ETV Bharat / bharat

वोट दोहन का एक और प्रयोग

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन (एनआरसी) लागू किए जाने के ऐलान के बाद प्रदेश की राजनीति गरमा गई है. रोचक तथ्य यह है कि प्रदेश के अधिकतर जन साधारण को इस बारे में पूरी तरह से जानकारी नहीं. क्या है एनआरसी की पूरी अवधारणा ? असम के बाद क्यों हो रही है हरियाणा की चर्चा

मनोहर लाल खट्टर
author img

By

Published : Oct 3, 2019, 4:47 PM IST

Updated : Oct 3, 2019, 5:52 PM IST

नई दिल्ली : दो अक्तूबर को आज महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर 'प्रयोग' नामक शब्द रह रह कर मेरे ज़ेहन में उठ रहा है. यह अनायास ही नहीं. आजकल के संसदीय और विधान सभा चुनावों में वोटों के दोहन के लिए तरह तरह के प्रयोग हो रहे हैं. वैसे, इस 'प्रयोग' शब्द का गांधी जी के सत्य को लेकर किए गए प्रयोगों से दूर-दूर तक का कोई वास्ता नहीं. वोटों के दोहन के लिए इन प्रयोगों में साम-दाम-दण्ड-भेद, कुछ भी चलेगा. देश के चुनावी चौसर पर आज लगभग सभी सियासी पार्टियां इन प्रयोगों की भिन्न भिन्न गोटियां खेलने में संकोच नहीं करती. फिर भी, भारतीय जनता पार्टी इन सब पर बाज़ी मार कर केंद्रीय सत्ता के शिखर पर और अधिकतर राज्यों में सत्तासीन है.

वोटरों के ध्रुवीकरण या यों कहें कि वोटों के दोहन का सबसे पहला प्रयोग भाजपा ने राम का नाम लेकर शुरू किया था और बाद में गो माता की पूंछ पकड़ने से लेकर अब राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) तक इन प्रयोगों का सिलसिला निरंतर जारी है.

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन (एनआरसी) लागू किए जाने के ऐलान के बाद प्रदेश की राजनीति गरमा गई है . रोचक तथ्य यह कि प्रदेश के अधिकतर जन साधारण को इस बारे में पूरी तरह से जानकारी नहीं. मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपनी सरकार के तीन साल पूरे होने के अवसर पर भी एनआरसी लागू करने का ऐलान किया था.

हरियाणा में फरीदाबाद, गुरुग्राम, पानीपत, सोनीपत, यमुनानगर आदि जिले ऐसे हैं जहां इस समय स्थानीय बाशिंदों के मुकाबले प्रवासियों की संख्या अधिक हो गई है. सरकारी सूत्रों के अनुसार फरीदाबाद व गुरुग्राम आदि जिले तो ऐसे हैं जहां प्रवासियों की दर्जनों कालोनियां बसी हुई हैं.

ये भी पढ़ें: हरियाणा में भी लागू होगा NRC, लॉ कमीशन के गठन पर विचार - मनोहर लाल खट्टर

हरियाणा में वर्ष 1996 के बाद ज्यादातर उद्योगों की स्थापना हुई है. जिसके बाद यहां दूसरों राज्यों से अथवा पड़ोसी देशों के लोगों का आवागमन बढ़ा है. इसके लिए बकायदा असम सरकार से ड्राफ्ट पॉलिसी मंगवाई जा रही है. जिसका अध्ययन करने के बाद उसे हरियाणा के संदर्भ में लागू किए जाने की योजना है.

हरियाणा में क्या है आधार-
राज्य में पुरानी वोटों की वैरीफिकेशन तथा नई वोटें बनवाने के दौरान पता चला कि उपरोक्त जिलों में बहुत से लोग ऐसे हैं जो रहते तो हरियाणा में हैं लेकिन उनके वोट उत्तर प्रदेश, बिहार तथा नार्थ ईस्ट के राज्यों में बने हुए हैं. जिसके चलते सरकार ने हरियाणा में भी असम की तर्ज पर नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन (एनआरसी) लागू करने का फैसला किया .

