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Exclusive : पांच लाख पौधे लगाने वाले राजस्थान के हिम्मताराम को पद्म श्री - राजस्थान के हिम्मताराम को पद्मश्री

बीती तीन जनवरी को देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सामने बैठकर ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण संरक्षण जैसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा करते समय नागौर के हिम्मताराम भाम्भू को इस बात का बिल्कुल भी पता नहीं था कि कुछ ही दिनों में उन्हें पद्मश्री से नवाजा जाएगा, लेकिन शनिवार को देशभर में पद्मश्री के लिए चुने गई शख्सियतों में एक नाम राजस्थान के नागौर जिले के रहने वाले पर्यावरण प्रेमी हिम्मताराम भाम्भू का नाम भी शामिल है. देखिए हिम्माताराम की ईटीवी भारत के साथ यह खास बातचीत...

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हिम्मताराम भांभू
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Published : Jan 26, 2020, 6:25 PM IST

Updated : Feb 25, 2020, 5:11 PM IST

जयपुर : राजस्थान के नागौर जिले के छोटे से गांव सुखवासी में साल 1975 में पीपल का एक पौधा रोप कर उसे पेड़ बनाने का संकल्प लेने वाले हिम्मताराम भाम्भू के जेहन में महज 19 साल की उम्र में पर्यावरण संरक्षण का एक ऐसा बीज पड़ा, जो आज एक विशाल वटवृक्ष बन चुका है. अपने इस 45 साल के संघर्ष में उन्होंने साढ़े 5 लाख से ज्यादा पौधे लगाए. जिनमें से करीब तीन लाख पेड़ आज भी हरे-भरे हैं.

वन्यजीवों के शिकार की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए भी वह हमेशा पहली पंक्ति में खड़े रहे. उनके इसी संघर्ष का नतीजा है कि आज उन्हें 69 साल की उम्र में देश के प्रतिष्ठित सम्मान में से एक पद्मश्री देने की घोषणा की गई है. इन 45 साल में हिम्मताराम भाम्भू ने हर दिन पर्यावरण, पेड़ और जीव रक्षा के लिए जिया है. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 25 जनवरी को जब यह घोषणा हुई, तो उन्हें लगा जैसे पेड़, पर्यावरण और जीवों की रक्षा के लिए किए गए उनके 45 साल के संघर्ष को नई दिशा मिल गई है.

हिम्मताराम भाम्भू से ईटीवी भारत की खास बातचीत.

छह हेक्टेयर जमीन पर लगाए 11 हजार पौधे
मुद्दा पेड़ लगाने का हो या पेड़ों की रक्षा का, बात पर्यावरण संरक्षण की हो, या जीवों के शिकार के विरोध की. हिम्मताराम हमेशा हिम्मत के साथ आगे ही खड़े दिखे. उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग 65 पर नागौर से करीब 20 किमी दूर हरिमा गांव में खुद की खरीदी करीब छह हेक्टेयर जमीन पर 11 हजार पौधे लगाए, जो आज हरे भरे पेड़ बन चुके हैं. इसे उन्होंने पर्यावरण प्रशिक्षण केंद्र नाम दिया है. आज यहां एक घना जंगल बन गया है. जहां हजारों पशु पक्षी रहते हैं. आज भी उनके दिन की शुरुआत यहां रहने वाले मूक प्राणियों के लिए दाना-पानी और चारे के इंतजाम करने से ही होती है.

पढ़ें : जॉर्ज, जेटली व सुषमा सहित सात को पद्म विभूषण, 16 पद्म भूषण, 118 को पद्म श्री

इस साल की शुरुआत में हिम्मताराम भाम्भू को राष्ट्रपति भवन से बुलावा मिला और तीन जनवरी को उन्होंने देश के प्रथम नागरिक महामहिम रामनाथ कोविंद से ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण संरक्षण जैसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा की थी.

