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कोविड-19 के मरीजों पर पतंजलि की दवाओं के 'क्लीनिकल ट्रायल' की मंजूरी नहीं

कोविड-19 के मरीजों पर पतंजलि की आयुर्वेदिक उपचार पद्धति के इस्तेमाल संबंधी प्रस्ताव को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. सोशल मीडिया पर बवाल मचने के बाद जिला प्रशासन ने इस बात से इंकार किया कि उसने योग गुरु रामदेव के पतंजलि समूह की कुछ आयुर्वेदिक दवाओं को कोविड-19 के मरीजों पर चिकित्सकीय रूप से परखे जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है.

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बाबा रामदेव
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Published : May 28, 2020, 7:36 AM IST

Updated : May 28, 2020, 7:48 AM IST

नई दिल्ली/ इंदौर : योग गुरु रामदेव का पतंजलि समूह कोविड-19 से बेहद प्रभावित शहरों में से एक इंदौर में इस महामारी के मरीजों पर अपनी आयुर्वेदिक उपचार पद्धति का इस्तेमाल करना चाहता है और उसने इस संबंध में प्रस्ताव भी दिया है. लेकिन इस मामले में विवाद पैदा होने के बाद प्रदेश सरकार का कहना है कि अभी पतंजलि को इस सिलसिले में अंतिम मंजूरी नहीं दी गई है और प्रस्ताव पर विचार हो रहा है.

सोशल मीडिया पर बवाल मचने के बाद जिला प्रशासन ने शनिवार को इस बात से इंकार किया कि उसने योग गुरु रामदेव के पतंजलि समूह की कुछ आयुर्वेदिक दवाओं को कोविड-19 के मरीजों पर चिकित्सकीय रूप से परखे जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है.

स्थानीय मीडिया में छपी खबरों का हवाला देते हुए सोशल मीडिया पर कई लोगों ने जिला प्रशासन पर निशाना साधा है. इन खबरों में दावा किया गया है कि कुछ आयुर्वेदिक दवाओं को कोविड-19 के मरीजों पर परखे जाने को लेकर पतंजलि समूह के प्रस्ताव को प्रशासन ने हरी झंडी दिखा दी है.

सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं का कहना है कि मरीजों पर दवाओं के चिकित्सकीय परीक्षण की मंजूरी सरकार की नियामकीय संस्थाएं देती हैं और प्रशासन को इस तरह के किसी भी प्रस्ताव को अनुमति देने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है.

इस मुद्दे को लेकर विवाद बढ़ने के बाद जिलाधिकारी मनीष सिंह ने दावा किया कि उन्होंने इंदौर में कोविड-19 के मरीजों पर पतंजलि की आयुर्वेदिक दवाओं के क्लीनिकल ट्रायल के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी थी और इस बारे में भ्रम फैलाने की कोशिश की गई.

मनीष सिंह ने कहा, अव्वल तो एलोपैथी दवाओं की तरह आयुर्वेदिक औषधियों के मरीजों पर क्लीनिकल ट्रायल (चिकित्सकीय परीक्षण) किये ही नहीं जाते. बहरहाल, हमने पतंजलि समूह की ओर से भेजे गये प्रस्ताव पर इस तरह के किसी ट्रायल की फिलहाल कोई औपचारिक मंजूरी नहीं दी है.

उधर, पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक (एमडी) आचार्य बालकृष्ण ने से कहा, हम इंदौर में कोविड-19 के मरीजों पर आयुर्वेदिक उपचार पद्धति का कोई एकदम नया प्रयोग या परीक्षण नहीं करना चाहते हैं. इस महामारी को लेकर हमारी प्रस्तावित उपचार पद्धति लाखों लोगों द्वारा पहले से इस्तेमाल की जा रहीं पारम्परिक आयुर्वेदिक दवाओं पर आधारित है। हम इस पद्धति को वैज्ञानिक साक्ष्यों के जरिये वैश्विक स्तर पर स्थापित करना चाहते हैं.

बालकृष्ण ने किसी का नाम लिये बगैर कहा, इस वैज्ञानिक प्रक्रिया के दस्तावेजीकरण के लिये हम तमाम नियम-कायदों का पालन कर रहे हैं। इंदौर में पतंजलि को लेकर बेवजह खड़े किये गये विवाद के पीछे बहुराष्ट्रीय दवा निर्माता कम्पनियों की कठपुतलियों, दवा माफिया और ऐसे तत्वों का हाथ है जो किसी भी कीमत पर आयुर्वेद को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते.

अधिकारियों ने मंगलवार को बताया कि इंदौर में कोविड-19 के मरीजों पर पतंजलि की प्रस्तावित आयुर्वेदिक उपचार पद्धति में गिलोय, अश्वगंधा और तुलसी सरीखी पारम्परिक जड़ी-बूटियों से बनी दवाइयों के साथ ही नाक में डाले जाने वाले औषधीय तेल का उपयोग शामिल है.

वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह भी इस मसले को ट्विटर पर उठाते हुए कह चुके हैं कि सत्ताधारियों के करीब के किसी व्यक्ति को उपकृत करने के लिये प्रदेश सरकार को इंदौर के निवासियों के साथ गिनी पिग (चूहे और गिलहरी सरीखे जानवरों की एक प्रजाति जिस पर दवाओं, टीकों आदि का वैज्ञानिक परीक्षण किया जाता है) की तरह बर्ताव नहीं करना चाहिये.

उधर सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ ही सूबे के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं ने इस मामले को लेकर सवाल उठाये हैं। इन लोगों का आरोप है कि जिला प्रशासन ने कोविड-19 के मरीजों पर आयुर्वेदिक दवाओं को परखे जाने (क्लीनिकल ट्रायल) को लेकर पतंजलि समूह के प्रस्ताव को अनधिकृत रूप से हरी झंडी दिखा दी और बवाल मचने पर इसे निरस्त कर दिया.

गैर सरकारी संगठन जन स्वास्थ्य अभियान मध्यप्रदेश ने केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और केंद्रीय आयुष मंत्रालय को शिकायत कर इस कथित प्रशासनिक मंजूरी की जांच की मांग की है.

संगठन के सह-समन्वयक अमूल्य निधि ने कहा, मीडिया की खबरों में कहा गया है कि इंदौर के जिलाधिकारी मनीष सिंह ने पतंजलि समूह की कुछ आयुर्वेदिक दवाओं को कोविड-19 के मरीजों पर परखे जाने के प्रस्ताव को पहले मंजूरी दी। फिर इसे निरस्त कर दिया.

उन्होंने कहा, "यह सरासर गलत है क्योंकि मरीजों पर दवाओं के क्लीनिकल ट्रायल के लिये डीसीजीआई से मंजूरी हासिल किये जाने के साथ ही अन्य कानूनी प्रक्रियाओं का भी पालन करना कानूनन अनिवार्य होता है। ऐसे में जिला प्रशासन को इस तरह दवा परीक्षण के किसी प्रस्ताव को अनुमति देने या इसे निरस्त करने का कोई कानूनी अधिकार ही नहीं है.

वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह भी इस मसले को ट्विटर पर उठाते हुए कह चुके हैं कि "सत्ताधारियों के करीब के किसी व्यक्ति को उपकृत करने के लिये" प्रदेश सरकार को इंदौर के निवासियों के साथ गिनी पिग (चूहे और गिलहरी सरीखे जानवरों की एक प्रजाति जिस पर दवाओं, टीकों आदि का वैज्ञानिक परीक्षण किया जाता है) की तरह बर्ताव नहीं करना चाहिये.

इस बीच इंदौर के शासकीय महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय की डीन ज्योति बिंदल ने बताया कि उन्होंने प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखा है। हालांकि, इस प्रस्ताव को अब तक अनुमति नहीं दी गयी है.

उन्होंने कहा, अगर अनुमति मिलती है, तो हम नियम-कायदों के तहत आगामी कदम उठायेंगे.

गौरतलब है कि इंदौर में इलाज की आड़ में खासकर गरीब तबके के मरीजों पर निजी कम्पनियों की दवाओं के अनैतिक परीक्षणों के कई मामले वर्ष 2010 से 2013 के बीच सामने आये थे. इसके बाद शासकीय महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय समेत अन्य चिकित्सा संस्थानों में नये दवा परीक्षणों पर सरकारी पाबंदी लगा दी गयी थी.

नई दिल्ली/ इंदौर : योग गुरु रामदेव का पतंजलि समूह कोविड-19 से बेहद प्रभावित शहरों में से एक इंदौर में इस महामारी के मरीजों पर अपनी आयुर्वेदिक उपचार पद्धति का इस्तेमाल करना चाहता है और उसने इस संबंध में प्रस्ताव भी दिया है. लेकिन इस मामले में विवाद पैदा होने के बाद प्रदेश सरकार का कहना है कि अभी पतंजलि को इस सिलसिले में अंतिम मंजूरी नहीं दी गई है और प्रस्ताव पर विचार हो रहा है.

सोशल मीडिया पर बवाल मचने के बाद जिला प्रशासन ने शनिवार को इस बात से इंकार किया कि उसने योग गुरु रामदेव के पतंजलि समूह की कुछ आयुर्वेदिक दवाओं को कोविड-19 के मरीजों पर चिकित्सकीय रूप से परखे जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है.

स्थानीय मीडिया में छपी खबरों का हवाला देते हुए सोशल मीडिया पर कई लोगों ने जिला प्रशासन पर निशाना साधा है. इन खबरों में दावा किया गया है कि कुछ आयुर्वेदिक दवाओं को कोविड-19 के मरीजों पर परखे जाने को लेकर पतंजलि समूह के प्रस्ताव को प्रशासन ने हरी झंडी दिखा दी है.

सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं का कहना है कि मरीजों पर दवाओं के चिकित्सकीय परीक्षण की मंजूरी सरकार की नियामकीय संस्थाएं देती हैं और प्रशासन को इस तरह के किसी भी प्रस्ताव को अनुमति देने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है.

इस मुद्दे को लेकर विवाद बढ़ने के बाद जिलाधिकारी मनीष सिंह ने दावा किया कि उन्होंने इंदौर में कोविड-19 के मरीजों पर पतंजलि की आयुर्वेदिक दवाओं के क्लीनिकल ट्रायल के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी थी और इस बारे में भ्रम फैलाने की कोशिश की गई.

मनीष सिंह ने कहा, अव्वल तो एलोपैथी दवाओं की तरह आयुर्वेदिक औषधियों के मरीजों पर क्लीनिकल ट्रायल (चिकित्सकीय परीक्षण) किये ही नहीं जाते. बहरहाल, हमने पतंजलि समूह की ओर से भेजे गये प्रस्ताव पर इस तरह के किसी ट्रायल की फिलहाल कोई औपचारिक मंजूरी नहीं दी है.

उधर, पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक (एमडी) आचार्य बालकृष्ण ने से कहा, हम इंदौर में कोविड-19 के मरीजों पर आयुर्वेदिक उपचार पद्धति का कोई एकदम नया प्रयोग या परीक्षण नहीं करना चाहते हैं. इस महामारी को लेकर हमारी प्रस्तावित उपचार पद्धति लाखों लोगों द्वारा पहले से इस्तेमाल की जा रहीं पारम्परिक आयुर्वेदिक दवाओं पर आधारित है। हम इस पद्धति को वैज्ञानिक साक्ष्यों के जरिये वैश्विक स्तर पर स्थापित करना चाहते हैं.

बालकृष्ण ने किसी का नाम लिये बगैर कहा, इस वैज्ञानिक प्रक्रिया के दस्तावेजीकरण के लिये हम तमाम नियम-कायदों का पालन कर रहे हैं। इंदौर में पतंजलि को लेकर बेवजह खड़े किये गये विवाद के पीछे बहुराष्ट्रीय दवा निर्माता कम्पनियों की कठपुतलियों, दवा माफिया और ऐसे तत्वों का हाथ है जो किसी भी कीमत पर आयुर्वेद को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते.

