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कोरोना संकट : सामुदायिक रेडियो के माध्यम से लोगों में जागरूकता फैला रहे आदिवासी बच्चे

कोरोना वायरस के इस संकट में कई तरीकों से लोगों के बीच जागरूकता फैलाई जा रही है. इस प्रकिया में ओडिशा के कोरापुट जिले के आदिवासी बच्चे भी आगे आकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

odia tribals spreading awareness over corona on radio
सामुदायिक रेडियो के माध्यम से लोगों में जागरूकता फैला रहे आदिवासी बच्चे
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Published : Apr 25, 2020, 11:57 PM IST

भुवनेश्वर : कोरोना वायरस के इस संकट में कई तरीकों से लोगों के बीच जागरूकता फैलाई जा रही है. इस प्रकिया में ओडिशा के कोरापुट जिले के आदिवासी बच्चे भी आगे आकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं.

आदिवासी बच्चे अपनी जनजातीय बोली में कोरोना लॉकडाउन पर सामुदायिक रेडियो के माध्यम से जागरूकता फैला रहे हैं. कोरापुट के सुदूर गांवों में लिटी मालीगुडा गांव के स्व-निर्मित संगीतकार हरीशचंद्र माली हो या शोभा स्वयंसेवक संगठन द्वारा संचालित सामुदायिक रेडियो स्टेशन में आदिवासी बच्चों द्वारा निर्मित एक रेडियो नाटक. ये दोनों बहुत प्रचलित हो रहे हैं.

आदिवासी बच्चों के रेडियो धेमसा के एक श्रोता ने कहा कि यह बहुत लोकप्रिय हो गया है. धेमसा संदेश स्थानीय बोली में प्रचारित करता है, जिसे समझने में आसानी होती है. जनजाति इससे खुद को जुड़ा महसूस करती है.

धेमसा रेडियो के कार्यक्रम संपादक उदयनाथ हंथल ने कहा कि संगीत के साथ स्थानीय बोली में दिलचस्प तरीके से संदेश लिखना एक मुश्किल काम है. उन्होंने कहा कि सार्वजनिक हित के लिए काम करना किसी भी कठिनाई से कही आगे हैं.

भुवनेश्वर : कोरोना वायरस के इस संकट में कई तरीकों से लोगों के बीच जागरूकता फैलाई जा रही है. इस प्रकिया में ओडिशा के कोरापुट जिले के आदिवासी बच्चे भी आगे आकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं.

आदिवासी बच्चे अपनी जनजातीय बोली में कोरोना लॉकडाउन पर सामुदायिक रेडियो के माध्यम से जागरूकता फैला रहे हैं. कोरापुट के सुदूर गांवों में लिटी मालीगुडा गांव के स्व-निर्मित संगीतकार हरीशचंद्र माली हो या शोभा स्वयंसेवक संगठन द्वारा संचालित सामुदायिक रेडियो स्टेशन में आदिवासी बच्चों द्वारा निर्मित एक रेडियो नाटक. ये दोनों बहुत प्रचलित हो रहे हैं.

आदिवासी बच्चों के रेडियो धेमसा के एक श्रोता ने कहा कि यह बहुत लोकप्रिय हो गया है. धेमसा संदेश स्थानीय बोली में प्रचारित करता है, जिसे समझने में आसानी होती है. जनजाति इससे खुद को जुड़ा महसूस करती है.

धेमसा रेडियो के कार्यक्रम संपादक उदयनाथ हंथल ने कहा कि संगीत के साथ स्थानीय बोली में दिलचस्प तरीके से संदेश लिखना एक मुश्किल काम है. उन्होंने कहा कि सार्वजनिक हित के लिए काम करना किसी भी कठिनाई से कही आगे हैं.

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