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आईपीएस सतीश गजभिए पर कार्रवाई अवैध, सरकार बहाल करे सेवाएं : हाईकोर्ट - relief to ips satish gajbhiye

ओडिशा में आईपीएस अधिकारी सतीश कुमार गजभिए के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं होगी. राज्य की हाईकोर्ट ने कार्रवाई पर रोक लगा दी है. मामला 2015 में गृह विभाग की ओर से शुरू की गई कार्रवाई का है. गजभिए 2012 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं.

उड़ीसा उच्च न्यायालय
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Published : Dec 10, 2020, 1:08 AM IST

कटक : उड़ीसा उच्च न्यायालय ने आईपीएस अधिकारी गजभिए के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को रद्द कर दिया है. अदालत ने राज्य की नवीन पटनायक सरकार को एक महीने के भीतर सभी पदोन्नति देने का निर्देश दिया है. इसके अलावा हाई कोर्ट ने सतीश कुमार गजभिए को मिलीं अन्य सुविधाएं, जिन्हें स्थगित कर दिया गया था, बहाल करने का निर्देश दिया है.

दरअसल, सतीश कुमार गजभिए 2002 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. उन पर मल्कानगिरि पुलिस अधीक्षक के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान हुई कथित अनियमितता को लेकर कार्रवाई की गई थी. सतीश पर कुछ पुलिसकर्मियों को नक्सल विरोधी अभियान के लिए इनाम राशि का कथित भुगतान नहीं किए जाने का आरोप लगा था. मामले में गजभिए के खिलाफ कार्रवाई की गयी थी.

उड़ीसा उच्च न्यायालय ने मंगलवार को गजभिए के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को रद्द करते हुए सरकार के आदेश के अमान्य करार दिया.

वैधानिक तरीके से कार्रवाई नहीं

न्यायमूर्ति संजू पांडा और न्यायमूर्ति एस के पाणिग्रही की पीठ ने गजभिए के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को रद्द करते हुए कहा, 'न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों के अनुरूप वैधानिक तरीके से कार्रवाई नहीं की गयी और इस संबंध में आदेश अमान्य हैं.'

अनुशासनात्मक कार्रवाई

वर्ष 2015 में गृह विभाग ने अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम 1968 के कथित उल्लंघन के लिए पुलिस अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की थी.

कहां से शुरू हुआ मामला

मल्कानगिरि के एसपी के तौर पर गजभिए ने 2007 में माओवादी श्रीरामुलू श्रीनिवास को गिरफ्तार करने वाले जिले के पुलिसकर्मियों के बीच इनाम की रकम कथित तौर पर नहीं वितरित की थी.

आंध्र से भी जुड़ा है मामला

बता दें कि आंध्र प्रदेश सरकार ने श्रीनिवास पर पांच लाख रुपये इनाम की घोषणा की थी जिसे बाद में बढ़ाकर 12 लाख रुपये कर दिया गया था.

पांच साल की लड़ाई

तीन पुलिसकर्मियों द्वारा इनामी राशि का भुगतान नहीं मिलने की शिकायत के बाद नवंबर 2015 में गजभिए के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गयी थी. अनुशासनात्मक कार्रवाई को चुनौती देते हुए उन्होंने राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण (एसएटी) में इसे चुनौती दी थी. केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (सीएटी) में मामला खारिज होने के बाद उन्होंने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.

कटक : उड़ीसा उच्च न्यायालय ने आईपीएस अधिकारी गजभिए के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को रद्द कर दिया है. अदालत ने राज्य की नवीन पटनायक सरकार को एक महीने के भीतर सभी पदोन्नति देने का निर्देश दिया है. इसके अलावा हाई कोर्ट ने सतीश कुमार गजभिए को मिलीं अन्य सुविधाएं, जिन्हें स्थगित कर दिया गया था, बहाल करने का निर्देश दिया है.

दरअसल, सतीश कुमार गजभिए 2002 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. उन पर मल्कानगिरि पुलिस अधीक्षक के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान हुई कथित अनियमितता को लेकर कार्रवाई की गई थी. सतीश पर कुछ पुलिसकर्मियों को नक्सल विरोधी अभियान के लिए इनाम राशि का कथित भुगतान नहीं किए जाने का आरोप लगा था. मामले में गजभिए के खिलाफ कार्रवाई की गयी थी.

उड़ीसा उच्च न्यायालय ने मंगलवार को गजभिए के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को रद्द करते हुए सरकार के आदेश के अमान्य करार दिया.

वैधानिक तरीके से कार्रवाई नहीं

न्यायमूर्ति संजू पांडा और न्यायमूर्ति एस के पाणिग्रही की पीठ ने गजभिए के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को रद्द करते हुए कहा, 'न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों के अनुरूप वैधानिक तरीके से कार्रवाई नहीं की गयी और इस संबंध में आदेश अमान्य हैं.'

अनुशासनात्मक कार्रवाई

वर्ष 2015 में गृह विभाग ने अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम 1968 के कथित उल्लंघन के लिए पुलिस अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की थी.

कहां से शुरू हुआ मामला

मल्कानगिरि के एसपी के तौर पर गजभिए ने 2007 में माओवादी श्रीरामुलू श्रीनिवास को गिरफ्तार करने वाले जिले के पुलिसकर्मियों के बीच इनाम की रकम कथित तौर पर नहीं वितरित की थी.

आंध्र से भी जुड़ा है मामला

बता दें कि आंध्र प्रदेश सरकार ने श्रीनिवास पर पांच लाख रुपये इनाम की घोषणा की थी जिसे बाद में बढ़ाकर 12 लाख रुपये कर दिया गया था.

पांच साल की लड़ाई

तीन पुलिसकर्मियों द्वारा इनामी राशि का भुगतान नहीं मिलने की शिकायत के बाद नवंबर 2015 में गजभिए के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गयी थी. अनुशासनात्मक कार्रवाई को चुनौती देते हुए उन्होंने राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण (एसएटी) में इसे चुनौती दी थी. केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (सीएटी) में मामला खारिज होने के बाद उन्होंने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.

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