नई दिल्लीः संसदीय स्थायी समिति ने वर्चुअल अदालतों पर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें सुझाव दिया गया कि कोविड-19 महामारी के खत्म होने के बाद भी वर्चुअल सुनवाई को जारी रखा जा सकता है क्योंकि इससे लंबित मामले कम किये जा सकते हैं.
समिति का मानना है कि वर्तमान व्यवस्था को प्रायोगिक आधार पर सभी पक्षों की सहमति के साथ जारी रखना चाहिए. अपीलकर्ताओं के कुछ मामले जहां सुनवाई के लिए भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है वहां ऑनलाइन को भी बढ़ावा देना चाहिए.
वहीं समिति ने कहा कि कानून संबंधी जटिल मामलों के लिए हाइब्रिड मॉडल को अपनाया जा सकता है जिसमें सुनवाई के लोगों को बुलाया जा सकता है लेकिन सम्मन, वकालतनामा आदि को डिजिटलाइज किया जा सकता है.
समिति ने टीडीसैट, आईपीएबी, एनसीएलएटी आदि जैसे विभिन्न न्यायाधिकरणों में भी वर्चुअल सुनवाई का उपयोग करने की सिफारिश की है क्योंकि इससे कम लागत आएगी, अदालत में भीड़ कम लगेगी और कार्यदक्षता भी बढ़ेगी.
वर्चुअल सुनवाई के दौरान पेश आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए समिति ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को विश्व स्तर पर आजमाए गए उपकरणों की सेवा बढ़ाने की सिफारिश की जैसे कि इमर्सिव टेली प्रेजेंस टेक्नॉलोजी, संवर्धित वास्तविकता प्रणाली आदि.
ई कोर्ट्स इंटीग्रेटेड मिशन मोड परियोजना के लिए समिति ने अपनी नाखुशी व्यक्त की और टिप्पणी की कि यह 'कछुआ की गति' से काम कर रही है. उचित बुनियादी ढांचे के बिना वर्तुअल सुनवाई असंभव है.
ई कोर्ट इंटीग्रेटेड मिशन मोड प्रोजेक्ट एक पैन इंडिया ई गवर्नेंस प्रोजेक्ट है जिसे उच्च न्यायालयों और जिला / अधीनस्थ न्यायालयों में लागू किया जा रहा है. सर्वोच्च न्यायालय की ई समिति द्वारा भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना के आधार पर परियोजना की अवधारणा की गई है.
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न्याय विभाग द्वारा परियोजना की वित्त उपलब्ध कराया जाता है और इसकी निगरानी की जाती है. इसे लागू करने का काम राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) का है. समिति ने न्याय विभाग को दृढ़ता से जांच करने और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उपाय सुनिश्चित करने की सिफारिश की है.
सिफारिशों के आधार पर समिति ने सरकार से डब्ल्यूएएन कनेक्टिविटी, बेहतर गुणवत्ता वाले वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा प्रदान करने, सेवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए निजी क्षेत्र में रोपिंग, ऑनलाइन सिस्टम आदि के लिए छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए कंप्यूटर कोर्स शुरू करने को कहा है.
रिपोर्ट में विभिन्न कमियों जैसे डिजिटल इंडिया में विशेष रूप से ग्रामीण भारत, तकनीकी क्षमता, खराब कनेक्टिविटी, डेटा गोपनीयता, सुरक्षा आदि को शामिल किया है और संबंधित मंत्रालयों को इसे दुरूस्त करने का सुझाव दिया है. प्रमुख सिफारिशों में से एक में निजी दस्तावेजों में स्वदेशी सॉफ्टवेयर विकसित करना शामिल है.