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राष्ट्रपति चुनाव : अमेरिका में होने वाले चुनाव का गिरा राजनीतिक स्तर

तीन अक्टूबर को अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कवाद तेज हो चुकी है. राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन है. दोनों के बीच कई मुद्दों को लेकर राजनीतिक बयानबाजी नए नीचले स्तर पर उतर गई है. इस सभी के बाद अमेरिका में चुनाव प्रक्रिया का स्तर गिर चुकी है. वास्तव में, कोविड- 19 के प्रभाव के कम होने से पहले और बाद में ट्रंप के मुक्त घूमने और बड़ी संख्या में लोगों के साथ बातचीत करना एक बड़ा विवादास्पद मुद्दा बन गया है. अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के बारे में पढ़ें संजय पुलिपाका का विशेष लेख.

U.S. Presidential Election 2020
अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव 2020
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Published : Oct 27, 2020, 10:00 AM IST

हैदराबाद : संयुक्त राज्य अमेरिका का लोकतंत्र अपने सबसे नाजुक दौर से गुजर रहा है. विशेष रूप से वहां की चुनावी प्रक्रिया. वर्षों से अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव प्रमुख दावेदारों के बीच अपनी उत्कृष्ट नीतिगत बहस के लिए जाने जाते थे. आश्चर्यजनक रूप से स्वतंत्र, निष्पक्ष और खुले चुनाव होते थे. चुनाव के बाद शांतिपूर्ण ढंग से सत्ता हस्तांतरण के बारे में रत्ती भर भी संदेह का कोई कारण नहीं रहा था. अपने घर के चुनावी लोकतंत्र की मजबूती दिखाते हुए अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अक्सर उच्च नैतिक आधार पेश किया है. स्वच्छ चुनाव आयोजित करने और शांतिपूर्ण ढंग से सत्ता हस्तांतरण सुनिश्चित करने में नाकाम रहने पर दुनिया भर के विभिन्न देशों को दंड देते रहा है. आज अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया का स्तर गिरने से दुनिया हक्का-बक्का दिख रही है.

अमेरिकी राजनीति में राजनीतिक बयानबाजी नए नीचले स्तर पर उतर गई है क्योंकि राजनीतिक विरोधी एक-दूसरे को अपराधी और मसखरा कह रहे हैं. राष्ट्रपति पद दे दोनों उम्मीदवारों की पहली बहस कटुतापूर्ण थी, और चुनाव लड़ने वाले राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवारों के बीच वास्तविक नीतियों पर बहुत कम चर्चा हुई थी. महामारी को देखते हुए बड़ी संख्या में लोग अनुपस्थित मतों (एबसेन्टी बैलेट) के माध्यम से मतदान कर रहे हैं. हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप और अन्य लोगों ने इन अनुपस्थिति मतों और मेल-इन प्रावधानों का दुरुपयोग किए जाने का संदेह व्यक्त किया है. दोनों पक्षों के राजनीतिक नेता मुकदमों के साथ अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच रहे हैं. इन मुकदमों में मतदान प्रक्रियाओं के उल्लंघन किए जाने का तर्क दिया जा रहा है या प्रक्रियाओं की छूट के लिए अनुरोध किया जा रहा है. यह घटनाक्रम संकेत देते हैं कि मतदान के बाद औपचारिक तौर पर परिणाम घोषित होने से पहले लंबी अदालती लड़ाई चल सकती है. इन सभी घटनाक्रमों के बीच राष्ट्रपति ट्रंप ने आसानी से सत्ता हस्तांतरण के लिए कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई है. पत्रकारों के पूछने पर उन्होंने कहा कि मुझे मतपत्रों के बारे में बहुत दृढ़ता से शिकायत की गई है और मतपत्र एक आपदा हैं. मतपत्रों से छुटकारा पाएं और आपके पास बहुत कुछ होगा. आपके पास बहुत शांति होगी. कोई हस्तांतरण नहीं होगा, स्पष्ट रूप से एक निरंतरता होगी. वास्तव में अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस बात का जवाब नहीं दिया है कि सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण होगा, इससे दुनिया की विभिन्न राजधानियों में बेचैनी है.

