मुबंई : नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) पास होने के बाद देशभर में इसके खिलाफ प्रदर्शन किया जा रहा है. इस कानून के खिलाफ राजनेता से लेकर अभिनेता हैं. इसी कड़ी में बॉलीवुड के अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, फिल्म निर्माता मीरा नायर, गायक टीएम कृष्णा, लेखक अमिताभ घोष और इतिहासकार रोमिला थापर सहित भारत के रचनात्मक और बुद्धजीवी वर्ग के 300 से अधिक लोग सीएए और राष्ट्रीय नागरिक पंजीयन (एनआरसी) का विरोध कर रहे हैं.
13 जनवरी को भारतीय सांस्कृतिक मंच पर एक नोट प्रकाशित किया गया. इस पर हस्ताक्षर करने वाले लोगों ने कहा था कि सीएए और एनआरसी भारत की आत्मा के लिए एक खतरा है.
नोट में कहा गया कि हम सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों और अन्य प्रदर्शनकारियों के साथ एकजुटता के साथ खड़े हैं. हम उन सभी लोगों का सम्मान करते हैं. जो भारतीय संविधान के सिद्धांतों के साथ समाज कि विविधता के लिए आवाज उठा रहे हैं.
नोट में प्रकाशित किया गया कि हम इस बात से अवगत हैं कि हम हमेशा उस वादे पर खरे नहीं उतरे हैं, और हम में से कई लोग अक्सर अन्याय के विरोध में चुप रहते हैं. इस क्षण की गंभीरता मांग करती है कि हम में से प्रत्येक अपने सिद्धांतों के लिए खड़ा हो.
नोट पर लेखिका अनीता देसाई, किरन देसाई, अभिनेता रतन पाटक शाह जावेद जाफरी, नंदिता दास समाजशास्त्री आशीष नंदे कार्यकर्ता सोहेल हाशमी ने पर हस्ताक्षर किया है.
नोट में कहा गया कि वर्तमान सरकार की नीतियां और कार्य बिना किसी सार्वजनिक या खुले चर्चा के बिना ही संसद से पास हो जाता है. जो धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के सिद्धांतों के खिलाफ है.
राष्ट्र की आत्मा को खतरा है. हमारे लाखों भारतीय भारतीयों की जीविका और नागरिकता दांव पर है.
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एनआरसी के तहत, जो कोई भी अपनी वंशावली (जो कई के पास है भी नहीं) साबित करने में नाकाम रहेगा, उसकी नागरिकता जा सकती है.
बयान में कहा गया है कि एनआरसी में जिसे भी अवैध माना जाएगा, उसमें मुस्लिमों को छोड़कर सभी को सीएए के तहत भारत की नागरिकता दे दी जाएगी.
शख्सियतों ने कहा कि सरकार के घोषित उद्देश्य के विपरीत, सीएए से प्रतीत नहीं होता है इस कानून का मतलब केवल उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को आश्रय देना है.
उन्होंने श्रीलंका, चीन और म्यामांर जैसे पड़ोसी देशों को सीएए से बहार रखने पर सवाल किया.
बयान में कहा गया है कि क्या ऐसा इसलिए है कि इन देशों में सत्तारूढ़ मुस्लिम नहीं हैं? ऐसा लगता है कि कानून का मानना है कि केवल मुस्लिम सरकारें धार्मिक उत्पीड़न की अपराधी हो सकती हैं.
इस क्षेत्र में सबसे अधिक उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों, म्यामां के रोहिंग्या या चीन के उइगरों को बाहर क्यों रखा गया है? यह कानून केवल मुस्लिमों को अपराधी मानता है, मुस्लिमों को पीड़ित नहीं मानता है.
शख्सियतों ने कहा कि सरकार के घोषित उद्देश्य के विपरीत, सीएए से प्रतीत नहीं होता है इस कानून का मतलब केवल उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को आश्रय देना है.
उन्होंने श्रीलंका, चीन और म्यामांर जैसे पड़ोसी देशों को सीएए से बहार रखने पर सवाल किया.
बयान में कहा गया है कि क्या ऐसा इसलिए है कि इन देशों में सत्तारूढ़ मुस्लिम नहीं हैं? ऐसा लगता है कि कानून का मानना है कि केवल मुस्लिम सरकारें धार्मिक उत्पीड़न की अपराधी हो सकती हैं.
इस क्षेत्र में सबसे अधिक उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों, म्यामां के रोहिंग्या या चीन के उइगरों को बाहर क्यों रखा गया है? यह कानून केवल मुस्लिमों को अपराधी मानता है, मुस्लिमों को पीड़ित नहीं मानता है.
उन्होंने कहा कि लक्ष्य साफ है कि मुसलमानों का स्वागत नहीं है.
बयान में कहा गया है कि नया कानून न केवल सत्ता की ओर से धार्मिक उत्पीड़न को लेकर नहीं है, बल्कि असम, पूर्वोत्तर और कश्मीर में मूल निवासियों की पहचान और आजीविका के लिए भी खतरा है.
उन्होंने कहा है कि वे इसे माफ नहीं करेंगे.
बयान में जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे देश भर के विश्वविद्यालयों के छात्रों पर पुलिस की कार्रवाई की भी आलोचना की गई.
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उन्होंने कहा, पुलिस की बर्बरता ने सैकड़ों लोगों को घायल कर दिया है, जिसमें जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कई छात्र शामिल हैं. विरोध करते हुए कई नागरिक मारे गए हैं. कई और लोगों को अस्थायी रूप से हिरासत में रखा गया है। विरोध को रोकने के लिए कई राज्यों में धारा 144 लगाई गई है.
उन्होंने कहा कि बहुत हो चुका और वे भारत की धर्मनिरपेक्ष और समावेशी दृष्टि के लिए खड़े हैं.
बयान में कहा गया है, हम उन लोगों के साथ खड़े हैं जो मुस्लिम विरोधी और विभाजनकारी नीतियों का बहादुरी से विरोध करते हैं. हम उन लोगों के साथ खड़े हैं जो लोकतंत्र के लिए खड़े हैं. हम सड़कों पर और सभी प्लेटफार्मों पर आपके साथ रहेंगे. हम एकजुट हैं.