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दिल्ली बॉर्डर पर किसान आंदोलन के एक महीने पूरे, डटे हुए हैं किसान

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Published : Dec 24, 2020, 7:55 PM IST

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन जारी है. किसान आंदोलन का आज एक महीने पूरा हो गया. अभी प्रदर्शन के खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे हैं. अब तक सरकार और किसान संगठनों के बीच छह दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन सभी बेनतीजा साबित हुईं हैं. अब एक बार फिर किसान और सरकार के बीच पत्राचार का एक दौर शुरू हुआ है. संयुक्त किसान मोर्चा ने बुधवार को ही स्पष्ट कर दिया था कि उन्हें वर्तमान एमएसपी की व्यवस्था मंजूर नहीं है. पढ़ें पूरी खबर...

किसान आंदोलन
किसान आंदोलन

नई दिल्ली : दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन का आज एक माह पूरा हो गया, लेकिन सरकार और किसान संगठनों के बीच छह चरण की वार्ता के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है. तीन कृषि कानून, एक प्रस्तावित बिजली विधेयक और पराली जलाने से संबंधित अध्यादेश के विरोध और एमएसपी गारंटी कानून की मांग के साथ किसान लगातार दिल्ली से जुड़े पांच मुख्य राजमार्ग पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.

सरकार और किसान संगठनों के बीच कई दौर की वार्ता पहले ही विफल हो चुकी है और अब एक बार फिर दोनों के बीच पत्राचार का एक दौर शुरू हुआ है.

कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव द्वारा 20 दिसंबर को एक बार फिर पत्र लिख कर वार्ता की पहल हुई, लेकिन 23 दिसंबर को किसान संगठनों ने पत्र का जवाब देते हुए कहा कि जब तक सरकार साफ नीयत और खुले मन से कोई ठोस प्रस्ताव नहीं भेजती वह पुराने प्रस्तावों के साथ वार्ता पर नहीं बैठेंगे. हालांकि, किसान नेताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि वह वार्ता के लिए हमेशा तैयार हैं. बशर्ते कि सरकार उनकी मांगों पर अपनी नीति स्पष्ट करे.

किसानों के द्वारा भेजे गए जवाब के बाद गुरुवार को एक बार फिर कृषि मंत्रालय द्वारा किसान संगठनों को एक पत्र भेजा गया है, जिसमें सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा उठाए गए बिंदुओं पर अपना रुख स्पष्ट किया है. संयुक्त किसान मोर्चा ने बुधवार को भेजे पत्र में सरकार द्वारा आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन का कोई प्रस्ताव न होने की बात कही थी.

विवेक अग्रवाल का बयान
बुधवार को पत्र में संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने कहा है कि सरकार द्वारा तीन दिसंबर की बैठक में किसानों द्वारा उठाए गए सभी मुद्दे चिह्नित किए गए थे, लेकिन इसके बावजूद यदि किसानों के कुछ अन्य मुद्दे भी हैं, तो सरकार उस पर वार्ता के लिए तैयार है. इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार अब आवश्यक वस्तु अधिनियम में भी संशोधन के लिए तैयार है.

किसान मोर्चा द्वारा पिछले पत्र में स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश के मुताबिक सी2+एफएल के हिसाब से एमएसपी की गारंटी के लिए कानून बनाने की मांग पर सरकार को अपना रुख स्पष्ट करने के लिये कहा गया था.

न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुद्दे पर सरकार ने एक बार फिर कोई स्पष्ट उत्तर नहीं देते हुए बस यही कहा है कि तीन कृषि सुधार कानूनों का एमएसपी से कोई संबंध नहीं है.

हालांकि, सरकार ने एमएसपी पर खरीदी की वर्तमान व्यवस्था लागू रखने का लिखित आश्वासन देने की बात जरूर कही है. ऐसे में एक सवाल उठता है कि क्या किसानों को वर्तमान एमएसपी की व्यवस्था पर लिखित आश्वासन मंजूर होगा?

वर्तमान व्यवस्था में ए2+एफएल के अनुसार एमएसपी तय की जाती है, जो किसानों को मंजूर नहीं. इसके अलावा कुल उत्पाद का केवल 6 फीसदी ही सरकार द्वारा एमएसपी पर खरीदा जाता है. किसानों की मांग एमएसपी पर गारंटी के साथ खरीद की है.

