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आत्मनिर्भर बने देहरादून के इंजीनियर सत्यम, किसानों को कर रहे जागरुक

उत्तराखंड के लालपुर गांव में रहने वाले सत्यम शर्मा ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया है. इसके बाद उन्होंने दिल्ली की एक कंपनी में लगभग ढाई साल 30 हजार रुपये की नौकरी की, लेकिन वहां उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगा. जिसके बाद वे नौकरी वापस आ गये. अब सत्यम शर्मा ने नौकरी छोड़कर वर्मी कंपोस्ट बनाने का कार्य किया शुरू किया है.

young engineer satyam sharma quits job and preparing vermi compost
इंजीनियर की नौकरी छोड़कर शुरू किया स्वरोजगार
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Published : Oct 16, 2020, 8:30 PM IST

काशीपुर (देहरादून) : कुंडा के लालपुर गांव के रहने वाले युवा सत्यम शर्मा ने इंजीनियर की नौकरी छोड़कर वर्मी कंपोस्ट से खाद बनाने का काम शुरू किया है. सत्यम का कहना है कि आज के दौर में किसान रासायनिक खादों का इस्तेमाल करते हैं, जो कि खेती के साथ ही स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है. तभी उनके मन में जहरमुक्त खेती करने और अन्य किसानों को इसके लिए जागरुक करने का विचार आया. जिसके बाद उन्होंने वर्मी कंपोस्ट करने का काम शुरू किया. सत्यम शर्मा अपने इस काम को आगे बढ़ाकर अन्य लोगों को भी रोजगार देने की योजना बना रहे हैं.

कंप्यूटर साइंस में किया बीटेक

सत्यम शर्मा ने देहरादून से कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया है. इसके बाद उन्होंने दिल्ली की एक कंपनी में लगभग ढाई साल तक तीस हजार रुपये की नौकरी की, लेकिन वहां उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगा. जिसके बाद वे नौकरी छोड़कर वापस अपने घर आ गये. इसके बाद सत्यम ने जसपुर की नादेही शुगर मिल में एईडीई पद पर तीन साल संविदा पर नौकरी की. यहां उन्होंने देखा कि क्षेत्र के किसान अपने खेतों की पैदावार बढ़ाने के उद्देश्य से अत्याधिक मात्रा में कीटनाशकों, यूरिया और अन्य रासायनिक खादों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं. जिसके कारण उपजाऊ भूमि की संरचना एवं जीवाश्म में भारी गिरावट आ रही है. दिनों-दिन जमीन की उर्वरता भी खत्म होती जा रही है. लालपुर गांव के सत्यम शर्मा बताते हैं ये सब देखने के बाद उनके मन में किसानों को जागरुक करने का विचार आया. तब उन्होंने इस पर अपनी रिसर्च शुरु की. उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र काशीपुर की सलाह पर वर्मी कंपोस्ट करने का काम शुरु किया. वह इस कारोबार को आगे बढ़ाकर अन्य लोगों को रोजगार देने की योजना बना रहे हैं.

इंजीनियर की नौकरी छोड़कर शुरू किया स्वरोजगार

पढ़ें- एलएसी गतिरोध : सरकार चीन के साथ सैन्य वार्ता की समीक्षा करेगी

कोरोना काल में नौकरी छोड़कर शुरू किया स्वरोजगार

सत्यम के मुताबिक, जहां युवक कोरोना संक्रमण काल में नौकरी तलाश रहे हैं वहीं, उन्होंने नौकरी छोड़कर स्वरोजगार करने का फैसला लिया. नौकरी छोड़कर उन्होंने गांव में ही कुछ पक्की ईटों से वर्मी पिट्स बनवाई. जिसमें गौवंश के गोबर तथा अन्य अपशिष्ट पदार्थों आदि से उत्तम किस्मों के केंचुओं से खाद बनाना शुरू किया. उन्होंने इसके लिए सबसे पहले कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ.जितेंद्र क्वात्रा एवं डॉ.एसके शर्मा से संपर्क किया. उन्होंने इसे बनाने की तकनीकि के बारे में सत्यम को बताया. इसके बाद केंचुओं की विशेष प्रजातियां की उपलब्धता तथा इस क्षेत्र की व्यावसायिक जानकारी के लिए उनकी मुलाकात कोटद्वार के शिव प्रसाद डबराल एवं उनकी पत्नी डॉ. माधुरी डबराल से हुई.

