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गांधीवादी संवाद : सकारात्मक विचार, शब्द, व्यवहार, आदत और मूल्य से बनते हैं भाग्य

इस साल महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती मनाई जा रही है. इस अवसर पर ईटीवी भारत दो अक्टूबर तक हर दिन उनके जीवन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा कर रहा है. हम हर दिन एक विशेषज्ञ से उनकी राय शामिल कर रहे हैं. साथ ही प्रतिदिन उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों की प्रस्तुति दे रहे हैं. प्रस्तुत है आज 18वीं कड़ी.

महात्मा गांधी की फाइल फोटो
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Published : Sep 2, 2019, 7:01 AM IST

Updated : Sep 29, 2019, 3:29 AM IST

नफरत और हिंसा की भाषा लोगों को बांटती है, डर पैदा करती है, और बाद में इसके अराजक गुण पूरे समाज को निगल ले लेते हैं. भले ही लोग चरमपंथियों को आदर्श बनाकर, हिंसक उपायों से मोहित हुए हों, गांधी के साहित्य-शास्त्र की श्रेष्ठता के कारण ये धीरे-धीरे वापस भी लौटे.

लड़ाई-मतभिन्नता (Conflict) शुरुआत में भले ही जीत जाए, लेकिन अंत में शांति की ही जीत होती है. इसलिए, मानवीय और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए गांधीवादी संवाद हमेशा प्रासंगिक और अनिवार्य है. जनसाधारण के महात्मा, गांधी ने न केवल भारत के स्वतंत्रता संघर्ष को प्रेरित किया, बल्कि संवाद की सीमाओं को भी दोबारा परिभाषित किया. मौखिक ढंग से अभिव्यक्त हो, या अनकहा; गांधी के संवाद की भाषा का वर्णन करने के लिए हमेशा शब्दों की जरूरत नहीं होती.

आज के संदर्भ में गांधी
एक साधन के रूप में गांधी ने विविधता में एकता के लिए प्रेरक संवाद (persuasive communication) की वकालत की. ये उनके कथन से जाहिर होता है. गांधी ने कहा था, 'मुझे लगता है कि एक समय में नेतृत्व का मतलब बाहुबल था; लेकिन आज इसका मतलब है लोगों के साथ कामयाब होना.'

शब्दों से मार्गदर्शन
गांधी एक सच्चे वक्ता, सच्चे वक्ता और ईमानदार लेखक थे. उनकी अद्भुत सादगी, प्राकृतिक ईमानदारी, चमकदार स्थिरता के कारण गांधी के दूरदर्शिता (vision) का महत्व और बढ़ गया. गांधी ने पहला कदम हमेशा खुद उठाया. बात चाहे पत्रकार के रुप में उनके लेखों की हो, या नैतिकता से भरे उनके भाषणों की, गांधी के शब्दों ने उनके अनुयायियों का आजादी की ओर मार्गदर्शन किया.

तलवार से ज्यादा ताकतवर कलम
अहिंसा के अलग-अलग रास्तों में आगे रहने वाले अपने लोगों का नेतृत्व करने की खोज में, गांधी ने साबित कर दिया कि उनकी अहिंसक कलम हिंसक तलवार की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली थी. गांधी की कलम से न केवल लोगों को बल्कि स्वतंत्रता के संघर्ष को भी आवेग मिला. गांधी के शब्दों में उनकी दूरदर्शिता की झलक मिलती थी. इनमें अहिंसा का आग्रह था, जिससे गांधी पूरी मानवता के मसीहा बने.

ये भी पढ़ें: ज्यादा से ज्यादा लोगों को देना है रोजगार, तो गांधी का रास्ता है बेहतर विकल्प

सीमाओं से परे गांधी का प्रभावी संवाद
हालांकि, गांधी एक शर्मीले (shy) वक्ता थे, उन्होंने ये माना कि ये उनकी संपत्ति थी. जैसा कि उन्होंने कहा था, 'भाषण में मेरी हिचकिचाहट, जो कभी एक खीज थी, अब एक खुशी है. इसका सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है, कि इसने मुझे शब्दों की किफायत (economy) सिखाई है.' गांधी उनकी आवाज (cry) उठाना चाहते थे, जिन लोगों तक कोई नहीं पहुंचा. नेतृत्व की सहज प्रवृत्ति के कारण गांधी उन सीमाओं से परे गए जिसे कभी पार नहीं किया गया था. गांधी ने ऐसा प्रभावी संवाद के माध्यम से किया. सत्याग्रह पर गांधी के लेख के कारण प्रभावी संवाद कायम हुआ. गांधी ने अपने अनुयायियों के जरिए स्वराज के अहिंसक आक्रोश का कम प्रसार किया.