वर्तमान एमएसपी की व्यवस्था मंजूर नहीं
संयुक्त किसान मोर्चा ने बुधवार को ही स्पष्ट कर दिया था कि उन्हें वर्तमान एमएसपी की व्यवस्था मंजूर नहीं है, बल्कि वह तो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार तय किए गए एमएसपी पर गारंटी खरीद होने के लिये कानून बनाने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में सरकार और किसान संगठनों के बीच एक बार फिर पेंच फंसना तय माना जा रहा है. सरकार की तरफ से आज किसान नेताओं को भेजे पत्र में यह कहा गया है कि किसानों की यह मांग तर्कसंगत नहीं है, लेकिन फिर भी सरकार सभी मुद्दों पर वार्ता के लिए तैयार है.

किसान मोर्चा की तरफ से आज के पत्र पर कोई भी आधिकारिक प्रतिक्रिया सभी 40 नेताओं की बैठक के बाद देने की बात कही गई है. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के सचिव अविक साहा ने सरकार के आज के पत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिया पर अपने लाइव संबोधन में कहा कि सरकार ने एक बार फिर अपनी पुरानी बात ही दोहराई है. सरकार कहती है कि वह एमएसपी को संवैधानिक दर्जा नहीं दे सकती है, जबकि किसान मांग कर रहे हैं कि एमएसपी को संवैधानिक अधिकार बनाया जाए.

उन्होंने कहा कि सरकार लिखित आश्वासन की बात कह रही है, लेकिन जब सरकार कानून नहीं बना सकती है, तो उस पर लिखित आश्वासन का क्या फायदा होगा? सरकार की अपनी ही बात में विरोधाभास झलकता है. किसान तीन कानून के रद्द करने और एमएसपी गारंटी के लिए कानून बनाने से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करने की बात कह रहे हैं, जबकि सरकार आश्वासन और कुछ संशोधन के सहारे आंदोलन को शांत कर तीन कृषि सुधार कानून के पक्ष में किसानों को मनाने का प्रयास कर रही है.

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के वीएम सिंह को न्योता नहीं !


उत्तर प्रदेश के किसानों के एक समूह का नेतृत्व कर रहे सरदार वीएम सिंह को अब तक सरकार ने वार्ता में शामिल नहीं किया है. वीएम सिंह तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन की अलख जगाने वाले अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिती के संयोजक रहे हैं और वर्तमान में राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसका मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्रभाव है.

वीएम सिंह ने आज किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार उनसे चर्चा करने से डरती है, क्योंकि उनको कानून की अच्छी समझ है. वीएम सिंह ने कहा कि आज उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा धान की पैदावार होती है, लेकिन सरकार अपने पत्र में उन्हें बातचीत का न्योता नहीं देती है.

नई दिल्ली : दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन का आज एक माह पूरा हो गया, लेकिन सरकार और किसान संगठनों के बीच छह चरण की वार्ता के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है. तीन कृषि कानून, एक प्रस्तावित बिजली विधेयक और पराली जलाने से संबंधित अध्यादेश के विरोध और एमएसपी गारंटी कानून की मांग के साथ किसान लगातार दिल्ली से जुड़े पांच मुख्य राजमार्ग पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.

सरकार और किसान संगठनों के बीच कई दौर की वार्ता पहले ही विफल हो चुकी है और अब एक बार फिर दोनों के बीच पत्राचार का एक दौर शुरू हुआ है.

कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव द्वारा 20 दिसंबर को एक बार फिर पत्र लिख कर वार्ता की पहल हुई, लेकिन 23 दिसंबर को किसान संगठनों ने पत्र का जवाब देते हुए कहा कि जब तक सरकार साफ नीयत और खुले मन से कोई ठोस प्रस्ताव नहीं भेजती वह पुराने प्रस्तावों के साथ वार्ता पर नहीं बैठेंगे. हालांकि, किसान नेताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि वह वार्ता के लिए हमेशा तैयार हैं. बशर्ते कि सरकार उनकी मांगों पर अपनी नीति स्पष्ट करे.

किसानों के द्वारा भेजे गए जवाब के बाद गुरुवार को एक बार फिर कृषि मंत्रालय द्वारा किसान संगठनों को एक पत्र भेजा गया है, जिसमें सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा उठाए गए बिंदुओं पर अपना रुख स्पष्ट किया है. संयुक्त किसान मोर्चा ने बुधवार को भेजे पत्र में सरकार द्वारा आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन का कोई प्रस्ताव न होने की बात कही थी.