2030 तक प्रदेशभर में दो लाख पौधे लगाने का लक्ष्य
अब उनका कहना है कि उनका लक्ष्य 2030 तक प्रदेशभर में दो लाख पौधे लगाकर हरे-भरे पेड़ बनाना है. इसके साथ ही वह पॉलीथिन मुक्त भारत के लिए एक अभियान भी शुरू करेंगे. जिसके तहत पॉलीथिन से होने वाले नुकसान को लेकर आमजन को जागरूक करेंगे. इसके साथ ही कपड़े से बने थैले का भी वितरण किया जाएगा. हिम्मताराम भाम्भू का कहना है कि युवाओं को नशे की लत से दूर करने के लिए भी वे अभियान चलाएंगे.

जयपुर : राजस्थान के नागौर जिले के छोटे से गांव सुखवासी में साल 1975 में पीपल का एक पौधा रोप कर उसे पेड़ बनाने का संकल्प लेने वाले हिम्मताराम भाम्भू के जेहन में महज 19 साल की उम्र में पर्यावरण संरक्षण का एक ऐसा बीज पड़ा, जो आज एक विशाल वटवृक्ष बन चुका है. अपने इस 45 साल के संघर्ष में उन्होंने साढ़े 5 लाख से ज्यादा पौधे लगाए. जिनमें से करीब तीन लाख पेड़ आज भी हरे-भरे हैं.

वन्यजीवों के शिकार की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए भी वह हमेशा पहली पंक्ति में खड़े रहे. उनके इसी संघर्ष का नतीजा है कि आज उन्हें 69 साल की उम्र में देश के प्रतिष्ठित सम्मान में से एक पद्मश्री देने की घोषणा की गई है. इन 45 साल में हिम्मताराम भाम्भू ने हर दिन पर्यावरण, पेड़ और जीव रक्षा के लिए जिया है. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 25 जनवरी को जब यह घोषणा हुई, तो उन्हें लगा जैसे पेड़, पर्यावरण और जीवों की रक्षा के लिए किए गए उनके 45 साल के संघर्ष को नई दिशा मिल गई है.

हिम्मताराम भाम्भू से ईटीवी भारत की खास बातचीत.

छह हेक्टेयर जमीन पर लगाए 11 हजार पौधे
मुद्दा पेड़ लगाने का हो या पेड़ों की रक्षा का, बात पर्यावरण संरक्षण की हो, या जीवों के शिकार के विरोध की. हिम्मताराम हमेशा हिम्मत के साथ आगे ही खड़े दिखे. उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग 65 पर नागौर से करीब 20 किमी दूर हरिमा गांव में खुद की खरीदी करीब छह हेक्टेयर जमीन पर 11 हजार पौधे लगाए, जो आज हरे भरे पेड़ बन चुके हैं. इसे उन्होंने पर्यावरण प्रशिक्षण केंद्र नाम दिया है. आज यहां एक घना जंगल बन गया है. जहां हजारों पशु पक्षी रहते हैं. आज भी उनके दिन की शुरुआत यहां रहने वाले मूक प्राणियों के लिए दाना-पानी और चारे के इंतजाम करने से ही होती है.

पढ़ें : जॉर्ज, जेटली व सुषमा सहित सात को पद्म विभूषण, 16 पद्म भूषण, 118 को पद्म श्री

इस साल की शुरुआत में हिम्मताराम भाम्भू को राष्ट्रपति भवन से बुलावा मिला और तीन जनवरी को उन्होंने देश के प्रथम नागरिक महामहिम रामनाथ कोविंद से ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण संरक्षण जैसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा की थी.

2030 तक प्रदेशभर में दो लाख पौधे लगाने का लक्ष्य
अब उनका कहना है कि उनका लक्ष्य 2030 तक प्रदेशभर में दो लाख पौधे लगाकर हरे-भरे पेड़ बनाना है. इसके साथ ही वह पॉलीथिन मुक्त भारत के लिए एक अभियान भी शुरू करेंगे. जिसके तहत पॉलीथिन से होने वाले नुकसान को लेकर आमजन को जागरूक करेंगे. इसके साथ ही कपड़े से बने थैले का भी वितरण किया जाएगा. हिम्मताराम भाम्भू का कहना है कि युवाओं को नशे की लत से दूर करने के लिए भी वे अभियान चलाएंगे.