गांधी ने पीड़ा को बनाया मिशन
गांधी अपनी अंतरआत्मा, नैतिकता और अनुयायियों की सुनने वाले थे. गांधी (ऐसे रत्न) ऐसा चश्मा (prism) थे, जिनके संवाद की चमक के कारण हीरे की चमक भी फीकी पड़ जाए. गांधी एक प्रेरक निवेदन करने वाले आदमी थे. इसलिए जब-जब उनके अनुयायी गांधी की नैतिकता के दायरे में आए, उनमें शांति का अनुभव पैदा हुआ. गांधी एक परिवर्तनकारी उत्प्रेरक (catalyst) थे, जिसने अपने लोगों की पीड़ा को अपने मिशन में शामिल कर लिया.

ये भी पढ़ें: जयपुर फुट गांधीवादी इंजीनियरिंग का बेहतरीन उदाहरण

गांधी के कर्म में लोगों की पीड़ा !
चरखे पर सूत कातना, खादी पहनना, नमक कानून के खिलाफ दांडी मार्च, गांधी ने इन सबसे दुनिया को निस्तब्ध (stunned) कर दिया. गांधी की सादगी में उनकी दूरदर्शिता (vision) रोपित (planted) थी. गांधी ने ऐसा गैर शाब्दिक (non-verbal) शारीरिक भाषा के माध्यम से किया था. ऐसा कहा जाता है कि, उपदेश देने से पहले अभ्यास जरूरी होता है, लेकिन गांधी को उपदेश नहीं देने पड़े. ऐसा इसलिए क्योंकि गांधी की बातें उनके कर्म से प्रतिध्वनित (echoed) होती थी. गांधी के कर्म में लोगों की पीड़ा भी झलकती थी.

खुद सत्य बन गए गांधी
आजादी के संघर्ष के नायक के रूप में गांधी की यात्रा के दौरान अलग-अलग भाषाओं (multi-tone) के भाषण नहीं हैं. गांधी की दूरदर्शिता के कारण अभिजात्य (elite) वर्ग उनका अनुयायी बन जाए, गांधी के पास ऐसे मंत्रमुग्ध करने वाले शब्द भी नहीं थे. गांधी के पास प्रभावी मौन (engraving silence), शांत उपवास (unruffled fasts) और रथारूढ़ करिश्मा (charioting charisma) था, इससे गांधी का संघर्ष जीत में बदल गया. इससे गांधी एक सत्याग्रही/ सत्य की तलाश करने वाले (truth seeker) से खुद एक सत्य बन गए.

ये भी पढ़ें: जब गांधी ने कहा था, मेरे पास दुनिया को सिखाने के लिए कुछ नहीं है

महात्मा गांधी के हथियार
किसी को ऐसा लग सकता है कि गांधी, जिन्होंने खुद को खादी के कपड़े में पेश किया, ये एक नेता का चित्रण (visualization) नहीं है. हालांकि, महात्मा के अंतर्दृष्टि (insights) की समीक्षा करने पर उनकी सादगी की महानता का अनुभव होता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि गांधी हमेशा अपने दर्शन से लिपटे-बंधे रहे. सत्य और अहिंसा गांधी के हथियार थे.

महात्मा पर सवाल भी खड़े हुए
गांधी बाहरी पहलुओं/मुखौटे (facade) की बजाय विचारों की दृढ़ता में विश्वास करते थे. हालांकि, उन्होंने जब कपड़ों (खादी) के माध्यम से युद्ध छेड़ा, तो यह ठीक उल्टा लगा. इस युद्ध में कोई खून-खराबा नहीं हुआ, लेकिन गांधी की जड़वत सोच (rooted thoughts) पर कई सवाल खड़े हुए. गांधी की सोच आजाद भारत के झंडे को लहराने के लिए हवाएं बना रही थी.

