पुरी (ओडिशा) : भगवान श्री जगन्नाथ अपने वार्षिक रथ उत्सव के अंतिम पड़ाव में अपने सिंहासन (रत्न सिंघासन) में विराजमान होते हैं. भगवान जगन्नाथ ने नाराज देवी लक्ष्मी को रसगुल्ला भेंट कर मनाया और फिर भव्य मंदिर में प्रवेश किया. पूरी दुनिया भगवान जगन्नाथ और उनकी अर्धांगिनी देवी लक्ष्मी के अनोखे और अद्भुत प्रेम की गवाह बनी.
श्रीमंदिर में देवताओं के पुनः प्रवेश की रस्म के दौरान, पहले भगवान कृष्ण, उनके बड़े भाई बलराम और फिर मदन मोहन (भगवान के प्रतिनिधि) को मंदिर में ले जाया जाता है. इसके बाद भगवान जगन्नाथ के बड़े भाई भगवान भलभद्र, बहन देवी सुभद्रा और फिर अंत में भगवान श्री जगन्नाथ को रत्न सिंहासन पर ले जाया जाता है.
भगवान श्री जगन्नाथ की इस वार्षिक यात्रा के अंतिम चरण में देवताओं का अनुष्ठान किया जाता है. जब भगवान अपने संध्या जलपान (संध्या धोपा) को खत्म कर लेते हैं, तो खूब ढोल बजाए जाते हैं.
नाच गानों के साथ भगवान की गोटी पहंडी बड़े शानदार ढंग से सिंह द्वार की तरफ बढ़ती है. इस दौरान लक्ष्मी मां (नाराज) से बातचीत करने के लिए भगवान जगन्नाथ का रथ रुक जाता है.
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भगवान सुदर्शन, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को गहना सिंहासन पर विराजमान किया जाता है. इस दौरान भगवान जगन्नाथ और देवी लक्ष्मी के बीच बातचीत होती है. प्रभु नाराज देवी लक्ष्मी को मनाने में लग जाते हैं.
इसके बाद मंदिर का मुख्य द्वार खोला जाता है. भगवान जगन्नाथ देवी लक्ष्मी की नाराजगी को दूर करने के लिए उपहार में एक साड़ी भेंट करते हैं, रसगुल्ला देते हैं और अपने दांपत्य जीवन की कड़वाहट को दूर करते हैं.
इसके दूसरे दिन भगवान को महाप्रसाद भोग का समर्पण किया जाता है. रसगुल्ला भोग हांडी में बनाया जाता है. इस दिन को रसगुल्ला दिवस भी कहा जाता है.