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टैलेंट के आधार पर बच्चों की ग्रुपिंग नुकसानदायक हो सकती है - शोध - Dr Becky Taylor of the IOE

एक शोध से पता चलता है कि टैलेंट के आधार पर बच्चों को ग्रुपिंग करने बच्चों के आत्मविश्वास में अंतर ला सकती है. होशियार बच्चों के ग्रुप जहां आत्मविश्वास भरे हुए होंगे वहीं सामान्य और कमजोर बच्चों का आत्मविश्वास गिर जाएगा. ऐसे में इन बच्चों का शिक्षा से लगाव भी खत्म हो सकता है.

टैलेंट के आधार पर बच्चों की ग्रुपिंग ठीक नहीं
टैलेंट के आधार पर बच्चों की ग्रुपिंग ठीक नहीं
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Published : Jun 19, 2020, 6:52 PM IST

लंदन: जिस तरह ज्यादातर स्कूलों में बच्चों को उनके टैलेंट के अनुसार बांटकर उनकी ग्रुपिंग की जाती है यह व्यवस्था विद्यार्थियों के आत्मविश्वास को बुरी तरह प्रभावित करती है.

यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन, क्वीन यूनिवर्सिटी बेलफास्ट और लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने एक शोध किया है जिसमें उन्होंने 12 से 13 साल के करीब नौ हजार से अधिक बच्चों का अध्ययन किया. पहले बच्चों की टैलेंट के आधार पर ग्रुप बनाया यानि कि होशियार बच्चों का ग्रुप, फिर उससे कम होशियार फिर मध्यम और फिर कमजोर बच्चों का ग्रुप बनाया गया और फिर इन्हें सेट किए गए गणित और अंग्रेजी की कक्षा में भेजा गया.

टीम, जिन्होंने अपना परिणाम ब्रिटिश जर्नल ऑफ सोशियोलॉजी ऑफ एजुकेशन में प्रकाशित किया उन्होंने पाया कि होशियार बच्चों के ग्रुप और सामान्य और कमजोर बच्चों के ग्रुप के बीच आत्मविश्वास में काफी अंतर पाया गया. गणित की कक्षा में यह अंतर और बढ़ गया. यह निषकर्ष चिंताजनक था.

निष्कर्षों पर टिप्पणी करते हुए, यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन के प्रोफेसर जेरेमी होडगेन ने कहा कि यह शोध हमें सामाजिक न्याय को बराबरी के स्तर पर लाने के लिए प्रेरित करता है. आत्मविश्वास की कमी की गहरी खाई अगर बढ़ती गई तो इसे पाटना बहुत मुश्किल होगा.

टैलेंट के आधार पर ग्रुपिंग करने वाले स्कूल कमजोर बच्चों के आत्मविश्वास को और कमजोर कर देते हैं. और इससे यह भी पता चलता है कि कमजोर ग्रुपिंग वाले बच्चे निम्न आय वाले सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं. बच्चों की शिक्षा में हो रहे नुकसान को रोकने के लिए हमारा शोध काफी प्रभावशाली है. स्कूलों में छात्रों की ग्रुपिंग करना भेदभाव को बढ़ावा देने वाला है. यह सर्वे यूके के 139 सेकेंडरी स्कूलों में किया गया.

विश्लेषण से पता चलता है कि जब एक सामान्य छात्र को होशियार बच्चों के ग्रुप में डाला गया तो उसका आत्मविश्वास ऊंचा था और जब सामन्य छात्र को कमजोर बच्चों के ग्रुप में डाला गया तो उसके आत्मविश्वास में कमी पाई गई. अंग्रेजी की कक्षा में उनका आत्मविश्वास बना हुआ था लेकिन गणित की कक्षा में उनका आत्मविश्वास गिर गया.

आईओई के डॉ. बेकी टेलर ने कहा कि टैलेंट के आधार पर बच्चे खुद पर एक लेबल चिपका हुआ समझते हैं जो उन्हें सीखने की, आगे बढ़ने की, खुद की पहचान बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है.

ऐसी शिक्षा प्रणाली बच्चों के शिक्षा के प्रति उदासीन कर देती है और वे अपने भविष्य को लेकर हमेशा दुविधा में रहते हैं. इस तरह की शिक्षा प्रणाली इन बच्चों के माता-पिता, शिक्षक, साथी और स्कूल के बीच असमझ की स्थिति पैदा करती है. कभी स्कूल और मां-बाप के बीच टकराव की स्थिति भी पैदा होती है.