गांधी की मुस्कान में आशा
ऐसा लगता था जैसे गांधी का आकर्षण उनके शब्दों से ज्यादा ऊंचे स्वर में बोलते थे. ये उन स्थानों पर होता था, जहां उनकी भाषा शब्दश: समझ में नहीं आती थी. लोग गांधी की ताकत (vigor) और दूरदर्शिता (vision) का साक्षी बनने के लिए हजारों की संख्या में जमा होते थे. बिना दांतों के सत्य से भरी हुई गांधी की मुस्कान में आशा की असीम दृढ़ता थी, इसे गांधी अपने चारों और फैलाते रहे.

ये भी पढ़ें: गांधी की नजरों में क्या था आजादी का मतलब ?

सत्य की लड़ाई
जब हिंसा की यातना से आशा की रोशनी बिखर रही थी, तब महात्मा ने नष्ट कर देने वाली सुलगती हुई हिंसा को अपनी अहिंसा की ज्योति से रोका. मौन सभी लिखे गए शब्दों को महत्व देता है, क्योंकि ये जानता है कि प्रत्येक कथन की प्रतिध्वनि कभी भी पूरी नहीं होती है. गांधी ने बिना इच्छित अभिव्यक्ति (coveted utterance) के अपने सुविख्यात सत्याग्रह द्वारा हमेशा सत्य की लड़ाई लड़ी.

क्या है निष्कर्ष
मैं अशाब्दिक संवाद (non-verbal communication) पर महात्मा गांधी के अनिवार्य दृष्टिकोण का उद्धरण देकर निष्कर्ष निकालना चाहूंगा- 'अपने विचारों को सकारात्मक रखें क्योंकि आपके विचार आपके शब्द बन जाते हैं. अपने शब्दों को सकारात्मक रखें क्योंकि आपके शब्द आपके व्यवहार बन जाते हैं. अपने व्यवहार को सकारात्मक रखें क्योंकि आपका व्यवहार आपकी आदतें बन जाता है. अपनी आदतों को सकारात्मक रखें क्योंकि आपकी आदतें आपके मूल्य बन जाते हैं. अपने मूल्यों को सकारात्मक रखें क्योंकि आपके मूल्य ही आपके भाग्य बन जाते हैं.'

(लेखक- डॉ सीके अभिषेक, आंध्र विश्वविद्यालय)

(आलेख में लिखे विचार लेखक के निजी है. इनसे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है.)

नफरत और हिंसा की भाषा लोगों को बांटती है, डर पैदा करती है, और बाद में इसके अराजक गुण पूरे समाज को निगल ले लेते हैं. भले ही लोग चरमपंथियों को आदर्श बनाकर, हिंसक उपायों से मोहित हुए हों, गांधी के साहित्य-शास्त्र की श्रेष्ठता के कारण ये धीरे-धीरे वापस भी लौटे.

लड़ाई-मतभिन्नता (Conflict) शुरुआत में भले ही जीत जाए, लेकिन अंत में शांति की ही जीत होती है. इसलिए, मानवीय और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए गांधीवादी संवाद हमेशा प्रासंगिक और अनिवार्य है. जनसाधारण के महात्मा, गांधी ने न केवल भारत के स्वतंत्रता संघर्ष को प्रेरित किया, बल्कि संवाद की सीमाओं को भी दोबारा परिभाषित किया. मौखिक ढंग से अभिव्यक्त हो, या अनकहा; गांधी के संवाद की भाषा का वर्णन करने के लिए हमेशा शब्दों की जरूरत नहीं होती.

आज के संदर्भ में गांधी
एक साधन के रूप में गांधी ने विविधता में एकता के लिए प्रेरक संवाद (persuasive communication) की वकालत की. ये उनके कथन से जाहिर होता है. गांधी ने कहा था, 'मुझे लगता है कि एक समय में नेतृत्व का मतलब बाहुबल था; लेकिन आज इसका मतलब है लोगों के साथ कामयाब होना.'

