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जहरीला पेयजल - भारी धातुओं से दूषित!

2016 में जारी, वर्ल्ड वाटर एड ’रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में संरक्षित ताजे पानी की उपलब्धता सीमित है. केंद्र सरकार का अनुमान है कि हमारे देश की वर्तमान पानी की प्रति वर्ष आवश्यकता 110 करोड़ घन लीटर है. 2025 तक यह 120 करोड़ क्यूबिक लीटर होगा और 2050 तक यह 144 करोड़ घन लीटर हो जाएगा. पढ़ें, पानी की उपलब्धता पर आधारित चिकित्सा क्षेत्र विशेषज्ञ डॉ. जेड.एस. शिवप्रसाद की खास रिपोर्ट...

जहरीला पेयजल
जहरीला पेयजल
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Published : Dec 22, 2020, 7:40 AM IST

जल प्रकृति में रहने वाले प्रत्येक जीव का जीवनदाई है. जल पर्यावरण संरक्षण में एक विशेष भूमिका निभाता है. मानव शरीर के विभिन्न कोशिका तंत्र और अंगों को पूरी क्षमता से काम करने के लिए हर दिन कम से कम आठ से दस गिलास पानी की आवश्यकता होती है. हमें साफ पानी पीना चाहिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि स्वच्छ पेयजल हर किसी का मौलिक अधिकार है. संरक्षित ताजा पानी एक स्वस्थ शरीर प्रणाली के लिए एक ठोस आधार की तरह है. यूनिसेफ का कहना है कि जलजनित बीमारियां हमारे देश को आर्थिक रूप से प्रभावित कर रही हैं.

देश भर में दर्ज औसत वर्षा 1170 मिमी है. प्राकृतिक जल संसाधन भी मौजूद हैं. अयोग्य और दोषयुक्त जल संरक्षण प्रणाली के कारण इनका अधिकांश हिस्सा समुद्र में जाकर बर्बाद हो रहा है. अत्यधिक जल प्रदूषण, जनसंख्या वृद्धि और बढ़े हुए वायुमंडलीय तापमान हमारे देश में पानी की गंभीर कमी का कारण बन रहे हैं. केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार, 2016-17 तक देश के केवल 65 फीसदी लोग ही सुरक्षित पेयजल तक पहुंच बना सकते थे. फिर भी हजारों गांव साधारण जलापूर्ति से आज भी कोसों दूर हैं.

2016 में जारी, वर्ल्ड वाटर एड ’रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में संरक्षित ताजे पानी की उपलब्धता सीमित है. केंद्र सरकार का अनुमान है कि हमारे देश की वर्तमान पानी की प्रति वर्ष आवश्यकता 110 करोड़ घन लीटर है. 2025 तक यह 120 करोड़ क्यूबिक लीटर होगा और 2050 तक यह 144 करोड़ घन लीटर हो जाएगा. एशियाई विकास बैंक ने कहा है कि 2030 तक हमारे देश में पानी की कमी पचास प्रतिशत से अधिक हो जाएगी.

सीसा युक्त पानी!

आज हमारे देश में पीने के साफ पानी की सुविधा होना एक बहुत बड़ा सौभाग्य बन गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि हमारे पास उपलब्ध पीने के पानी की गुणवत्ता संतोषजनक नहीं है. हमारे देश में पानी की शुद्धता को मापने की प्रक्रिया में सटीकता की कमी के कारण, कई लोग अनजाने में दूषित पानी का उपयोग कर रहे हैं.

आईसीएमआर और एनआईएन जैसे संगठनों को चिंता है कि कई क्षेत्रों में बैक्टीरिया, वायरस, कवक और सीसा, आर्सेनिक, निकल और तांबा जैसी भारी धातुओं से रोजमर्रा इस्तेमाल किया जा रहा पानी दूषित हो सकता है. कारखानों और घरेलू कचरे से निकलने वाले रासायनिक तत्व भी भूजल को दूषित करते हैं. कीटनाशकों और रसायनों का उपयोग कृषि और मछली पालन में भारी तौर से किया जता है.