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा प्रदेश में नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन का मुद्दा उठाए जाने के बाद विपक्षी दलों ने सरकार की घेराबंदी शुरू कर दी है. उनका कहना है कि मुख्यमंत्री को इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर घोषणा करने से पहले सर्वदलीय बैठक में सभी की राय लेनी चाहिए..

इस मुद्दे पर बीते मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पश्चिमी बंगाल में एक सभा में दिए गये वक्तव्य से अब यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा का मुख्य निशाना केवल मुस्लिम 'घुसपैठिए' हैं. शाह ने एलान किया है कि भाजपा बाहर से आकर बसे हिंदू, ईसाई , सिख और बौद्ध समुदायों के हितों को संरक्षण देगी.

हरियाणा में भाजपा सरकार के पिछले कार्यकाल के शुरू में भी जाट आंदोलन से निपटने के नाम पर ग़ैर जाट वोटरों के ध्रुवीकरण का एक प्रयोग हो भी चुका है.अब उत्तर प्रदेश में एन आर सी का कामकाज पुलिस के हवाले किए जाने से ज़ाहिर है कि हरियाणा भी इस विधान सभा चुनाव में एन आर सी की प्रयोगशाला बनकर रहेगी.

ये भी पढ़ें: हरियाणा में NRC पर सरकार के साथ भूपेंद्र सिंह हुड्डा, बोले- जो विदेशी होंगे उन्हें जाना पड़ेगा

राज्य के विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर भाजपा सरकार को घेरने का भले ही प्रयास शुरू कर दिया है. यह बात दीगर है चाहे वह भूपिन्दर सिंह हुड्डा हों, चौटाला बंधु हों या फिर लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के राजकुमार सेनी, सभी ने अपनी ज़रूरत के अनुसार जाटों, ग़ैर जाटों और अन्य समुदायों में जाति सम्प्रदाय के आधार पर वोटों का दोहन करने का प्रयास बेझिझक किया है.

राम नाम हो या गोकशी, पुलवामा हो या 370 का राष्ट्रवाद सभी प्रयोगों में अव्वल रहने के बाद भाजपा भरपूर उत्साह में है. एनआरसी भी हरियाणा की प्रयोगशाला में एक बार फिर से अपना जलवा दिखाए तो हैरत की बात नहीं.

पुनश्च: सर्वधर्म सद्भाव और वसुदैव कुटुंब के ध्वजवाहक महात्मा गांधी आज के इन प्रयोगों पर शायद यह कहकर मौन हो जाते : हे राम.

-एनआरसी है क्या-
देश में असम इकलौता राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है. असम में सिटिजनशिप रजिस्टर देश में लागू नागरिकता कानून से अलग है. असम समझौता 1985 से लागू है. इस समझौते के मुताबिक, 24 मार्च 1971 की आधी रात तक राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा.

नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) के मुताबिक, जिस व्यक्ति का सिटिजनशिप रजिस्टर में नहीं होता है उसे अवैध नागरिक माना जाता है. इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था. इसमें यहां के हर गांव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम और संख्या दर्ज की गई है.

ये भी पढ़ें: विस्तार से जानें नागरिकता संशोधन विधेयक (NRC) के बारे में

असम सरकार ने दिसंबर 2013 में एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू की थी. जिसके तहत राज्य के सभी लोगों से दस्तावेजों मांगे गए थे. जिसके माध्यम से यह पता चल सके कि उनके परिवार 24 मार्च, 1971 से पहले भारत में रह रहे थे.

एनआरसी की रिपोर्ट से ही पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं है. वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों और से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा. इसके बाद 1951 में पहली बार एनआरसी के डाटा का अपटेड किया गया.

असम ने क्यों लागू किया एनआरसी:
असम में वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भारी संख्या में शरणार्थियों का पहुंचना जारी रहा और इससे राज्य की आबादी का स्वरूप बदलने लगा. 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (आसू) ने एक आंदोलन शुरू किया था. आसू के छह साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौत पर हस्ताक्षर किए गए थे.

ये भी पढ़ें: NRC की सूची में नहीं है नाम तो चुनें ये विकल्प

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार उसकी देखरेख में 2015 से जनगणना का काम शुरू किया गया. इस साल जनवरी में असम के सिटीजन रजिस्टर में 1.9 करोड़ लोगों के नाम दर्ज किए गए थे जबकि 3.29 आवेदकों ने आवेदन किया था.

