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भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत में पिछले 46 साल में यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए. जानें क्या है पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Sep 13, 2019, 9:08 PM IST

Updated : Sep 30, 2019, 12:28 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत में पिछले कई साल में यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए.

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने देश के नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) बनाए जाने की वकालत (batted for) की. अदालत ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा 'उद्बोधन' (exhortations) के बावजूद इस वस्तु (यूनिफॉर्म सिविल कोड) को प्राप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए गोवा एक चमकता हुआ उदाहरण (shining example) है. शीर्ष अदालत ने कहा, गोवा में कुछ सीमित अधिकारों की रक्षा करते हुए, धर्म की परवाह किए बिना सभी लोगों पर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है. जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरूद्ध बोस की पीठ में ये टिप्पणी की गई.

पीठ ने कहा कि पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1867 उत्तराधिकार और वारिसी (inheritance) अधिकारों को नियंत्रित करेगा. ऐसा देश में कहीं भी रहने वाले गोवा के डोमिसाइल की संपत्तियों के संदर्भ में होगा.

शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा 'राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy) संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 44 के तहत आते हैं.' पीठ ने कहा कि यह रोचक है कि संविधान के संस्थापकों ने उम्मीद और अपेक्षा की थी, कि सरकार (state) पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) सुनिश्चित (secure) करेगी, लेकिन आज तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई है.'

सुप्रीम कोर्ट ने 31 पेज का फैसला लिखा है. फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा 'यद्यपि वर्ष 1956 में हिंदू कानूनों को संहिताबद्ध किया गया था, लेकिन इस अदालत के संबोधन (exhortations) के बावजूद देश के सभी नागरिकों पर लागू होने वाली एक समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) बनाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है.'

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में दो प्रश्नों की व्याख्या की है. पहले सवाल में ये पूछा गया है कि क्या पुर्तगाली नागरिक संहिता (Portuguese Civil Code) को विदेशी कानून कहा जा सकता है? एक अन्य सवाल में पूछा गया कि क्या अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांत लागू होंगे?

पीठ ने अपने फैसले में कहा कि ये कानून बिना भारत सरकार की मान्यता के लागू नहीं होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गोवा में पुर्तगाली सिविल कोड इसलिए लागू है, क्योंकि इसे भारत की संसद से अधिनियमित किया गया है.

अपने फैसले में पीठ ने कहा, 'इसलिए, पुर्तगाली कानून का मूल विदेशी हो सकता है, ये भारतीय कानूनों का एक हिस्सा बन गया. और, कुल मिलाकर संक्षेप में (in sum and substance) ये एक भारतीय कानून है. यह अब विदेशी कानून नहीं है.'

पीठ ने कहा 'गोवा भारत का एक प्रदेश है; गोवा के सभी अधिवास (domiciles) भारत के नागरिक हैं. पुर्तगाली नागरिक संहिता (Portuguese Civil Code) केवल अध्यादेश और ऊपर जिक्र किए गए अधिनियम के आधार पर लागू है.'

शीर्ष अदालत ने एक अन्य सवाल की भी व्याख्या की है. इसमें पूछा गया कि क्या गोवा के निवासी (domicile) की संपत्ति जो राज्य से बाहर है, वह पुर्तगाली नागरिक संहिता (Portuguese Civil Code) के तहत आएगी?

सवाल के दूसरे अंश में पूछा गया है, राज्य से बाहर गोवा निवासी की संपत्ति पर, देश के अन्य भागों में लागू भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (Indian Succession Act) या पर्सनल लॉ का क्या प्रभाव होगा?

पीठ ने स्पष्ट किया, 'गोवा का कोई नागरिक नहीं है, गोवा के अधिवासी (domiciles) हो सकते हैं, लेकिन सभी भारत के नागरिक हैं. भारतीय नागरिक होने के नाते संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत सभी लोगों को कहीं भी आने-जाने का अधिकार है. कुछ स्थानीय कानून और पाबंदियों को छोड़कर, लोगों को किसी स्थान पर संपत्ति खरीदने और रहने का भी अधिकार है.'

