ETV Bharat / bharat

विशेष लेख : हम भारत के लोग

भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है. यह महज कागजों का कोई पुलिंदा नहीं है. यह एक दस्तावेज है. इसका उद्देश्य भारत के उन लोगों की प्रगतिशील आकांक्षाओं की रक्षा करना है, जो विश्व की आबादी के सात प्रतिशत पर आधिपत्य स्थापित किये हुए है.

author img

By

Published : Dec 3, 2019, 8:39 AM IST

यह एक ऐसा अधिनियम है, जो लोगों के बीच बिना किसी मतभेद के समानता और न्याय पर विश्वास प्रदान करता है. यह संकल्प अधिनियमों से भी ज्यादा बड़ा है. यह एक दृढ़ संकल्प, एक वादा, एक सुरक्षा है और सब से सर्वोपरि हमें खुद को एक बड़े उद्देश्य के लिए समर्पित करता है. ये वाक्य खुद नेहरू ने कहे थे. उन्होंने 1946 में संविधान को मंजूरी देने के लिए आयोजित एक बैठक, जिसका अभिप्राय संविधान के उद्देश्य को प्राप्त करना था, के दौरान कही थी.

जब भारतवासियों को प्रवासी शासकों द्वारा स्थापित गुलामी की बेड़ियों से मुक्त किया गया, तब कई जानकारों और बुद्धिजीवियों ने संविधान की तैयारी में मुख्य स्तंभ के रूप में समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा सुनिश्चित करने के लिए अपने कौशल और कुशाग्रता का परिचय दिया. हमारे महान हस्तियों ने सर्वश्रेष्ठ संविधान तैयार किया, जो इस साल 70 साल पूरे करने का जश्न मना रहा है.

समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे को फ्रांसीसी संविधान से, सोवियत संघ से पंचवर्षीय योजना, आयरलैंड से डीपीएसपी और संविधान के कामकाज को जापान से अपनाया गया है.

पढ़ें : 'प्रजातंत्र का नगीना है देश का संविधान'

मोदी सरकार ने 2015 में 26 नवंबर को अंबेडकर को उनकी 125वीं जयंती मनाने का फैसला किया. केंद्र ने संविधान की महानता का उच्चारण करने के लिए देशभर के सभी स्कूलों में साल भर के कार्यक्रम आयोजित करने का निर्देश दिया है.

जब देश संविधान की स्वर्ण जयंती समारोह में व्यस्त था, तब तत्कालीन राष्ट्रपति नारायणन ने अमूल्य टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था कि क्या हमारी विफलताओं का कारण संविधान है या हम इसकी विफलता का कारण बने हैं, ये विचार करने योग्य है.

नागरिकों से लेकर शासकों तक सभी की समस्याओं के उपाय प्रदान करने के लिए संवैधानिक मूल्यों का पालन करना पड़ता है.

गणतंत्र दिवस के संबोधन के दौरान, तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने यह कहकर हमारा मार्गदर्शन किया था कि हमारी प्रतिबद्धता का पता तब चलेगा, जब हम अपने ऊंचे उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए उपयुक्त उपाय करेंगे न कि केवल निरा बयान देकर.

संविधान में 100 से अधिक संशोधन करने के बावजूद, हम 70 वर्षों में गरीबी और उसकी जुड़वां, भूख और बीमारी जैसे मुद्दों को संबोधित करने के पहले दिन के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सके, इसके अलावा भारत मानव विकास के सूचक में दुनिया में पिछड़कर 130वें स्थान पर गया है.

हमारा तात्कालिक लक्ष्य इसका कारण जानना होना चाहिए. ये सत्य है कि राजनैतिक भ्रष्टाचार हर तरह के भ्रष्टाचार को गांव तक और हर गली कूचे तक पहुंचा देता है.