शब्दों से मार्गदर्शन
गांधी एक सच्चे वक्ता, सच्चे वक्ता और ईमानदार लेखक थे. उनकी अद्भुत सादगी, प्राकृतिक ईमानदारी, चमकदार स्थिरता के कारण गांधी के दूरदर्शिता (vision) का महत्व और बढ़ गया. गांधी ने पहला कदम हमेशा खुद उठाया. बात चाहे पत्रकार के रुप में उनके लेखों की हो, या नैतिकता से भरे उनके भाषणों की, गांधी के शब्दों ने उनके अनुयायियों का आजादी की ओर मार्गदर्शन किया.

तलवार से ज्यादा ताकतवर कलम
अहिंसा के अलग-अलग रास्तों में आगे रहने वाले अपने लोगों का नेतृत्व करने की खोज में, गांधी ने साबित कर दिया कि उनकी अहिंसक कलम हिंसक तलवार की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली थी. गांधी की कलम से न केवल लोगों को बल्कि स्वतंत्रता के संघर्ष को भी आवेग मिला. गांधी के शब्दों में उनकी दूरदर्शिता की झलक मिलती थी. इनमें अहिंसा का आग्रह था, जिससे गांधी पूरी मानवता के मसीहा बने.

ये भी पढ़ें: ज्यादा से ज्यादा लोगों को देना है रोजगार, तो गांधी का रास्ता है बेहतर विकल्प

सीमाओं से परे गांधी का प्रभावी संवाद
हालांकि, गांधी एक शर्मीले (shy) वक्ता थे, उन्होंने ये माना कि ये उनकी संपत्ति थी. जैसा कि उन्होंने कहा था, 'भाषण में मेरी हिचकिचाहट, जो कभी एक खीज थी, अब एक खुशी है. इसका सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है, कि इसने मुझे शब्दों की किफायत (economy) सिखाई है.' गांधी उनकी आवाज (cry) उठाना चाहते थे, जिन लोगों तक कोई नहीं पहुंचा. नेतृत्व की सहज प्रवृत्ति के कारण गांधी उन सीमाओं से परे गए जिसे कभी पार नहीं किया गया था. गांधी ने ऐसा प्रभावी संवाद के माध्यम से किया. सत्याग्रह पर गांधी के लेख के कारण प्रभावी संवाद कायम हुआ. गांधी ने अपने अनुयायियों के जरिए स्वराज के अहिंसक आक्रोश का कम प्रसार किया.

गांधी ने पीड़ा को बनाया मिशन
गांधी अपनी अंतरआत्मा, नैतिकता और अनुयायियों की सुनने वाले थे. गांधी (ऐसे रत्न) ऐसा चश्मा (prism) थे, जिनके संवाद की चमक के कारण हीरे की चमक भी फीकी पड़ जाए. गांधी एक प्रेरक निवेदन करने वाले आदमी थे. इसलिए जब-जब उनके अनुयायी गांधी की नैतिकता के दायरे में आए, उनमें शांति का अनुभव पैदा हुआ. गांधी एक परिवर्तनकारी उत्प्रेरक (catalyst) थे, जिसने अपने लोगों की पीड़ा को अपने मिशन में शामिल कर लिया.

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गांधी के कर्म में लोगों की पीड़ा !
चरखे पर सूत कातना, खादी पहनना, नमक कानून के खिलाफ दांडी मार्च, गांधी ने इन सबसे दुनिया को निस्तब्ध (stunned) कर दिया. गांधी की सादगी में उनकी दूरदर्शिता (vision) रोपित (planted) थी. गांधी ने ऐसा गैर शाब्दिक (non-verbal) शारीरिक भाषा के माध्यम से किया था. ऐसा कहा जाता है कि, उपदेश देने से पहले अभ्यास जरूरी होता है, लेकिन गांधी को उपदेश नहीं देने पड़े. ऐसा इसलिए क्योंकि गांधी की बातें उनके कर्म से प्रतिध्वनित (echoed) होती थी. गांधी के कर्म में लोगों की पीड़ा भी झलकती थी.