यह चुनाव महामारी के बीच दुख को कम करने के लिए हो रहे हैं. इसके परिणामस्वरूप चुनाव की आम गतिविधियां जैसे कि घर-घर संपर्क अभियान, बड़ी राजनीतिक रैलियां और अन्य संबंधित गतिविधियां कम कर दी गईं. हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप ने आगे बढ़कर बड़ी बैठकें आयोजित कीं और दावा किया कि डेमोक्रेट्स इस तरह के आयोजन इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनकी सभाओं में बड़ी भीड़ नहीं जुट रही है. अमेरिका में आज चुनाव अभियान की प्रकृति पर काफी बहस चल रही है कि महामारी के बीच में किस तरह का इसका आयोजन किया जाना चाहिए. वास्तव में, कोविड- 19 के प्रभाव के कम होने से पहले और बाद में ट्रंप के मुक्त घूमने और बड़ी संख्या में लोगों के साथ बातचीत करना एक बड़ा विवादास्पद मुद्दा बन गया है.

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में कोविड महामारी को लेकर अमेरिकी सरकार की प्रतिक्रिया एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा है. डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन ने महामारी के प्रसार को रोकने के लिए उचित कार्रवाई करके अमेरिकी लोगों की रक्षा करने में विफल रहने के लिए वर्तमान प्रशासन के सुस्त रवैये की तीखी आलोचना की है. दूसरी ओर ट्रंप अक्सर कोविड-19 को 'चाइना वायरस' करार देते हैं. इस तरह से लक्षण वर्णन इस तर्क को विश्वसनीय बनाने का एक प्रयास है कि आसन्न संकट के बारे में चीन की ओर से समयबद्ध तरीके से जानकारी के प्रवाह की कमी थी, जिसने अमेरिका में घातक घटनाओं में योगदान दिया. इसके अलावा ट्रंप का तर्क है कि कड़ाई से लॉकडाउन लगाने से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. पिछले कुछ दिनों में ट्रंप ने तर्क दिया है कि महामारी के कारण मंदी के बाद अर्थव्यवस्था गति पकड़ रही है. यह अभी भी निश्चित नहीं है कि महामारी के कारण आर्थिक रूप से पीड़ित लोगों को आगामी चुनावों में वोट किसे देंगे. यह संभव है कि उनमें से कुछ महामारी को कम करने के ट्रंप के तर्क से सहमत हों और अर्थव्यवस्था को थोड़ा और आकर्षक बनाने की अनुमति देने पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है. दिलचस्प बात यह है कि अक्टूबर की शुरुआत में गैलप सर्वेक्षण में 54 फीसद अमेरिकियों ने महसूस किया कि अर्थव्यवस्था पर ट्रंप का काम अच्छा था.

विभिन्न चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों से पता चलता है कि देश के चुनावों में राष्ट्रपति ट्रंप से जो बाइडेन आगे (करीब 9 से 10 फीसद तक) हैं. दूसरी ओर चुनावी युद्ध के मैदानों में दो दावेदारों के बीच मुकाबला बहुत संकीर्ण होता जा रहा है. कुछ चुनावों के अनुसार, फ्लोरिडा में, उत्तरी कैरोलिना और एरिज़ोना जो बिडेन से कम अंतर से आगे चल रहे हैं. आयोवा और ओहियो में ट्रंप दो फीसदी से कम मार्जिन से आगे हैं. यह संख्या आने वाले दिनों में बदल सकती है. गौरतलब यह है कि इस समय के आसपास पिछले राष्ट्रपति चुनावों के दौरान, सीनेटर हिलेरी क्लिंटन ने विभिन्न चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में अपने प्रतिद्वंद्वी डोनाल्ड ट्रंप पर स्पष्ट बढ़त हासिल की थी. हालांकि, चुनाव परिणामों ने उल्टा प्रदर्शित किया, सर्वेक्षक राष्ट्र के मूड को ठीक से पकड़ नहीं पाए. अत्यधिक ध्रुवीकृत वातावरण में, चुनाव परिणाम की भविष्यवाणी करना एक भिन्नता है.