पुर्तगाली नागरिक संहिता (Portuguese Civil Code) पर पीठ ने कहा कि ये एक स्पेशल कानून है, जो गोवा के अधिवासियों (domiciles) पर लागू है. ये गोवा के भीतर और बाहर रहने वाले सभी डोमिसाइल पर लागू होगा.

(पीटीआई इनपुट)

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत में पिछले कई साल में यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए.

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने देश के नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) बनाए जाने की वकालत (batted for) की. अदालत ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा 'उद्बोधन' (exhortations) के बावजूद इस वस्तु (यूनिफॉर्म सिविल कोड) को प्राप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए गोवा एक चमकता हुआ उदाहरण (shining example) है. शीर्ष अदालत ने कहा, गोवा में कुछ सीमित अधिकारों की रक्षा करते हुए, धर्म की परवाह किए बिना सभी लोगों पर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है. जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरूद्ध बोस की पीठ में ये टिप्पणी की गई.

पीठ ने कहा कि पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1867 उत्तराधिकार और वारिसी (inheritance) अधिकारों को नियंत्रित करेगा. ऐसा देश में कहीं भी रहने वाले गोवा के डोमिसाइल की संपत्तियों के संदर्भ में होगा.

शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा 'राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy) संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 44 के तहत आते हैं.' पीठ ने कहा कि यह रोचक है कि संविधान के संस्थापकों ने उम्मीद और अपेक्षा की थी, कि सरकार (state) पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) सुनिश्चित (secure) करेगी, लेकिन आज तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई है.'

सुप्रीम कोर्ट ने 31 पेज का फैसला लिखा है. फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा 'यद्यपि वर्ष 1956 में हिंदू कानूनों को संहिताबद्ध किया गया था, लेकिन इस अदालत के संबोधन (exhortations) के बावजूद देश के सभी नागरिकों पर लागू होने वाली एक समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) बनाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है.'

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में दो प्रश्नों की व्याख्या की है. पहले सवाल में ये पूछा गया है कि क्या पुर्तगाली नागरिक संहिता (Portuguese Civil Code) को विदेशी कानून कहा जा सकता है? एक अन्य सवाल में पूछा गया कि क्या अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांत लागू होंगे?

पीठ ने अपने फैसले में कहा कि ये कानून बिना भारत सरकार की मान्यता के लागू नहीं होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गोवा में पुर्तगाली सिविल कोड इसलिए लागू है, क्योंकि इसे भारत की संसद से अधिनियमित किया गया है.

अपने फैसले में पीठ ने कहा, 'इसलिए, पुर्तगाली कानून का मूल विदेशी हो सकता है, ये भारतीय कानूनों का एक हिस्सा बन गया. और, कुल मिलाकर संक्षेप में (in sum and substance) ये एक भारतीय कानून है. यह अब विदेशी कानून नहीं है.'

पीठ ने कहा 'गोवा भारत का एक प्रदेश है; गोवा के सभी अधिवास (domiciles) भारत के नागरिक हैं. पुर्तगाली नागरिक संहिता (Portuguese Civil Code) केवल अध्यादेश और ऊपर जिक्र किए गए अधिनियम के आधार पर लागू है.'

शीर्ष अदालत ने एक अन्य सवाल की भी व्याख्या की है. इसमें पूछा गया कि क्या गोवा के निवासी (domicile) की संपत्ति जो राज्य से बाहर है, वह पुर्तगाली नागरिक संहिता (Portuguese Civil Code) के तहत आएगी?

सवाल के दूसरे अंश में पूछा गया है, राज्य से बाहर गोवा निवासी की संपत्ति पर, देश के अन्य भागों में लागू भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (Indian Succession Act) या पर्सनल लॉ का क्या प्रभाव होगा?

पीठ ने स्पष्ट किया, 'गोवा का कोई नागरिक नहीं है, गोवा के अधिवासी (domiciles) हो सकते हैं, लेकिन सभी भारत के नागरिक हैं. भारतीय नागरिक होने के नाते संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत सभी लोगों को कहीं भी आने-जाने का अधिकार है. कुछ स्थानीय कानून और पाबंदियों को छोड़कर, लोगों को किसी स्थान पर संपत्ति खरीदने और रहने का भी अधिकार है.'

पुर्तगाली नागरिक संहिता (Portuguese Civil Code) पर पीठ ने कहा कि ये एक स्पेशल कानून है, जो गोवा के अधिवासियों (domiciles) पर लागू है. ये गोवा के भीतर और बाहर रहने वाले सभी डोमिसाइल पर लागू होगा.

(पीटीआई इनपुट)

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No attempts made to frame Uniform Civil Code in India: SC
         New Delhi, Sep 13 (PTI) The Supreme Court on Friday batted for framing of a Uniform Civil Code (UCC) for citizens of the country and rued that no attempts have been made to achieve this object despite "exhortations" by the apex court.
         The top court observed that Goa is a "shining example" as it has a UCC applicable to all, regardless of religion "except while protecting certain limited rights".
         A bench of justices Deepak Gupta and Aniruddha Bose observed this in a verdict in which it held that the Portuguese Civil Code, 1867 shall govern rights of succession and inheritance in respect of properties of a Goan domicile situated anywhere in the country.
         "It is interesting to note that whereas the founders of the Constitution in Article 44 in Part IV dealing with the Directive Principles of State Policy had hoped and expected that the state shall endeavour to secure for the citizens a Uniform Civil Code throughout the territories of India, till date no action has been taken in this regard," the bench said.
         "Though Hindu laws were codified in the year 1956, there has been no attempt to frame a Uniform Civil Code applicable to all citizens of the country despite exhortations of this court...," the bench said in its 31-page verdict.
         The top court dealt with the question as to whether the Portuguese Civil Code can be said to be a foreign law and the principles of private international law are applicable.
         It said that these laws would not have been applicable unless recognised by the Indian government and the Portuguese Civil Code continued to apply in Goa only because of an Act of the Parliament of India.                            
         "Therefore, the Portuguese law which may have had foreign origin became a part of the Indian laws, and, in sum and substance, is an Indian law. It is no longer a foreign law. Goa is a territory of India; all domiciles of Goa are citizens of India; the Portuguese Civil Code is applicable only on account of the Ordinance and the Act referred to above," the bench said.
         It also dealt with another question as to whether the property of a Goan domicile, situated outside the territory of the state, would be governed by the Portuguese Civil Code or by the Indian Succession Act or by personal laws, as applicable in the rest of the country.
         "There are no Goan citizens; there can be domiciles of Goa but all are citizens of India. As Indian citizens, under Article 19 of the Constitution, they are free to move to any part of the country, reside there and buy property subject to the local laws and limitations," the bench noted.
         It said that the Portuguese Civil Code, being a special Act applicable only to domiciles of Goa, would be applicable to Goan domiciles in respect to all the properties within and outside Goa.
         The simmering debate over the UCC hit the headlines in 1985 after the Supreme Court had awarded maintenance to 60-year-old divorcee Shah Bano.
         This judgement was referred to in the present case along with another judgement of 1995 in Sarla Mudgal case which deals with issue of bigamy, conflict between the personal laws existing on matters of marriage.
         The Sarla Mudgal case is considered as a landmark verdict which highlighted the need for a UCC.
         On July 23, 2003, an apex court bench led by the then CJI V N Khare had said that Article 44 was based on the premise that there was no necessary connection between religious and personal law in a civilised society.
         On October 12, 2015, while dealing with a divorce case under the Christian Divorce Act, a Supreme Court bench headed by the then Justice Vikramajit Sen had asked the government to take a quick decision on the UCC to end the confusion over personal community laws. PTI ABA RKS
ZMN
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Last Updated : Sep 30, 2019, 12:28 PM IST
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