नई दिल्ली : अयोध्या की धरती ऐसे विवादों से भरी है, जिसकी वजह से हिन्दुस्तान की राजनीति में धर्म के लिए जगह पुख्ता की है. राजनीति में धर्म की वो पैठ बढ़ने के कारण आज भी मन्दिर-मस्जिद का विवाद उसी मोड़ पर खड़ा है. हालांकि, अयोध्या को लेकर भारत की राजनीति में बहुत से उतार-चढ़ाव देखे गए हैं.
अयोध्या की गलियों में राम मन्दिर निर्माण का एक बड़ा हिमायती सियासत में मिल गया, जिसका प्रमाण 1989 के चुनावों में देखने को मिला, जब दो की जगह 85 सीटें जीतकर बीजेपी ने वीपी सिंह की जनता दल के साथ सरकार बनाई.
ज्ञात रहे कि 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में हजारों की संख्या कारसेवकों ने पहुंचकर बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया था, जिसका खामियाजा उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार को भुगतना पड़ा था.
अयोध्या मुद्दे पर ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान राजनीतिक विशेषज्ञ शरद गुप्ता ने बताया, 1992 तक पूरा देश दो हिस्सों में बंट गया था, एक बाबरी मस्जिद के पक्ष में था और एक राम जन्मभूमि के पक्ष में था.
शरद ने कहा, 'बाबरी मस्जिद के गिरने के बाद देश की राजनीति में बहुत बड़े परिवर्तन हुए. उस समय के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त की गई. इसके अलावा तीन और राज्यों की सरकारें भी बर्खास्त कर दी गई थी.'
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उन्होंने कहा, 'आज के दौर में भी इस मामले को लेकर राजनीति में बड़े-बड़े दाव खेले जाते हैं. चुनावों के दौरान मतदाताओं की मानसिकता को भुनाने के लिए साम्प्रदायिक मुद्दों को उठाया जाता है.'
शरद ने कहा, 'पूरा देश इस समय राष्ट्रवाद की भावना से भरा हुआ है, जिसका एक प्रतीक बाबरी मस्जिद है. आज के दौर में अगर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में जितने भी राजनीतिक दल मंदिर का विरोध कर रहें हैं. वे सभी आज कमजोर पड़ गये हैं.'
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गौरतलब है किअयोध्या मुद्दे की 40 दिनों की सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है, जिसकी घोषणा अगले माह हो सकती है. आज के समय में चल रही राजनीतिक हवा को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से भाजपा सरकार को फायदा होने की उम्मीद है.