वर्मी कंपोस्ट एक संतुलित खाद है

वहीं, कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ. जितेंद्र क्वात्रा के अनुसार वर्मी कंपोस्ट एक संतुलित खाद है. इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश की मात्रा गोबर खाद से बहुत अधिक होती है. इसके अलावा इसमें सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, तांबा, कैल्शियम,गंधक आदि भी संतुलित मात्रा में प्राप्त होते हैं. वर्मी कंपोस्ट में वॉटर होल्डिंग कैपेसिटी बहुत अत्याधिक मात्रा में होती है. जिससे मृदा में भी वॉटर होल्डिंग कैपेसिटी बढ़ जाती है तथा बार-बार फसल में पानी लगाने की आवश्यकता नहीं रहती है. यह पूर्णतया कार्बनिक होने के कारण यह जैविक खेती के लिए सर्वोत्तम खाद है. केंचुए के शरीर से कई प्रकार के एंजाइम का स्राव होता है. जो कि केंचुआ खाद की गुणवत्ता के साथ-साथ फसलों की पैदावार पर गुणकारी प्रभाव छोड़ता है. यह मृदा के पीएच नमी तापमान नियंत्रित करता है. जो फसल के लिए अनुकूल होता है. वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए 15 से 20 दिन पुराना गोबर, 15 फीट लंबी और 3 फीट चौड़ी तथा 2 फीट ऊंचाई की पक्की ईंटों की वर्मी पिट, पानी की उचित व्यवस्था, हवा की उचित व्यवस्था ( बंद कमरे या हॉल में नहीं), सूखी एवं हरी घास की पत्तियों की जरूरत होती है.

पढ़ें: अब्दुल्ला और मुफ्ती को भाजपा का जवाब, 'अनुच्छेद 370 कयामत तक वापस नहीं होगा'

2 से 3 महीने में तैयार हो जाएगी केंचुआ खाद

इसके बाद 15 से 20 दिन पुराने गोबर में पानी डालकर उससे मीथेन का प्रभाव कम कर लिया जाता है. उसके बाद दो-तीन दिन गोबर को सूखने के बाद उसको 5-6 इंच की लेयर की पिट में बिछा दिया जाता है. उसके बाद लगभग तीन-चार इंची सूखी पत्तियों की लेयर बिछा दी जाती है. फिर से गोबर की लेयर बिछाकर फिर एक बार हरी पत्तियों की लेयर बिछा दी जाती है. लास्ट में गोबर की लेयर बिछाकर डोमनुमा आकार दे दिया जाता है. इसके बाद इसमें ऊपर से बराबर मात्रा में केंचुए छोड़ दिए जाते हैं. केंचुए सूर्य के ताप को सहन नहीं कर पाते इसलिए ऊपर छांव की व्यवस्था के लिए धान की पुराल अथवा टाट की बोरियां से ढककर पानी का छिड़काव कर दिया जाता है. पानी का छिड़काव 50 से 60% नमी बनाने के लिए जब तक खाद तैयार ना हो जाए, तब तक 2 दिन या 3 दिन छोड़कर करते रहे. ज्यादा नमी होना भी गलत है, इसलिए संतुलित मात्रा में छिड़काव करें. अब लगभग 2 से 3 महीने में केंचुआ खाद निर्मित हो जाएगी.

काशीपुर (देहरादून) : कुंडा के लालपुर गांव के रहने वाले युवा सत्यम शर्मा ने इंजीनियर की नौकरी छोड़कर वर्मी कंपोस्ट से खाद बनाने का काम शुरू किया है. सत्यम का कहना है कि आज के दौर में किसान रासायनिक खादों का इस्तेमाल करते हैं, जो कि खेती के साथ ही स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है. तभी उनके मन में जहरमुक्त खेती करने और अन्य किसानों को इसके लिए जागरुक करने का विचार आया. जिसके बाद उन्होंने वर्मी कंपोस्ट करने का काम शुरू किया. सत्यम शर्मा अपने इस काम को आगे बढ़ाकर अन्य लोगों को भी रोजगार देने की योजना बना रहे हैं.

कंप्यूटर साइंस में किया बीटेक

सत्यम शर्मा ने देहरादून से कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया है. इसके बाद उन्होंने दिल्ली की एक कंपनी में लगभग ढाई साल तक तीस हजार रुपये की नौकरी की, लेकिन वहां उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगा. जिसके बाद वे नौकरी छोड़कर वापस अपने घर आ गये. इसके बाद सत्यम ने जसपुर की नादेही शुगर मिल में एईडीई पद पर तीन साल संविदा पर नौकरी की. यहां उन्होंने देखा कि क्षेत्र के किसान अपने खेतों की पैदावार बढ़ाने के उद्देश्य से अत्याधिक मात्रा में कीटनाशकों, यूरिया और अन्य रासायनिक खादों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं. जिसके कारण उपजाऊ भूमि की संरचना एवं जीवाश्म में भारी गिरावट आ रही है. दिनों-दिन जमीन की उर्वरता भी खत्म होती जा रही है. लालपुर गांव के सत्यम शर्मा बताते हैं ये सब देखने के बाद उनके मन में किसानों को जागरुक करने का विचार आया. तब उन्होंने इस पर अपनी रिसर्च शुरु की. उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र काशीपुर की सलाह पर वर्मी कंपोस्ट करने का काम शुरु किया. वह इस कारोबार को आगे बढ़ाकर अन्य लोगों को रोजगार देने की योजना बना रहे हैं.