(लेखक- नरेश कौशल, वरिष्ठ पत्रकार)

नई दिल्ली : दो अक्तूबर को आज महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर 'प्रयोग' नामक शब्द रह रह कर मेरे ज़ेहन में उठ रहा है. यह अनायास ही नहीं. आजकल के संसदीय और विधान सभा चुनावों में वोटों के दोहन के लिए तरह तरह के प्रयोग हो रहे हैं. वैसे, इस 'प्रयोग' शब्द का गांधी जी के सत्य को लेकर किए गए प्रयोगों से दूर-दूर तक का कोई वास्ता नहीं. वोटों के दोहन के लिए इन प्रयोगों में साम-दाम-दण्ड-भेद, कुछ भी चलेगा. देश के चुनावी चौसर पर आज लगभग सभी सियासी पार्टियां इन प्रयोगों की भिन्न भिन्न गोटियां खेलने में संकोच नहीं करती. फिर भी, भारतीय जनता पार्टी इन सब पर बाज़ी मार कर केंद्रीय सत्ता के शिखर पर और अधिकतर राज्यों में सत्तासीन है.

वोटरों के ध्रुवीकरण या यों कहें कि वोटों के दोहन का सबसे पहला प्रयोग भाजपा ने राम का नाम लेकर शुरू किया था और बाद में गो माता की पूंछ पकड़ने से लेकर अब राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) तक इन प्रयोगों का सिलसिला निरंतर जारी है.

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन (एनआरसी) लागू किए जाने के ऐलान के बाद प्रदेश की राजनीति गरमा गई है . रोचक तथ्य यह कि प्रदेश के अधिकतर जन साधारण को इस बारे में पूरी तरह से जानकारी नहीं. मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपनी सरकार के तीन साल पूरे होने के अवसर पर भी एनआरसी लागू करने का ऐलान किया था.

हरियाणा में फरीदाबाद, गुरुग्राम, पानीपत, सोनीपत, यमुनानगर आदि जिले ऐसे हैं जहां इस समय स्थानीय बाशिंदों के मुकाबले प्रवासियों की संख्या अधिक हो गई है. सरकारी सूत्रों के अनुसार फरीदाबाद व गुरुग्राम आदि जिले तो ऐसे हैं जहां प्रवासियों की दर्जनों कालोनियां बसी हुई हैं.

ये भी पढ़ें: हरियाणा में भी लागू होगा NRC, लॉ कमीशन के गठन पर विचार - मनोहर लाल खट्टर

हरियाणा में वर्ष 1996 के बाद ज्यादातर उद्योगों की स्थापना हुई है. जिसके बाद यहां दूसरों राज्यों से अथवा पड़ोसी देशों के लोगों का आवागमन बढ़ा है. इसके लिए बकायदा असम सरकार से ड्राफ्ट पॉलिसी मंगवाई जा रही है. जिसका अध्ययन करने के बाद उसे हरियाणा के संदर्भ में लागू किए जाने की योजना है.

हरियाणा में क्या है आधार-
राज्य में पुरानी वोटों की वैरीफिकेशन तथा नई वोटें बनवाने के दौरान पता चला कि उपरोक्त जिलों में बहुत से लोग ऐसे हैं जो रहते तो हरियाणा में हैं लेकिन उनके वोट उत्तर प्रदेश, बिहार तथा नार्थ ईस्ट के राज्यों में बने हुए हैं. जिसके चलते सरकार ने हरियाणा में भी असम की तर्ज पर नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन (एनआरसी) लागू करने का फैसला किया .

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा प्रदेश में नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन का मुद्दा उठाए जाने के बाद विपक्षी दलों ने सरकार की घेराबंदी शुरू कर दी है. उनका कहना है कि मुख्यमंत्री को इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर घोषणा करने से पहले सर्वदलीय बैठक में सभी की राय लेनी चाहिए..