डॉक्टरों का कहना है कि भोजन, पीने के पानी और दूध में विषाक्त पदार्थ बीमारियों और शारीरिक समस्याओं का कारण बन सकते हैं. ऑर्गानो-क्लोराइड से दूषित पानी को मानव तंत्रिका तंत्र, जिगर, गुर्दे और मांसपेशियों पर दीर्घकालिक प्रभाव के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है. भारी बारिश और बाढ़ के दौरान लोगों पर इस तरह के प्रदूषित पानी का प्रभाव और भी अधिक होता है.

प्लास्टिक कचरे के कारण बढ़ता प्रदूषण

पानी के दूषित होने का लाभ उठाते हुए, प्लास्टिक की बोतलों में पीने के पानी की बिक्री में भारी उछाल देखा जा रहा है. हालांकि, यह कुछ हद तक, पीने के पानी की जरूरतों को पूरा कर सकता है, लेकिन इससे प्लास्टिक कचरे का प्रदूषण बढ़ रहा है. लगभग अस्सी प्रतिशत प्लास्टिक की बोतलें मिट्टी और पानी के स्रोतों में खतरनाक रसायनों को छोड़ उन्हें दूषित करती हैं. प्लास्टिक को पूरी तरह से पिघलने में लगभग एक हजार साल लगते हैं. मनुष्य, पशुधन और वनस्पतियां उस सीमा तक गंभीर रूप से प्रभावित हैं. वर्तमान में, एक ही वर्ष में दुनिया भर में अरबों टन प्लास्टिक कचरे को ढेर धरती पर लाद दिया जाता है.

जल संसाधनों के संरक्षण और जल प्रदूषण को रोकने के लिए सरकारों और स्थानीय निकायों को कम से कम अब से ध्यान केंद्रित करना चाहिए. समय-समय पर पानी के नमूनों का परीक्षण कर जनता को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की चेष्टा की जानी चाहिए. निषिद्ध कीटनाशकों के उपयोग को कड़ाई से नियंत्रित किया जाना चाहिए. किसानों में रसायनों के उपयोग के दुष्प्रभाव पर जागरूकता पैदा की जानी चाहिए और उन्हें जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. प्लास्टिक के व्यापक उपयोग को रोकने के लिए जन जागरूकता अभियान तेज किया जाना चाहिए.

- डॉ. जेड.एस. शिवप्रसाद (चिकित्सा क्षेत्र विशेषज्ञ)

जल प्रकृति में रहने वाले प्रत्येक जीव का जीवनदाई है. जल पर्यावरण संरक्षण में एक विशेष भूमिका निभाता है. मानव शरीर के विभिन्न कोशिका तंत्र और अंगों को पूरी क्षमता से काम करने के लिए हर दिन कम से कम आठ से दस गिलास पानी की आवश्यकता होती है. हमें साफ पानी पीना चाहिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि स्वच्छ पेयजल हर किसी का मौलिक अधिकार है. संरक्षित ताजा पानी एक स्वस्थ शरीर प्रणाली के लिए एक ठोस आधार की तरह है. यूनिसेफ का कहना है कि जलजनित बीमारियां हमारे देश को आर्थिक रूप से प्रभावित कर रही हैं.

देश भर में दर्ज औसत वर्षा 1170 मिमी है. प्राकृतिक जल संसाधन भी मौजूद हैं. अयोग्य और दोषयुक्त जल संरक्षण प्रणाली के कारण इनका अधिकांश हिस्सा समुद्र में जाकर बर्बाद हो रहा है. अत्यधिक जल प्रदूषण, जनसंख्या वृद्धि और बढ़े हुए वायुमंडलीय तापमान हमारे देश में पानी की गंभीर कमी का कारण बन रहे हैं. केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार, 2016-17 तक देश के केवल 65 फीसदी लोग ही सुरक्षित पेयजल तक पहुंच बना सकते थे. फिर भी हजारों गांव साधारण जलापूर्ति से आज भी कोसों दूर हैं.

