जयपुर/शिमला : पूरी दुनिया नोवल कोरोना वायरस के कारण होने वाले खतरे से जूझ रहा है. हर देश इस संकट से उबरने और कोरोना के खिलाफ चल रहे युद्ध को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रहा है. फिर चाहे वो अमेरिका हो या भारत, सभी देश अपने संसाधनों के माध्यम से इस संकट को दूर करने का रास्ता खोज रहे हैं. वे इस उम्मीद में ऐसा कर रहे हैं कि यह वायरस आखिरकार हार जाएगा.
हालांकि, दूसरी तरफ एक और तस्वीर भी उभर रही है. यह मानवता को गहरी चोट पहुंचा रही है. कोरोना संकट से छुटकारा पाने के लिए भारत में लगाए गए लॉकडाउन से सबसे अधिक प्रभावित दैनिक मजदूर हुए हैं. इन्हें भोजन और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है. क्योंकि कंपनियां फिलहाल बंद हैं और ठेकेदारों ने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया है. लिहाजा, वे अपनी भूख मिटाने के लिए इधर-उधर बदहवास भाग रहे हैं.
राजस्थान के जैसलमेर के पोकरण में काम कर रहे मजदूरों की स्थिति देखिए. यहां 33 लोगों को केवल आधा किलो 'तेल' दिया गया. यहां रहने वाले दिहाड़ी मजदूरों को भोजन की आपूर्ति मिलनी बंद हो गई. जैसे ही ये खबर सुर्खियों में आई, पुलिस-प्रशासन आनन-फानन में पहुंचा और उन्हें एक स्कूल में ठहरा दिया.
लेकिन, पर्याप्त भोजन और पानी की सुविधा न होने के कारण, मजदूरों ने अपने आवंटित स्थलों से पैदल ही अपने गांव की ओर यात्रा शुरू कर दी. मजदूरों ने कहा कि प्रशासन ने 30 लोगों के बीच केवल 20 किलो आटा और आधा किलो तेल वितरित किया, ऐसे में वे यहां कैसे रह सकते हैं. आखिर वे कैसे बचेंगे ? दूध और पानी की कमी के कारण, इन मजदूरों के बच्चों की स्थिति और अधिक खराब हो गई है. उन्होंने कहा कि अब इसमें बच्चों का क्या दोष है. उनका कहना है कि जो भी थोड़ा बहुत भोजन मिलता है, वे अपने बच्चों को दे देते हैं. इन बच्चों की माताओं का भी ऐसा ही हाल है.
ऐसी ही एक तस्वीर भरतपुर से सामने आई है. यहां, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों से सैकड़ों श्रमिक आते हैं और ठेकेदारों के चल रहे काम में काम करते हैं. लेकिन काम रुकने के कारण अब ये बाहरी लोग अपनी पत्नी और बच्चों के साथ सड़क किनारे रहने को मजबूर हैं. वे अपने घरों में जाना चाहते हैं. लेकिन लॉकडाउन में प्रशासन की सख्ती के कारण वे यहां रहने के लिए मजबूर हैं. इन श्रमिकों ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि कोरोना ने उनका रोजगार छीन लिया है और वे जो भी काम कर रहे थे, अब बंद हो गया है. वे अपने परिवार के साथ रह रहे हैं. कुछ लोग उन्हें राशन देकर मदद कर रहे हैं. लेकिन यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि यह केवल बच्चों के लिए उपलब्ध है. उन्हें पानी के लिए भी दूर-दूर भटकना पड़ता है. मच्छर उन्हें रात में सोने नहीं देते.
वे अपने बच्चों के साथ अब सड़कों पर उपलब्ध स्थानों पर अपना जीवन बिताने के लिए मजबूर हैं.
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हिमाचल के किन्नौर में भी ऐसे ही हालात हैं. यहां पर दो तबके के मजदूर मौजूद हैं. एक वह मजदूर जो हिमाचल से ही हैं, जो सिर्फ सेब की कटिंग प्रूनिंग के काम के लिए कुछ समय के लिए आते हैं और दूसरा तबका झारखंड, बिहार, नेपाल के मजदूर जो लंबे समय की अवधि के लिए काम करने किन्नौर आते हैं.
इनमें सबसे अधिक 482 मजदूर नेपाली हैं. यूपी के118, झारखंड के 94 बिहार 70, कश्मीरी 112 और दूसरे राज्यों के 332 मजदूर मौजूदा समय में फंसे हुए हैं. इन मजदूरों के पास अब ना तो कोई कामकाज है और न खाने पीने को पहले की तरह व्यवस्थाएं. जिला प्रशासन की तरफ से इन प्रवासी मजदूरों को खाने के लिए राशन दिया जा रहा है, लेकिन अपनों से दूर यह मजदूर घर जाने की राह ताक रहे हैं.
मजदूरों की एक ही मांग है कि उन्हें अपने घर भेजा जाए या उनकी मजदूरी का कुछ इंतजाम किया जाए ताकि मजदूरी कर अपने और परिवार का भरण पोषण कर सकें.