इस मुद्दे पर बीते मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पश्चिमी बंगाल में एक सभा में दिए गये वक्तव्य से अब यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा का मुख्य निशाना केवल मुस्लिम 'घुसपैठिए' हैं. शाह ने एलान किया है कि भाजपा बाहर से आकर बसे हिंदू, ईसाई , सिख और बौद्ध समुदायों के हितों को संरक्षण देगी.

हरियाणा में भाजपा सरकार के पिछले कार्यकाल के शुरू में भी जाट आंदोलन से निपटने के नाम पर ग़ैर जाट वोटरों के ध्रुवीकरण का एक प्रयोग हो भी चुका है.अब उत्तर प्रदेश में एन आर सी का कामकाज पुलिस के हवाले किए जाने से ज़ाहिर है कि हरियाणा भी इस विधान सभा चुनाव में एन आर सी की प्रयोगशाला बनकर रहेगी.

ये भी पढ़ें: हरियाणा में NRC पर सरकार के साथ भूपेंद्र सिंह हुड्डा, बोले- जो विदेशी होंगे उन्हें जाना पड़ेगा

राज्य के विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर भाजपा सरकार को घेरने का भले ही प्रयास शुरू कर दिया है. यह बात दीगर है चाहे वह भूपिन्दर सिंह हुड्डा हों, चौटाला बंधु हों या फिर लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के राजकुमार सेनी, सभी ने अपनी ज़रूरत के अनुसार जाटों, ग़ैर जाटों और अन्य समुदायों में जाति सम्प्रदाय के आधार पर वोटों का दोहन करने का प्रयास बेझिझक किया है.

राम नाम हो या गोकशी, पुलवामा हो या 370 का राष्ट्रवाद सभी प्रयोगों में अव्वल रहने के बाद भाजपा भरपूर उत्साह में है. एनआरसी भी हरियाणा की प्रयोगशाला में एक बार फिर से अपना जलवा दिखाए तो हैरत की बात नहीं.

पुनश्च: सर्वधर्म सद्भाव और वसुदैव कुटुंब के ध्वजवाहक महात्मा गांधी आज के इन प्रयोगों पर शायद यह कहकर मौन हो जाते : हे राम.

-एनआरसी है क्या-
देश में असम इकलौता राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है. असम में सिटिजनशिप रजिस्टर देश में लागू नागरिकता कानून से अलग है. असम समझौता 1985 से लागू है. इस समझौते के मुताबिक, 24 मार्च 1971 की आधी रात तक राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा.

नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) के मुताबिक, जिस व्यक्ति का सिटिजनशिप रजिस्टर में नहीं होता है उसे अवैध नागरिक माना जाता है. इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था. इसमें यहां के हर गांव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम और संख्या दर्ज की गई है.

ये भी पढ़ें: विस्तार से जानें नागरिकता संशोधन विधेयक (NRC) के बारे में

असम सरकार ने दिसंबर 2013 में एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू की थी. जिसके तहत राज्य के सभी लोगों से दस्तावेजों मांगे गए थे. जिसके माध्यम से यह पता चल सके कि उनके परिवार 24 मार्च, 1971 से पहले भारत में रह रहे थे.

एनआरसी की रिपोर्ट से ही पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं है. वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों और से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा. इसके बाद 1951 में पहली बार एनआरसी के डाटा का अपटेड किया गया.

असम ने क्यों लागू किया एनआरसी:
असम में वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भारी संख्या में शरणार्थियों का पहुंचना जारी रहा और इससे राज्य की आबादी का स्वरूप बदलने लगा. 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (आसू) ने एक आंदोलन शुरू किया था. आसू के छह साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौत पर हस्ताक्षर किए गए थे.

ये भी पढ़ें: NRC की सूची में नहीं है नाम तो चुनें ये विकल्प

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार उसकी देखरेख में 2015 से जनगणना का काम शुरू किया गया. इस साल जनवरी में असम के सिटीजन रजिस्टर में 1.9 करोड़ लोगों के नाम दर्ज किए गए थे जबकि 3.29 आवेदकों ने आवेदन किया था.

(लेखक- नरेश कौशल, वरिष्ठ पत्रकार)

Intro:Body:Conclusion:
Last Updated : Oct 3, 2019, 5:52 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.