पढ़ें : विशेष लेख : संविधान लेखन में डॉ अंबेडकर का अनुकरणीय प्रयास

प्रधानमंत्री इंदिरा के फरमानों पर चलने वाले नौकरशाही ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के कर्तव्यों का निर्वहन करने के बजाय संविधान के मूल्यों को नष्ट कर दिया.

महात्मा गांधी ने कहा था कि लक्ष्य ही नहीं, उन्हें हासिल करने के लिए बेहतर तरीके और साधन की भी उतनी ही जरूरत है.

दशकों से भ्रष्टाचार में लिप्त स्वार्थी नेताओं की मूर्खता ने देश में काले धन धारकों द्वारा किये उत्पीड़न को सरकारी मुहर लगाकर राष्ट्र का नैतिक झंडा फहरा दिया.

विधेय यह है कि हाल ही में प्रधान मंत्री ने यह कहकर नाराजगी व्यक्त की कि क्या भारत ने अपनी कार्यकुशलता और क्षमताओं के अनुसार पूरी तरह से विकास हासिल कर लिया है, जिसकी वजह से सामरिक अध्येताओं की बढ़ती संख्या यह जानना चाहती है कि क्या संविधान में अपराध और आरोपों के मामलों के सामने आने के बाद ऊँचे पदों को छोड़ने के विषय में लिखा गया था.

पढ़ें : संविधान @70 : विचारशील संघर्ष का परिणाम है भारत का संविधान​​​​​​​

अध्ययनों से पता चलता है कि वित्तीय असमानताओं की बढ़ती संख्या गरीबी से कहीं ज्यादा भारत को चुनौती दे रही है.

25 नवंबर, 1949 को संविधान के समापन सत्र के दौरान बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा बताई गई सावधानियों की आज अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए.

सविनय अवज्ञा और सत्याग्रह पर ध्यान न देते हुए, अम्बेडकर ने चेतावनी दी थी कि राजनीति में भक्ति और अंधेपन से तानाशाही को बढ़ावा मिलता है.

उन्होंने स्पष्ट किया था कि यदि लंबे समय तक समानता से दूर रखा गया तो राजनीतिक लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा.

पढ़ें : प्रस्तावना - संविधान की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिबिंब

नागरिकों और सरकारों को इसके लिए संवैधानिक मूल्यों का कड़ाई से पालन करना होगा. शासकों को इस तथ्य को ध्यान में रखना होगा कि गरीबी के अलावा और कोई बड़ा अपमान नहीं है क्योंकि विकास की प्रक्रिया में गरीबों के शामिल होने पर ही सही प्रगति संभव है.

लोग संविधान के वास्तविक राजा हैं जिन्होंने लिखा है ... 'हम भारत के लोग..'

संवैधानिक भावना से ही भ्रष्टाचार को कुशलतापूर्वक जड़ से खत्म हो सकता है, प्रतिबद्धता के साथ जिम्मेदारियों को संभालने के लिए प्रेरित किया जा सकता है और नागरिक अधिकारों की रक्षा के द्वारा सुरक्षित भी किया जा सकता है.

यह एक ऐसा अधिनियम है, जो लोगों के बीच बिना किसी मतभेद के समानता और न्याय पर विश्वास प्रदान करता है. यह संकल्प अधिनियमों से भी ज्यादा बड़ा है. यह एक दृढ़ संकल्प, एक वादा, एक सुरक्षा है और सब से सर्वोपरि हमें खुद को एक बड़े उद्देश्य के लिए समर्पित करता है. ये वाक्य खुद नेहरू ने कहे थे. उन्होंने 1946 में संविधान को मंजूरी देने के लिए आयोजित एक बैठक, जिसका अभिप्राय संविधान के उद्देश्य को प्राप्त करना था, के दौरान कही थी.

जब भारतवासियों को प्रवासी शासकों द्वारा स्थापित गुलामी की बेड़ियों से मुक्त किया गया, तब कई जानकारों और बुद्धिजीवियों ने संविधान की तैयारी में मुख्य स्तंभ के रूप में समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा सुनिश्चित करने के लिए अपने कौशल और कुशाग्रता का परिचय दिया. हमारे महान हस्तियों ने सर्वश्रेष्ठ संविधान तैयार किया, जो इस साल 70 साल पूरे करने का जश्न मना रहा है.

समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे को फ्रांसीसी संविधान से, सोवियत संघ से पंचवर्षीय योजना, आयरलैंड से डीपीएसपी और संविधान के कामकाज को जापान से अपनाया गया है.

पढ़ें : 'प्रजातंत्र का नगीना है देश का संविधान'

मोदी सरकार ने 2015 में 26 नवंबर को अंबेडकर को उनकी 125वीं जयंती मनाने का फैसला किया. केंद्र ने संविधान की महानता का उच्चारण करने के लिए देशभर के सभी स्कूलों में साल भर के कार्यक्रम आयोजित करने का निर्देश दिया है.

जब देश संविधान की स्वर्ण जयंती समारोह में व्यस्त था, तब तत्कालीन राष्ट्रपति नारायणन ने अमूल्य टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था कि क्या हमारी विफलताओं का कारण संविधान है या हम इसकी विफलता का कारण बने हैं, ये विचार करने योग्य है.

नागरिकों से लेकर शासकों तक सभी की समस्याओं के उपाय प्रदान करने के लिए संवैधानिक मूल्यों का पालन करना पड़ता है.

गणतंत्र दिवस के संबोधन के दौरान, तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने यह कहकर हमारा मार्गदर्शन किया था कि हमारी प्रतिबद्धता का पता तब चलेगा, जब हम अपने ऊंचे उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए उपयुक्त उपाय करेंगे न कि केवल निरा बयान देकर.

संविधान में 100 से अधिक संशोधन करने के बावजूद, हम 70 वर्षों में गरीबी और उसकी जुड़वां, भूख और बीमारी जैसे मुद्दों को संबोधित करने के पहले दिन के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सके, इसके अलावा भारत मानव विकास के सूचक में दुनिया में पिछड़कर 130वें स्थान पर गया है.

हमारा तात्कालिक लक्ष्य इसका कारण जानना होना चाहिए. ये सत्य है कि राजनैतिक भ्रष्टाचार हर तरह के भ्रष्टाचार को गांव तक और हर गली कूचे तक पहुंचा देता है.

पढ़ें : विशेष लेख : संविधान लेखन में डॉ अंबेडकर का अनुकरणीय प्रयास

प्रधानमंत्री इंदिरा के फरमानों पर चलने वाले नौकरशाही ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के कर्तव्यों का निर्वहन करने के बजाय संविधान के मूल्यों को नष्ट कर दिया.

महात्मा गांधी ने कहा था कि लक्ष्य ही नहीं, उन्हें हासिल करने के लिए बेहतर तरीके और साधन की भी उतनी ही जरूरत है.

दशकों से भ्रष्टाचार में लिप्त स्वार्थी नेताओं की मूर्खता ने देश में काले धन धारकों द्वारा किये उत्पीड़न को सरकारी मुहर लगाकर राष्ट्र का नैतिक झंडा फहरा दिया.

विधेय यह है कि हाल ही में प्रधान मंत्री ने यह कहकर नाराजगी व्यक्त की कि क्या भारत ने अपनी कार्यकुशलता और क्षमताओं के अनुसार पूरी तरह से विकास हासिल कर लिया है, जिसकी वजह से सामरिक अध्येताओं की बढ़ती संख्या यह जानना चाहती है कि क्या संविधान में अपराध और आरोपों के मामलों के सामने आने के बाद ऊँचे पदों को छोड़ने के विषय में लिखा गया था.

पढ़ें : संविधान @70 : विचारशील संघर्ष का परिणाम है भारत का संविधान​​​​​​​

अध्ययनों से पता चलता है कि वित्तीय असमानताओं की बढ़ती संख्या गरीबी से कहीं ज्यादा भारत को चुनौती दे रही है.