विवेक अग्रवाल का बयान
बुधवार को पत्र में संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने कहा है कि सरकार द्वारा तीन दिसंबर की बैठक में किसानों द्वारा उठाए गए सभी मुद्दे चिह्नित किए गए थे, लेकिन इसके बावजूद यदि किसानों के कुछ अन्य मुद्दे भी हैं, तो सरकार उस पर वार्ता के लिए तैयार है. इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार अब आवश्यक वस्तु अधिनियम में भी संशोधन के लिए तैयार है.

किसान मोर्चा द्वारा पिछले पत्र में स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश के मुताबिक सी2+एफएल के हिसाब से एमएसपी की गारंटी के लिए कानून बनाने की मांग पर सरकार को अपना रुख स्पष्ट करने के लिये कहा गया था.

न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुद्दे पर सरकार ने एक बार फिर कोई स्पष्ट उत्तर नहीं देते हुए बस यही कहा है कि तीन कृषि सुधार कानूनों का एमएसपी से कोई संबंध नहीं है.

हालांकि, सरकार ने एमएसपी पर खरीदी की वर्तमान व्यवस्था लागू रखने का लिखित आश्वासन देने की बात जरूर कही है. ऐसे में एक सवाल उठता है कि क्या किसानों को वर्तमान एमएसपी की व्यवस्था पर लिखित आश्वासन मंजूर होगा?

वर्तमान व्यवस्था में ए2+एफएल के अनुसार एमएसपी तय की जाती है, जो किसानों को मंजूर नहीं. इसके अलावा कुल उत्पाद का केवल 6 फीसदी ही सरकार द्वारा एमएसपी पर खरीदा जाता है. किसानों की मांग एमएसपी पर गारंटी के साथ खरीद की है.

वर्तमान एमएसपी की व्यवस्था मंजूर नहीं
संयुक्त किसान मोर्चा ने बुधवार को ही स्पष्ट कर दिया था कि उन्हें वर्तमान एमएसपी की व्यवस्था मंजूर नहीं है, बल्कि वह तो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार तय किए गए एमएसपी पर गारंटी खरीद होने के लिये कानून बनाने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में सरकार और किसान संगठनों के बीच एक बार फिर पेंच फंसना तय माना जा रहा है. सरकार की तरफ से आज किसान नेताओं को भेजे पत्र में यह कहा गया है कि किसानों की यह मांग तर्कसंगत नहीं है, लेकिन फिर भी सरकार सभी मुद्दों पर वार्ता के लिए तैयार है.

किसान मोर्चा की तरफ से आज के पत्र पर कोई भी आधिकारिक प्रतिक्रिया सभी 40 नेताओं की बैठक के बाद देने की बात कही गई है. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के सचिव अविक साहा ने सरकार के आज के पत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिया पर अपने लाइव संबोधन में कहा कि सरकार ने एक बार फिर अपनी पुरानी बात ही दोहराई है. सरकार कहती है कि वह एमएसपी को संवैधानिक दर्जा नहीं दे सकती है, जबकि किसान मांग कर रहे हैं कि एमएसपी को संवैधानिक अधिकार बनाया जाए.

उन्होंने कहा कि सरकार लिखित आश्वासन की बात कह रही है, लेकिन जब सरकार कानून नहीं बना सकती है, तो उस पर लिखित आश्वासन का क्या फायदा होगा? सरकार की अपनी ही बात में विरोधाभास झलकता है. किसान तीन कानून के रद्द करने और एमएसपी गारंटी के लिए कानून बनाने से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करने की बात कह रहे हैं, जबकि सरकार आश्वासन और कुछ संशोधन के सहारे आंदोलन को शांत कर तीन कृषि सुधार कानून के पक्ष में किसानों को मनाने का प्रयास कर रही है.

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के वीएम सिंह को न्योता नहीं !


उत्तर प्रदेश के किसानों के एक समूह का नेतृत्व कर रहे सरदार वीएम सिंह को अब तक सरकार ने वार्ता में शामिल नहीं किया है. वीएम सिंह तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन की अलख जगाने वाले अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिती के संयोजक रहे हैं और वर्तमान में राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसका मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्रभाव है.

वीएम सिंह ने आज किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार उनसे चर्चा करने से डरती है, क्योंकि उनको कानून की अच्छी समझ है. वीएम सिंह ने कहा कि आज उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा धान की पैदावार होती है, लेकिन सरकार अपने पत्र में उन्हें बातचीत का न्योता नहीं देती है.

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