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नौकरियों, पदोन्नतियों में आरक्षण देने के लिए सरकारें बाध्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट - पदोन्नति के मामलों पर उच्चतम न्यायालय

पदोन्नति के मामलों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण देने पर उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राज्य सरकारें नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है. उत्तराखंड सरकार के पांच सितम्बर 2012 के फैसले को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने यह टिप्पणी की. जानें विस्तार से...

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उच्चतम न्यायालय
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Published : Feb 9, 2020, 8:45 PM IST

Updated : Feb 29, 2020, 7:15 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राज्य सरकारें नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है तथा पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने का कोई मूल अधिकार नहीं है.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा, 'इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर इसमें कोई शक नहीं है कि राज्य सरकारें आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है. ऐसा कोई मूल अधिकार नहीं है जिसके तहत कोई व्यक्ति पदोन्नति में आरक्षण का दावा करे.'

पीठ ने अपने फैसले में कहा, 'न्यायालय राज्य सरकार को आरक्षण उपलब्ध कराने का निर्देश देने के लिए कोई परमादेश नहीं जारी कर सकता है.'

उत्तराखंड सरकार के पांच सितम्बर 2012 के फैसले को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने यह टिप्पणी की.

गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आरक्षण उपलब्ध कराये बगैर सार्वजनिक सेवाओं में सभी पदों को भरे जाने का फैसला लिया गया था.

सरकार के फैसले को उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, जिसने इसे खारिज कर दिया था.

उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपीलों पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा, 'यह निर्धारित कानून है कि राज्य सरकार को सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने के निर्देश नहीं दिये जा सकते है. इसी तरह सरकार पदोन्नति के मामलों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है.'

पीठ ने कहा, 'हालांकि अगर वे (राज्य) अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते है और पदोन्नति में आरक्षण देने का प्रावधान करते है तो सबसे पहले उसे इस तरह के आंकड़े इकट्ठा करने होंगे, जिससे यह स्पष्ट होता हो कि सार्वजनिक पदों पर किसी विशेष वर्ग का प्रतिनिधित्व कम है.'

इसे भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट ने एससी, एसटी को नौकरियों में पदोन्नति देने वाली मांग वाली याचिका को स्थगित किया

उत्तराखंड सरकार की सितम्बर 2012 की अधिसूचना को बरकरार रखते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा कि सरकार पदोन्नतियों में आरक्षण उपलब्ध कराने के लिए बाध्य नहीं है, इसलिए उच्च न्यायालय को राज्य के फैसले को अवैध नहीं घोषित करना चाहिए था.

आरक्षण के बारे में संवैधानिक प्रावधान का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा, 'यह राज्य सरकार को तय करना है कि सरकारी पदों पर नियुक्ति और पदोन्नति के मामले में आरक्षण की आवश्यकता है या नहीं.'

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राज्य सरकारें नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है तथा पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने का कोई मूल अधिकार नहीं है.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा, 'इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर इसमें कोई शक नहीं है कि राज्य सरकारें आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है. ऐसा कोई मूल अधिकार नहीं है जिसके तहत कोई व्यक्ति पदोन्नति में आरक्षण का दावा करे.'

पीठ ने अपने फैसले में कहा, 'न्यायालय राज्य सरकार को आरक्षण उपलब्ध कराने का निर्देश देने के लिए कोई परमादेश नहीं जारी कर सकता है.'

उत्तराखंड सरकार के पांच सितम्बर 2012 के फैसले को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने यह टिप्पणी की.

गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आरक्षण उपलब्ध कराये बगैर सार्वजनिक सेवाओं में सभी पदों को भरे जाने का फैसला लिया गया था.

सरकार के फैसले को उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, जिसने इसे खारिज कर दिया था.

उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपीलों पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा, 'यह निर्धारित कानून है कि राज्य सरकार को सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने के निर्देश नहीं दिये जा सकते है. इसी तरह सरकार पदोन्नति के मामलों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है.'

पीठ ने कहा, 'हालांकि अगर वे (राज्य) अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते है और पदोन्नति में आरक्षण देने का प्रावधान करते है तो सबसे पहले उसे इस तरह के आंकड़े इकट्ठा करने होंगे, जिससे यह स्पष्ट होता हो कि सार्वजनिक पदों पर किसी विशेष वर्ग का प्रतिनिधित्व कम है.'

इसे भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट ने एससी, एसटी को नौकरियों में पदोन्नति देने वाली मांग वाली याचिका को स्थगित किया

उत्तराखंड सरकार की सितम्बर 2012 की अधिसूचना को बरकरार रखते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा कि सरकार पदोन्नतियों में आरक्षण उपलब्ध कराने के लिए बाध्य नहीं है, इसलिए उच्च न्यायालय को राज्य के फैसले को अवैध नहीं घोषित करना चाहिए था.

आरक्षण के बारे में संवैधानिक प्रावधान का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा, 'यह राज्य सरकार को तय करना है कि सरकारी पदों पर नियुक्ति और पदोन्नति के मामले में आरक्षण की आवश्यकता है या नहीं.'

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SC-RESERVATION
State govt not bound to provide reservations in jobs and promotions: SC
          New Delhi, Feb 9 (PTI) The Supreme Court has held that states are not bound to provide reservation in appointments and there is no fundamental right to claim quota in promotions.
          "In view of the law laid down by this court, there is no doubt that the state government is not bound to make reservations. There is no fundamental right which inheres in an individual to claim reservation in promotions," a bench of justices L Nageswara Rao and Hemant Gupta said.
          "No mandamus can be issued by the court directing the state government to provide reservations," the bench said in its verdict.
          The apex court said this while dealing with pleas regarding Uttarakhand government's September 5, 2012 decision to fill up all posts in public services in the state without providing reservations to Scheduled Castes and Scheduled Tribes.
          The government's decision was challenged in the Uttarakhand High Court, which struck it down.
          Dealing with the appeals against the high court verdict, the top court noted, "It is settled law that the state government cannot be directed to provide reservations for appointment in public posts. Similarly, the state is not bound to make reservation for Scheduled Castes and Scheduled Tribes in matters of promotions."
          "However, if they (state) wish to exercise their discretion and make such provision, the state has to collect quantifiable data showing inadequacy of representation of that class in public services," the bench said.
          While upholding the Uttarakhand government's September 2012 notification, the apex court said that as the government is not bound to provide reservation in promotions, the high court should not have declared the state's decision as illegal.
          Referring to constitutional provision about reservation, the bench said, "It is for the state government to decide whether reservations are required in the matter of appointment and promotions to public posts."
          It noted that Article 16 (4) and 16 (4-A) of the Constitution empowers the state to make reservation in matters of appointment and promotion in favour of the Scheduled Castes and Scheduled Tribes "if in the opinion of state they are not adequately represented in the services of the state".
          "The language in clauses (4) and (4-A) of Article 16 is clear, according to which, the inadequacy of representation is a matter within the subjective satisfaction of the state," the bench said, adding, "All that is required is that there must be some material on the basis of which the opinion is formed." PTI ABA MNL
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Last Updated : Feb 29, 2020, 7:15 PM IST
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