प्रचार के दौरान उम्मीदवारों के व्यक्तित्व पर काफी चर्चा हुई है. डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता अक्सर देश के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने के लिए ट्रंप की तीखी आलोचना करते हैं और मीडिया, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के प्रति बार-बार अपमानजनक व्यवहार करते हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं ने डोनाल्ड ट्रंप पर महाभियोग चलाने का लगातार प्रयास किया, जो सफल नहीं हुआ. दूसरी ओर, लंबे समय तक अमेरिकी सीनेट में रहे ट्रंप और उनके सहयोगियों ने भी जो बाइडेन को एक प्रतिष्ठान के आदमी के रूप में निशाना साधा था, लेकिन सार्वजनिक नीति उपलब्धियों के मामले में बहुत कम दिखा. राष्ट्रपति ट्रंप ने बाइडेन बेटे के व्यापारिक व्यवहार का जिक्र करते हैं, यहां तक कि वह बिडेन परिवार को 'आपराधिक परिवार' कहने की सीमा तक गए.

यदि हम विदेश नीति के संदर्भ में व्यक्तित्व की राजनीति से दूर जाते हैं तो बाइडेन और ट्रंप के दृष्टिकोण के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है जो बाइडेन ने मार्च में विख्यात विदेश मामलों की पत्रिका में एक लेख लिखा था. बाइडेन का जोर गैर-पारंपरिक सुरक्षा मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन, सामूहिक प्रवासन, तकनीकी व्यवधान, संक्रामक रोगों और भ्रष्टाचार से निपटने की आवश्यकता पर है. दुख की बात है कि पूरे लेख में भारत का केवल एक बार उल्लेख किया गया है. इसके अलावा, बाइडेन की प्रचार वेबसाइट पर 'जो बाइडेन एजेंडा फॉर मुस्लिम-अमेरिकन कम्युनिटीज़' शीर्षक से, कश्मीर मुद्दे को अन्य मुद्दों जैसे कि झिंजियांग में नजरबंदी शिविरों और बर्मा के रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार जैसे मुद्दों के साथ जोड़ा गया था. यह कहते हुए कि 'कश्मीर में भारत सरकार को कश्मीर के सभी लोगों के अधिकारों को बहाल करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए.' यदि बाइडेन निर्वाचित हो जाते हैं तो क्या यह नीतिगत पद जारी रहेंगे. फिलहाल निष्कर्ष आना संदिग्ध है.

दूसरी ओर, ट्रंप की विदेश नीति का प्रदर्शन मिश्रित रहा. बड़े आश्चर्यजनक ढंग से ट्रंप इजरायल और अन्य अरब देशों को एक साथ लाने में सक्षम रहे. वर्षों के तीखे रिश्ते के बाद अरब देश और इज़राइल के राष्ट्रपति ट्रंप के प्रयासों के कारण एक सहकारी संबंध की ओर भी बढ़ रहे हैं. बढ़ते चीन को लेकर ट्रंप उन राष्ट्रपतियों में से एक थे जबकि पहले के राष्ट्रपतियों ने चीन के प्रति कठोर नीति के बारे में बात की, उन्होंने कोई नीतिगत उपाय नहीं किया. दूसरी ओर, राष्ट्रपति ट्रंप ने व्यापार युद्ध की शुरुआत की और दूसरों का समर्थन कर रहे हैं, जैसे कि ताइवान को चीन समक्ष खड़ा है. हालांकि, ट्रंप की चीन की रणनीति में व्यापक दृष्टिकोण का अभाव था और उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ संबंधों की उपेक्षा की. अमेरिका-यूरोप के रिश्तों को राष्ट्रपति ट्रंप के नेतृत्व के तहत भी नाकाम कर दिया गया. जलवायु परिवर्तन और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को मजबूत करने जैसे मुद्दों पर, ट्रंप ने कोई नया रास्ता नहीं चुना.