यह रिपोर्ट स्वीकार करता है कि इसमें और शोध की आवश्यकता है. जिससे यह समझा जा सके कि कैसे आत्मविश्वास एक बच्चे के भविष्य निर्माण पर प्रभाव डालता है साथ ही उन अन्य तरीकों को भी पहचान सके जो एक बच्चे की शिक्षा के प्रति लगाव पैदा कर सके और उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ा सके.

लंदन: जिस तरह ज्यादातर स्कूलों में बच्चों को उनके टैलेंट के अनुसार बांटकर उनकी ग्रुपिंग की जाती है यह व्यवस्था विद्यार्थियों के आत्मविश्वास को बुरी तरह प्रभावित करती है.

यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन, क्वीन यूनिवर्सिटी बेलफास्ट और लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने एक शोध किया है जिसमें उन्होंने 12 से 13 साल के करीब नौ हजार से अधिक बच्चों का अध्ययन किया. पहले बच्चों की टैलेंट के आधार पर ग्रुप बनाया यानि कि होशियार बच्चों का ग्रुप, फिर उससे कम होशियार फिर मध्यम और फिर कमजोर बच्चों का ग्रुप बनाया गया और फिर इन्हें सेट किए गए गणित और अंग्रेजी की कक्षा में भेजा गया.

टीम, जिन्होंने अपना परिणाम ब्रिटिश जर्नल ऑफ सोशियोलॉजी ऑफ एजुकेशन में प्रकाशित किया उन्होंने पाया कि होशियार बच्चों के ग्रुप और सामान्य और कमजोर बच्चों के ग्रुप के बीच आत्मविश्वास में काफी अंतर पाया गया. गणित की कक्षा में यह अंतर और बढ़ गया. यह निषकर्ष चिंताजनक था.

निष्कर्षों पर टिप्पणी करते हुए, यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन के प्रोफेसर जेरेमी होडगेन ने कहा कि यह शोध हमें सामाजिक न्याय को बराबरी के स्तर पर लाने के लिए प्रेरित करता है. आत्मविश्वास की कमी की गहरी खाई अगर बढ़ती गई तो इसे पाटना बहुत मुश्किल होगा.

टैलेंट के आधार पर ग्रुपिंग करने वाले स्कूल कमजोर बच्चों के आत्मविश्वास को और कमजोर कर देते हैं. और इससे यह भी पता चलता है कि कमजोर ग्रुपिंग वाले बच्चे निम्न आय वाले सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं. बच्चों की शिक्षा में हो रहे नुकसान को रोकने के लिए हमारा शोध काफी प्रभावशाली है. स्कूलों में छात्रों की ग्रुपिंग करना भेदभाव को बढ़ावा देने वाला है. यह सर्वे यूके के 139 सेकेंडरी स्कूलों में किया गया.

विश्लेषण से पता चलता है कि जब एक सामान्य छात्र को होशियार बच्चों के ग्रुप में डाला गया तो उसका आत्मविश्वास ऊंचा था और जब सामन्य छात्र को कमजोर बच्चों के ग्रुप में डाला गया तो उसके आत्मविश्वास में कमी पाई गई. अंग्रेजी की कक्षा में उनका आत्मविश्वास बना हुआ था लेकिन गणित की कक्षा में उनका आत्मविश्वास गिर गया.

आईओई के डॉ. बेकी टेलर ने कहा कि टैलेंट के आधार पर बच्चे खुद पर एक लेबल चिपका हुआ समझते हैं जो उन्हें सीखने की, आगे बढ़ने की, खुद की पहचान बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है.

ऐसी शिक्षा प्रणाली बच्चों के शिक्षा के प्रति उदासीन कर देती है और वे अपने भविष्य को लेकर हमेशा दुविधा में रहते हैं. इस तरह की शिक्षा प्रणाली इन बच्चों के माता-पिता, शिक्षक, साथी और स्कूल के बीच असमझ की स्थिति पैदा करती है. कभी स्कूल और मां-बाप के बीच टकराव की स्थिति भी पैदा होती है.

यह रिपोर्ट स्वीकार करता है कि इसमें और शोध की आवश्यकता है. जिससे यह समझा जा सके कि कैसे आत्मविश्वास एक बच्चे के भविष्य निर्माण पर प्रभाव डालता है साथ ही उन अन्य तरीकों को भी पहचान सके जो एक बच्चे की शिक्षा के प्रति लगाव पैदा कर सके और उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ा सके.

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