नई दिल्लीः जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को केन्द्र सरकार ने खत्म कर दिया गया है. राज्य को दो केद्र शासित प्रदेश लद्दाख और जम्मू कश्मीर में विभाजित कर दिया गया है. सरकार ने यहां पर धारा 144 लागू कर दिया था, जिससे संचार सेवाओं पर रोक लग गई है. इसी बीच में अनुच्छेद 370 को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं कोर्ट में दायर की गईं. ये सभी याचिकाएं जम्मू कश्मीर पर सरकार के फैसले का समर्थन कर रही हैं.
रूट्स इन कश्मीर के प्रवक्ता अमित रैना ने सुप्रीम कोर्ट में कैवीऐट दायर कर कहा कि कोर्ट कोई भी आदेश पारित करने से पहले उनकी भी दलील सुने.
उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि जम्मू कश्मीर को प्राप्त विशेष राज्य को खत्म करने, राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में विभाजन और जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन पर रोक नहीं लगनी चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार के इस फैसले खिलाफ पड़ी याचिकाओं से केन्द्र के फैसले पर रोक नहीं लगनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि सभी मौलिक अधिकार, महिलाओं के प्राप्त सारे अधिकार, एससी-एसटी, पश्चिमी पाकिस्तान से आए हुए सारे शरणार्थियों को अनुच्छेद 370 में उनके अधिकारों का हनन किया गया था.
उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में भारतीय कानून नहीं लागू था, इस कारण से यहां पर जो कानून लागू थे उनका गलत तरीकों से प्रयोग किया गया था. साथ ही उन्होंने कहा कि पिछले 30 वर्षों में कश्मीरी पंडितों की हत्याओं की कोई जांच नहीं की गई है, जिसके लिए उन्होंने 2016 में कोर्ट में याचिका दायर भी की थी.
उन्होंने अपनी याचिका में कश्मीर पंडितों की हत्या की जांच के लिए विशेष टीम गठित करने और फाइलों को फिर से खोलने की मांग भी की थी.
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एसोसिएशन के अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष उस्मान ने कहा कि ऑल इंडिया बार एसोसिएशन ने भी अनुच्छेद 370 को खत्म करने के सरकार के कदम का समर्थन किया है, वे चाहते हैं कि कश्मीरी भी भारतीय के साथ कदम मिलाकर साथ चलें.
उन्होंने कहा कश्मीर पर हिंसा दर्शानें वाली सभी रिपोर्ट गलत हैं. कर्फ्यू के द्वारा सरकार समाज में गलत भावनाए फैलाने वालों को रोक रही है और कहा कि सोशल मीडिया पर जम्मू कश्मीर संबंधित 90% सामग्री अफवाह थी.