2016 में जारी, वर्ल्ड वाटर एड ’रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में संरक्षित ताजे पानी की उपलब्धता सीमित है. केंद्र सरकार का अनुमान है कि हमारे देश की वर्तमान पानी की प्रति वर्ष आवश्यकता 110 करोड़ घन लीटर है. 2025 तक यह 120 करोड़ क्यूबिक लीटर होगा और 2050 तक यह 144 करोड़ घन लीटर हो जाएगा. एशियाई विकास बैंक ने कहा है कि 2030 तक हमारे देश में पानी की कमी पचास प्रतिशत से अधिक हो जाएगी.

सीसा युक्त पानी!

आज हमारे देश में पीने के साफ पानी की सुविधा होना एक बहुत बड़ा सौभाग्य बन गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि हमारे पास उपलब्ध पीने के पानी की गुणवत्ता संतोषजनक नहीं है. हमारे देश में पानी की शुद्धता को मापने की प्रक्रिया में सटीकता की कमी के कारण, कई लोग अनजाने में दूषित पानी का उपयोग कर रहे हैं.

आईसीएमआर और एनआईएन जैसे संगठनों को चिंता है कि कई क्षेत्रों में बैक्टीरिया, वायरस, कवक और सीसा, आर्सेनिक, निकल और तांबा जैसी भारी धातुओं से रोजमर्रा इस्तेमाल किया जा रहा पानी दूषित हो सकता है. कारखानों और घरेलू कचरे से निकलने वाले रासायनिक तत्व भी भूजल को दूषित करते हैं. कीटनाशकों और रसायनों का उपयोग कृषि और मछली पालन में भारी तौर से किया जता है.

डॉक्टरों का कहना है कि भोजन, पीने के पानी और दूध में विषाक्त पदार्थ बीमारियों और शारीरिक समस्याओं का कारण बन सकते हैं. ऑर्गानो-क्लोराइड से दूषित पानी को मानव तंत्रिका तंत्र, जिगर, गुर्दे और मांसपेशियों पर दीर्घकालिक प्रभाव के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है. भारी बारिश और बाढ़ के दौरान लोगों पर इस तरह के प्रदूषित पानी का प्रभाव और भी अधिक होता है.

प्लास्टिक कचरे के कारण बढ़ता प्रदूषण

पानी के दूषित होने का लाभ उठाते हुए, प्लास्टिक की बोतलों में पीने के पानी की बिक्री में भारी उछाल देखा जा रहा है. हालांकि, यह कुछ हद तक, पीने के पानी की जरूरतों को पूरा कर सकता है, लेकिन इससे प्लास्टिक कचरे का प्रदूषण बढ़ रहा है. लगभग अस्सी प्रतिशत प्लास्टिक की बोतलें मिट्टी और पानी के स्रोतों में खतरनाक रसायनों को छोड़ उन्हें दूषित करती हैं. प्लास्टिक को पूरी तरह से पिघलने में लगभग एक हजार साल लगते हैं. मनुष्य, पशुधन और वनस्पतियां उस सीमा तक गंभीर रूप से प्रभावित हैं. वर्तमान में, एक ही वर्ष में दुनिया भर में अरबों टन प्लास्टिक कचरे को ढेर धरती पर लाद दिया जाता है.

जल संसाधनों के संरक्षण और जल प्रदूषण को रोकने के लिए सरकारों और स्थानीय निकायों को कम से कम अब से ध्यान केंद्रित करना चाहिए. समय-समय पर पानी के नमूनों का परीक्षण कर जनता को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की चेष्टा की जानी चाहिए. निषिद्ध कीटनाशकों के उपयोग को कड़ाई से नियंत्रित किया जाना चाहिए. किसानों में रसायनों के उपयोग के दुष्प्रभाव पर जागरूकता पैदा की जानी चाहिए और उन्हें जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. प्लास्टिक के व्यापक उपयोग को रोकने के लिए जन जागरूकता अभियान तेज किया जाना चाहिए.

- डॉ. जेड.एस. शिवप्रसाद (चिकित्सा क्षेत्र विशेषज्ञ)

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