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एनपीटी के 50 साल पूरे, जानें भारत क्यों इस संधि का हिस्सा नहीं बना

परमाणु अप्रसार संधि यानी एनपीटी के 50 साल पूरे हो गए हैं. 191 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं. भारत ने अब तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किया है. भारत इस संधि को भेदभावपूर्ण मानता है. आइए विस्तार से जानते हैं आखिर भारत ने किस आधार पर इस संधि का विरोध किया है.

डिजाइन फोटो
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Published : Mar 9, 2020, 7:22 PM IST

Updated : Mar 11, 2020, 11:24 PM IST

हैदराबाद : दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और रुस के बीच शुरू हुए शीत युद्ध के दौरान दुनिया भर में परमाणु हथियार सहित अन्य खतरनाक हथियार विशेषकर परमाणु हथियार हासिल करने की होड़ मच गई. हर देश परमाणु हथियार विकसित करना चाहता था. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा जापान पर गिराए गए परमाणु बम ने जो तबाही मचाई, उसे हर किसी ने देखा था.

इसके मद्देनजर 1968 में परमाणु संधि (NPT) वजूद में आई, जिसे 1970 में लागू किया गया. इस संधि का प्रस्ताव आयरलैंड ने पेश किया था. उस समय केवल 46 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए थे. इस पर सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाला राष्ट्र फिनलैंड था. इस संधि को वैश्विक परमाणु अप्रसार व्यवस्था की आधारशिला माना जाता है.

जापान पर परमाणु हमला
जापान पर परमाणु हमला

क्या है एनपीटी

एनपीटी एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसका उद्देश्य परमाणु हथियारों और हथियारों की तकनीक के प्रसार को रोकना, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग को बढ़ावा देना और परमाणु निरस्त्रीकरण और सामान्य और पूर्ण निरस्त्रीकरण को प्राप्त करने के लक्ष्य को आगे बढ़ाना है. इसका उद्देश्य परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना भी है.

देखें ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट

1970 में लागू हुई एनपीटी

1968 में इस संधि पर विश्व शक्तियों के साथ-साथ कई अन्य दोशों ने भी हस्ताक्षर किए. यह संधि 1970 में 25 वर्षों के लिए लागू की गई थी. 11 मई 1995 को, संधि को अनिश्चित काल के लिए बढ़ा दिया गया.

191 देश हो चुके हैं शामिल

इस संधि में अब तक कुल 191 राज्य शामिल हो चुके हैं. जिसमें अमेरिका, रुस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन भी शामिल हैं. ये सभी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं. संधि शांतिपूर्ण परमाणु प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देती है और सभी भागीदार देशों को शांति के लिए परमाणु प्रोद्यौगिकी का इस्तमाल करने के लिए सबको समान अधिकार देती है. हर पांच साल में संधि के संचालन की समीक्षा की जाती है.

पोखरण परीक्षण स्थल
पोखरण परीक्षण स्थल

भारत नहीं है संधि का हिस्सा

भारत 1970 में लागू की गई इस संधि का हिस्सा नहीं है. दरअसल, एनपीटी के तहत भारत को परमाणु संपन्न देश की मान्यता नहीं दी गई है. संधि के अनुसार परमाणु संपन्न देश का दर्जा केवल उन्हीं देशों को दिया गया है, जिन्होंने 1967 से पहले परमाणु परीक्षण किया हो, जबकि भारत ने पहली बार परमाणु परीक्षण 1974 में किया था. इसी भेदभाव के कारण भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए. भारत के अलावा पाकिस्तान, इजराइल, दक्षिण सूडान और उत्तर कोरिया भी इसका हिस्सा नहीं है.

पोखरण परीक्षण
पोखरण परीक्षण

भारत का तर्क है कि विकसित देशों ने पहले ही परमाणु हथियारों का भंडार बना लिया. इसलिए संधि होने के बाद अब किसी नए देश को उसमें दाखिल नहीं होने देना भेदभावपूर्ण नीति है.

