जाने माने अर्थशास्त्री सी रंगराजन ने कहा है कि अगर अगले पांच सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचना है, तो इसमे सालाना 8% की ग्रोथ रेट होनी चाहिये. निर्माण उद्योग में गिरावट, सामान की बाजार में मांग में कमी, निवेश में निजी हिस्सेदारी में कमी और दुनिया में मंदी के कारण निर्यात में कमी के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले छह सालों में अपने सबसे निचले स्तर पर है.
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन का कहना है कि मंदी से परेशान होने की जरूरत नहीं है. इसे तरक्की के धीमे होने की तरह देखना चाहिये. हांलाकि अपनी नीतियों में छूट देकर केंद्र सरकार विदेशी निवेश को भारत लाने की पूरी कोशिशें कर रही है, लेकिन इन सबके बावजूद देश की अर्थव्यवस्था को जिस मदद की उम्मीद है वो मिलती नहीं दिख रही है.
विश्व बैंक ने हाल ही में भारत में आर्थिक संभावनाओं की तारीफ करते हुए कहा है कि, भारत जैसे बड़े देश के लिये इतनी चुनौतियों के बावजूद विश्व में 77वें स्थान से 63वें स्थान तक 14 नंबर की छलांग लगाना आसान नहीं है. अमरीका और चीन के आर्थिक टकराव के कारण जो बड़ी कंपनियां चीन से अपना बेस हटा रही हैं, उन्हें भारतीय संभावनाओं के बारे में बताने के लिये मोदी सरकार ने एक खास कमेटी का गठन किया है. इस संदर्भ में वियतनाम भी भारत से आगे है. ऐसे में सरकार बड़ी कंपनियों को मेक इन इंडिया कार्यक्रम में लाकर कई तरह की सुविधाऐं देने की कोशिश कर रही है.
भारत में आर्थिक बदलाव आने के 28 साल बाद भी विदेशी निवेश को लेकर यहां मौजूद संभावनाओं को पूर्ण रूप से नहीं खपाया गया है. इसमें उच्च स्तर पर नीतियों के क्रियान्वयन में ढिलाई जिम्मेदार है, जो सीधे तौर पर देश के विकास पर असर डालती है.
विश्व व्यापार अनूकूलिता सूची में भारत 142वें स्थान से 63वें स्थान पर जा पहुंचा है, जो देश के लिये फक्र की बात है. लेकिन इस साल भारत की रैंकिंग अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा सूची में 10 स्थान नीचे हो गई है.
दुनिया भर में बढ़ रही प्रतिस्पर्धा के कारण श्रम सुधारों की जरूरत दुव्वूरी सुब्बाराव ने साफ की है - संपत्ति पंजीकरण, उधारी, छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा, करों का भुगतान और करारों को लागू कराने में विश्व बैंक ने भी अहम भूमिका निभाई है. भारत में कोई व्यापार शुरू करना कितना आसान है, ये उसकी विश्व में 136वीं रैंक बताती है.
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भारत में ऊंचे स्टैंप शुल्क के कारण संपत्ति पंजीकरण में लगातार गिरावट आ रही है. ज्यादा स्टैंप ड्यूटी से बचने के लिये लोग बिक्री की असल कीमत को कम करके दिखाते हैं जो कि राजस्व कमाई में नुकसान करता है. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मूलभूत संसाधनों, जैसे कि घरों की कमी को ठीक करने की तरफ कदम उठा रहा है. इस क्षेत्र में 190 देशों में भारत का स्थान 154 है.
दो महीने पहले विश्व बैंक बैंक अध्यक्ष, डेविड मालपास ने पीएम मोदी से कहा था कि देश में लेन-देन में पारदर्शिता लाने और बिक्री के समय ज्यादा से ज्यादा जमीन मुहैया कराने के लिये देश के जमीन रिकॉर्डों को डिजिटाइज करने की जरूरत है. वियतनाम और फिलीपींस चीन से निकलने वाली कंपनियों को अपनी तरफ आकर्षित करने में कामयाब हो रहे हैं. इसके पीछे दोनो देशों में समान और पारर्दर्शी नितियों का होना एक बड़ा कारण है. भारत में करारों का पूरा न होना और विवादों के निपटारे में देरी, निवेशकों के लिये परेशानी का सबब बन गये हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री, पीवी नरसिंह राव के कार्यकाल में, ये माना गया था कि भारत में आजाद न्यायपालिका के कारण देश के दरवाजे वैश्विकरण के लिये खोलने से विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा. हांलाकि भारत अभी भी चीन के अलावा निवेश का इंतजार कर रहा है. वहीं चीन इस मामले में अमरीका की बराबरी करते हुए 12 ट्रिलियन डॉलर का निवेश देख चुका है.
वित्त मंत्री के सलाहाकार संजीव सान्यल के मुताबिक, करार और मसौदों को लागू कराने में विश्व में भारत का 163वां स्थान है. इन हालात के पीछे ढीली सरकारी नीतियों का दोष है.
मनमोहन सिंह सरकार के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने दूरसंचार कंपनी वोडाफोन और भारत सरकार के बीच एक कर विवाद मामले में, वोडाफोन के पक्ष में फैसला सुनाया था. लेकिन केंद्र सरकार ने आयकर कानून के प्रवधानों की आड़ में न्यायिक फैसलों को रद्द करके कंपनी को बकाया भुगतान नहीं किया. इसके चलते अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के बीच डर का माहौल बन गया है.
हाल ही में महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार द्वारा मेट्रो रेल परियोजना पर रोक के कारण पैदा हुई स्थति ने असमंजस के हालात बना दिये हैं. इस तरह के मामले से पैदा हुए कानूनी मसलों के भविष्य के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता.