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विशेष लेख :  मिड-डे मील में बदलाव आवश्यक - एमडीएम पर विशेष लेख

मिड-डे मील योजना करीब 25 साल पहले आई थी. इसका उद्देश्य उन बच्चों को शिक्षित करना था, जो भूख की वजह से स्कूल नहीं जा पाते थे. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी कई राज्यों में इस योजना के कार्यान्वयन में भारी कमी देखी जा रही है. शुरुआत में 'प्रारंभिक शिक्षा के लिए पोषण सहायता' के रूप में नामित प्रत्येक छात्र को साल में कम से कम 200 दिनों के लिए 300 कैलोरी और आठ से 12 ग्राम प्रोटीन प्रदान किया जाना था. बेसिक कक्षा के बच्चों के लिए 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन तथा प्राथमिक कक्षा के छात्रों के लिए 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध करवाना.

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प्रतीकात्मक फोटो
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Published : Dec 27, 2019, 7:30 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए दोपहर का भोजन कानूनी अधिकार है. लेकिन कई राज्यों में इस योजना को उस तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है. दस साल पुरानी केंद्र सरकार के एक अध्ययन ने खुद पुष्टि की कि लगभग सत्रह राज्यों में बच्चों को आधा भोजन परोसा जाता है. कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि निरीक्षण और कमियों में निगरानी की कमी की वजह से भोजन की गुणवत्ता कमजोर होती है. हालांकि सरकारें दावा करती हैं कि 11 लाख से अधिक स्कूलों में लगभग नौ करोड़ छात्रों के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं. लेकिन यूपी में ऐसी घटनाएं हुईं, जिसे जानकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे. एक लीटर दूध में पानी मिलाकर 81 बच्चों को पिलाया गया..

देशभर में लगभग तीन-चौथाई बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार-38 प्रतिशत आबादी कम वजन के शिकार है. उन्हें स्वादिष्ट संतुलित आहार अप्राप्य है. हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि यदि उन्हें दोपहर में उचित भोजन दिया जाए (चावल और रोटी की जगह प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ) मिले, तो उनकी वृद्धि कम से कम 50 फीसदी अधिक होगी.

क्या हम सही पोषण प्रदान कर रहे हैं?

इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स और 'अक्षय पात्र' का एक संयुक्त अध्ययन बताता है कि अनाज से भरपूर आहार बच्चों को कितना बेहतर महसूस करा सकता है. जो छात्र सांबर-चावल खाते हैं, उनके मुकाबले वैसे छात्र जो बाजरा से तैयार इडली, खिचिड़ी और उपमा जैसे अनाज खाते हैं, उनमें पोषक तत्व अधिक पाए जाते हैं. यह अध्ययन बड़े पैमाने पर सुधारात्मक और तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देता है.
वैश्विक स्तर पर, यह देखा जाता है कि प्रत्येक एक लाख व्यक्तियों में, लगभग 178 सदस्य वायरल संक्रमणों से पीड़ित हैं और औसतन लगभग 539 लोग जीवन शैली के विकारों से पीड़ित हैं. भारत में ऐसी मौतों की संख्या क्रमशः 253 और 682 है. दैनिक आहार में बाजरा के सेवन के माध्यम से समाधान का सुझाव दिया जाता है ताकि कम उम्र में मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याओं का सामना किया जा सके. खासकर तब जबकि अधिक खाने की आदत पहले के मुकाबले धीरे-धीरे लोकप्रियता में बढ़ रही है.

'नीती आयोग' इस दावे की पुरजोर वकालत करता है कि नियमित आहार में बाजरा, मसूर और अनाज जैसे कि फिंगर मिलेट (बाजरा), फोक्सटेल बाजरा, शोरघम को अधिक से अधिक शामिल किया जाए. यह गर्भवती महिलाओं में गंभीर लक्षणों को कम कर सकता है और बच्चों में विकास की संभावनाओं को बढ़ा सकता है.

