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यह कहना सही नहीं कि सीएए से मानवीय संकट पैदा हो सकता है : हर्ष पंत - सीएए पर हर्ष पंत

नागरिकता कानून के खिलाफ राजनीतिक विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. इसी कड़ी में यूरोपीय संसद के संदस्यों ने कहा है कि यदि यह कानून लागू किया जाता है तो इससे दुनिया में बड़ा मानवीय संकट उत्पन्न हो सकता है. इस पर ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक प्रोफेसर हर्ष पंत ने प्रतिक्रिया दी है. जानें विस्तार से..

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हर्ष पंत
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Published : Jan 27, 2020, 8:24 PM IST

Updated : Feb 28, 2020, 4:40 AM IST

नई दिल्ली : संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ राजनीतिक विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. इसी कड़ी में यूरोपीय संसद के कुछ सदस्यों ने सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव तैयार किया है. प्रस्ताव में कहा गया है कि इसे अगर लागू किया जाता है तो यह दुनिया में बड़े मानवीय संकट को जन्म दे सकता है. फिलहाल ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक हर्ष पंत की मानें तो यह दावा करना सही नहीं है कि नागरिकता कानून से मानवीय संकट पैदा हो सकता है. यह अतिशयोक्ति है. सीएए नागरिकता लेने वाला नहीं बल्कि नागरिकता देने वाला कानून है.

यूरोपीय पार्लियामेंट (यूरोपीय संसद) के 626 से ज्यादा सांसदों ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रस्ताव तैयार किया है. इसमें कहा गया कि इससे भारत में नागरिकता तय करने के तरीके से खतरनाक बदलाव हो सकता है. इससे बहुत बड़ी संख्या में लोग स्टेटलैस यानी बिना नागरिकता के हो जाएंगे. उनका कोई देश नहीं रह जाएगा.

हर्ष पंत का बयान.

सांसदों की तरफ से तैयार पांच पन्नों के प्रस्ताव कहा गया कि इसे लागू करना दुनिया में बड़े मानवीय संकट को जन्म दे सकता है. इस पर भारत ने कहा है कि सीएए उसका आंतरिक मामला है.

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक हर्ष पंत ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि सीएए पर निश्चित रूप से भ्रम है. इसलिए नई दिल्ली की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इससे संबंधित हितधारकों के साथ बातचीत करे और उन्हें सीएए पर भारत की स्थिति के बारें में समझाए.

प्रोफेसर ने कहा कि यह दावा करना सही नहीं है कि नागरिकता कानून से मानवीय संकट पैदा हो सकता है. यह अतिशयोक्ति है. सीएए नागरिकता लेने वाला नहीं बल्कि नागरिकता देने वाला कानून है.

उन्होंने कहा कि सीएए के माध्यम से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंग्लादेश के पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता दिया जाना है. जो वर्षों से बेकार और बेघर थे.

इतना ही नहीं यूरोपीय सांसदों के इस प्रस्ताव में भारत सरकार पर भेदभाव, उत्पीड़न और विरोध में उठी आवाजों को दबाने का आरोप भी लगाया गया है. इसके अलावा सरकार पर आलोचकों और मानवधिकार समूहों को चुप कराने का भी आरोप लगाया है.

ये भी पढ़ें- सीएए के खिलाफ यूरोपीय यूनियन का प्रस्ताव देश पर हमला : कांग्रेस

वहीं इसमें यह भी कहा गया कि नए कानून से भारत में मुस्लिमों की नागरिकता छीनने का आधार तैयार हो जाएगा. साथ ही नागरिकता रजिस्टर के साथ मिलकर सीएए कई मुस्लिमों को नागरिकता से वंचित कर सकता है. सांसदों ने यूरोपीय संघ से इस मामले में दखल देने की मांग भी की है.

सीएए के खिलाफ तैयार यूरोपीय संघ द्वारा तैयार किए प्रस्ताव पर यूरोप स्थित भारतीय दूतावास ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह एक स्वतंत्र स्थान है और यह प्रस्ताव यूरोपीय संसद के राजनीतिक समूहों ने तैयार किया है.