फ्रांस ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, इसके बावजूद वह न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप का सदस्य बना. बाद में फ्रांस ने एनपीटी पर हस्ताक्षर किए. भारत चाहता है कि इसी तरह से उसे भी एनएसजी का सदस्य बनाया जाए, लेकिन चीन बार-बार अड़ंगा लगा रहा है. चीन और फ्रांस दोनों ने 1992 के बाद एनपीटी पर हस्ताक्षर किए थे.

पोखरण परमाणु टेस्ट
पोखरण परमाणु टेस्ट

इस संधि के मुताबिक हस्ताक्षर करने वाले देश किसी भी गैर परमाणु देशों को परमाणु हथियार नहीं बेचेंगे. और ना ही वे इन्हें इसे हासिल करने में मदद करेंगे. ये सभी देश परमाणु हथियार विकसित करने का प्रयास नहीं करेंगे. परमाणु ऊर्जा पर काम जारी रहेगा. यह सब अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की निगरानी में होगा.

पढ़ें- देश की अदालतों में यौन अपराध के जुड़े कितने मामले लंबित हैं, एक नजर

उत्तर कोरिया पहले था संधि का हिस्सा

उत्तर कोरिया ने 1985 में परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए. संधि में शामिल होने का बावजूद उत्तर कोरिया ने 1990 में परमाणु परीक्षण जारी रखा और परमाणु हथियार तैयार किए और संधि की उल्लंघन किया. आखिरकार 2003 में उ. कोरिया ने इस संधि ने अलग होने का निर्णय लिया.

उत्तर कोरिया का परमाणु परीक्षण
उत्तर कोरिया का परमाणु परीक्षण

ईरान और उत्तर कोरिया बड़ा खतरा

ईरान और उत्तर कोरिया ने इस संधि का पालन ठीक से नहीं किया, जिसके कारण माना जा रहा है कि इन दोनों देशों ने एनपीटी के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर दिया है. ईरान समय-समय पर इस संधि से अलग होने की धमकी देता रहा है. ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर ईरान इस संधि से अलग हुआ तो वह परमाणु हथियारों का निर्माण कर सकता है.

सऊदी और तुर्की भी दे चुका है धमकी

सऊदी अरब का कहना है कि अगर ईरान ने परमाणु हथियार पर काम करना शुरू किया, तो वह भी इस रास्ते पर चल पड़ेगा. ठीक इसी तरह से तुर्की भी बार-बार धमकी जारी करता रहता है.

हैदराबाद : दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और रुस के बीच शुरू हुए शीत युद्ध के दौरान दुनिया भर में परमाणु हथियार सहित अन्य खतरनाक हथियार विशेषकर परमाणु हथियार हासिल करने की होड़ मच गई. हर देश परमाणु हथियार विकसित करना चाहता था. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा जापान पर गिराए गए परमाणु बम ने जो तबाही मचाई, उसे हर किसी ने देखा था.

इसके मद्देनजर 1968 में परमाणु संधि (NPT) वजूद में आई, जिसे 1970 में लागू किया गया. इस संधि का प्रस्ताव आयरलैंड ने पेश किया था. उस समय केवल 46 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए थे. इस पर सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाला राष्ट्र फिनलैंड था. इस संधि को वैश्विक परमाणु अप्रसार व्यवस्था की आधारशिला माना जाता है.

जापान पर परमाणु हमला
जापान पर परमाणु हमला

क्या है एनपीटी

एनपीटी एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसका उद्देश्य परमाणु हथियारों और हथियारों की तकनीक के प्रसार को रोकना, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग को बढ़ावा देना और परमाणु निरस्त्रीकरण और सामान्य और पूर्ण निरस्त्रीकरण को प्राप्त करने के लक्ष्य को आगे बढ़ाना है. इसका उद्देश्य परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना भी है.

देखें ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट

1970 में लागू हुई एनपीटी

1968 में इस संधि पर विश्व शक्तियों के साथ-साथ कई अन्य दोशों ने भी हस्ताक्षर किए. यह संधि 1970 में 25 वर्षों के लिए लागू की गई थी. 11 मई 1995 को, संधि को अनिश्चित काल के लिए बढ़ा दिया गया.

