नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने का निर्देश देने के राज्यपाल लालजी टण्डन के फैसले को सोमवार को सही ठहराया.
न्यायालय ने कहा कि अगर राज्यपाल को पहली नजर में यह लगता है कि सरकार बहुमत खो चुकी है तो उन्हें सदन में शक्ति परीक्षण का निर्देश देने का अधिकार है और संवैधानिक शुचिता के लिये भी ऐसे विषय को विश्वास मत के जरिये ही हल किया जा सकता है.
हालांकि, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने प्रतिद्वन्दी राजनीतिक दलों द्वारा विधायकों को होटल और रिजार्ट जैसे सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के चलन पर चिंता व्यक्त की. पीठ ने मप्र में व्याप्त राजनीतिक अनिश्चितता पर विराम लगाने के इरादे से विधानसभा की विशेष बैठक बुलाने और सिर्फ शक्ति परीक्षण को कार्यसूची में रखने का निर्देश दिया था.
पीठ ने सोमवार को अपना 68 पेज का विस्तृत फैसला सुनाया. पीठ ने कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा अपने राजनीतिक साथियों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने से लोकतांत्रिक राजनीति का बहुत अधिक भला नहीं होता है. यह राजनीतिक दलों के उस भरोसे की बदनसीबी को दर्शाता है जिस पर उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों में नाज होता है और यह दर्शाता है कि असली राजनीति की दुनिया में क्या होता है.
पीठ के इस आदेश के तहत सदन में शक्ति परीक्षण होने से पहले ही कांग्रेस के नेता कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. कमलनाथ के इस्तीफे के बाद राज्य में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार का गठन हुआ.
न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल द्वारा शक्ति परीक्षण का आदेश देने का यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि उन्होंने अपने संवैधानिक अधिकार की सीमाओं से बाहर जाकर काम किया.
न्यायालय ने कहा कि सरकार के छह मंत्रियों के इस्तीफे (जिन्हें अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया था) और सत्तारूढ़ कांग्रेस के 16 अन्य सदस्यों के कथित इस्तीफों और 16 मार्च, 2020 को विधानसभा का सत्र आहूत किये जाने के बावजूद मुख्यमंत्री द्वारा शक्ति परीक्षण से इंकार किये जाने के आधार पर राज्यपाल द्वारा अपने अधिकार का इस्तेमाल करके शक्ति परीक्षण कराने के लिये कहने को संवैधानिक रूप से अनुचित नहीं माना जा सकता.
पीठ ने अपने फैसले में कमलनाथ सरकार की इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि राज्यपाल ज्यादा से ज्यादा विधानसभा का सत्र आहूत कर सकते हैं लेकिन सत्र के दौरान ही शक्ति परीक्षण के लिये निर्देश नहीं दे सकते.
न्यायालय ने कर्नाटक के एस आर बोम्मई प्रकरण में नौ सदस्यीय संविधान पीठ के 1994 के निर्णय के आधार पर अपनी व्यवस्था दी और कहा कि राज्यपाल ने सदन में शक्ति परीक्षण का आदेश देकर सही किया था.
पीठ ने कहा कि अगर राज्यपाल का पहली नजर में यह मानना है कि सरकार बहुमत खो चुकी है तो उन्हें मुख्यमंत्री को सदन में शक्ति परीक्षण का निर्देश देने में कोई बाधा नहीं है.
पीठ ने कहा कि राज्यपाल राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होता है और वह किसी भी राजनीतिक विचारधारा या राजनीतिक दृष्टिकोण प्रतिनिधित्व नहीं करता है और राज्यपाल से अपेक्षा होती है कि वह संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की भूमिका का निर्वहन करेंगे. राज्यपाल के अधिकार ऐसे नहीं है जिनका इस्तेमाल ऐसे राजनीतिक व्यवस्था की मदद के लिये हो जो निर्वाचित सरकार को अपना राजनीतिक प्रतिद्वन्दी समझती हो.
न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल का फैसला न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर नहीं है और उसकी विवेचना की जा सकती है कि क्या वह प्रासंगिक सामग्री पर आधारित था.
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शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में मध्य प्रदेश के राजनीतिक संकट का जिक्र करते हुये कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ राज्य में इस उथल-पुथल से वाकिफ थे और उन्होंने राज्यपाल को 13 मार्च को लिखे पत्र में कहा था कि इस अनिश्चितता का समाधान करने का ठोस आधार सदन में शक्ति परीक्षण ही होगा.
पीठ ने कहा, 'यह पुख्ता संकेत है कि मुख्मंत्री की अपनी राय भी यही थी कि राज्य की स्थिति ने उनकी सरकार के बहुमत में होने पर संदेह पैदा कर दिया है. हालांकि, विधानसभा का सत्र शुरू होने पर शक्ति परीक्षण नहीं हुआ और सदन की बैठक 26 मार्च, 2020 तक के लिये स्थगित कर दी गयी थी. यही तथ्य हैं जो राज्यपाल द्वारा सदन में शक्ति परीक्षण कराने की सलाह देने का आधार बने थे.'
पीठ ने कांग्रेस की इस दलील पर भी विचार किया जिसमें बेंगलुरू के होटल में ठहरे पार्टी के 22 बागी विधायकों से मुलाकात के लिये निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. पीठ ने कहा, 'राजनीतिक सौदेबाजी या खरीद फरोख्त जो हम देखते हैं, उसकी अब बार-बार पुनरावृत्ति होती है.'
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न्यायालय ने 19 मार्च को कहा था कि सदन में शक्ति परीक्षण का निर्देश देकर ही राज्य में व्याप्त अनिश्चितता का प्रभावी तरीके से समाधान किया जाना चाहिए.
इसके साथ ही पीठ ने निर्देश दिया था कि विधानसभा के समक्ष एकमात्र विषय यह होगा कि क्या कांग्रेस सरकार को सदन का विश्वास हासिल है और इसके लिये हाथ उठाकर मतदान कराया जायेगा.
शीर्ष अदालत ने भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान और विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता की याचिकाओं पर दो दिन सुनवाई के बाद विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराने के लिये आठ अंतरिम निर्देश दिये थे.