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आजादी में बिहार के जगदीश सिंह का भी योगदान, पत्नी को मिलते हैं ₹ 33 हजार

बिहार के स्वतंत्रता सेनानी जगदीश सिंह ने अंग्रजों से जमकर लोहा लिया. भारत छोड़ो आंदोलन के समय पुलिस थाने, पोस्ट ऑफिस और रेलवे स्टेशन को आग के हवाले कर दिया. छपरा जेल में पुलिस की याताएं झेली. लेकिन अंग्रजों के आगे झुके नहीं. जानें उनकी वीर गाथा

बिहार के स्वतंत्रता सेनानी जगदीश सिंह ने अंग्रजों से जमकर लोहा लिया.
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Published : Aug 14, 2019, 8:26 PM IST

Updated : Sep 27, 2019, 12:52 AM IST

छपरा: देश सैकड़ों वर्ष तक अग्रेजों के चुंगल में रहा. आखिरकार 15 अगस्त, 1947 को आजादी मिली. गुलामी की जंजीर से आजादी दिलाने में हजारों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी. सारण जिले के स्तंत्रता सेनानी जगदीश सिंह ने भी देश को आजाद कराने में अपना अहम योगदान दिया. अंग्रजों से लोहा लेने वाले जगदीश सिंह के किस्से आज भी सारणवासियों की जुबां पर है.

देखें वीडियो.

'अंग्रेजों की यातनाओं से नहीं डरे'

पुत्र रमाकांत को पिता की बहादुरी पर गर्व है. पुत्र रामाकांत सिंह कहते हैं, 'अग्रजों ने पिता जी को काफी यातनाएं दीं. लेकिन, फिर भी पिताजी उनके आगे झुके नहीं.' उन पर आजादी की धुन ऐसी सवार थी कि सारी यातनाओं को हंस कर झेलते गए. पुत्र रामाकांत सिंह ने ईटीवी भारत के कैमरे पर पिता से जुड़ी कई दस्तावेज भी दिखाए.

थाना और रेलवे स्टेशन को किया था आग के हवाले

पिता जी ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की बिगुल फूंकी थी. 17 अगस्त 1942 का वो दिन, जब सिताब दियारा निवासी और महान स्वतंत्रता सेनानी महेंद्र नाथ सिंह की अगुवाई में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मैदान में उतर गए. हजारों सेनानियों ने मांझी थाना, पोस्ट ऑफिस और रेलवे स्टेशन को आग के हवाले कर दिया. वहीं मांझी-बलिया रेल लाइन को उखाड़ कर यातायात बाधित कर दिया.

पढ़ें: लाल किले पर 15 अगस्त का मुख्य समारोह, किले में तब्दील हुई राजधानी दिल्ली

एक साल तक रहे भूमिगत
इस घटना का बाद जगदीश सिंह भूमिगत हो गए. करीब एक साल तक अंग्रजों की आंखों में धूल झोंक देश की आजादी में अपनी भूमिका निभाते रहे. हालांकि एक साल बाद पुलिस की गिरफ्त में आए. जगदीश सिंह को एक साल तक छपरा जेल में रहना पड़ा. जेल में काफी यातनाओं से गुजरना पड़ा. आलम यह रहा कि जबतक जिंदा रहे कमर और शरीर में दर्द उनका साथी रहा.

सरकार से मिलती है आर्थिक मदद
स्वतंत्रता सेनानी महेन्द्र नाथ सिंह की पत्नी अब काफी बुजुर्ग हो गईं हैं. केन्द्र सरकार की तरफ से 28 हजार और बिहार सरकार से 5 हजार रुपये की पेंशन राशि मिलती है. जिससे उनका गुजारा हो रहा है.

छपरा: देश सैकड़ों वर्ष तक अग्रेजों के चुंगल में रहा. आखिरकार 15 अगस्त, 1947 को आजादी मिली. गुलामी की जंजीर से आजादी दिलाने में हजारों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी. सारण जिले के स्तंत्रता सेनानी जगदीश सिंह ने भी देश को आजाद कराने में अपना अहम योगदान दिया. अंग्रजों से लोहा लेने वाले जगदीश सिंह के किस्से आज भी सारणवासियों की जुबां पर है.

देखें वीडियो.

'अंग्रेजों की यातनाओं से नहीं डरे'

पुत्र रमाकांत को पिता की बहादुरी पर गर्व है. पुत्र रामाकांत सिंह कहते हैं, 'अग्रजों ने पिता जी को काफी यातनाएं दीं. लेकिन, फिर भी पिताजी उनके आगे झुके नहीं.' उन पर आजादी की धुन ऐसी सवार थी कि सारी यातनाओं को हंस कर झेलते गए. पुत्र रामाकांत सिंह ने ईटीवी भारत के कैमरे पर पिता से जुड़ी कई दस्तावेज भी दिखाए.