25 नवंबर, 1949 को संविधान के समापन सत्र के दौरान बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा बताई गई सावधानियों की आज अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए.

सविनय अवज्ञा और सत्याग्रह पर ध्यान न देते हुए, अम्बेडकर ने चेतावनी दी थी कि राजनीति में भक्ति और अंधेपन से तानाशाही को बढ़ावा मिलता है.

उन्होंने स्पष्ट किया था कि यदि लंबे समय तक समानता से दूर रखा गया तो राजनीतिक लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा.

पढ़ें : प्रस्तावना - संविधान की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिबिंब

नागरिकों और सरकारों को इसके लिए संवैधानिक मूल्यों का कड़ाई से पालन करना होगा. शासकों को इस तथ्य को ध्यान में रखना होगा कि गरीबी के अलावा और कोई बड़ा अपमान नहीं है क्योंकि विकास की प्रक्रिया में गरीबों के शामिल होने पर ही सही प्रगति संभव है.

लोग संविधान के वास्तविक राजा हैं जिन्होंने लिखा है ... 'हम भारत के लोग..'

संवैधानिक भावना से ही भ्रष्टाचार को कुशलतापूर्वक जड़ से खत्म हो सकता है, प्रतिबद्धता के साथ जिम्मेदारियों को संभालने के लिए प्रेरित किया जा सकता है और नागरिक अधिकारों की रक्षा के द्वारा सुरक्षित भी किया जा सकता है.

Intro:Body:

हम भारत के लोग

भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है. यह महज कागजों का कोई पुलिंदा नहीं है. यह एक दस्तावेज है. इसका उद्देश्य भारत के उन लोगों की प्रगतिशील आकांक्षाओं की रक्षा करना है, जो विश्व की आबादी के सात प्रतिशत पर आधिपत्य स्थापित किये हुए है.

यह एक ऐसा अधिनियम है, जो लोगों के बीच बिना किसी मतभेद के समानता और न्याय पर विश्वास प्रदान करता है. यह संकल्प अधिनियमों से भी ज्यादा बड़ा है. यह एक दृढ़ संकल्प, एक वादा, एक सुरक्षा है और सब से सर्वोपरि हमें खुद को एक बड़े उद्देश्य के लिए समर्पित करता है. ये वाक्य खुद नेहरू ने कहे थे. उन्होंने 1946 में संविधान को मंजूरी देने के लिए आयोजित एक बैठक, जिसका अभिप्राय संविधान के उद्देश्य को प्राप्त करना था, के दौरान कही थी. 

जब भारतवासियों को प्रवासी शासकों द्वारा स्थापित गुलामी की बेड़ियों से मुक्त किया गया, तब कई जानकारों और बुद्धिजीवियों ने संविधान की तैयारी में मुख्य स्तंभ के रूप में समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा सुनिश्चित करने के लिए अपने कौशल और कुशाग्रता का परिचय दिया. हमारे महान हस्तियों ने सर्वश्रेष्ठ संविधान तैयार किया, जो इस साल 70 साल पूरे करने का जश्न मना रहा है.

समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे को फ्रांसीसी संविधान से, सोवियत संघ से पंचवर्षीय योजना, आयरलैंड से डीपीएसपी और संविधान के कामकाज को जापान से अपनाया गया है.

मोदी सरकार ने 2015 में 26 नवंबर को अंबेडकर को उनकी 125वीं जयंती मनाने का फैसला किया. केंद्र ने संविधान की महानता का उच्चारण करने के लिए देशभर के सभी स्कूलों में साल भर के कार्यक्रम आयोजित करने का निर्देश दिया है.

जब देश संविधान की स्वर्ण जयंती समारोह में व्यस्त था, तब तत्कालीन राष्ट्रपति नारायणन ने अमूल्य टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था कि क्या हमारी विफलताओं का कारण संविधान है या हम इसकी विफलता का कारण बने हैं, ये विचार करने योग्य है.

