ETV Bharat / bharat

कोरोना काल में एक करोड़ बच्चे हो सकते हैं कुपोषण के शिकार

author img

By

Published : May 29, 2020, 4:25 PM IST

कोरोना वायरस ने दिहाड़ी मजदूरों और गरीब लोगों को पस्त कर दिया है. वे दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए हैं. इस पर संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने गंभीर चिंता जताई है. गरीब राष्ट्र में रहने वाले आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए पौष्टिक आहार का खर्च उठाना मुश्किल हो जाएगा.

123
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली : कोरोना वायरस ने विश्व की दशा और दिशा बदल दी है. कमजोर हो रही आर्थिक व्यवस्था को उठाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. अब खबर है कि इस महामारी के कारण 10 मिलियन यानी कि एक करोड़ बच्चे कुपोषण के शिकार हो सकते हैं.

संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) का अनुमान है कि कोविड ​​-19 महामारी के परिणाम स्वरूप कुपोषण के इस खतरनाक रूप से पीड़ित बच्चों की संख्या में 20 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है.

सबसे अधिक डरने वाली बात तो यह है कि जो बच्चे कमजोर हैं, उन पर वायरस के संक्रमण का खतरा अधिक होता है. अगर बच्चों को अच्छा भोजन नहीं मिलेगा तो वे महामारी की चपेट में भी आ सकते हैं. दरअसल, कोरोना संकट में गरीब और दिहाड़ी मजदूर और उनके परिवार के लिए भोजन जुटाना आसमान से तारे तोड़कर लाने जैसा हो गया है.

यह वाकई कठिन परिस्थिति है, जिसका सामना गरीब वर्ग कर रहा है. वह भी दो जून की रोटी के लिए. कोरोना महामारी में एक दिहाड़ी श्रमिक और उसका परिवार नौकरी और रोटी के लिए तरस रहा है जबकि संयुक्त राष्ट्र इस बात को कह चुका है कि पौष्टिक आहार नहीं मिलने से गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है.

पढ़ें : कोविड-19: विकासशील दुनिया में खाद्य असुरक्षा, कुपोषण, गरीबी बढ़ सकती है: आईएफपीआरआई

आज एक गरीब आदमी और उसका गरीब राष्ट्र दो राहे पर आकर खड़ा हो गया है. वह करे तो क्या करे. पौष्टिक आहार के लिए पैसा चाहिए और पैसे के लिए नौकरी चाहिए. यही दो चीज आज एक गरीब के पास मौजूद नहीं है.

डब्ल्यूएफपी (पोषण) के निदेशक लॉरेन लैंडिस ने इस भयावह स्थिति से लोगों को चेताया है. उनका कहना है, 'अगर हम इन मुसीबतों से बाहर निकलने में विफल रहते हैं तो हमारी आने वाली पीढ़ियां जीवन स्वास्थ्य और उत्पादकता के विनाशकारी नुकसानों का सामना करेंगे. पोषण का अधिकार प्राप्त करना आज बच्चों के लिए यह निर्धारित करेगा कि कोरोना के परिणाम महीनों, वर्षों या दशकों तक महसूस किए जाएंगे या नहीं.

इस वर्ष की वैश्विक पोषण रिपोर्ट में पोषण में निहित असमानताओं पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें गरीबों की तकलीफ को प्रमुखता से उजागर किया गया है. बता दें कि जब भी सामाजिक –आर्थिक पतन होता है तो उससे सबसे पहले और सबसे अधिक एक बच्चे के प्रभावित होने का खतरा अधिक होता है.

पढ़ें : बाल रोग विशेषज्ञों की कमी के कारण हो रही शिशुओं की मौत

कुपोषण के कारण अचानक वजन घट जाता है और अगर समय पर उपचार नहीं हुआ तो व्यक्ति या बच्चा मर भी सकता है. डब्ल्यूएफपी ने दुनिया को इस बात से पहले ही अवगत करा दिया है कि कोरोना काल में खाद्य असुरक्षा के कारण 20 प्रतिशत बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार हो सकते हैं. यह संख्या अकेले खाद्य असुरक्षा का परिणाम है. स्वास्थ्य सुविधाओं के बंद होने के प्रभाव से बच्चों की कुपोषण दरों में और भी वृद्धि होगी.