Intro:नए साल की शुरुआत में 3 जनवरी को देश के प्रथम नागरिक महामहिम रामनाथ कोविंद सामने बैठकर ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण संरक्षण जैसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा करते समय नागौर के हिम्मताराम भाम्भू को क्या पता था कि कुछ ही दिनों में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री मिलने की घोषणा होने वाली है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 25 जनवरी को जब यह घोषणा हुई तो उन्हें लगा जैसे पेड़, पर्यावरण और जीवों की रक्षा के लिए किए गए उनके 45 साल के संघर्ष को नई दिशा मिल गई है। नागौर के पर्यावरण प्रेमी हिम्मताराम भाम्भू के इस सफर पर खास रिपोर्ट...


Body:नागौर. जिले के छोटे से गांव सुखवासी में साल 1975 में पीपल का एक पौधा रोप कर उसे पेड़ बनाने का संकल्प लेने वाले हिम्मताराम भाम्भू के जेहन में महज 19 साल की उम्र में पर्यावरण संरक्षण का एक ऐसा बीज पड़ा जो आज एक विशाल वटवृक्ष बन चुका है। अपने इस 45 साल के संघर्ष में उन्होंने साढ़े 5 लाख से ज्यादा पौधे लगाए। जिनमें से करीब 3 लाख आज बड़े हरे भरे पेड़ बन चुके हैं। वन्यजीवों के शिकार की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए भी वह हमेशा पहली पंक्ति में खड़े रहे। उनके इसी संघर्ष का नतीजा है कि आज उन्हें 69 साल की उम्र में देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री देने की घोषणा की गई है। इन 45 साल में हिम्मताराम भाम्भू ने हर दिन पर्यावरण, पेड़ और जीव रक्षा के लिए जिया है। मुद्दा पेड़ लगाने का हो या पेड़ों की रक्षा का, बात पर्यावरण संरक्षण की हो या जीवों के शिकार के विरोध की। हिम्मताराम हमेशा हिम्मत के साथ आगे ही खड़े दिखे। उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग 65 पर नागौर से करीब 20 किमी दूर हरिमा गांव में खुद की खरीदी करीब 6 हैक्टेयर जमीन पर 11,000 पौधे लगाए। जो आज हरे भरे पेड़ बन चुके हैं। इसे उन्होंने पर्यावरण प्रशिक्षण केंद्र नाम दिया है। आज यहां एक घना जंगल बन गया है। जहां हजारों पशु पक्षी रहते हैं। आज भी उनके दिन की शुरुआत यहां रहने वाले मूक प्राणियों के लिए दाना पानी और चारे के इंतजाम करने से ही होती है।


Conclusion:इस साल की शुरुआत में हिम्मताराम भाम्भू को राष्ट्रपति भवन से बुलावा मिला और 3 जनवरी को उन्होंने देश के प्रथम नागरिक महामहिम रामनाथ कोविंद से ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण संरक्षण जैसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा की थी।
अब उनका कहना है कि उनका लक्ष्य 2030 तक प्रदेशभर में 2 लाख पौधे लगाकर हरे-भरे पेड़ बनाना है। इसके साथ ही वे पॉलीथिन मुक्त भारत के लिए एक अभियान भी शुरू करेंगे। जिसके तहत पॉलीथिन से होने वाले नुकसान को लेकर आमजन को जागरूक करेंगे। इसके साथ ही कपड़े से बने थैले का भी वितरण किया जाएगा। हिम्मताराम भाम्भू का कहना है कि युवाओं को नशे की लत से दूर करने के लिए भी वे अभियान चलाएंगे।
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1-2-1_ हिम्मताराम भाम्भू, पर्यावरण प्रेमी, जिन्हें पद्मश्री देने की घोषणा हुई है।
Last Updated : Feb 25, 2020, 5:11 PM IST
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