भारत में, जो कभी अनाज की खपत के लिए व्यापक रूप से जाना जाता था, यहां चावल और गेहूं की खपत कई दशकों में तेजी से वृद्धि हुई है. मिड-डे मील योजना में भी चावल और गेहूं की अधिक खपत होती है. हालांकि, मानसिक और शारीरिक विकास के लिए बच्चों के लिए मिड-डे योजना में बाजरा का समावेश बहुत जरूरी है. पौष्टिक भोजन और अच्छी शिक्षा के अधिकार के लिए काम कर रहे लाखों नवजात की दुर्दशा को सुधारना बहुत जरूरी है. अन्यथा यह भारत की प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं होगा. पूरे देश की दुर्दशा को दूर करने की पहल के लिए - मध्यान्ह भोजन में बाजरा युक्त आहार को शामिल करना त्वरित और तत्काल कदम उठाया जाना चाहिए.

पढ़ें-विशेष लेख : महात्मा गांधी के सपनों का स्वच्छ भारत अभी हकीकत से दूर

देश की 14 मिलियन हेक्टेयर फसल में से लगभग तीन-चौथाई वर्षा पर निर्भर है. हर साल खरीफ और रबी मौसम में, एक गैर-पारिस्थितिक संतुलन होता है, और फसलें इस कारण से प्रभावित होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप किसानों और किसानों की वित्तीय गिरावट होती है. धान और गन्ना जैसी फसलों की खेती करने वाले किसानों को पानी चाहिए और यह पानी न तो ग्राउंड से उपलब्ध हो पाती है और न ही बारिश से. जाहिर है, कम बारिश में बाजरा की खेती किसानों को बड़ी राहत प्रदान कर सकता है. सोरघम की भी खेती की जा सकती है.

कर्नाटक 2020 तक अपने मिड-डे मील योजना में अनाज को शामिल करने की तैयारी कर रहा है. बारह राज्यों में 16 लाख से अधिक बच्चों के लिए गेहूं और चावल से बना खाना की आपूर्ति करने वाले अक्षय चैरिटेबल फाउंडेशन का कहना है कि वे बाजरा युक्त भोजन देने के लिए तैयार हैं, बशर्ते सरकार उन्हें कच्चा अनाज उपलब्ध करवाए. यदि पूरे देश में यह व्यवस्था अपनानी है, तो कृषि क्षेत्र को बढ़ाना होगा. अनाज की खेती को बढ़ाने पर जोर देना होगा. आंगनवाड़ी छात्रावास में भोजन को बदलने के लिए काम करना होगा. नरेंद्र मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का वादा किया है. यदि सरकार किसानों द्वारा आपूर्ति किए गए सभी प्रकार के अनाज और बाजरा के लिए समर्थन मूल्य प्रदान करने के लिए आवंटन तंत्र को बढ़ा सकती है, तो यह दो तरफा फायदे का सौदा होगा. किसानों की भी आमदनी बढ़ेगी और बच्चों का भी स्वास्थ्य सुधरेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए दोपहर का भोजन कानूनी अधिकार है. लेकिन कई राज्यों में इस योजना को उस तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है. दस साल पुरानी केंद्र सरकार के एक अध्ययन ने खुद पुष्टि की कि लगभग सत्रह राज्यों में बच्चों को आधा भोजन परोसा जाता है. कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि निरीक्षण और कमियों में निगरानी की कमी की वजह से भोजन की गुणवत्ता कमजोर होती है. हालांकि सरकारें दावा करती हैं कि 11 लाख से अधिक स्कूलों में लगभग नौ करोड़ छात्रों के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं. लेकिन यूपी में ऐसी घटनाएं हुईं, जिसे जानकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे. एक लीटर दूध में पानी मिलाकर 81 बच्चों को पिलाया गया..

देशभर में लगभग तीन-चौथाई बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार-38 प्रतिशत आबादी कम वजन के शिकार है. उन्हें स्वादिष्ट संतुलित आहार अप्राप्य है. हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि यदि उन्हें दोपहर में उचित भोजन दिया जाए (चावल और रोटी की जगह प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ) मिले, तो उनकी वृद्धि कम से कम 50 फीसदी अधिक होगी.

क्या हम सही पोषण प्रदान कर रहे हैं?

इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स और 'अक्षय पात्र' का एक संयुक्त अध्ययन बताता है कि अनाज से भरपूर आहार बच्चों को कितना बेहतर महसूस करा सकता है. जो छात्र सांबर-चावल खाते हैं, उनके मुकाबले वैसे छात्र जो बाजरा से तैयार इडली, खिचिड़ी और उपमा जैसे अनाज खाते हैं, उनमें पोषक तत्व अधिक पाए जाते हैं. यह अध्ययन बड़े पैमाने पर सुधारात्मक और तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देता है.
वैश्विक स्तर पर, यह देखा जाता है कि प्रत्येक एक लाख व्यक्तियों में, लगभग 178 सदस्य वायरल संक्रमणों से पीड़ित हैं और औसतन लगभग 539 लोग जीवन शैली के विकारों से पीड़ित हैं. भारत में ऐसी मौतों की संख्या क्रमशः 253 और 682 है. दैनिक आहार में बाजरा के सेवन के माध्यम से समाधान का सुझाव दिया जाता है ताकि कम उम्र में मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याओं का सामना किया जा सके. खासकर तब जबकि अधिक खाने की आदत पहले के मुकाबले धीरे-धीरे लोकप्रियता में बढ़ रही है.

'नीती आयोग' इस दावे की पुरजोर वकालत करता है कि नियमित आहार में बाजरा, मसूर और अनाज जैसे कि फिंगर मिलेट (बाजरा), फोक्सटेल बाजरा, शोरघम को अधिक से अधिक शामिल किया जाए. यह गर्भवती महिलाओं में गंभीर लक्षणों को कम कर सकता है और बच्चों में विकास की संभावनाओं को बढ़ा सकता है.

भारत में, जो कभी अनाज की खपत के लिए व्यापक रूप से जाना जाता था, यहां चावल और गेहूं की खपत कई दशकों में तेजी से वृद्धि हुई है. मिड-डे मील योजना में भी चावल और गेहूं की अधिक खपत होती है. हालांकि, मानसिक और शारीरिक विकास के लिए बच्चों के लिए मिड-डे योजना में बाजरा का समावेश बहुत जरूरी है. पौष्टिक भोजन और अच्छी शिक्षा के अधिकार के लिए काम कर रहे लाखों नवजात की दुर्दशा को सुधारना बहुत जरूरी है. अन्यथा यह भारत की प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं होगा. पूरे देश की दुर्दशा को दूर करने की पहल के लिए - मध्यान्ह भोजन में बाजरा युक्त आहार को शामिल करना त्वरित और तत्काल कदम उठाया जाना चाहिए.

पढ़ें-विशेष लेख : महात्मा गांधी के सपनों का स्वच्छ भारत अभी हकीकत से दूर

देश की 14 मिलियन हेक्टेयर फसल में से लगभग तीन-चौथाई वर्षा पर निर्भर है. हर साल खरीफ और रबी मौसम में, एक गैर-पारिस्थितिक संतुलन होता है, और फसलें इस कारण से प्रभावित होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप किसानों और किसानों की वित्तीय गिरावट होती है. धान और गन्ना जैसी फसलों की खेती करने वाले किसानों को पानी चाहिए और यह पानी न तो ग्राउंड से उपलब्ध हो पाती है और न ही बारिश से. जाहिर है, कम बारिश में बाजरा की खेती किसानों को बड़ी राहत प्रदान कर सकता है. सोरघम की भी खेती की जा सकती है.

कर्नाटक 2020 तक अपने मिड-डे मील योजना में अनाज को शामिल करने की तैयारी कर रहा है. बारह राज्यों में 16 लाख से अधिक बच्चों के लिए गेहूं और चावल से बना खाना की आपूर्ति करने वाले अक्षय चैरिटेबल फाउंडेशन का कहना है कि वे बाजरा युक्त भोजन देने के लिए तैयार हैं, बशर्ते सरकार उन्हें कच्चा अनाज उपलब्ध करवाए. यदि पूरे देश में यह व्यवस्था अपनानी है, तो कृषि क्षेत्र को बढ़ाना होगा. अनाज की खेती को बढ़ाने पर जोर देना होगा. आंगनवाड़ी छात्रावास में भोजन को बदलने के लिए काम करना होगा. नरेंद्र मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का वादा किया है. यदि सरकार किसानों द्वारा आपूर्ति किए गए सभी प्रकार के अनाज और बाजरा के लिए समर्थन मूल्य प्रदान करने के लिए आवंटन तंत्र को बढ़ा सकती है, तो यह दो तरफा फायदे का सौदा होगा. किसानों की भी आमदनी बढ़ेगी और बच्चों का भी स्वास्थ्य सुधरेगा.

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