नई दिल्ली : संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ राजनीतिक विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. इसी कड़ी में यूरोपीय संसद के कुछ सदस्यों ने सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव तैयार किया है. प्रस्ताव में कहा गया है कि इसे अगर लागू किया जाता है तो यह दुनिया में बड़े मानवीय संकट को जन्म दे सकता है. फिलहाल ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक हर्ष पंत की मानें तो यह दावा करना सही नहीं है कि नागरिकता कानून से मानवीय संकट पैदा हो सकता है. यह अतिशयोक्ति है. सीएए नागरिकता लेने वाला नहीं बल्कि नागरिकता देने वाला कानून है.

यूरोपीय पार्लियामेंट (यूरोपीय संसद) के 626 से ज्यादा सांसदों ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रस्ताव तैयार किया है. इसमें कहा गया कि इससे भारत में नागरिकता तय करने के तरीके से खतरनाक बदलाव हो सकता है. इससे बहुत बड़ी संख्या में लोग स्टेटलैस यानी बिना नागरिकता के हो जाएंगे. उनका कोई देश नहीं रह जाएगा.

हर्ष पंत का बयान.

सांसदों की तरफ से तैयार पांच पन्नों के प्रस्ताव कहा गया कि इसे लागू करना दुनिया में बड़े मानवीय संकट को जन्म दे सकता है. इस पर भारत ने कहा है कि सीएए उसका आंतरिक मामला है.

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक हर्ष पंत ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि सीएए पर निश्चित रूप से भ्रम है. इसलिए नई दिल्ली की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इससे संबंधित हितधारकों के साथ बातचीत करे और उन्हें सीएए पर भारत की स्थिति के बारें में समझाए.

प्रोफेसर ने कहा कि यह दावा करना सही नहीं है कि नागरिकता कानून से मानवीय संकट पैदा हो सकता है. यह अतिशयोक्ति है. सीएए नागरिकता लेने वाला नहीं बल्कि नागरिकता देने वाला कानून है.

उन्होंने कहा कि सीएए के माध्यम से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंग्लादेश के पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता दिया जाना है. जो वर्षों से बेकार और बेघर थे.

इतना ही नहीं यूरोपीय सांसदों के इस प्रस्ताव में भारत सरकार पर भेदभाव, उत्पीड़न और विरोध में उठी आवाजों को दबाने का आरोप भी लगाया गया है. इसके अलावा सरकार पर आलोचकों और मानवधिकार समूहों को चुप कराने का भी आरोप लगाया है.

ये भी पढ़ें- सीएए के खिलाफ यूरोपीय यूनियन का प्रस्ताव देश पर हमला : कांग्रेस

वहीं इसमें यह भी कहा गया कि नए कानून से भारत में मुस्लिमों की नागरिकता छीनने का आधार तैयार हो जाएगा. साथ ही नागरिकता रजिस्टर के साथ मिलकर सीएए कई मुस्लिमों को नागरिकता से वंचित कर सकता है. सांसदों ने यूरोपीय संघ से इस मामले में दखल देने की मांग भी की है.

सीएए के खिलाफ तैयार यूरोपीय संघ द्वारा तैयार किए प्रस्ताव पर यूरोप स्थित भारतीय दूतावास ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह एक स्वतंत्र स्थान है और यह प्रस्ताव यूरोपीय संसद के राजनीतिक समूहों ने तैयार किया है.

Intro:New Delhi: The diplomatic fire over India's newly enacted citizenship law refuses to end. In the latest, European Union parliament has passed six resolutions backed by 626 MEPs against the CAA claiming that it can lead to biggest statelessness crisis in the world.


Body:Responding to ETV Bharat's query on this development, Observer Research Foundation's Director Harsh Pant claimed that there is certainly confusion over the CAA that's why it is New Delhi's responsibility to hold talks with concerned stake holders and make them understand about India's position.

"By claiming that this legislation can lead to humanitarian crisis is a hyperbole. There is an understanding regarding the CAA that it is meant to give citizenship and not take it. CAA is aimed to give citizenship to the persecuted minorities of six faiths which have been stateless and homeless for years," said Prof Harsh Pant.






Conclusion:The resolution drafted by European parliamentarians asserted that CAA marks a dangerous shift in the way citizenship will be determined in India and will also create largest statelessness crisis in the world and cause of immense human suffering.

Not only this, the European lawmakers also accused Indian government of discriminating, harassing, and prosecuting national and religious minorities. It even accused it of silencing human rights group and journalists critical of the government.

Responding to EU parliament resolution on CAA and Kashmir, Indian Mission in EU called it an independent institution. It even claimed that the resolution was drafted by political groups in the European Parliament.
Last Updated : Feb 28, 2020, 4:40 AM IST
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