नई दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नगालैंड को छह महीने के लिए 'अशांत क्षेत्र' घोषित कर दिया है. गृह मंत्रालय ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है. अधिसूचना के अनुसार नया आदेश 30 दिसंबर, 2020 से छह महीने की अवधि के लिए प्रभावी होगा.
अधिसूचना में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लिखा है कि नगालैंड अशांत और खतरनाक स्थिति में है, जिससे वहां नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का प्रयोग करना आवश्यक है.
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गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव पीयूष गोयल की ओर से जारी अधिसूचना में लिखा गया है कि संपूर्ण नगालैंड राज्य को 30 दिसंबर, 2020 छह माह की अवधि तक अशांत क्षेत्र घोषित करती है.
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि यह फैसला इसलिए किया गया क्योंकि राज्य के विभिन्न हिस्सों में हत्याएं, लूट और जबरन वसूली जारी है.
बता दें कि पूर्वोत्तर के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में विभिन्न संगठन आफस्पा को वापस लेने की मांग करते रहे हैं. इनका आरोप है कि इस कानून से सुरक्षा बलों को 'व्यापक अधिकार' मिल जाता है.
नगालैंड से जुड़े एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में तीन अगस्त, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में नगा विद्रोही समूह एनएससीएन-आईएम के महासचिव टी मुइवा और सरकार के वार्ताकार आर एन रवि द्वारा एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद भी एएफएसपीए को वापस नहीं लिया गया था.
क्या है आफस्पा
आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA) उन क्षेत्रों में लगाया जाता है जहां सिविल अधिकारियों की सहायता के लिए सशस्त्र बलों की जरूरत भी पड़ती है. किसी क्षेत्र में वैध तरीके से आफस्पा लागू किए जाने के लिए, उस क्षेत्र को 1958 अधिनियम की धारा 3 के तहत केंद्र या राज्य सरकार द्वारा 'अशांत' घोषित किया जाता है.
बता दें कि नगालैंड में आफस्पा कई दशकों से लागू है. केंद्र सरकार पिछले कई वर्षों से इसकी अवधि छह-छह माह के लिए बढ़ाती रही है. विगत जुलाई में भी केंद्र सरकार ने नगालैंड को आफस्पा के तहत अशांत बताया था.
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पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में आफस्पा
इससे पहले विगत अगस्त में पूर्वोत्तर के एक अन्य राज्य असम में सरकार ने सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम, 1958 (आफस्पा) की अवधि छह महीने के लिये बढ़ा दी थी. इस संबंध में एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि असम को हाल ही में पूर्वोत्तर में सुरक्षा बलों पर हुए उग्रवादी हमलों और विभिन्न हिस्सों से अवैध हथियार और विस्फोटक बरामद होने के कारण 'अशांत क्षेत्र' घोषित किया गया है.
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बता दें कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री नेफियू रियो तथा एनपीएफ के नेता टीआर जेलियांग के साथ 20 अक्टूबर को दिल्ली में अलग-अलग बैठक की थी. इस बैठक के बाद दोनों ने 18 दिसंबर को संयुक्त बयान जारी करके साथ काम करने और समाधान निकालने की खातिर विभिन्न नगा समूहों को एक मंच पर लाने की बात कही थी.
गौरतलब है कि कोविड-19 महामारी के बावजूद नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुईवाह) और सात संगठनों वाले नगा नेशनल पोलिटिकल ग्रुप्स (एनएनपीजी) के साथ अलग-अलग शांति वार्ता की जा रही थी. हालांकि, एनएससीएन(आईएम) की पृथक नगा झंडे और संविधान की मांग के कारण 2020 में नगा शांति वार्ता अंजाम तक नहीं पहुंची.
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एनएससीएन(आईएम) ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के बदले पृथक नगा झंडे और संविधान की मांग दोहराई जकि एनएनपीजी की कामकाजी समिति ने कहा कि वह ऐसी किसी भी शर्त के बिना समझौते के लिए तैयार है.
यहां तक कि एनएससीएन(आईएम) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेज समूह तथा केंद्र के बीच दो दशक से भी अधिक पहले की राजनीतिक वार्ता 'प्रधानमंत्री स्तर' पर, बिना किसी पूर्व शर्त के किसी तीसरे देश में बहाल करने की भी मांग की.
इससे पहले विगत अक्टूबर में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन (आईएम) संगठन ने पूर्वोत्तर राज्य में उग्रवाद के मुद्दे को सुलझाने संबंधी वार्ता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रत्यक्ष भागीदारी की मांग की है.
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एनएससीएन (आईएम) ने इस बात पर भी जोर दिया कि वार्ता किसी 'तीसरे देश' में की जाए. समूह के महासचिव थुइंगालेंग मुइवा ने गत 25 फरवरी को प्रधानमंत्री को यह पत्र लिखा था लेकिन अब तक इसे सामने नहीं लाया गया था.