नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने असम को इनर लाइन परमिट (आईएलपी) से वंचित करने के उद्देश्य से बंगाल पूर्वी सीमांत नियमन (बीईएफआर) 1873 में संशोधन के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली असम छात्र संघों की याचिकाओं पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है साथ ही पीठ ने इन याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है.
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे़, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान राष्ट्रपति के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. इस मामले में दो हफ्ते बाद सुनवाई होगी.
बता दें कि आईएलपी व्यवस्था वाले राज्यों में बाहरी और देश के दूसरे राज्यों के लोगों को आने के लिए अनुमति लेना जरूरी है. इसके तहत स्थानीय लोगों को भूमि, रोजगार और अन्य सुविधाओं के मामले में संरक्षण प्राप्त है. छात्र संघों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि इनर लाइन परमिट व्यवस्था का मसला संवेदनशील है और न्यायालय को राष्ट्रपति के आदेश पर अंतरिम रोक लगानी चाहिए. जिस पर पीठ ने कहा कि सारे मामले में केंद्र का पक्ष सुने बगैर कोई अंतरिम रोक नहीं लगाई जा सकती है.
ऑल ताई अहोम स्टूडेंट्स यूनियन और असम जातीयता वादी युवा छात्र परिषद ने बीईएफआर में संशोधन करने के राष्ट्रपति के 11 दिसंबर, 2019 के आदेश को चुनौती देते हुए इसे असंवैधानिक बताया है. याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रपति ने संशोधन का यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 372(2) के तहत जारी किया है, जबकि अनुच्छेद 372 (3) के तहत संविधान लागू होने की तारीख से तीन साल तक यानी 1953 तक ही उन्हें यह शक्ति प्राप्त थी. ये छात्र संगठन नागरिकता संशोधन कानून के प्रभाव से संरक्षण के लिए राज्य में आईएलपी व्यवस्था लागू करने की मांग कर रहे हैं.
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वहीं नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ असम में कई छात्र संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. राष्ट्रपति द्वारा आदेश पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद मणिपुर में भी आईएलपी व्यवस्था का विस्तार हो गया है. अभी तक अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम में ही इनर लाइन परमिट व्यवस्था थी, लेकिन अब इसमें मणिपुर भी शामिल हो गया है.