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अयोध्या मामला : SC ने मुस्लिम पक्षकारों को दी लिखित नोट रिकॉर्ड में लाने की अनुमति - Supreme Court

अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि मामले में उच्चत न्यायालय ने मुस्लिम पक्षकारों को अपने लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति दे दी. मामले में मुस्लिम पक्षकारों ने कहा है कि फैसले का देश की भविष्य की राज्यव्यवस्था पर 'प्रभाव' पड़ेगा. पढ़ें पूरी खबर...

फाइल फोटो
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Published : Oct 21, 2019, 3:57 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने दशकों पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड समेत मुस्लिम पक्षकारों को अपने लिखित नोट दाखिल करने की सोमवार को अनुमति दे दी.

मुस्लिम पक्षकारों ने कहा है कि फैसले का देश की भविष्य की राज्यव्यवस्था पर 'प्रभाव' पड़ेगा. मुस्लिम पक्षकारों के एक वकील ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुआई वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष कहा कि उन्हें 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' (राहत में बदलाव) पर उनके लिखित नोट रिकॉर्ड में लाने की अनुमति दी जाए ताकि पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस पर गौर कर सके.

संविधान पीठ ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले की 40 दिनों तक सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

पढ़ें - विहिप का दावा - राम मंदिर का आधा से ज्यादा काम पूरा हो चुका है

मामले में मुस्लिम पक्षकारों के एक वकील ने कहा कि विभिन्न पक्षों और शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री ने मुस्लिम पक्षकारों द्वारा सीलबंद लिफाफे में अपने लिखित नोट दाखिल कराने पर आपत्ति जताई है.

उन्होंने कहा, 'हमने रविवार को सभी पक्षकारों को अपने लिखित नोट भेज दिये.' उन्होंने न्यायालय से अनुरोध किया कि वह उनके नोट को रिकॉर्ड में रखने का रजिस्ट्री को आदेश दे.

आपको बता दें, पीठ में न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे और न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर भी शामिल हैं. पीठ ने कहा कि सीलबंद लिफाफे में जमा कराये गए लिखित नोट के बारे में मीडिया के कुछ वर्गों ने पहले ही खबर दे दी है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने दशकों पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड समेत मुस्लिम पक्षकारों को अपने लिखित नोट दाखिल करने की सोमवार को अनुमति दे दी.

मुस्लिम पक्षकारों ने कहा है कि फैसले का देश की भविष्य की राज्यव्यवस्था पर 'प्रभाव' पड़ेगा. मुस्लिम पक्षकारों के एक वकील ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुआई वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष कहा कि उन्हें 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' (राहत में बदलाव) पर उनके लिखित नोट रिकॉर्ड में लाने की अनुमति दी जाए ताकि पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस पर गौर कर सके.

संविधान पीठ ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले की 40 दिनों तक सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

पढ़ें - विहिप का दावा - राम मंदिर का आधा से ज्यादा काम पूरा हो चुका है

मामले में मुस्लिम पक्षकारों के एक वकील ने कहा कि विभिन्न पक्षों और शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री ने मुस्लिम पक्षकारों द्वारा सीलबंद लिफाफे में अपने लिखित नोट दाखिल कराने पर आपत्ति जताई है.

उन्होंने कहा, 'हमने रविवार को सभी पक्षकारों को अपने लिखित नोट भेज दिये.' उन्होंने न्यायालय से अनुरोध किया कि वह उनके नोट को रिकॉर्ड में रखने का रजिस्ट्री को आदेश दे.

आपको बता दें, पीठ में न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे और न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर भी शामिल हैं. पीठ ने कहा कि सीलबंद लिफाफे में जमा कराये गए लिखित नोट के बारे में मीडिया के कुछ वर्गों ने पहले ही खबर दे दी है.

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