ट्रंप अक्सर भारत को लेकर बहुत कठोर शब्दों का इस्तेमाल करते थे. उदाहरण के लिए व्यापार के मुद्दे पर असहमति व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था कि 'भारत एक टैरिफ किंग है और अमेरिकी उत्पादों पर बहुत अधिक टैरिफ लगाता है.' हालिया राष्ट्रपति की बहस में जलवायु परिवर्तन के बारे में बात करते हुए, ट्रंप ने भारत में प्रदूषण का उल्लेख किया और कहा ..यह गंदा है.. हवा गंदी है..दूसरी ओर, सामयिक असहमतियों के बावजूद, भारत-अमेरिका संबंध समृद्ध हुए. भारत और अमेरिका अब क्वाड फ्रेमवर्क को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहे हैं और हिंद-प्रशांत की अवधारणा को मजबूत करने के लिए भी काम कर रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में, भारत-अमेरिका के रक्षा संबंधों ने नई ऊंचाइयों को छुआ है, और यह चीन के साथ लद्दाख में हालिया गतिरोध के दौरान स्पष्ट हुआ था. भारत ने सी -17 और अन्य जैसे भारी एयरलिफ्ट विमान तैनात किए हैं, जो रक्षा उपकरणों को सीमावर्ती क्षेत्रों में ले जाते हैं. अमेरिकी राजनयिक और अन्य वरिष्ठ नेता दुनिया की विभिन्न राजधानियों में भारतीय राजनयिकों की सहायता करते रहे हैं. दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग संरचनात्मक रूप से मजबूत हो रहा है. उदाहरण के लिए, 2016 में हस्ताक्षरित लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट दोनों देशों को आपूर्ति और अन्य पुनःपूर्ति के लिए एक दूसरे के अड्डो तक पहुंचने की अनुमति देता है. इसी तरह 2018 में दोनों देशों ने संचार संगतता और सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसने एक दूसरे को एन्क्रिप्टेड संचार नेटवर्क में सहयोग करने में सक्षम बनाया. यह समझौते बताते हैं कि दोनों देश एक विश्वसनीय रिश्ते में हैं, जो भी अगला राष्ट्रपति होगा भू राजनीतिक गतिशीलता और दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को आगे बढ़ाएंगे.

जैसा कि कई विश्लेषकों ने कहा कि यह चुनाव राष्ट्रपति ट्रंप और उनकी नीतियों पर एक जनमत संग्रह है. चाहे कोई ट्रंप से सहमत हो या असहमत हो, यह माना जाना चाहिए कि वह एक बहुत ही अपरंपरागत नेता हैं. अमेरिका चार साल एक अपरंपरागत नेता के साथ रहा है. क्या अमेरिकी मतदाता एक राष्ट्रपति के लिए तैयार है जो अपने भाषणों और नीतियों में अक्सर चार साल के लिए अपरंपरागत है ? इसका हमें 3 नवंबर के चुनाव के बाद पता चलेगा.

(लेखक- संजय पुलिपाका)

हैदराबाद : संयुक्त राज्य अमेरिका का लोकतंत्र अपने सबसे नाजुक दौर से गुजर रहा है. विशेष रूप से वहां की चुनावी प्रक्रिया. वर्षों से अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव प्रमुख दावेदारों के बीच अपनी उत्कृष्ट नीतिगत बहस के लिए जाने जाते थे. आश्चर्यजनक रूप से स्वतंत्र, निष्पक्ष और खुले चुनाव होते थे. चुनाव के बाद शांतिपूर्ण ढंग से सत्ता हस्तांतरण के बारे में रत्ती भर भी संदेह का कोई कारण नहीं रहा था. अपने घर के चुनावी लोकतंत्र की मजबूती दिखाते हुए अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अक्सर उच्च नैतिक आधार पेश किया है. स्वच्छ चुनाव आयोजित करने और शांतिपूर्ण ढंग से सत्ता हस्तांतरण सुनिश्चित करने में नाकाम रहने पर दुनिया भर के विभिन्न देशों को दंड देते रहा है. आज अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया का स्तर गिरने से दुनिया हक्का-बक्का दिख रही है.