थाना और रेलवे स्टेशन को किया था आग के हवाले

पिता जी ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की बिगुल फूंकी थी. 17 अगस्त 1942 का वो दिन, जब सिताब दियारा निवासी और महान स्वतंत्रता सेनानी महेंद्र नाथ सिंह की अगुवाई में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मैदान में उतर गए. हजारों सेनानियों ने मांझी थाना, पोस्ट ऑफिस और रेलवे स्टेशन को आग के हवाले कर दिया. वहीं मांझी-बलिया रेल लाइन को उखाड़ कर यातायात बाधित कर दिया.

पढ़ें: लाल किले पर 15 अगस्त का मुख्य समारोह, किले में तब्दील हुई राजधानी दिल्ली

एक साल तक रहे भूमिगत
इस घटना का बाद जगदीश सिंह भूमिगत हो गए. करीब एक साल तक अंग्रजों की आंखों में धूल झोंक देश की आजादी में अपनी भूमिका निभाते रहे. हालांकि एक साल बाद पुलिस की गिरफ्त में आए. जगदीश सिंह को एक साल तक छपरा जेल में रहना पड़ा. जेल में काफी यातनाओं से गुजरना पड़ा. आलम यह रहा कि जबतक जिंदा रहे कमर और शरीर में दर्द उनका साथी रहा.

सरकार से मिलती है आर्थिक मदद
स्वतंत्रता सेनानी महेन्द्र नाथ सिंह की पत्नी अब काफी बुजुर्ग हो गईं हैं. केन्द्र सरकार की तरफ से 28 हजार और बिहार सरकार से 5 हजार रुपये की पेंशन राशि मिलती है. जिससे उनका गुजारा हो रहा है.

Intro:डे प्लान वाली ख़बर हैं
SLUG:-FREEDOM FIGHTER JAGDISH SINGH
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/ SARAN/BIHAR

Anchor:-हमारा भारत सैकड़ों वर्षों से ग़ुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था लेकिन वर्ष 1947 में आज़ादी मिली, लेकिन यह आजादी लाखों भारतीयों के त्याग और बलिदान के कारण ही संभव हो पाई थी, इन महान लोगों ने अपना तन-मन-धन त्यागकर देश की आज़ादी के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया था.

अपना घर परिवार को छोड़ कर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे और देश के लिए महान सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी ताकि आने वाली पीढ़ी आजाद भारत में चैन की सांस ले सके. स्वतंत्रता आन्दोलन में समाज के हर वर्ग के लोगों ने लिया था. आजाद भारत का हर व्यक्ति आज इन वीरों और महापुरुषों का ऋणी है जिन्होंने अपना सब कुछ छोड़ सम्पूर्ण जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया था.

Body:भारत माता के ये महान सपूत आज हम सब के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं और इनकी जीवन गाथा हम सभी को इनके संघर्षों की बार-बार याद दिलाती है और प्रेरणा देती है. अपने महापुरुषों के जीवन के बारे में जानेंगे जिन्होंने कठोर और दमनकारी ‘अंग्रेजी हुकूमत’ से लड़कर देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

ऐसे ही कई स्वतंत्रता सेनानियों से भरी हुई है सारण की ऐतिहासिक धरती और कई आंदोलनो की कहानी सारण के वीर शहीद क्रांतिकारियों में जगदीश सिंह का भी नाम आता है जो सारण जिले के मांझी थाना क्षेत्र अंतर्गत मझनपुरा गांव के मूल निवासी थे.

Byte:-रामाकांत सिंह, स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र
धर्मेन्द्र कुमार रस्तोगी (walk through)

इनके पुत्र रामाकांत सिंह ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान अपने पिता स्वतंत्रता सेनानी जगदीश सिंह के साथ गुजारे अपनी यादों को सांझा करते हुए कहा कि 17 अगस्त 1942 में सिताब दियरा निवासी व महान स्वतंत्रता सेनानी महेंद्र नाथ सिंह के अगुवाई में हजारों की संख्या वाले सेनानियों ने मांझी थाना, पोस्ट ऑफिस व रेलवे स्टेशन को आग के हवाले करने के बाद मांझी से बलिया रेल लाइन को उखाड़ कर यातायात व्यवस्था को बाधित कर दिया था.

Conclusion:17 अगस्त 1942 के बाद लगभग एक वर्षो तक अंग्रेजी हुकूमत से छुप कर रहे थे फरारी की जीवन ब्यतीत के दौरान इनके परिवार को काफ़ी यातनाएं भी दी गई थी लेकिन एक वर्ष के बाद अंग्रेजी सिपाहियों ने गिरफ्तार कर लिया और छपरा जेल में डाल दिया, जितने दिन जेल में थे उतने दिनों तक जेल प्रशासन द्वारा यातनाएं दी गई और जब तक जीवित थे तब तक उनके कमर व शरीर में काफी दर्द रहता था.

स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी काफी बुजुर्ग हो गई हैं जिनको भारत सरकार द्वारा 28 हजार व राज्य सरकार द्वारा 5 हजार रुपये पेंशन की राशि मिलता हैं.
Last Updated : Sep 27, 2019, 12:52 AM IST
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