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भारत को भी करना पड़ सकता है भीषण गर्मी का सामना : अध्ययन - साइंटिफिक रिपोर्ट्स

एक अध्ययन के अनुसार 2003 में पश्चिमी यूरोप और 2010 में रूस में जैसी भीषण गर्मी पड़ी थी, वैसी गर्मी भारत में आम हो रही है. अध्ययन में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों को शामिल करते हुए 1951-1975 और 1976-2018 के बीच भीषण गर्मी की आवृत्ति और तीव्रता में परिवर्तन पर गौर किया गया है.

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Published : Mar 5, 2020, 9:43 PM IST

Updated : Mar 5, 2020, 10:31 PM IST

नई दिल्ली : एक अध्ययन के अनुसार 2003 में पश्चिमी यूरोप और 2010 में रूस में जैसी भीषण गर्मी पड़ी थी, वैसी गर्मी भारत में आम हो रही है. यूरोप और रूस में उन वर्षों के दौरान भीषण गर्मी के कारण लगभग एक हजार लोगों की मौत हो गई थी और फसलें बर्बाद हो गई थीं.

'साइंटिफिक रिपोर्ट्स' नामक पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में भारत में भीषण गर्मी के लिए प्रमुख कारकों की पहचान की गई है. अध्ययन में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों को शामिल करते हुए 1951-1975 और 1976-2018 के बीच भीषण गर्मी की आवृत्ति और तीव्रता में परिवर्तन पर गौर किया गया.

पूरे भारत में लगभग 395 गुणवत्ता नियंत्रण केंद्रों द्वारा एकत्र आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए वैज्ञानिकों ने देश में अत्यधिक तापमान के लिए जिम्मेदार तंत्र की पहचान की. अध्ययन करने वाले समूह में पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के वैज्ञानिक भी शामिल थे.

अध्ययन के प्रमुख लेखक मनीष कुमार जोशी ने मीडिया को बताया कि निष्कर्षों से स्पष्ट होता है कि गंगा के मैदानी भाग को छोड़कर पूरे भारत में गर्म दिनों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.

शोधकर्ताओं के अनुसार, 1976 से 2018 के बीच, गंगा के मैदानी इलाकों को छोड़कर, देश के बड़े हिस्से में अप्रैल-जून के दौरान भारी गर्मी वाले औसतन 10 दिन थे. उन्होंने कहा कि यह संख्या 1951 -1975 की अवधि की तुलना में लगभग 25 प्रतिशत अधिक है.

आईआईटीएम से जुड़े जोशी ने कहा कि 1976 के जलवायु परिवर्तन से पहले भारत के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में गर्म दिनों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.

पढ़ें- वैश्विक जल संकट : बूंद-बूंद गिरते पानी से बढ़ेगी चुनौती

अध्ययन में गौर किया गया कि इस जलवायु परिवर्तन के बाद आंतरिक प्रायद्वीप हिस्से के उत्तर-पश्चिमी भागों और पश्चिमी तट से लगे क्षेत्रों में गर्म दिन काफी बढ़ गए हैं.

जोशी और उनकी टीम का मानना ​​है कि यह भारत में तापमान में वृद्धि के स्थानिक बदलाव को दर्शाता है.

नई दिल्ली : एक अध्ययन के अनुसार 2003 में पश्चिमी यूरोप और 2010 में रूस में जैसी भीषण गर्मी पड़ी थी, वैसी गर्मी भारत में आम हो रही है. यूरोप और रूस में उन वर्षों के दौरान भीषण गर्मी के कारण लगभग एक हजार लोगों की मौत हो गई थी और फसलें बर्बाद हो गई थीं.

'साइंटिफिक रिपोर्ट्स' नामक पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में भारत में भीषण गर्मी के लिए प्रमुख कारकों की पहचान की गई है. अध्ययन में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों को शामिल करते हुए 1951-1975 और 1976-2018 के बीच भीषण गर्मी की आवृत्ति और तीव्रता में परिवर्तन पर गौर किया गया.

पूरे भारत में लगभग 395 गुणवत्ता नियंत्रण केंद्रों द्वारा एकत्र आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए वैज्ञानिकों ने देश में अत्यधिक तापमान के लिए जिम्मेदार तंत्र की पहचान की. अध्ययन करने वाले समूह में पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के वैज्ञानिक भी शामिल थे.

अध्ययन के प्रमुख लेखक मनीष कुमार जोशी ने मीडिया को बताया कि निष्कर्षों से स्पष्ट होता है कि गंगा के मैदानी भाग को छोड़कर पूरे भारत में गर्म दिनों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.

शोधकर्ताओं के अनुसार, 1976 से 2018 के बीच, गंगा के मैदानी इलाकों को छोड़कर, देश के बड़े हिस्से में अप्रैल-जून के दौरान भारी गर्मी वाले औसतन 10 दिन थे. उन्होंने कहा कि यह संख्या 1951 -1975 की अवधि की तुलना में लगभग 25 प्रतिशत अधिक है.

आईआईटीएम से जुड़े जोशी ने कहा कि 1976 के जलवायु परिवर्तन से पहले भारत के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में गर्म दिनों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.

पढ़ें- वैश्विक जल संकट : बूंद-बूंद गिरते पानी से बढ़ेगी चुनौती

अध्ययन में गौर किया गया कि इस जलवायु परिवर्तन के बाद आंतरिक प्रायद्वीप हिस्से के उत्तर-पश्चिमी भागों और पश्चिमी तट से लगे क्षेत्रों में गर्म दिन काफी बढ़ गए हैं.

जोशी और उनकी टीम का मानना ​​है कि यह भारत में तापमान में वृद्धि के स्थानिक बदलाव को दर्शाता है.

Last Updated : Mar 5, 2020, 10:31 PM IST
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