अमेरिकी राजनीति में राजनीतिक बयानबाजी नए नीचले स्तर पर उतर गई है क्योंकि राजनीतिक विरोधी एक-दूसरे को अपराधी और मसखरा कह रहे हैं. राष्ट्रपति पद दे दोनों उम्मीदवारों की पहली बहस कटुतापूर्ण थी, और चुनाव लड़ने वाले राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवारों के बीच वास्तविक नीतियों पर बहुत कम चर्चा हुई थी. महामारी को देखते हुए बड़ी संख्या में लोग अनुपस्थित मतों (एबसेन्टी बैलेट) के माध्यम से मतदान कर रहे हैं. हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप और अन्य लोगों ने इन अनुपस्थिति मतों और मेल-इन प्रावधानों का दुरुपयोग किए जाने का संदेह व्यक्त किया है. दोनों पक्षों के राजनीतिक नेता मुकदमों के साथ अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच रहे हैं. इन मुकदमों में मतदान प्रक्रियाओं के उल्लंघन किए जाने का तर्क दिया जा रहा है या प्रक्रियाओं की छूट के लिए अनुरोध किया जा रहा है. यह घटनाक्रम संकेत देते हैं कि मतदान के बाद औपचारिक तौर पर परिणाम घोषित होने से पहले लंबी अदालती लड़ाई चल सकती है. इन सभी घटनाक्रमों के बीच राष्ट्रपति ट्रंप ने आसानी से सत्ता हस्तांतरण के लिए कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई है. पत्रकारों के पूछने पर उन्होंने कहा कि मुझे मतपत्रों के बारे में बहुत दृढ़ता से शिकायत की गई है और मतपत्र एक आपदा हैं. मतपत्रों से छुटकारा पाएं और आपके पास बहुत कुछ होगा. आपके पास बहुत शांति होगी. कोई हस्तांतरण नहीं होगा, स्पष्ट रूप से एक निरंतरता होगी. वास्तव में अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस बात का जवाब नहीं दिया है कि सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण होगा, इससे दुनिया की विभिन्न राजधानियों में बेचैनी है.

यह चुनाव महामारी के बीच दुख को कम करने के लिए हो रहे हैं. इसके परिणामस्वरूप चुनाव की आम गतिविधियां जैसे कि घर-घर संपर्क अभियान, बड़ी राजनीतिक रैलियां और अन्य संबंधित गतिविधियां कम कर दी गईं. हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप ने आगे बढ़कर बड़ी बैठकें आयोजित कीं और दावा किया कि डेमोक्रेट्स इस तरह के आयोजन इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनकी सभाओं में बड़ी भीड़ नहीं जुट रही है. अमेरिका में आज चुनाव अभियान की प्रकृति पर काफी बहस चल रही है कि महामारी के बीच में किस तरह का इसका आयोजन किया जाना चाहिए. वास्तव में, कोविड- 19 के प्रभाव के कम होने से पहले और बाद में ट्रंप के मुक्त घूमने और बड़ी संख्या में लोगों के साथ बातचीत करना एक बड़ा विवादास्पद मुद्दा बन गया है.

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में कोविड महामारी को लेकर अमेरिकी सरकार की प्रतिक्रिया एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा है. डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन ने महामारी के प्रसार को रोकने के लिए उचित कार्रवाई करके अमेरिकी लोगों की रक्षा करने में विफल रहने के लिए वर्तमान प्रशासन के सुस्त रवैये की तीखी आलोचना की है. दूसरी ओर ट्रंप अक्सर कोविड-19 को 'चाइना वायरस' करार देते हैं. इस तरह से लक्षण वर्णन इस तर्क को विश्वसनीय बनाने का एक प्रयास है कि आसन्न संकट के बारे में चीन की ओर से समयबद्ध तरीके से जानकारी के प्रवाह की कमी थी, जिसने अमेरिका में घातक घटनाओं में योगदान दिया. इसके अलावा ट्रंप का तर्क है कि कड़ाई से लॉकडाउन लगाने से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. पिछले कुछ दिनों में ट्रंप ने तर्क दिया है कि महामारी के कारण मंदी के बाद अर्थव्यवस्था गति पकड़ रही है. यह अभी भी निश्चित नहीं है कि महामारी के कारण आर्थिक रूप से पीड़ित लोगों को आगामी चुनावों में वोट किसे देंगे. यह संभव है कि उनमें से कुछ महामारी को कम करने के ट्रंप के तर्क से सहमत हों और अर्थव्यवस्था को थोड़ा और आकर्षक बनाने की अनुमति देने पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है. दिलचस्प बात यह है कि अक्टूबर की शुरुआत में गैलप सर्वेक्षण में 54 फीसद अमेरिकियों ने महसूस किया कि अर्थव्यवस्था पर ट्रंप का काम अच्छा था.