खुद सत्य बन गए गांधी
आजादी के संघर्ष के नायक के रूप में गांधी की यात्रा के दौरान अलग-अलग भाषाओं (multi-tone) के भाषण नहीं हैं. गांधी की दूरदर्शिता के कारण अभिजात्य (elite) वर्ग उनका अनुयायी बन जाए, गांधी के पास ऐसे मंत्रमुग्ध करने वाले शब्द भी नहीं थे. गांधी के पास प्रभावी मौन (engraving silence), शांत उपवास (unruffled fasts) और रथारूढ़ करिश्मा (charioting charisma) था, इससे गांधी का संघर्ष जीत में बदल गया. इससे गांधी एक सत्याग्रही/ सत्य की तलाश करने वाले (truth seeker) से खुद एक सत्य बन गए.

ये भी पढ़ें: जब गांधी ने कहा था, मेरे पास दुनिया को सिखाने के लिए कुछ नहीं है

महात्मा गांधी के हथियार
किसी को ऐसा लग सकता है कि गांधी, जिन्होंने खुद को खादी के कपड़े में पेश किया, ये एक नेता का चित्रण (visualization) नहीं है. हालांकि, महात्मा के अंतर्दृष्टि (insights) की समीक्षा करने पर उनकी सादगी की महानता का अनुभव होता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि गांधी हमेशा अपने दर्शन से लिपटे-बंधे रहे. सत्य और अहिंसा गांधी के हथियार थे.

महात्मा पर सवाल भी खड़े हुए
गांधी बाहरी पहलुओं/मुखौटे (facade) की बजाय विचारों की दृढ़ता में विश्वास करते थे. हालांकि, उन्होंने जब कपड़ों (खादी) के माध्यम से युद्ध छेड़ा, तो यह ठीक उल्टा लगा. इस युद्ध में कोई खून-खराबा नहीं हुआ, लेकिन गांधी की जड़वत सोच (rooted thoughts) पर कई सवाल खड़े हुए. गांधी की सोच आजाद भारत के झंडे को लहराने के लिए हवाएं बना रही थी.

गांधी की मुस्कान में आशा
ऐसा लगता था जैसे गांधी का आकर्षण उनके शब्दों से ज्यादा ऊंचे स्वर में बोलते थे. ये उन स्थानों पर होता था, जहां उनकी भाषा शब्दश: समझ में नहीं आती थी. लोग गांधी की ताकत (vigor) और दूरदर्शिता (vision) का साक्षी बनने के लिए हजारों की संख्या में जमा होते थे. बिना दांतों के सत्य से भरी हुई गांधी की मुस्कान में आशा की असीम दृढ़ता थी, इसे गांधी अपने चारों और फैलाते रहे.

ये भी पढ़ें: गांधी की नजरों में क्या था आजादी का मतलब ?

सत्य की लड़ाई
जब हिंसा की यातना से आशा की रोशनी बिखर रही थी, तब महात्मा ने नष्ट कर देने वाली सुलगती हुई हिंसा को अपनी अहिंसा की ज्योति से रोका. मौन सभी लिखे गए शब्दों को महत्व देता है, क्योंकि ये जानता है कि प्रत्येक कथन की प्रतिध्वनि कभी भी पूरी नहीं होती है. गांधी ने बिना इच्छित अभिव्यक्ति (coveted utterance) के अपने सुविख्यात सत्याग्रह द्वारा हमेशा सत्य की लड़ाई लड़ी.

क्या है निष्कर्ष
मैं अशाब्दिक संवाद (non-verbal communication) पर महात्मा गांधी के अनिवार्य दृष्टिकोण का उद्धरण देकर निष्कर्ष निकालना चाहूंगा- 'अपने विचारों को सकारात्मक रखें क्योंकि आपके विचार आपके शब्द बन जाते हैं. अपने शब्दों को सकारात्मक रखें क्योंकि आपके शब्द आपके व्यवहार बन जाते हैं. अपने व्यवहार को सकारात्मक रखें क्योंकि आपका व्यवहार आपकी आदतें बन जाता है. अपनी आदतों को सकारात्मक रखें क्योंकि आपकी आदतें आपके मूल्य बन जाते हैं. अपने मूल्यों को सकारात्मक रखें क्योंकि आपके मूल्य ही आपके भाग्य बन जाते हैं.'

(लेखक- डॉ सीके अभिषेक, आंध्र विश्वविद्यालय)

(आलेख में लिखे विचार लेखक के निजी है. इनसे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है.)

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Last Updated : Sep 29, 2019, 3:29 AM IST
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