हैदराबाद : नौ मई को रूस ने 75 वां विजय दिवस मनाया. यह विजय दिवस रूस द्वितीय विश्व युद्ध में नाजी जर्मनी पर विजय के उपलक्ष्य में मनाता है. वहीं रूसी सैनिकों की टीम अपने भूमि में द्वितीय विश्वयुद्ध के अवशेष को ढूढ़ने में व्यस्त हैं. इस टीम को युद्ध के दौरान सोवियत संघ के सैनिकों या द्वितीय विश्वयुद्ध के अवशेष को खोजने के लिए गठित किया गया है. यह खोज अभियान वोल्गा नदी और कैस्पियन सागर के बीच स्थित रूस के दक्षिणी प्रांत कलमीकिया में खुलकता के पास गिरे लाल सेना के सैनिकों की अवशेष की तलाश जारी है. यह द्वितीय विश्वयुद्ध में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए रूस में हजारों स्वयंसेवी समूहों द्वारा व्यापक प्रयास का हिस्सा है. इस युद्ध में रूस को लगभग 27 मिलयन डॉलर का नुकसान हुआ था.
आश्चर्यजनक !
जर्मनी का सोवियत संघ पर हमला करना दुनियाभर के लिए आश्चर्य की बात थी, क्योंकि दोनों देशों ने अगस्त, 1939 में अनाक्रमण संधि पर हस्ताक्षर किया था.
हालांकि, इतिहासकारों का मानना है कि यह इतना चौंकाने वाला नहीं होना चाहिए था क्योंकि एडोल्फ हिटलर ने सोवियत को एक हीन जाति माना था. फिर भी, स्टालिन ने एक राय रखी कि हिटलर समझौते को याद रखते हुए सोवियत संघ पर हमला नहीं करेगा. इस लिए स्टालिन ने हिटलर और उसकी सेना के इरादों के बारे में रूसी जासूसों द्वारा लगातार भेजी गई चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया.
उन्होंने हिटलर की कवर स्टोरी को भी स्वीकार कर लिया था कि सोवियत सीमा पर जर्मन सैनिकों की अचानक मौजूदगी, उन्हें ब्रिटिश बम हमलों की सीमा से बाहर रखने के लिए एक कदम हैं. यहां तक कि वह अपने सैनिकों को सोवियत हवाई क्षेत्र में कई 'आकस्मिक' आक्रमणों के बावजूद जर्मन जासूस विमानों पर आग नहीं लगाने का आदेश दिया.
ऑपरेशन बारबरोसा
22 जून, 1941 को थर्डरीक (third reich) ने स्टालिन के विश्वास को उस समय धराशायी कर दिया गया, जब जर्मनी ने रूस के खिलाफ ऑपरेशन बारबरोसा (Barbarossa) चलाया. इस अभियान में तीस लाख जर्मन सैनिकों ने रूस पर आक्रमण कर दिया. ऑपरेशन बारबरोसा यह सोवियत संघ पर धुरी राष्ट्रों के आक्रमण का कोड नाम था जो 22 जून 1941 को शुरू हुआ था. हिटलर ने इस अभियान का नाम ऑपरेशन बारबरोसा रखा.
फ्रेडरिक प्रथम बारबरोसा मध्यकाल में पवित्र रोम के सम्राट (1152-90) थे. इन्होंने यूरोप में जर्मनी की प्रधानता स्थापित करने की कोशिश की थी. सोवियत संघ के खिलाफ इस अभियान के लिए जर्मनी ने 150 डिवीजनों का गठन किया. इसमें करीब तीन लाख पुरुष सैनिक थे. इसके आलावा उन इकाइयों में 19 पैंजर डिवीजन थे. बारबरोसा बल में लगभग 3000 टैंक, सात हजार तोपखानें और 2500 विमान थे.यह अब तक के इतिहास में सबसे बड़ा और ताकतवर शक्तिशाली आक्रमण था. फिनलैंड और रोम सैनिकों के 30 से अधिक डिवीजनों से जर्मनी की ताकत में वृद्धि हुई.
रूस को लगा झटका
जर्मनी के साथ युद्ध के शुरुआती दिनों में ही डेढ़ लाख सैनिक या तो मारे गए या फिर घायल हो गए. जर्मनी की वायुसेना (लुफ्त्वाफ) ने शुरुआती दो दिनों में दो हजार से अधिक सोवियत विमानों को नष्ट कर दिया. रूस के पास जर्मनी की तरह दो या तीन बार टैंक और विमान थे, लेकिन वह प्रचलन में नहीं थे.
युद्ध में तेजी से आया बदलाव
हिटलर की जर्मन इंटेलिजेंस सेवा ने रूस के सैन्य दल को कम आंका, हिटलर का अनुमान था कि रूस के पश्चिमी हिस्सों में लगभग 150 डिवीजन थे. हालांकि रूस ने अगस्त के मध्य तक वहां पर 200 डिवीजन और स्थापित कर दिया इससे वहां की संख्या लगभग 360 हो गई थी. परिणामस्वरूप जर्मन सैनिकों को रूसी सैनिकों से सामना करना पड़ा और उनका मार्ग प्रशस्त हो गया.
