ETV Bharat / bharat

अधिकारियों की लापरवाही से गई मासूम सुजीत की जान, SC में दायर जनहित याचिका - सुजीत विल्सन की मौत पर दायर याचिका

तमिलनाडु में खुले बोरवेल में मासूम के गिरने और फिर उसे बचाने में नाकाम रही सरकार पर हर ओर से सवाल उठ रहे हैं. इसके चलते मामले को लेकर SC में जनहित याचिका दायर की गई है. जानें क्या है याचिका के अहम बिंदु...

डिजाइन इमेज (सौ. ETV Bharat ENGLISH)
author img

By

Published : Oct 30, 2019, 10:28 AM IST

चेन्नई : तमिलनाडु में बोरवेल में गिरे बच्चे को बचाने में असफल रही सरकार पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. इस पीआईएल में अधिकारियों की लापरवाही का मुद्दा उठाया गया है.

इसके साथ ही याचिका में पब्लिक सूट की शीर्ष अदालत से अपील गई है कि वह मामले से संबंधित अधिकारियों को भविष्य में ऐसी घटना फिर न होने के कड़े आदेश दें.

आपको बता दें, याचिका एडवोकेट जी एस मणि (Ad. G.S Mani) द्वारा यह कहते हुए दायर की गई थी कि 25 अक्टूबर को एक दो साल का लड़का सुजीत विल्सन, तमिलनाडु में मनाप्पराई के पास नादुकट्टुपट्टी में एक खुले बोरवेल में गिर गया. 80 घंटों के बचाव अभियान के बाद उसके शरीर को बाहर निकाला गया है.

अधिवक्ता मणि ने इसी तरह की एक और घटना का भी उल्लेख किया, जिसमें पंजाब के संगरूर में बोरवेल में 110 घंटे तक फंसे रहने के बाद दो साल के मासूम की मौत हो गई थी.

गौरतलब है कि इस घटना के बाद शीर्ष अदालत ने 2010 में खुले बोरवेल और ट्यूबवेल में गिरने से बच्चों की मौतों को रोकने के लिए विभिन्न दिशानिर्देश जारी किए थे.

याचिकाकर्ता ने कहा कि कोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं किया गया है. उन्होंने आगे कहा कि न्यायिक फैसले का पालन पूरी भावना से किया जाना चाहिए. केवल कागजी प्रक्रिया से किसी आदेश का पालन नहीं होगा.

पढ़ेंः सुजीत मृत्यु : तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने घर जाकर व्यक्त किया शोक

मणि ने अधिकारियों के खिलाफ अदालत के निर्देशों का पालन नहीं करने के लिए कार्रवाई करने की मांग की है.

साथ ही उन्होंने सुजीत के तत्काल बचाव में विफलता और रिपोर्ट प्राप्त होने पर संबंधित सरकारी अधिकारियों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने के लिए न्यायिक जांच की भी मांग की है.

याचिकाकर्ता ने पर्याप्त उपकरण और विशेषज्ञता के प्रावधान के साथ उचित दिशा-निर्देश और तरीकों का निर्धारण भी किया है.

इस तरह की घटनाओं से बच्चों को बचाने हेतु सुप्रीम कोर्ट के कुछ दिशानिर्देश हैं जो अग्रलिखित हैंः
⦁ भूमि या परिसर का मालिक यदि बोरवेल या ट्यूबवेल के निर्माण का कदम उठाता है तो उसे कम से कम 15 दिन पहले संबंधित अधिकारियों को सूचित करना होगा.
⦁ इसके साथ ही सभी ड्रिलिंग एजेंसियों को जिला प्रशासन या वैधानिक प्राधिकरण के साथ रजिस्ट्रेशन होना जरूरी है.
⦁ कुएं के पास निर्माण के समय साइनबोर्ड का निर्माण अनिवार्य है.
⦁ इससे पहले शीर्ष अदालत ने संबंधित विभाग के कार्यकारियों को सूखे पड़े कुओं का निरीक्षण और निगरानी करने के लिए भी आदेश जारी किया था.

चेन्नई : तमिलनाडु में बोरवेल में गिरे बच्चे को बचाने में असफल रही सरकार पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. इस पीआईएल में अधिकारियों की लापरवाही का मुद्दा उठाया गया है.

इसके साथ ही याचिका में पब्लिक सूट की शीर्ष अदालत से अपील गई है कि वह मामले से संबंधित अधिकारियों को भविष्य में ऐसी घटना फिर न होने के कड़े आदेश दें.

आपको बता दें, याचिका एडवोकेट जी एस मणि (Ad. G.S Mani) द्वारा यह कहते हुए दायर की गई थी कि 25 अक्टूबर को एक दो साल का लड़का सुजीत विल्सन, तमिलनाडु में मनाप्पराई के पास नादुकट्टुपट्टी में एक खुले बोरवेल में गिर गया. 80 घंटों के बचाव अभियान के बाद उसके शरीर को बाहर निकाला गया है.

अधिवक्ता मणि ने इसी तरह की एक और घटना का भी उल्लेख किया, जिसमें पंजाब के संगरूर में बोरवेल में 110 घंटे तक फंसे रहने के बाद दो साल के मासूम की मौत हो गई थी.

गौरतलब है कि इस घटना के बाद शीर्ष अदालत ने 2010 में खुले बोरवेल और ट्यूबवेल में गिरने से बच्चों की मौतों को रोकने के लिए विभिन्न दिशानिर्देश जारी किए थे.

याचिकाकर्ता ने कहा कि कोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं किया गया है. उन्होंने आगे कहा कि न्यायिक फैसले का पालन पूरी भावना से किया जाना चाहिए. केवल कागजी प्रक्रिया से किसी आदेश का पालन नहीं होगा.

पढ़ेंः सुजीत मृत्यु : तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने घर जाकर व्यक्त किया शोक

मणि ने अधिकारियों के खिलाफ अदालत के निर्देशों का पालन नहीं करने के लिए कार्रवाई करने की मांग की है.

साथ ही उन्होंने सुजीत के तत्काल बचाव में विफलता और रिपोर्ट प्राप्त होने पर संबंधित सरकारी अधिकारियों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने के लिए न्यायिक जांच की भी मांग की है.

याचिकाकर्ता ने पर्याप्त उपकरण और विशेषज्ञता के प्रावधान के साथ उचित दिशा-निर्देश और तरीकों का निर्धारण भी किया है.

इस तरह की घटनाओं से बच्चों को बचाने हेतु सुप्रीम कोर्ट के कुछ दिशानिर्देश हैं जो अग्रलिखित हैंः
⦁ भूमि या परिसर का मालिक यदि बोरवेल या ट्यूबवेल के निर्माण का कदम उठाता है तो उसे कम से कम 15 दिन पहले संबंधित अधिकारियों को सूचित करना होगा.
⦁ इसके साथ ही सभी ड्रिलिंग एजेंसियों को जिला प्रशासन या वैधानिक प्राधिकरण के साथ रजिस्ट्रेशन होना जरूरी है.
⦁ कुएं के पास निर्माण के समय साइनबोर्ड का निर्माण अनिवार्य है.
⦁ इससे पहले शीर्ष अदालत ने संबंधित विभाग के कार्यकारियों को सूखे पड़े कुओं का निरीक्षण और निगरानी करने के लिए भी आदेश जारी किया था.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.