विभिन्न चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों से पता चलता है कि देश के चुनावों में राष्ट्रपति ट्रंप से जो बाइडेन आगे (करीब 9 से 10 फीसद तक) हैं. दूसरी ओर चुनावी युद्ध के मैदानों में दो दावेदारों के बीच मुकाबला बहुत संकीर्ण होता जा रहा है. कुछ चुनावों के अनुसार, फ्लोरिडा में, उत्तरी कैरोलिना और एरिज़ोना जो बिडेन से कम अंतर से आगे चल रहे हैं. आयोवा और ओहियो में ट्रंप दो फीसदी से कम मार्जिन से आगे हैं. यह संख्या आने वाले दिनों में बदल सकती है. गौरतलब यह है कि इस समय के आसपास पिछले राष्ट्रपति चुनावों के दौरान, सीनेटर हिलेरी क्लिंटन ने विभिन्न चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में अपने प्रतिद्वंद्वी डोनाल्ड ट्रंप पर स्पष्ट बढ़त हासिल की थी. हालांकि, चुनाव परिणामों ने उल्टा प्रदर्शित किया, सर्वेक्षक राष्ट्र के मूड को ठीक से पकड़ नहीं पाए. अत्यधिक ध्रुवीकृत वातावरण में, चुनाव परिणाम की भविष्यवाणी करना एक भिन्नता है.

प्रचार के दौरान उम्मीदवारों के व्यक्तित्व पर काफी चर्चा हुई है. डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता अक्सर देश के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने के लिए ट्रंप की तीखी आलोचना करते हैं और मीडिया, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के प्रति बार-बार अपमानजनक व्यवहार करते हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं ने डोनाल्ड ट्रंप पर महाभियोग चलाने का लगातार प्रयास किया, जो सफल नहीं हुआ. दूसरी ओर, लंबे समय तक अमेरिकी सीनेट में रहे ट्रंप और उनके सहयोगियों ने भी जो बाइडेन को एक प्रतिष्ठान के आदमी के रूप में निशाना साधा था, लेकिन सार्वजनिक नीति उपलब्धियों के मामले में बहुत कम दिखा. राष्ट्रपति ट्रंप ने बाइडेन बेटे के व्यापारिक व्यवहार का जिक्र करते हैं, यहां तक कि वह बिडेन परिवार को 'आपराधिक परिवार' कहने की सीमा तक गए.

यदि हम विदेश नीति के संदर्भ में व्यक्तित्व की राजनीति से दूर जाते हैं तो बाइडेन और ट्रंप के दृष्टिकोण के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है जो बाइडेन ने मार्च में विख्यात विदेश मामलों की पत्रिका में एक लेख लिखा था. बाइडेन का जोर गैर-पारंपरिक सुरक्षा मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन, सामूहिक प्रवासन, तकनीकी व्यवधान, संक्रामक रोगों और भ्रष्टाचार से निपटने की आवश्यकता पर है. दुख की बात है कि पूरे लेख में भारत का केवल एक बार उल्लेख किया गया है. इसके अलावा, बाइडेन की प्रचार वेबसाइट पर 'जो बाइडेन एजेंडा फॉर मुस्लिम-अमेरिकन कम्युनिटीज़' शीर्षक से, कश्मीर मुद्दे को अन्य मुद्दों जैसे कि झिंजियांग में नजरबंदी शिविरों और बर्मा के रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार जैसे मुद्दों के साथ जोड़ा गया था. यह कहते हुए कि 'कश्मीर में भारत सरकार को कश्मीर के सभी लोगों के अधिकारों को बहाल करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए.' यदि बाइडेन निर्वाचित हो जाते हैं तो क्या यह नीतिगत पद जारी रहेंगे. फिलहाल निष्कर्ष आना संदिग्ध है.