कोरोना संकट ने हमें नाउम्मीदी की राह पर ला खड़ा किया है, जिससे हमें हर हाल में बाहर निकलना है. अब हमें तय करना है कि, हम आज मेहनत और मशक्कत करके अपने आने वाले पीढ़ी को कोरोना मुक्त सुनहरा भविष्य दे सकें. एक ऐसा विश्व उन्हें प्रदान करें, जहां कुपोषण और आंसुओं के लिए कोई स्थान न हो.

नई दिल्ली : कोरोना वायरस ने विश्व की दशा और दिशा बदल दी है. कमजोर हो रही आर्थिक व्यवस्था को उठाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. अब खबर है कि इस महामारी के कारण 10 मिलियन यानी कि एक करोड़ बच्चे कुपोषण के शिकार हो सकते हैं.

संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) का अनुमान है कि कोविड ​​-19 महामारी के परिणाम स्वरूप कुपोषण के इस खतरनाक रूप से पीड़ित बच्चों की संख्या में 20 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है.

सबसे अधिक डरने वाली बात तो यह है कि जो बच्चे कमजोर हैं, उन पर वायरस के संक्रमण का खतरा अधिक होता है. अगर बच्चों को अच्छा भोजन नहीं मिलेगा तो वे महामारी की चपेट में भी आ सकते हैं. दरअसल, कोरोना संकट में गरीब और दिहाड़ी मजदूर और उनके परिवार के लिए भोजन जुटाना आसमान से तारे तोड़कर लाने जैसा हो गया है.

यह वाकई कठिन परिस्थिति है, जिसका सामना गरीब वर्ग कर रहा है. वह भी दो जून की रोटी के लिए. कोरोना महामारी में एक दिहाड़ी श्रमिक और उसका परिवार नौकरी और रोटी के लिए तरस रहा है जबकि संयुक्त राष्ट्र इस बात को कह चुका है कि पौष्टिक आहार नहीं मिलने से गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है.

पढ़ें : कोविड-19: विकासशील दुनिया में खाद्य असुरक्षा, कुपोषण, गरीबी बढ़ सकती है: आईएफपीआरआई

आज एक गरीब आदमी और उसका गरीब राष्ट्र दो राहे पर आकर खड़ा हो गया है. वह करे तो क्या करे. पौष्टिक आहार के लिए पैसा चाहिए और पैसे के लिए नौकरी चाहिए. यही दो चीज आज एक गरीब के पास मौजूद नहीं है.

डब्ल्यूएफपी (पोषण) के निदेशक लॉरेन लैंडिस ने इस भयावह स्थिति से लोगों को चेताया है. उनका कहना है, 'अगर हम इन मुसीबतों से बाहर निकलने में विफल रहते हैं तो हमारी आने वाली पीढ़ियां जीवन स्वास्थ्य और उत्पादकता के विनाशकारी नुकसानों का सामना करेंगे. पोषण का अधिकार प्राप्त करना आज बच्चों के लिए यह निर्धारित करेगा कि कोरोना के परिणाम महीनों, वर्षों या दशकों तक महसूस किए जाएंगे या नहीं.

इस वर्ष की वैश्विक पोषण रिपोर्ट में पोषण में निहित असमानताओं पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें गरीबों की तकलीफ को प्रमुखता से उजागर किया गया है. बता दें कि जब भी सामाजिक –आर्थिक पतन होता है तो उससे सबसे पहले और सबसे अधिक एक बच्चे के प्रभावित होने का खतरा अधिक होता है.

पढ़ें : बाल रोग विशेषज्ञों की कमी के कारण हो रही शिशुओं की मौत

कुपोषण के कारण अचानक वजन घट जाता है और अगर समय पर उपचार नहीं हुआ तो व्यक्ति या बच्चा मर भी सकता है. डब्ल्यूएफपी ने दुनिया को इस बात से पहले ही अवगत करा दिया है कि कोरोना काल में खाद्य असुरक्षा के कारण 20 प्रतिशत बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार हो सकते हैं. यह संख्या अकेले खाद्य असुरक्षा का परिणाम है. स्वास्थ्य सुविधाओं के बंद होने के प्रभाव से बच्चों की कुपोषण दरों में और भी वृद्धि होगी.

कोरोना संकट ने हमें नाउम्मीदी की राह पर ला खड़ा किया है, जिससे हमें हर हाल में बाहर निकलना है. अब हमें तय करना है कि, हम आज मेहनत और मशक्कत करके अपने आने वाले पीढ़ी को कोरोना मुक्त सुनहरा भविष्य दे सकें. एक ऐसा विश्व उन्हें प्रदान करें, जहां कुपोषण और आंसुओं के लिए कोई स्थान न हो.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.