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कोरोना महामारी : देश में छह लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी - 6 लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी

वैज्ञानिकों ने हमें जिस तरह से कोविड -19 जैसी महामारियों से सावधान रहने की चेतावनी दी है, बहुत खतरनाक तरह की महामारी से लड़ने के लिए हमें महामारी अधिनियम को मजबूत बनाने की जरूरत है. इसकी जड़े ब्रिटिश काल से जुड़ी हुई है. इसी तरह एक ऐसी मजबूत व्यवस्था होनी चाहिए ताकि केंद्र और राज्य सरकारें जन स्वास्थ्य के लिए निश्चित रूप से खड़ी हो सकें.

कोरोना से एक करोड़ से अधिक लोग संक्रमित
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Published : Dec 25, 2020, 12:57 PM IST

नई दिल्ली : भारत समेत दुनिया के देशों के लिए यह वर्ष पूरी तरह से कोविड-19 को समर्पित रहा. चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाओं और व्यवस्था के मामले में सशक्त देश भी जब महामारी के असर से पूरी तरह से सदमे में थे तो जन स्वास्थ्य के मामले में 195 देशों में 145 वे पायदान वाले भारत की स्थिति की कोई केवल कल्पना ही कर सकता है.

भारत ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1.3 फीसद का प्रावधान रखा है. यह साबित हो गया है कि इतने कम पैसे के आवंटन से कोविड-19 जैसी महामारी के जानलेवा हमले का सामना करना असंभव है. देश में महामारी से अबतक एक करोड़ लोग संक्रमित हुए और 1.45 लाख से अधिक लोगों की जान गई है. फिर भी ढाढस देने वाली बात यह है कि महामारी की तीव्रता कम हो रही है. चिंता का विषय यह है कि ब्रिटेन में कोरोना वायरस का एक नया नस्ल सामने आया है. हर साल 6 करोड़ से ज्यादा लोग बहुत अधिक इलाज का खर्च नहीं उठा पाने की वजह से गरीबी का दंश झेलने के बाद गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं. कोविड -19 ने पहले से ही आजीविका के नुकसान से पीड़ित आबादी के दुख को और बढ़ा दिया है.

सर्वोच्च न्यायालय सही जोर दिया था कि स्वास्थ्य के अधिकार में सस्ता उपचार शामिल है. कोर्ट ने नहीं वहन कर सकने लायक कोविड-19 के उपचार की प्रकृति पर अफसोस जताया. उसी पृष्ठभूमि में एक संसदीय स्थायी समिति ने यह विचार व्यक्त किया जब कोविड -19 जैसी महामारियां सिर उठाएं तो निजी अस्पतालों पर नियंत्रण होना चाहिए और ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि अस्पतालों की दवा की कालाबाजारी पर रोक लगे. इस समिति ने यह भी सुझाव दिया कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की देख- रेख में महामारियों से लड़ने की विशेष व्यस्था होनी चाहिए. इस समिति ने इलाज के लिए सभी बीमा धारकों को बगैर नकदी (कैसलेस) के उपचार की वकालत की है. हमारी चिकित्सा और स्वास्थ्य व्यवस्था में जड़ों तक घुसी बीमारी इस तरह के बाहरी सुधार के प्रयोगों के नहीं ठीक की जा सकती. एक ऐसी पहल समय की जरूरत है जो जन स्वास्थ्य प्रणाली को जमीनी स्तर से मजबूत करे.

यह याद रखने योग्य है कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि भले ही कोविड -19 से कोई बच जाता है लेकिन वह आर्थिक रूप से कई बार खत्म होता है. न्यायालय ने कहा है कि इसलिए या तो राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की ओर से अधिक से अधिक प्रावधान किए जाएं या निजी अस्पतालों की ओर से ली जाने वाली फीस की अधिकतम सीमा तय की जाए. आपदा प्रबंधन कानूक के तहत मिली शक्तियों से इस्तेमाल से ऐसा किया जा सकता है. भारत के संविधान के निर्देशक सिद्धांत में लिखा हुआ है कि जन स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार सरकार के बुनियादी कर्तव्यों में से एक है. चूंकि एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने इस संवैधानिक निर्देश की अनदेखी करना पसंद किया इसलिए आज हमारे पास 6 लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी है, जिससे चिकित्सा सुविधाओं के मामले में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच बहुत ज्यादा असमानता पैदा हुई है. इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के उपाय के रूप में 15 वें वित्त आयोग ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटन बढ़ाने का सुझाव दिया है. इसने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटन वर्ष 2024 तक बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 फीसद तक करने का आह्वान किया है.

वैज्ञानिकों ने हमें जिस तरह से कोविड -19 जैसी महामारियों से सावधान रहने की चेतावनी दी है, बहुत खतरनाक तरह की महामारी से लड़ने के लिए हमें महामारी अधिनियम को मजबूत बनाने की जरूरत है. इसकी जड़े ब्रिटिश काल से जुड़ी हुई है. इसी तरह एक ऐसी मजबूत व्यवस्था होनी चाहिए ताकि केंद्र और राज्य सरकारें जन स्वास्थ्य के लिए निश्चित रूप से खड़ी हो सकें.

ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा सभी नागरिकों को चिकित्सा सेवा मुफ्त देती है. एम्बुलेंस, सर्जरी, विकिरण चिकित्सा और कीमोथेरेपी सहित सभी चिकित्सा सेवाएं सभी को मुफ्त दी जा रही है. नागरिकों को निजी उपचार का लाभ उठाने की भी सुविधा है उन्होंने खुद का चिकित्सा बीमा करा रखा हैं. हम ऐसे आत्मनिर्भर भारत को तभी महसूस कर सकते हैं. जब लघु, मध्यम और दीर्घकालिक रणनीति के जरिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करके ऐसी व्यापक चिकित्सा सेवाएं एवं सुविधाएं भारत के लोगों को मुहैया कराई जाएं.

नई दिल्ली : भारत समेत दुनिया के देशों के लिए यह वर्ष पूरी तरह से कोविड-19 को समर्पित रहा. चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाओं और व्यवस्था के मामले में सशक्त देश भी जब महामारी के असर से पूरी तरह से सदमे में थे तो जन स्वास्थ्य के मामले में 195 देशों में 145 वे पायदान वाले भारत की स्थिति की कोई केवल कल्पना ही कर सकता है.

भारत ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1.3 फीसद का प्रावधान रखा है. यह साबित हो गया है कि इतने कम पैसे के आवंटन से कोविड-19 जैसी महामारी के जानलेवा हमले का सामना करना असंभव है. देश में महामारी से अबतक एक करोड़ लोग संक्रमित हुए और 1.45 लाख से अधिक लोगों की जान गई है. फिर भी ढाढस देने वाली बात यह है कि महामारी की तीव्रता कम हो रही है. चिंता का विषय यह है कि ब्रिटेन में कोरोना वायरस का एक नया नस्ल सामने आया है. हर साल 6 करोड़ से ज्यादा लोग बहुत अधिक इलाज का खर्च नहीं उठा पाने की वजह से गरीबी का दंश झेलने के बाद गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं. कोविड -19 ने पहले से ही आजीविका के नुकसान से पीड़ित आबादी के दुख को और बढ़ा दिया है.

सर्वोच्च न्यायालय सही जोर दिया था कि स्वास्थ्य के अधिकार में सस्ता उपचार शामिल है. कोर्ट ने नहीं वहन कर सकने लायक कोविड-19 के उपचार की प्रकृति पर अफसोस जताया. उसी पृष्ठभूमि में एक संसदीय स्थायी समिति ने यह विचार व्यक्त किया जब कोविड -19 जैसी महामारियां सिर उठाएं तो निजी अस्पतालों पर नियंत्रण होना चाहिए और ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि अस्पतालों की दवा की कालाबाजारी पर रोक लगे. इस समिति ने यह भी सुझाव दिया कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की देख- रेख में महामारियों से लड़ने की विशेष व्यस्था होनी चाहिए. इस समिति ने इलाज के लिए सभी बीमा धारकों को बगैर नकदी (कैसलेस) के उपचार की वकालत की है. हमारी चिकित्सा और स्वास्थ्य व्यवस्था में जड़ों तक घुसी बीमारी इस तरह के बाहरी सुधार के प्रयोगों के नहीं ठीक की जा सकती. एक ऐसी पहल समय की जरूरत है जो जन स्वास्थ्य प्रणाली को जमीनी स्तर से मजबूत करे.

यह याद रखने योग्य है कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि भले ही कोविड -19 से कोई बच जाता है लेकिन वह आर्थिक रूप से कई बार खत्म होता है. न्यायालय ने कहा है कि इसलिए या तो राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की ओर से अधिक से अधिक प्रावधान किए जाएं या निजी अस्पतालों की ओर से ली जाने वाली फीस की अधिकतम सीमा तय की जाए. आपदा प्रबंधन कानूक के तहत मिली शक्तियों से इस्तेमाल से ऐसा किया जा सकता है. भारत के संविधान के निर्देशक सिद्धांत में लिखा हुआ है कि जन स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार सरकार के बुनियादी कर्तव्यों में से एक है. चूंकि एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने इस संवैधानिक निर्देश की अनदेखी करना पसंद किया इसलिए आज हमारे पास 6 लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी है, जिससे चिकित्सा सुविधाओं के मामले में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच बहुत ज्यादा असमानता पैदा हुई है. इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के उपाय के रूप में 15 वें वित्त आयोग ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटन बढ़ाने का सुझाव दिया है. इसने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटन वर्ष 2024 तक बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 फीसद तक करने का आह्वान किया है.

वैज्ञानिकों ने हमें जिस तरह से कोविड -19 जैसी महामारियों से सावधान रहने की चेतावनी दी है, बहुत खतरनाक तरह की महामारी से लड़ने के लिए हमें महामारी अधिनियम को मजबूत बनाने की जरूरत है. इसकी जड़े ब्रिटिश काल से जुड़ी हुई है. इसी तरह एक ऐसी मजबूत व्यवस्था होनी चाहिए ताकि केंद्र और राज्य सरकारें जन स्वास्थ्य के लिए निश्चित रूप से खड़ी हो सकें.

ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा सभी नागरिकों को चिकित्सा सेवा मुफ्त देती है. एम्बुलेंस, सर्जरी, विकिरण चिकित्सा और कीमोथेरेपी सहित सभी चिकित्सा सेवाएं सभी को मुफ्त दी जा रही है. नागरिकों को निजी उपचार का लाभ उठाने की भी सुविधा है उन्होंने खुद का चिकित्सा बीमा करा रखा हैं. हम ऐसे आत्मनिर्भर भारत को तभी महसूस कर सकते हैं. जब लघु, मध्यम और दीर्घकालिक रणनीति के जरिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करके ऐसी व्यापक चिकित्सा सेवाएं एवं सुविधाएं भारत के लोगों को मुहैया कराई जाएं.

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