दूसरी ओर, ट्रंप की विदेश नीति का प्रदर्शन मिश्रित रहा. बड़े आश्चर्यजनक ढंग से ट्रंप इजरायल और अन्य अरब देशों को एक साथ लाने में सक्षम रहे. वर्षों के तीखे रिश्ते के बाद अरब देश और इज़राइल के राष्ट्रपति ट्रंप के प्रयासों के कारण एक सहकारी संबंध की ओर भी बढ़ रहे हैं. बढ़ते चीन को लेकर ट्रंप उन राष्ट्रपतियों में से एक थे जबकि पहले के राष्ट्रपतियों ने चीन के प्रति कठोर नीति के बारे में बात की, उन्होंने कोई नीतिगत उपाय नहीं किया. दूसरी ओर, राष्ट्रपति ट्रंप ने व्यापार युद्ध की शुरुआत की और दूसरों का समर्थन कर रहे हैं, जैसे कि ताइवान को चीन समक्ष खड़ा है. हालांकि, ट्रंप की चीन की रणनीति में व्यापक दृष्टिकोण का अभाव था और उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ संबंधों की उपेक्षा की. अमेरिका-यूरोप के रिश्तों को राष्ट्रपति ट्रंप के नेतृत्व के तहत भी नाकाम कर दिया गया. जलवायु परिवर्तन और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को मजबूत करने जैसे मुद्दों पर, ट्रंप ने कोई नया रास्ता नहीं चुना.

ट्रंप अक्सर भारत को लेकर बहुत कठोर शब्दों का इस्तेमाल करते थे. उदाहरण के लिए व्यापार के मुद्दे पर असहमति व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था कि 'भारत एक टैरिफ किंग है और अमेरिकी उत्पादों पर बहुत अधिक टैरिफ लगाता है.' हालिया राष्ट्रपति की बहस में जलवायु परिवर्तन के बारे में बात करते हुए, ट्रंप ने भारत में प्रदूषण का उल्लेख किया और कहा ..यह गंदा है.. हवा गंदी है..दूसरी ओर, सामयिक असहमतियों के बावजूद, भारत-अमेरिका संबंध समृद्ध हुए. भारत और अमेरिका अब क्वाड फ्रेमवर्क को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहे हैं और हिंद-प्रशांत की अवधारणा को मजबूत करने के लिए भी काम कर रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में, भारत-अमेरिका के रक्षा संबंधों ने नई ऊंचाइयों को छुआ है, और यह चीन के साथ लद्दाख में हालिया गतिरोध के दौरान स्पष्ट हुआ था. भारत ने सी -17 और अन्य जैसे भारी एयरलिफ्ट विमान तैनात किए हैं, जो रक्षा उपकरणों को सीमावर्ती क्षेत्रों में ले जाते हैं. अमेरिकी राजनयिक और अन्य वरिष्ठ नेता दुनिया की विभिन्न राजधानियों में भारतीय राजनयिकों की सहायता करते रहे हैं. दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग संरचनात्मक रूप से मजबूत हो रहा है. उदाहरण के लिए, 2016 में हस्ताक्षरित लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट दोनों देशों को आपूर्ति और अन्य पुनःपूर्ति के लिए एक दूसरे के अड्डो तक पहुंचने की अनुमति देता है. इसी तरह 2018 में दोनों देशों ने संचार संगतता और सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसने एक दूसरे को एन्क्रिप्टेड संचार नेटवर्क में सहयोग करने में सक्षम बनाया. यह समझौते बताते हैं कि दोनों देश एक विश्वसनीय रिश्ते में हैं, जो भी अगला राष्ट्रपति होगा भू राजनीतिक गतिशीलता और दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को आगे बढ़ाएंगे.

जैसा कि कई विश्लेषकों ने कहा कि यह चुनाव राष्ट्रपति ट्रंप और उनकी नीतियों पर एक जनमत संग्रह है. चाहे कोई ट्रंप से सहमत हो या असहमत हो, यह माना जाना चाहिए कि वह एक बहुत ही अपरंपरागत नेता हैं. अमेरिका चार साल एक अपरंपरागत नेता के साथ रहा है. क्या अमेरिकी मतदाता एक राष्ट्रपति के लिए तैयार है जो अपने भाषणों और नीतियों में अक्सर चार साल के लिए अपरंपरागत है ? इसका हमें 3 नवंबर के चुनाव के बाद पता चलेगा.

(लेखक- संजय पुलिपाका)

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