इस स्थिति से निबटने के लिए तेजी से निर्णय लेने के बजाय हिटलर अपने सलाहकारों के साथ लंबी बहस में लग हुए थे कि उन्हें शुरुआताी जीत के बाद किस कोर्स का पालन का करना चाहिए.
जर्मनों की गणना में एक अन्य कारक पूर्ण रूप से राजनीति थी, हालांकि यह गणना गलत नहीं थी. जर्मनी के मानना था कि उनके आक्रमण के तीन से छह महीने के भीतर, रूस की सरकार गिर जाएगी.
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जर्मन सैनिक ठंड के मौसम में सामान्य कपड़ें पहनें हुए थे. जर्मनी ने ठंड से पहले ही रूस पर कब्जा करने की योजना बनाई थी, लेकिन रसद आपूर्ति और सोवियत संघ की ओर अप्रत्याशित रूप से सैनिकों के बढ़ने से यह योजना असफल साबित हुई.
ठंड से बचाने के लिए जर्मन सैनिकों को समाचार पत्र और पुआल का सहारा लेना पड़ा. जल्द ही उन्हें शीतदंश (frostbite) महामारी का सामना करना पड़ा. 1941 के अंत तक इस बीमारी के एक लाख मामले दर्ज किए गए. वहीं 15,000 लोगों की इस महामारी से मृत्यु हो गई.
सोवियत संघ में महिला सैनिकों भर्ती
सोवियत युग के साम्यवाद ने ऐतिहासिक निर्णय लिया और सेना में दस लाख महिलाओं को भर्ती किया. महिला सैनिकों ने जर्मन सेना के खिलाफ हथियार उठाए और द्वितीय विश्वयुद्ध की अग्रिम पंक्ति में विमान रक्षकों, स्नाइपर्स, गुरिल्ला युद्ध, लड़ाकू पायलट के रूप में सेवा की. लाल सेना में अप्रत्याशित वृद्धि प्रदान करने वाली महिला सैनिकों ने अंततः पूर्वी मोर्चे पर उग्र सेनानियों के रूप में भी ख्याति अर्जित कीं.
इनके अलावा एस(ACE) पायलट लइदिया लित्व्याक और येकाटेरिना बुडानोवा (Lydia Litvyak and Yekaterina Budanova) में से प्रत्येक ने एक दर्जन से अधिक जर्मन विमानों मार गिराया और शार्पशूटर ल्यूडमिला पावलिचेंको (Lyudmila Pavlichenko) ने 300 से अधिक दुश्मनों का अपना निशाना बनाया.
लड़ाई में अपनी योग्यता साबित करने के लिए महिलाओं ने नियमित रूप से खतरनाक हथियारों का युद्ध में उपयोग किया. उदाहरण के लिए, सबसे अधिक भयभीत सोवियत इकाइयों में से एक गोता-हमलावरों की एक सर्व-महिला रेजिमेंट थी, जिन्होंने जर्मन लाइनों के पीछे रात के समय बमबारी करने वाले सुस्त विमान उड़ाए थे.
स्टालिन का आर्डर नंबर 270
स्टालिन ने अगस्त,1941 में एक आदेश जारी किया, जिसका नाम ऑर्डर नंबर 270 था. यह तरह से कानून था, जिसमें घोषणा की गई थी कि आत्मसमर्पण करने या स्वंय को पकड़ने की अनुमति देने वाले कोई भी सैनिक कानून की नजर में गद्दार हैं और यदि वह कभी सोवियत संघ लौट आएंगे तो उन्हें मार दिया जाएगा. इस आदेश के तहत, पीछे हटने वाले किसी भी सैनिक को तथाकथित 'अवरुद्ध टुकड़ी' द्वारा गोलाबारी या बंदूक से मारना था.
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विशेष इकाइयां जो स्वंय की लाइनों के पीछे तैनात थीं. उन्हें आदेश था कि यदि कोई भी जवान भागने की कोशिश करे तो उसे गोली मार दिया जाए.
स्टालिन के ड्रैकियन आदेशों को लाल सेना की लड़ाई की भावना को बढ़ाने के लिए बनाई गई थी, लेकिन उनके अंदर डर भरा हुआ था.
कुछ अनुमानों के अनुसार, सोवियत बैरियर के सैनिकों ने युद्ध के दौरान 150,000 से अधिक लोगों को मार डाला होगा, जिनमें से स्टैलिनग्राद की लड़ाई के दौरान भी 15 हजार लोग शामिल थे.
रूस के लिए प्रमुख मोड़ यह था कि स्टालिन ने अज्ञात संख्या में सैनिकों को यूएसएसआर में छिपा रखा था. जैसे ही युद्ध आगे बढ़ा स्टालिन ने प्रमुख सहयोगी सम्मेलनों में भाग लिया, जिनमें तेहरान (1943) और याल्टा (1945) शामिल थे. उनकी लौह शक्ति और राजनीतिक कौशल ने उन्हें वफादार सहयोगी की भूमिका निभाने में सक्षम बनाया, जबकि युद्ध के बाद के सोवियत साम्राज्य के अपने दृष्टिकोण को कभी नहीं छोड़ा.
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