191 देश हो चुके हैं शामिल

इस संधि में अब तक कुल 191 राज्य शामिल हो चुके हैं. जिसमें अमेरिका, रुस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन भी शामिल हैं. ये सभी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं. संधि शांतिपूर्ण परमाणु प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देती है और सभी भागीदार देशों को शांति के लिए परमाणु प्रोद्यौगिकी का इस्तमाल करने के लिए सबको समान अधिकार देती है. हर पांच साल में संधि के संचालन की समीक्षा की जाती है.

पोखरण परीक्षण स्थल
पोखरण परीक्षण स्थल

भारत नहीं है संधि का हिस्सा

भारत 1970 में लागू की गई इस संधि का हिस्सा नहीं है. दरअसल, एनपीटी के तहत भारत को परमाणु संपन्न देश की मान्यता नहीं दी गई है. संधि के अनुसार परमाणु संपन्न देश का दर्जा केवल उन्हीं देशों को दिया गया है, जिन्होंने 1967 से पहले परमाणु परीक्षण किया हो, जबकि भारत ने पहली बार परमाणु परीक्षण 1974 में किया था. इसी भेदभाव के कारण भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए. भारत के अलावा पाकिस्तान, इजराइल, दक्षिण सूडान और उत्तर कोरिया भी इसका हिस्सा नहीं है.

पोखरण परीक्षण
पोखरण परीक्षण

भारत का तर्क है कि विकसित देशों ने पहले ही परमाणु हथियारों का भंडार बना लिया. इसलिए संधि होने के बाद अब किसी नए देश को उसमें दाखिल नहीं होने देना भेदभावपूर्ण नीति है.

फ्रांस ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, इसके बावजूद वह न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप का सदस्य बना. बाद में फ्रांस ने एनपीटी पर हस्ताक्षर किए. भारत चाहता है कि इसी तरह से उसे भी एनएसजी का सदस्य बनाया जाए, लेकिन चीन बार-बार अड़ंगा लगा रहा है. चीन और फ्रांस दोनों ने 1992 के बाद एनपीटी पर हस्ताक्षर किए थे.

पोखरण परमाणु टेस्ट
पोखरण परमाणु टेस्ट

इस संधि के मुताबिक हस्ताक्षर करने वाले देश किसी भी गैर परमाणु देशों को परमाणु हथियार नहीं बेचेंगे. और ना ही वे इन्हें इसे हासिल करने में मदद करेंगे. ये सभी देश परमाणु हथियार विकसित करने का प्रयास नहीं करेंगे. परमाणु ऊर्जा पर काम जारी रहेगा. यह सब अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की निगरानी में होगा.

पढ़ें- देश की अदालतों में यौन अपराध के जुड़े कितने मामले लंबित हैं, एक नजर

उत्तर कोरिया पहले था संधि का हिस्सा

उत्तर कोरिया ने 1985 में परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए. संधि में शामिल होने का बावजूद उत्तर कोरिया ने 1990 में परमाणु परीक्षण जारी रखा और परमाणु हथियार तैयार किए और संधि की उल्लंघन किया. आखिरकार 2003 में उ. कोरिया ने इस संधि ने अलग होने का निर्णय लिया.

उत्तर कोरिया का परमाणु परीक्षण
उत्तर कोरिया का परमाणु परीक्षण

ईरान और उत्तर कोरिया बड़ा खतरा

ईरान और उत्तर कोरिया ने इस संधि का पालन ठीक से नहीं किया, जिसके कारण माना जा रहा है कि इन दोनों देशों ने एनपीटी के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर दिया है. ईरान समय-समय पर इस संधि से अलग होने की धमकी देता रहा है. ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर ईरान इस संधि से अलग हुआ तो वह परमाणु हथियारों का निर्माण कर सकता है.

सऊदी और तुर्की भी दे चुका है धमकी

सऊदी अरब का कहना है कि अगर ईरान ने परमाणु हथियार पर काम करना शुरू किया, तो वह भी इस रास्ते पर चल पड़ेगा. ठीक इसी तरह से तुर्की भी बार-बार धमकी जारी करता रहता है.

Last Updated : Mar 11, 2020, 11:24 PM IST
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