अधिकारियों ने मंगलवार को बताया कि इंदौर में कोविड-19 के मरीजों पर पतंजलि की प्रस्तावित आयुर्वेदिक उपचार पद्धति में गिलोय, अश्वगंधा और तुलसी सरीखी पारम्परिक जड़ी-बूटियों से बनी दवाइयों के साथ ही नाक में डाले जाने वाले औषधीय तेल का उपयोग शामिल है.

वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह भी इस मसले को ट्विटर पर उठाते हुए कह चुके हैं कि सत्ताधारियों के करीब के किसी व्यक्ति को उपकृत करने के लिये प्रदेश सरकार को इंदौर के निवासियों के साथ गिनी पिग (चूहे और गिलहरी सरीखे जानवरों की एक प्रजाति जिस पर दवाओं, टीकों आदि का वैज्ञानिक परीक्षण किया जाता है) की तरह बर्ताव नहीं करना चाहिये.

उधर सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ ही सूबे के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं ने इस मामले को लेकर सवाल उठाये हैं। इन लोगों का आरोप है कि जिला प्रशासन ने कोविड-19 के मरीजों पर आयुर्वेदिक दवाओं को परखे जाने (क्लीनिकल ट्रायल) को लेकर पतंजलि समूह के प्रस्ताव को अनधिकृत रूप से हरी झंडी दिखा दी और बवाल मचने पर इसे निरस्त कर दिया.

गैर सरकारी संगठन जन स्वास्थ्य अभियान मध्यप्रदेश ने केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और केंद्रीय आयुष मंत्रालय को शिकायत कर इस कथित प्रशासनिक मंजूरी की जांच की मांग की है.

संगठन के सह-समन्वयक अमूल्य निधि ने कहा, मीडिया की खबरों में कहा गया है कि इंदौर के जिलाधिकारी मनीष सिंह ने पतंजलि समूह की कुछ आयुर्वेदिक दवाओं को कोविड-19 के मरीजों पर परखे जाने के प्रस्ताव को पहले मंजूरी दी। फिर इसे निरस्त कर दिया.

उन्होंने कहा, "यह सरासर गलत है क्योंकि मरीजों पर दवाओं के क्लीनिकल ट्रायल के लिये डीसीजीआई से मंजूरी हासिल किये जाने के साथ ही अन्य कानूनी प्रक्रियाओं का भी पालन करना कानूनन अनिवार्य होता है। ऐसे में जिला प्रशासन को इस तरह दवा परीक्षण के किसी प्रस्ताव को अनुमति देने या इसे निरस्त करने का कोई कानूनी अधिकार ही नहीं है.

वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह भी इस मसले को ट्विटर पर उठाते हुए कह चुके हैं कि "सत्ताधारियों के करीब के किसी व्यक्ति को उपकृत करने के लिये" प्रदेश सरकार को इंदौर के निवासियों के साथ गिनी पिग (चूहे और गिलहरी सरीखे जानवरों की एक प्रजाति जिस पर दवाओं, टीकों आदि का वैज्ञानिक परीक्षण किया जाता है) की तरह बर्ताव नहीं करना चाहिये.

इस बीच इंदौर के शासकीय महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय की डीन ज्योति बिंदल ने बताया कि उन्होंने प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखा है। हालांकि, इस प्रस्ताव को अब तक अनुमति नहीं दी गयी है.

उन्होंने कहा, अगर अनुमति मिलती है, तो हम नियम-कायदों के तहत आगामी कदम उठायेंगे.

गौरतलब है कि इंदौर में इलाज की आड़ में खासकर गरीब तबके के मरीजों पर निजी कम्पनियों की दवाओं के अनैतिक परीक्षणों के कई मामले वर्ष 2010 से 2013 के बीच सामने आये थे. इसके बाद शासकीय महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय समेत अन्य चिकित्सा संस्थानों में नये दवा परीक्षणों पर सरकारी पाबंदी लगा दी गयी थी.

Last Updated : May 28, 2020, 7:48 AM IST
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