरी उम्मीद है कि भारत गंभीरता के साथ इसमें आने के बारे में विचार करेगा. जिन मामलों पर चिंता है, उन विषयों पर बातचीत की पूरी गुंजाइश है. यह भारत और आसियान और अन्य देशों के बीच आर्थिक एकीकरण और राजनीतिक संबंधों को और मजबूत करेगा. 

सिद्धू ने कहा कि अगर भारत आरसीईपी में होता, तो यह उस जोखिम को कम करता जो भारत को आरसीईपी या किसी अन्य आर्थिक सहयोग से ट्रैक से बाहर कर देता. हमें लगता है कि इस समूह में भारत एक बहुत अच्छा और रचनात्मक भागीदार होगा. इसलिए हम आरसीईपी में भारत का स्वागत करने के लिए बहुत उत्सुक हैं जब भी भारत को लगता है कि वह ऐसा करने के लिए तैयार है.

सिद्धू ने आगे कहा कि खुली उदार व्यापार नीति भारतीय अर्थव्यवस्था और इसकी आर्थिक वृद्धि को भी बढ़ाएगी. व्यापार करने के लिए भारत के खुलेपन और व्यापार की गुणवत्ता, सीमा और गहराई वास्तव में भारत के विकास को प्रभावित करेगी. अपने देश के अंदर आप जो कर सकते हैं, उसकी सीमाएं हैं. उदाहरण के लिए अगर भारत एक मजबूत विनिर्माण क्षेत्र बनाना चाहता है, तो उसे इनपुट्स की आवश्यकता होगी. उन निविष्टियों को अच्छी गुणवत्ता, विश्वसनीय और सस्ता होना चाहिए. आपको हमेशा अपने देश के अंदर आवश्यक इनपुट प्राप्त नहीं हो सकते हैं. आपको वास्तव में उन्हें आयात करने की आवश्यकता होगी. आप अपनी खुद की आबादी पर भरोसा नहीं कर सकते हैं, हालांकि यह बड़ा हो सकता है, आपका अपना बाजार हो. आपको अपने उत्पाद को निर्यात करने की आवश्यकता है, ताकि आप अपने उत्पाद को उच्च गुणवत्ता और लागत प्रभावी बनाने के लिए वातावरण में प्रतिस्पर्धा कर सकें. 

सिद्धू ने कहा कि भारत की ताकत प्रजातांत्रिक व्यवस्था है. हालांकि, उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून और कश्मीर के विषय पर कई भी प्रतिक्रिया नहीं दी. सिद्धू ने कहा कि जब हम इंडो-पैसिफिक रणनीति के हिस्से के रूप में कहते हैं कि हम इस क्षेत्र में मजबूत लोकतंत्रों के साथ काम करना चाहते हैं, तो भारत की एक बड़ी ताकत इसकी बहुलतावादी लोकतांत्रिक परंपराएं हैं.

'हम इस बात का स्वागत करते हैं कि भारत में, हम भारत के साथ उन परंपराओं के निर्माण में क्षेत्र के भागीदार के रूप में काम करना चाहते हैं,' सिद्धू ने कहा.

चीनी दूरसंचार दिग्गज हुआवेई के फाइव जी नेटवर्क के लिए उपकरणों की आपूर्ति ना करने पर सिद्धू ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया के अपने हित हैं. वे इसकी इजाजत नहीं दे सकते हैं. उन्होंने कहा कि फाइव जी पर तकनीकी निर्णय लेने में, हमारी संप्रभुता की रक्षा करने के लिए हमारी ओवरराइडिंग मानदंड है. उस निर्णय में हम ऐसे विक्रेताओं को समायोजित नहीं कर सकते हैं जो शायद दूसरे देश या विदेशी शक्ति के प्रति निष्ठा रखते हैं. हम भारत के उस अधिकार का सम्मान करते हैं जो उसे अपने हित में लगता है.

(स्मित शर्मा के साथ बातचीत के आधार पर) 


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Last Updated : Feb 28, 2020, 4:18 PM IST
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