इंजीनियर की नौकरी छोड़कर शुरू किया स्वरोजगार

पढ़ें- एलएसी गतिरोध : सरकार चीन के साथ सैन्य वार्ता की समीक्षा करेगी

कोरोना काल में नौकरी छोड़कर शुरू किया स्वरोजगार

सत्यम के मुताबिक, जहां युवक कोरोना संक्रमण काल में नौकरी तलाश रहे हैं वहीं, उन्होंने नौकरी छोड़कर स्वरोजगार करने का फैसला लिया. नौकरी छोड़कर उन्होंने गांव में ही कुछ पक्की ईटों से वर्मी पिट्स बनवाई. जिसमें गौवंश के गोबर तथा अन्य अपशिष्ट पदार्थों आदि से उत्तम किस्मों के केंचुओं से खाद बनाना शुरू किया. उन्होंने इसके लिए सबसे पहले कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ.जितेंद्र क्वात्रा एवं डॉ.एसके शर्मा से संपर्क किया. उन्होंने इसे बनाने की तकनीकि के बारे में सत्यम को बताया. इसके बाद केंचुओं की विशेष प्रजातियां की उपलब्धता तथा इस क्षेत्र की व्यावसायिक जानकारी के लिए उनकी मुलाकात कोटद्वार के शिव प्रसाद डबराल एवं उनकी पत्नी डॉ. माधुरी डबराल से हुई.

वर्मी कंपोस्ट एक संतुलित खाद है

वहीं, कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ. जितेंद्र क्वात्रा के अनुसार वर्मी कंपोस्ट एक संतुलित खाद है. इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश की मात्रा गोबर खाद से बहुत अधिक होती है. इसके अलावा इसमें सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, तांबा, कैल्शियम,गंधक आदि भी संतुलित मात्रा में प्राप्त होते हैं. वर्मी कंपोस्ट में वॉटर होल्डिंग कैपेसिटी बहुत अत्याधिक मात्रा में होती है. जिससे मृदा में भी वॉटर होल्डिंग कैपेसिटी बढ़ जाती है तथा बार-बार फसल में पानी लगाने की आवश्यकता नहीं रहती है. यह पूर्णतया कार्बनिक होने के कारण यह जैविक खेती के लिए सर्वोत्तम खाद है. केंचुए के शरीर से कई प्रकार के एंजाइम का स्राव होता है. जो कि केंचुआ खाद की गुणवत्ता के साथ-साथ फसलों की पैदावार पर गुणकारी प्रभाव छोड़ता है. यह मृदा के पीएच नमी तापमान नियंत्रित करता है. जो फसल के लिए अनुकूल होता है. वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए 15 से 20 दिन पुराना गोबर, 15 फीट लंबी और 3 फीट चौड़ी तथा 2 फीट ऊंचाई की पक्की ईंटों की वर्मी पिट, पानी की उचित व्यवस्था, हवा की उचित व्यवस्था ( बंद कमरे या हॉल में नहीं), सूखी एवं हरी घास की पत्तियों की जरूरत होती है.

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2 से 3 महीने में तैयार हो जाएगी केंचुआ खाद

इसके बाद 15 से 20 दिन पुराने गोबर में पानी डालकर उससे मीथेन का प्रभाव कम कर लिया जाता है. उसके बाद दो-तीन दिन गोबर को सूखने के बाद उसको 5-6 इंच की लेयर की पिट में बिछा दिया जाता है. उसके बाद लगभग तीन-चार इंची सूखी पत्तियों की लेयर बिछा दी जाती है. फिर से गोबर की लेयर बिछाकर फिर एक बार हरी पत्तियों की लेयर बिछा दी जाती है. लास्ट में गोबर की लेयर बिछाकर डोमनुमा आकार दे दिया जाता है. इसके बाद इसमें ऊपर से बराबर मात्रा में केंचुए छोड़ दिए जाते हैं. केंचुए सूर्य के ताप को सहन नहीं कर पाते इसलिए ऊपर छांव की व्यवस्था के लिए धान की पुराल अथवा टाट की बोरियां से ढककर पानी का छिड़काव कर दिया जाता है. पानी का छिड़काव 50 से 60% नमी बनाने के लिए जब तक खाद तैयार ना हो जाए, तब तक 2 दिन या 3 दिन छोड़कर करते रहे. ज्यादा नमी होना भी गलत है, इसलिए संतुलित मात्रा में छिड़काव करें. अब लगभग 2 से 3 महीने में केंचुआ खाद निर्मित हो जाएगी.

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