नागरिकों से लेकर शासकों तक सभी की समस्याओं के उपाय प्रदान करने के लिए संवैधानिक मूल्यों का पालन करना पड़ता है.

गणतंत्र दिवस के संबोधन के दौरान, तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने यह कहकर हमारा मार्गदर्शन किया था कि हमारी प्रतिबद्धता का पता तब चलेगा, जब हम अपने ऊंचे उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए उपयुक्त उपाय करेंगे न कि केवल निरा बयान देकर.

संविधान में 100 से अधिक संशोधन करने के बावजूद, हम 70 वर्षों में गरीबी और उसकी जुड़वां, भूख और बीमारी जैसे मुद्दों को संबोधित करने के पहले दिन के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सके, इसके अलावा भारत मानव विकास के सूचक में दुनिया में पिछड़कर 130वें स्थान पर गया है.

हमारा तात्कालिक लक्ष्य इसका कारण जानना होना चाहिए. ये सत्य है कि राजनैतिक भ्रष्टाचार हर तरह के भ्रष्टाचार को गांव तक और हर गली कूचे तक पहुंचा देता है.

प्रधान मंत्री इंदिरा के फरमानों पर चलने वाले नौकरशाही ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के कर्तव्यों का निर्वहन करने के बजाय संविधान के मूल्यों को नष्ट कर दिया.

महात्मा गांधी ने कहा था कि लक्ष्य ही नहीं, उन्हें हासिल करने के लिए बेहतर तरीके और साधन की भी उतनी ही जरूरत है.

दशकों से भ्रष्टाचार में लिप्त स्वार्थी नेताओं की मूर्खता ने देश में काले धन धारकों द्वारा किये उत्पीड़न को सरकारी मुहर लगाकर राष्ट्र का नैतिक झंडा फहरा दिया.

विधेय यह है कि हाल ही में प्रधान मंत्री ने यह कहकर नाराजगी व्यक्त की कि क्या भारत ने अपनी कार्यकुशलता और क्षमताओं के अनुसार पूरी तरह से विकास हासिल कर लिया है, जिसकी वजह से सामरिक अध्येताओं की बढ़ती संख्या यह जानना चाहती है कि क्या संविधान में अपराध और आरोपों के मामलों के सामने आने के बाद ऊँचे पदों को छोड़ने के विषय में लिखा गया था.

अध्ययनों से पता चलता है कि वित्तीय असमानताओं की बढ़ती संख्या गरीबी से कहीं ज्यादा  भारत को चुनौती दे रही है.

25 नवंबर, 1949 को संविधान के समापन सत्र के दौरान बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा बताई गई सावधानियों की आज अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए.

सविनय अवज्ञा और सत्याग्रह पर ध्यान न देते हुए, अम्बेडकर ने चेतावनी दी थी कि राजनीति में भक्ति और अंधेपन से तानाशाही को बढ़ावा मिलता है.

उन्होंने स्पष्ट किया था कि यदि लंबे समय तक समानता से दूर रखा गया तो राजनीतिक लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा.

नागरिकों और सरकारों को इसके लिए संवैधानिक मूल्यों का कड़ाई से पालन करना होगा. शासकों को इस तथ्य को ध्यान में रखना होगा कि गरीबी के अलावा और कोई बड़ा अपमान नहीं है क्योंकि विकास की प्रक्रिया में गरीबों के शामिल होने पर ही सही प्रगति संभव है.

लोग संविधान के वास्तविक राजा हैं जिन्होंने लिखा है ... 'हम भारत के लोग..'

संवैधानिक भावना से ही भ्रष्टाचार को कुशलतापूर्वक जड़ से खत्म हो सकता है, प्रतिबद्धता के साथ जिम्मेदारियों को संभालने के लिए प्रेरित किया जा सकता है और नागरिक अधिकारों की रक्षा के द्वारा सुरक्षित भी किया जा सकता है.


Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.